ca-pub-6689247369064277
भारत की संविधान सभा ने अब अपना कार्य शुरू कर दिया था, विभिन्न विषयों पर चर्चा होने लगी थी जैसे मौलिक अधिकार, भाषा आदि! इन्हीं प्रस्तावों के बीच एक दिन आरक्षण का भी मुद्दा उठाया गया। इस विषय पर चर्चा के थोड़ी ही देर बाद पता चल गया कि सभा के ज्यादातर सदस्य इसके खिलाफ थे।
भारत की संविधान सभा ने अब अपना कार्य शुरू कर दिया था, विभिन्न विषयों पर चर्चा होने लगी थी जैसे मौलिक अधिकार, भाषा आदि! इन्हीं प्रस्तावों के बीच एक दिन आरक्षण का भी मुद्दा उठाया गया। इस विषय पर चर्चा के थोड़ी ही देर बाद पता चल गया कि सभा के ज्यादातर सदस्य इसके खिलाफ थे।
उस दिन की कार्यवाही समाप्त होने के बाद के.एम. मुंशी जो संविधान सभा के एक वरिष्ठ और विद्वान् सदस्य थे, ने डॉ अम्बेडकर को अपने पास बुलाया और कहा कि शायद आरक्षण देश के लिए ठीक नहीं होगा और चूँकि कांग्रेस के भी ज्यादातर सदस्य इसके खिलाफ ही हैं तो क्यों ना आप इसे संविधान से निकाल ही दें।
मुंशी जी का इतना कहना ही था कि बाबा आंबेडकर चिल्ला उठे और जोर से कहा कि जब तक मैं यहाँ हूँ, संविधान में आरक्षण रहेगा जब आप लोगों को मुझसे इतना घृणा ही है तो में अपना इस्तिफा दे दूंगा। और इस प्रकार उन्होंने संविधान सभा का अपना काम बंद कर दिया और घर बैठ गए।
इन सब बातों की जानकारी जब सरदार पटेल को हुई तो वह बाबा अम्बेडकर के घर गए और उनका पक्ष जानने का प्रयास किया और कहा कि आप क्यों सब काम छोड़कर घर बैठे हुए हैं। डॉ अम्बेडकर ने फिर वही आरक्षण वाली अपनी बात दोहराई, सरदार पटेल ने तब साफ़ कहा कि देखो अम्बेडकर जो बड़े पद हैं उन पर तो हम मेरिट के आधार पर ही लोगों का चयन करेंगें फिर क्यों तुम क्लर्कों के पद के लिए इतना बड़ा जोखिम उठा रहे हो।
डॉ अम्बेडकर ने कहा कि कैसा जोखिम पटेल जी?
उस पर सरदार पटेल ने कहा कि देखो अगर आज हम अछूतों (sc,st ) को आरक्षण दे देते हैं तो फिर हर समुदाय जैसे मुस्लिम, सिख, इसाई,और हिन्दुओं की अन्य जातियां आदि सभी आरक्षण की मांग करने लगेगें और देश में जाति और धर्म की ये तकरार लगातार बढ़ती जायेगी और जिस जाति व्यवस्था को हम भारत से मिटाना चाहतें हैं वो तो और भी मजबूत हो जायेगी।
(सोच के देखिये सरदार पटेल की दूरदर्शिता आज आरक्षण के नाम पर देश में क्या हो रहा हैं)
सरदार पटेल की हर बात का डॉ अम्बेडकर ने खंडन किया और अपना कानून मंत्री का इस्तीफा उनको सौंप दिया, एक जाति मुक्त भारत, अन्याय मुक्त भारत और दलितों के प्रति अपनी उदारवादी सोच की वजह से, बड़े बड़े राजाओं के सामने भी ना झुकने वाला यह लौह स्तम्भ अपने जीवन में पहली बार डॉ अम्बेडकर के सामने झुक गए और उनका इस्तीफा नहीं स्वीकारा। ( शायद ये आजाद भारत की सबसे पहली ब्लैकमेलिंग थी), और इस प्रकार भारत में आरक्षण का सूत्रपात हो गया।
लेकिन जब भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ, तो उसके मौलिक अधिकार वाले भाग 3 में अनुच्छेद 15 स्पष्ट घोषणा कर रहा था कि धर्म, लिंग, जाति, जन्मस्थान के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा और आरक्षण तो यही कर रहा है,
अत: भारत का पहला (1) संविधान संशोधन लाया गया जो अनु.15 (4) कहा गया
जिसने स्पष्ट घोषणा कर दी कि इस अनु. यानी 15 और अनु. 29(2) की कोई भी बात राज्य को सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े नागरिकों के किन्ही वर्गों और sc,st के लिए विशेष उपबंध यानी आरक्षण देने से नहीं रोकेगी।अब ये सब चल ही रहा था उधर संविधान का संरक्षक सुप्रीम कोर्ट संविधान की आत्मा में हो रहे बदलावों को देख रहा था और बार बार सरकारों से कह रहा था कि संविधान में सामाजिक पिछड़ा और शैक्षणिक पिछड़ा व sc,st के लिए आरक्षण हो एसी बात कही गयी है। और आप लोग तो पूरी की पूरी एक जाति को ही पिछड़ा बता रहे हैं ये कैसे सम्भव है कि किसी एक जाति में कोई एक भी व्यक्ति आर्थिक सामाजिक और शैक्षणिक रूप से सबल ना हो! किन्तु सरकारों ने हमेशा कहा कि भारत में पिछड़ा वर्ग का मतलब है विशेष जातियां। इन सबसे खीजकर सुप्रीम कोर्ट बारबार सरकारों को चेताता है कि आप को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि यह व्यवस्था(आरक्षण) अनादि काल तक नहीं चलने वाला है और अगर आप इसे अनादि काल तक चलाना ही चाहते हैं, तो फिर इस आरक्षण को देने का फायदा ही क्या हुआ जब 70 वर्षों से ज्यादा बीत जाने पर भी आप लोगों को गरीबी से ऊपर नहीं उठा पा रहें हैं।
