29 मई 2017

पहले अंडा आया या मूर्गी

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पहले अंडा आया या मुर्गी, यह एक ऐसा प्रश्न बन गया है जिसको सोचकर बड़े से बड़ा बुद्धिजीवी भी दो मिनट तक सोचता ही रह जाता है, जबाब जरूर सूझता है पर संसय नही जाता, कहीं न कहीं उसके मन मे धुंध जरूर रहती है। वह पूरे आत्मविस्वास के साथ इसका उत्तर देकर संतुस्ट नही हो पाता। जब तक व्यक्ति दिमाक और दिल की गहराइयों तक गोता नही लगा ले, वह इस प्रश्न का उत्तर ढूंढ भी नही सकता। प्रश्न के उत्तर के सही होने के लिए यह  जरूरी है कि दिल की गहराइयों से निकलने वाले जबाब को व्यक्ति की आत्मा, दिल और दिमाक पूर्ण रूप से स्वीकार कर सके। मान लिया जाए कि सबसे पहले कुछ भी नही था, मगर कोई एक तो जरूर था जिसने ये कायनात बना डाली, हाँ यह संभव है कि भले ही उसने केवल एक वस्तु बनाई और फिर उसी वस्तु से  कई सारी चीज़ें बन गयी । लेकिन यदि कोई एक भी नही होता तो फिर  ये सूरज धरती पाताल आकाश हवा कहां से आ गए। समझ आते ही बच्चो के दिमाग मे अक्सर यह बात आती है और वह अपने मम्मी पापा से यह बात पूछता भी है पर होता यह है कि उसकी जिज्ञासा को शांत किये बगैर, उसको सही जबाब दिए बगैर, हम उसको बहला फुसला देते है क्योंकि हमको भी इस प्रश्न का उत्तर पता नही होता। इतना बुद्धिजीवी मनुष्य जिसने सागर की गहराइयों को नाप लिया, अंतरिक्ष मे चले गया, एक छोटे से प्रश्न का उत्तर नही ढूंढ पाया। यह प्रश्न हजारों वर्षों से लोगों को परेशान करता आया है। लेकिन वैज्ञानिकों ने इस यक्ष प्रश्न का आधा अधूरा जवाब ढूंढ़ निकालने का दावा किया है। शेफील्ड और वारविक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के एक दल ने दावा किया है कि धरती पर अंडे से पहले मुर्गी का जन्म हुआ था।डेली एक्सप्रेस के मुताबिक रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि अंडा पैदा करने वाली मुर्गियां पहले कैसे आईं। चाहे जो भी हो ,घूमफिर के बात फिर वहीं पर आ गयी। परंतु इतना तो पता चला कि सबसे पहले कोई जीवित जरूर था। अब यहां तक पहूँचने मे  यह सवाल  उठता है कि यदि कोई जीवित था तो वह अकेला क्या कर रहा था, क्या उसके साथ कोई और भी था? मेरी समझ से किसी दुसरे के होने का तो सवाल ही पैदा नही होता क्योंकि 2 होते तो उनके ऊपर भी कोई एक ही होता। घूमफिर के बात फिर वहीं पर आ जाती, इसलिए हम कह सकते है कि वह एक ही था और सुप्त अवस्था मे अक्रियासील रहा होगा। यदि क्रियासील होता तो किसी चीज़ का निर्माण हो रहा होता।  ज्ञान और अज्ञान दो शब्द है। ज्ञान का मतलब है जानना और अज्ञान का मतलब है नही जानना। जैसे दिन और रात, उजाला और अँधेरा। उजाले मे ही हम किसी वस्तु का पता लगा सकते है कि फलाना चीज वो है। इसके उलट अन्धकार मे हमको वस्तु बोध नही हो पाता। इसको दूसरी तरह मे हम कह सकते है कि ज्ञान प्रकाशवान है और अज्ञान अन्धकार। यानी सबसे पहले  वो अज्ञान यानि अंधकार मे रहा होगा। वैज्ञानिकों ने भी यूनिवर्स की उत्पत्ति को लेकर रहस्योउद्घाटन किया है कि   "dark matter is the origin of universe" .

