29 मई 2016

क्या शिव और महाशिव एक ही हैं या दो ?

सनातन वैदिक धर्म अपने आप मे बड़े बड़े रहस्यों को समेटे हुए है। इसका सम्पूर्ण चिंतन वैज्ञानिकता से ओत प्रोत है। वैसे तो हिन्दू सनातन धर्म मे अनेक देवी देवताओं की महिमा का वर्णन है जिनका अपना अपना महत्व भी है। हिन्दू धर्म मे आस्था और विशवास रखने वाले लोग अनेक देवी देवताओं को अपनी भावनाओं के अनुसार अपना आराध्य मानते है और उनका जप, तप और व्रत रखकर अपने को निहाल करते है।जिन वस्तुओं का निर्माण प्रकृति ने किया है और जो मनुष्यों द्वारा निर्मित नहीँ है वे सभी चीजें देव तुल्य है।  इस बात पर विज्ञान भी सहमत है कि हिन्दू सनातन धर्म मे जिन पांच भौतिक तत्वों का जिक्र है वे मनुष्य कृत नही है। आज विज्ञानं भी मानता है कि आर्टिकल से आर्टिकल की उत्पत्ति हुई है।जैसे पृथ्वी की उत्पत्ति जल से , जल की उत्पत्ति अग्नि से, अग्नि की उत्पत्ति वायू से और वायू की उत्पत्ति आकाश से हुई है। यहां पर एक रहस्य उजागर होता है क़ि आकाश की उत्पत्ति कैसे हुई। और क्यों सारे धर्म और सम्प्रदाय के लोग आकाश की तरफ देखकर ईस्वर से कुछ प्रार्थना करते है। क्या आकाश ही ईस्वर है ?  या ईस्वर आकाश मे कहीं छिपा है ?  अगर ईस्वर आकास मे छिपा है तो क्या आकाश को उसी ने बनाया है ?  सभी धर्म कहते है और मानते है  कि ईस्वर निराकार है।आकाश को छोड़कर चारों आर्टिकल का आकार भी है परंतु आकाश अनंत है इसका कोई आकार भी नही है। क्या यही ईस्वर है ? अगर यही ईस्वर है तो क्या इसके नाम ही शिव  और महाशिव हैं ?   यहां पर अड़चन आ जाती है। उत्तर साफ़ साफ़ नही मिल रहा। शिव का मतलब डिस्ट्रॉयर से है। तो क्या हम महाशिव को महाडिस्ट्रॉयर मान लें। जिस प्रकार विज्ञान कहता है कि आर्टिकल से आर्टिकल की उत्पत्ति हुई है इसी प्रकार आर्टिकल ही आर्टिकल का नाश भी कर देते है। जैसे पृथ्वी को जल अपने आप मे घोल लेता है पृथ्वी रहती ही नही। जल को अग्नी सुखा डालती है, जल रहता ही नही। अग्नी को वायु बुझा डालती है, अग्नि रहती ही नही। वायू को आकाश अपने मे समा लेता है। अंत मे फिर आकाश ही रह जाता है। सनातन वैदिक धर्म के अनुसार आकाश भी पांच आर्टिकल मे से एक आर्टिकल है ।और आर्टिकल का अपना एक आकार होता है। यदि आकार नही होगा तो उसको आर्टिकल नही कहा जा सकता। विज्ञानं के अनुसार यदि आकाश आर्टिकल है तो उसका भी एक न एक दिन नाश हो ही जायेगा। इससे यह बात साफ़ हो जाती है कि ईस्वर आकाश नही हो सकता क्योंकि सनातन वैदिक धर्म की प्रमाणिकता के अनुसार  ईस्वर अजर, अमर, अविनाशी है। इसका न आरम्भ है और न ही अंत। ईस्वर सर्वशक्तिमान है। उसका नाश किशी काल या परिस्थिति मे नही हो सकता। विज्ञान यहां पर आकर ठहर जाता है। यहां से अध्यात्म सुरु होता है विज्ञानं नही जनता क़ि आकाश का निर्माण कैसे हुआ ।आर्टिकल कैसे बन गए, किसने बनाए इत्यादि। विज्ञानं अभी हेलोजन कोलोराएडर से नेनो साइन्स लगाकर इसकी जानकारी एकत्र कर रहे है। सनातन वैदिक धर्म मे इन रहस्यों के उत्तर छिपे हुए है। जिसमे शिव को डिस्ट्रॉयर यानि आकाश और महाशिव को सर्वशक्तिमान बताया गया है यानी जिसने आकाश को निर्मित किया है। इसी को सनातन वैदिक धर्म मे महाशिव, सदाशिव, महाकाल, महामृत्युंजय नामों से जाना जाता है।सनातन वैदिक धर्म की गहराईयाँ यहां पर आकर खत्म नही होती। वैदिक विज्ञानं ही आजके उन्नत विज्ञानं का आधार है।  उसमें यह भी उल्लेख है कि इतनी भयानक और महाविनाशक चीज का स्रजन कैसे हो गया जिससे कोई भी बचा नही है। विज्ञानं के द्रिस्टीकोण से नासा के वैज्ञानिक वैदिक शास्त्रों को पढ़कर  इसका अध्ययन  कर रहे हैं।

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