जिसने स्पष्ट घोषणा कर दी कि इस अनु. यानी 15 और अनु. 29(2) की कोई भी बात राज्य को सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े नागरिकों के किन्ही वर्गों और sc,st के लिए विशेष उपबंध यानी आरक्षण देने से नहीं रोकेगी।अब ये सब चल ही रहा था उधर संविधान का संरक्षक सुप्रीम कोर्ट संविधान की आत्मा में हो रहे बदलावों को देख रहा था और बार बार सरकारों से कह रहा था कि संविधान में सामाजिक पिछड़ा और शैक्षणिक पिछड़ा व sc,st के लिए आरक्षण हो एसी बात कही गयी है। और आप लोग तो पूरी की पूरी एक जाति को ही पिछड़ा बता रहे हैं ये कैसे सम्भव है कि किसी एक जाति में कोई एक भी व्यक्ति आर्थिक सामाजिक और शैक्षणिक रूप से सबल ना हो! किन्तु सरकारों ने हमेशा कहा कि भारत में पिछड़ा वर्ग का मतलब है विशेष जातियां। इन सबसे खीजकर सुप्रीम कोर्ट बारबार सरकारों को चेताता है कि आप को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि यह व्यवस्था(आरक्षण) अनादि काल तक नहीं चलने वाला है और अगर आप इसे अनादि काल तक चलाना ही चाहते हैं, तो फिर इस आरक्षण को देने का फायदा ही क्या हुआ जब 70 वर्षों से ज्यादा बीत जाने पर भी आप लोगों को गरीबी से ऊपर नहीं उठा पा रहें हैं।
देश का दुर्भाग्य कहें या सौभाग्य सरकारें लगातार संविधान विरोधी कार्य करती रहीं, जिस आरक्षण के बारे में डॉ अम्बेडकर ने स्पष्ट रूप से कहा था कि “यह तो बैसाखी मात्र है और दलितों को ध्यान रखना चाहिए कि इससे बहुत दूर तक नहीं दौड़ा जा सकता”. परन्तु वोट बैंक कि राजनीति ने इस सन्देश को कभी तरजीह ही नहीं दी और जो आरक्षण शुरू में केवल 10 वर्षों के लिए दिया गया उसे लगातार हर 10 वर्ष बाद बिना हो हल्ला के अगले 10 वर्षो के लिए बढ़ा दिया जाता है, और यह लगातार हो रहा है जो आज तक जारी है। इतने के बाद भी जब सरकारों को चैन नहीं मिला और बसपा जैसी पार्टी का UP में उदय हुआ तो एक अजीब तरह की मांग फिर उठ गयी और वो थी पदोन्नति में आरक्षण।
और इस तरह अनु. 16 जिसमें पहले चार प्वाइंट थे उसमें 77वां संविधान संशोधन 1995 कर एक नया प्वाइंट 16(4) (A), जोड़ दिया गया जिसने इस आधार पर सरकारों को छुट दे दी कि अगर वो ये मानते हैं कि राज्य सरकार की नौकरियों में उच्च पदों पर sc,st का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है तो सरकारें पदोन्नति में भी आरक्षण दे सकती हैं। (अब यहाँ आप को ध्यान ये रखना है कि आजादी के बाद से ही 27% सीटें पहले ही आरक्षित हैं तो जाहिर सी बात है कि पद्दोन्न्ति में समान नियम के कारण ये वर्ग भी तो उच्च पदों पर पहुंचा ही होगा), अब इतना सब हो जाने के बाद भी सरकारों का मन नहीं भरा और उन्होंने एक और संविधान संशोधन (80 वां 2000) कर डाला। जिसने यह व्यवस्था दी है कि अगर किसी एक वर्ष या कई वर्षो में सरकारी नौकरियों में sc, st की सीटें खाली रह जाती है तो वह समाप्त नहीं होंगी और अगले वर्षो के लिए सुरक्षित रख ली जायेंगी और ये करते वक्त 50% आरक्षण की सीमा जो सुप्रीम कोर्ट ने तय की है, उसका उलंघन नहीं माना जाएगा।
कुल मिलाकर देखा जाय तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि सरकारों का पक्ष वोट बैंक की राजनीति की वजह से हमेशा आरक्षण के पक्ष में रहा है. और रही सुप्रीम कोर्ट की बात तो वह यह अंधेरगर्दी चुप चाप इसलिए देख रहा है कि उसे ये विश्वास नहीं हो पा रहा है कि आरक्षण के खिलाफ दिए गए उसके फैसले में भारत के लोग या इससे प्रभावित लोग उसका समर्थन करेंगें।