इससे यह बात साबित होती है कि सबसे पहले अन्धकार था, और जो सर्वप्रथम था, वो अकेला अज्ञान मे था। अध्यात्म तथा वैदिक विज्ञानं भी इस बात से पूर्ण रूप से इस रहस्य को उद्घाटित कर चुका है और सहमत है। जब तक किसी जीव को ज्ञान नही होता, तब तक वह एक तरीके से अज्ञान मे ही होता है। यानी अज्ञान से ज्ञान मे जाने की कला, अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाती है। विज्ञान फ़िलहाल इस बात पर मौन है। मौन होना स्वभाविक भी है क्योंकि वह अध्यात्म को नही मानता। हालांकि आज तक विज्ञान के बहुत तरक्की की है पर वह आज तक यह पता नही लगा पाया है कि सीप बारिस के पानी को मोती कैसे बना देती है, कस्तूरी जैसी सुगंध का निर्माण कैसे किया जाए कि सुगंध लंबे अंतराल तक बने रहे, इत्यादि इत्यादि।  इतना तो तय है कि जब वो था तब और कुछ नही था, जब उसको अज्ञान की अवस्था मे लंबे समय तक रहने के बाद ज्ञान रूपी प्रकाश पुंज दिखाई दिया होगा तो उसने उस प्रकाश को विस्तार दिया होगा, प्रकाश का स्वतः का गुण यही होता है कि वह फैलता है। प्रकाश मे उसे अपनी परछाई भी दिखाई दी होगी, और संसय भी उत्पन्न हुआ होगा कि मे यह हूँ कि वो जो मेरी परछाई  दिखाई दे रही है। यह समझते हुए उसे देर भी नही लगी होगी कि मे परछाई नही हूँ। परंतु  इस बीच  एक क्षण के लिए संसय आने पर एक घटनाक्रम जरूर उत्पन्न हुआ , जिसे अज्ञान कहते है यानि अन्धकार। अध्यात्म के अनुसार ज्ञान मे आ जाने वाला कोई भी जीव दुबारा अज्ञान मे जाना पसंद नही करता क्योंकि ज्ञान मे सुख है, आनंद है,  अभय है, भोग नही है, यानी ज्ञान विकार रहित है जबकी दूसरी तरफ अज्ञान मे भय, भोग, निद्रा, मैथुन जैसे विकार मौजूद हैं।  प्रकाश यानी अग्नी। यह अलग बाद है कि प्रकाश ठंडा है या गर्म, परंतु अग्नी प्रकाश का ही एक रूप है जैसे जल के तीन रूप है, ठोस, तरल और वाष्प,पर है तो जल ही!!! अब देखते हैं ज्ञान से सुख और अज्ञान से दुःख कैसे मिलता है? यदि आप किसी ऐसी जगह पर है जहां बिलकुल भी रोशनी नही है अँधेरा ही अँधेरा है और आपको कुछ दिखाई नही दे रहा है तो आपके अंदर भय उत्पन्न हो जायेगा कि कहीं किसी चीज से टकरा न जाऊं, भय उत्पन्न होने से आपके अंदर संसय यानी doubt आ जायेगा, doubt आने से आप तय नही कर पाएंगे कि अगला कदम क्या होगा, आपको दिखाई नही देने के बाद भी आप doubt मे अगला कदम बढ़ा देंगे और आपको चोट लग जाएगी, चोट लगने से आपको कष्ट होगा और आप दुखी होंगे। यानि अंततः आपको अज्ञान के कारण दुःख उठाना पड़ा। जबकी ठीक इसके उलट ज्ञान होने पर आपको सारी चीज़ें साफ़ साफ़ दिखाई दे रही है तो आपको संसय नही आएगा, संसय न आने से आपको कोई कष्ट भी नही होगा, जिस कारण आप सुरक्षित मार्ग पर चल सकेंगे और दुःख आपके पास नही आएगा, यदि कुछ आएगा तो वो होगा सुख। ठीक इसी तरह जब सबसे पहले जीवित जीव को जो अन्धकार व अज्ञान मे था जिसको हम "सबका मालिक एक" भी कहते है, को ज्ञान उत्पन्न हुआ, उस ज्ञान से प्रकाश उत्पन्न हुआ, प्रकाश उत्पन्न होने से उस जीवित व्यक्ति को प्रकाश दिखा, प्रकाश उत्पन्न होने से सुख उत्पन्न हुआ, और सुखी सुखी उसने उस प्रकाश को थोड़ा विस्तार दिया यानी उछाला। जैसे हम तालाब के पानी को दोनों हाथों मै भरकर उछालते है, ऐसे ही उसने भी उस प्रकाश को उछाला, बहुत सारे प्रकाश बिंदु उत्पन्न हुए, और आपस उसी मे समा गए, जैसे पानी को उछालो तो वह वापस गिरकर फिर पानी मे ही मिल जाता है।  परंतु एक प्रकाश बिंदु जो अभी हवा मे ही था, ने गिरने से पहले प्रार्थना की कि मेरे अस्तित्व को बनाये रखा जाए, प्रार्थना जानकर ,प्रार्थना करने वाले को देखने पर उसे उस प्रकाश मे अपनी परछाई दिखाई दी, कुछ देर के लिए संसय उत्पन्न हुआ कि मे वो हूँ कि ये हूं, ज्ञानआवस्था मे यह जानने मे देर नही लगी कि जो दूसरी आकृति दिखाई दे रही है वो मेरी परछाई है। उसने प्रकाश बिंदु की प्रार्थना स्वीकार की और कहा कि ठीक है तुम्हारा अस्तित्व बना रहेगा, पर ये मत भूलना कि तुम्हारा अस्तित्व मुझसे है। तुम्हारे अंदर जो मेरी परछाई है वह मे ही हूँ। जिसे अध्यात्म मे soul यानी आत्मा कहा गया है।जिसका कभी विनास नही हो सकता। प्रकाश बिंदु को बाद मे विभिन्न धर्म ग्रंथों मे ब्रह्म, अल्लाह, जीसस कहा गया है। ये ऐसे ही था जैसे अज्ञानवश हम जल को देखकर उसकी तीन अवस्थाओं ( वर्फ ice, भाप steam ,पानी water) कहकर अलग अलग नामों से पुकारते है। वास्तव मे वो तो एक ही है।  जिसे ब्रह्म के बारे मे जानकारी है वो ब्रह्म ज्ञानी और जो पूर्ण ब्रह्म के बारे मे जाने उसे परम् ज्ञानी कहकर शास्त्रीय भाषा से सम्भोदित किया गया है। 

23 मई 2017

भारत पर इस्लामी साम्राज्य का झूठ

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क्या भारत पर कथित आठ सौ वर्षों तक पर इस्लामी शासन था? क्या भारत मुसलमानों का गुलाम था?

नहीं कभी नहीं

क्योंकि यदि आज भारत में हिंदू बहुसंख्यक बचा है तो वह मुसलमानों के सत्ता में रहते हुए कभी संभव नहीं था। कथित इस्लामी शासन के बाद बावजूद आज भी यदि हिंदू बहुसंख्यक बचा है तो इसके दो कारण ही हो सकते हैं:
एक तो यह कि मुसलमानी शासन में हिन्दुओं के प्रति शासको का व्यवहार उदार, सहानुभूति पूर्ण और भाईचारे का रहा हो - लेकिन यह तो कभी न हुआ, न होगा।
आज हिन्दुओं के बहुसंख्यक बचे रहने का दूसरा और वास्तविक कारण कि भारत पर इस्लामी शासन था ही नहीं या भारत के बहुत कम क्षेत्रों में और बहुत कम समय के लिए रहा हो।

मुस्लिम इतिहासकार ऐसा लिखते है कि इस्लाम द्वारा भारत विजय का प्रारंभ मुहम्मद बिन कासिम के 712 AD में सिंध पर आक्रमण से हुआ और महमूद गजनवी के आक्रमणों से स्थापित, तथा मुहम्मद गौरी के द्वारा दिल्ली के प्रथ्वीराज चौहान को 1O92 A.D. में हराने से पूर्ण हुआ - फिर दिल्ली सल्तनत के गुलाम वंश, खिलजी, तुगलक, सैयद और लोदी वंश के सुल्तान और मुग़ल बादशाह हिंदुस्तान के शासक बताये गए, पर यह काफी हद तक सच नहीं हैं।    
                 
सच यह है कि य़ह 800 वर्षोँ तक चलने वाला हिन्दू मुस्लिम युद्ध था जिसमे अंतिम विजय मराठा साम्राज्य , राजपूत और सिख साम्राज्य के रूप में हुई और अब सच की  विवेचना के लिए इनके बारे में कुछ तथ्य:                                                                                           मुहम्मद बिन कासिम 712 AD में जब वह सिंध के राजा दाहिर को हराकर आगे बढ़ा उसे गहलोत वंश के राजा कालभोज ने बुरी तरह हराकर वापस भेजा (सेनानायक तक्षक की अहम भूमिका थी), अब अगले 250 वर्ष तक मुस्लिम प्रयास तो बहुत हुए, पर पीछे धकेल दिए गए  इस  बीच भारत में हिन्दू राज्य ही प्रभावी रहे।

1000 AD से महमूद गजनवी के कथित सत्रह आक्रमणों में पांच हारे, और पांच मन्दिरों की लूट की, सबसे महत्वपूर्ण सोमनाथ की लूट की दौलत भी गजनी तक वापस नहीं ले जा पाया, जिसे सिन्ध के जाटों ने लूट लिया था। वह कही भी सत्ता स्थापित नहीं कर पाया।

इसके बाद अगले 150 वर्ष तक फिर कोई मुसलमान हिन्दू सत्ता को चुनौती देने को नहीं आया और भारत में  हिन्दू राज्य प्रभावी बने रहे।

1178 में मुहम्मद गौरी का गुजरात पर आक्रमण हुआ , चालुक्य राजा ने गौरी को बुरी तरह हराया , 1191 में पृथ्वीराज ने भी गौरी को हराया।

1192 में गौरी ने पृथ्वीराज को हराया फिर गौरी ने पंजाब, सिंध, दिल्ली, और कन्नौज जीते... पर ये विजयें अस्थायी रहीं क्योंकि वह 1206 में सिंध के खक्खरों के साथ युद्ध में गौरी मार डाला गया। उसके बाद सत्ता में आया कुतुबुद्दीन ऐबक भी 1210 में लाहौर में ही मर गया और गौरी का जीता हुआ क्षेत्र बिखर गया।

उसके बाद इल्तुतमिश ने अजमेर, रणथम्मौर, ग्वालियर, कालिंजर और महोबा जीते मगर कुछ समय में ही कालिंजर चंदेलों ने, ग्वालियर के प्रतिहारों ने, बूंदी को चौहानो ने, मालवा को परमारों ने वापस ले लिया। रणथम्मौर, मथुरा पर राजपूत कब्ज़ा कर चुके थे गहलोत वंशी जैत्र सिंह ने इल्तुतमिश से चित्तौड़ वापस ले लिया। इस प्रकार सत्ता हिन्दुओं के हाथ में ही रही थी।
                                                                                                                                                                    उसके बाद बलबन ने राज्य बिखराव और हिन्दू ज्वार रोकने में असफल रहा और सल्तनत सिमटकर दिल्ली के आसपास सिमट कर रह गयी थी। गुलाम वंश को हटाकर खिलजी वंश आया, इस वंश के अलाउद्दीन खिलजी ने1298 में गुजरात और 1303 मे चित्तौड़ जीत लिया- पर 1316 में राजपूतों ने पुनः चित्तौड़ वापस जीत लिया, रणथम्मौर में भी खिलजी को हार का मुंह देखना पड़ा था। खिलजी के सेनापति  मलिक काफूर ने देवगिरी, वारंगल, द्वारसमुद्र और मदुराई पर अभियान किया और जीता, पर उसके वापस जाते ही इन राजाओं ने अपने को स्वतत्र घोषित कर दिया। 1316 में खिलजी के मरने के बाद उसका  राज्य ध्वस्त हो गया। इसके बाद तुगलक वंश आया,1325 में मुहम्मद तुगलक ने  देवगिरी और काम्पिली राज्य पर विजय और द्वारसमुद्र और मदुराई को शासन के अन्तर्गत लाया , राजधानी दिल्ली से हटाकर देवगिरी ले गया। पर मेवाड़ के महाराणा हम्मीर सिंह ने मुहम्मद तुगलक को बुरी तरह हराया और कैद कर लिया था फिर अजमेर, रणथम्मौर और नागौर पर आधिपत्य के साथ 50 लाख रुपये देने पर छोड़ा जिससे तुगलक राज्य दिल्ली तक सीमित रह गया और 1399 में तैमूर के आक्रमण से तुगलक राज्य पूरी तरह बिखर गया। मुहम्मद तुगलक पर विजय के उपलक्ष्य में हम्मीर ने “महाराणा“ की उपाधि धारण की उसके बाद महाराणा कुम्भा द्वारा गुजरात के राजा कुतुबुद्दीन और मालवा के सुल्तान पर विजय। इन विजयों के उपलक्ष्य में चित्तौड़ गढ़ मे विजय स्तम्भ और पूरे राजस्थान में 32 किले भी बनवाये। महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) ने मालवा के शासक को पराजित कर बंदी बनाया और छह महीने बाद छोड़ा। 1519 में इब्राहीम लोदी को हराया। इस प्रकार महाराणा हम्मीर से राणा सांगा तक 1326 से 1527 (200 वर्ष तक) उत्तर भारत के सबसे बड़े भूभाग पर हिन्दू साम्राज्य छा रहा था और इन्हें चुनौती देने वाला कोई नहीं था।

इसी बीच दक्षिण में विजय नगर साम्राज्य हिन्दू शक्ति के रूप में केन्द्रित हो चूका था और कृष्ण देव राय (1505-1530) के समय चरम उत्कर्ष पर था और उड़ीसा ने भी हिन्दू स्वातंत्र्य पा लिया था।

तुगलकों के बाद सैयद वंश 1414 से 1451 तक और लोदी वंश 1451 से 1526 तक रहा जो दिल्ली के आस पास तक ही रह गया था इसके बाद , फिर इब्राहीम लोदी को राणा सांगा ने हराया।
                                       
प्रमुख इतिहासकार आर सी मजूमदार लिखते है कि दिल्ली सल्तनत अलाउद्दीन खिलजी राज्य के 20 साल (1300-1320) और मुहम्मद तुगलक के 10 साल, इन दो समय को छोड़कर भारत पर तुर्की का कोई साम्राज्य नहीं रहा था।

फिर मुग़ल वंश आया मुग़ल बाबर ने कुछ विजयें अपने नाम की पर कोई स्थायी साम्राज्य बनाने में असफल रहा, उसका बेटा  हुमायु भी शेरशाह से हार कर भारत से बाहर भाग गया था।

शेर शाह (1540-1545) तक रण थम्मौर और अजमेर को जीता पर कालिंजर युद्ध के दौरान उसकी मौत हो गयी और उसका राज्य अस्थायी ही रहा। और फिर एक बार हिन्दू राज्य सगठित हुए और दिल्ली की गद्दी पर राजा हेम चन्द्र ने 1556 में विक्रमादित्य की उपाधि धारण की।

1556 में ही अकबर ने हेमचन्द्र (हेमू ) को हराकर मुग़ल साम्राज्य का स्थायी राज्य स्थापित किया जो 150 वर्ष तक चला जिसमे सभी दिशाओं राज्य विस्तार हुआ, ये अधिकांश विजयें राजपूत सेनापतियों और उनकी सेनाओं द्वारा हासिल की गयीं जिनका श्रेय अकबर ने अकेले लिया। अकबर ने इस्लामिक कट्टरता छोड़ राजपूतों की शक्ति को समझा और उन्हें सहयोगी बनाया, जहाँगीर और शाहजहाँ के समय तक यही नीति चली, इन 100 वर्षों में  मुसलमानों और हिन्दुओं का संयुक्त और हिन्दू शक्ति पर आश्रित राज्य था इस्लामी राज्य नहीं | पूरे मुग़ल राज्य के बीच भी मेवाड़ में राजपूतों की सत्ता कायम रही।

औरंगजेब ने जैसे ही अकबर की नीतियों के विपरीत इस्लामी नीतियां लागू करनी आरम्भ की, राजपूतों ने अपने को स्वतन्त्र कर लिया, उधर शिवाजी ने मुग़ल साम्राज्य की नीव खोद दी और 1707 तक मुग़ल राज्य का समापन हो गया उसके बाद के दिल्ली के बादशाह दयनीय स्थिति में कभी मराठों के, कभी अंग्रेजों के आश्रित रहे।

1674 से 1818 तक  मराठा हिन्दू साम्राज्य भारत के दो तिहाई हिस्से पर छा गया था राजस्थान में राजपूत राज्य और पंजाब में सिख साम्राज्य हिन्दू राज्य के रूप में विजयी  हुए| इन हिन्दू शक्तियों के द्वारा मुस्लिम सत्ता की पूर्ण पराजय और अंत हुआ।

इस प्रकार जिसे मुस्लिम साम्राज्य कहा जाता है वह वस्तुतः हिन्दू राजाओं और मुसलमान आक्रमण कारियों  के बीच एक लम्बे समय (800 वर्ष) तक चलने वाला युद्ध था कुछ लड़ाइयाँ हिन्दू हारे , कुछ में हराया और अंतिम जीत हिन्दुओं की ही रही।

इस्लाम 800 वर्षो तक भारत को जीतने के लिए संघर्ष करता रहा और अंत में प्रबल हिन्दू प्रतिरोध के चलते साम्राज्य बनाने में असफल हुआ और हिन्दू शक्तियां विजयी रही और हिन्दू समाज सुरक्षित रहते हुए बहुसंख्यक बना रहा।


12 मई 2017

तीन तलाक़

ca-pub-6689247369064277 :

तीन तलाक का कतइ यह मतलब नहीं है कि एकबार में तीन तलाक कहकर तलाक दे देना । कुरआन शरीफ में तीन तलाक नहीं है बल्कि यह खलीफा उमर की देन है।

कुरआन के अनुसार एक बार तलाक बोले या हजार बार वह तलाक है . ट्रिपल तलाक का मतलब हुआ तीन माह तक इंतज़ार और उस दौरान बीबी पति के घर ही रहेगी, जब तीन मासिक धर्म पूरा हो जाएगा तब वह किसी दुसरे से निकाह कर सकती है परन्तु अगर इस तीन माह के दौरान पति पत्नी में समझौता हो गया तो वे पुन: पति पत्नी की तरह संबंध बना सकते है, इस्लाम के मुताबिक़ वह हराम नहीं मानी जायेगी और उसको किसी अन्य के साथ निकाह कर के तलाक लेना जिसे हलाला कहते है उसकी कोई जरूरत नहीं पड़ेगी । लेकिन अगर पति पत्नी में संबंध बन भी गया और किसी मजबूत तार्किक कारण से पति ने दुबारा तलाक चाहे दो -चार साल बाद भी कह दिया तो पुन: तीन माह तक वही प्रक्रिया दुहराई जायेगी अगर समझौता हो गया तब फिर से संबंध बहाल हो जाएगा।

दूसरे तलाक की स्थिति में घर परिवार धार्मिक मौलवी का यह फर्ज है कि समझौता करवा दे । पुन: अगर तीसरी बार पति तलाक देता है चाहे दुसरे तलाक के दस साल बाद ही क्यों नहीं तो इस स्थिति में कोई समझौता नहीं होगा, तथा पति और पत्नी के दरम्यान कोई भी संबन्ध हराम माना जाएगा।  हां उसके लिए एक ही प्रावधान है अगर पत्नी ने किसी अन्य के साथ निकाह कर लिया है। और उस दूसरे पति ने जायज कारणों से उसको तलाक दे दिया हो या वह बेवा हो गई तो वह पुन: अपने पूर्व पति से निकाह कर सकती है , इस प्रावधान का ही बेजा फायदा मौलवी उठाते है और इस्लाम के विपरीत तीन तलाक होने के बाद दूसरे के साथ निकाह करके तलाक दिलवा कर पुन: पूर्व पति से निकाह करवा देते है ।दूसरे पति से तलाक या बेवा होने के बाद पूर्व पति से निकाह करना और संबन्ध बनाना हराम नहीं रह जाता बल्कि वह हलाल होता है और इस प्रक्रिया को ही हलाला नाम मुल्लाओ ने दे दिया है ।. अब अगर ट्रिपल तलाक का अवलोकन करें तो स्पष्ट है कि इस प्रकार विवाद की स्थिति में दो अवसर पूरी जिन्दगी में दिया गया है आपस में सुलह करने का I

अफ़सोस मुल्ला मौलवी यह सब नहीं बताते है और गलत व्याख्या करते है जिसका परिणाम महिलाओं को भुगतना पड़ता है