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पहले अंडा आया या मुर्गी, यह एक ऐसा प्रश्न बन गया है जिसको सोचकर बड़े से बड़ा बुद्धिजीवी भी दो मिनट तक सोचता ही रह जाता है, जबाब जरूर सूझता है पर संसय नही जाता, कहीं न कहीं उसके मन मे धुंध जरूर रहती है। वह पूरे आत्मविस्वास के साथ इसका उत्तर देकर संतुस्ट नही हो पाता। जब तक व्यक्ति दिमाक और दिल की गहराइयों तक गोता नही लगा ले, वह इस प्रश्न का उत्तर ढूंढ भी नही सकता। प्रश्न के उत्तर के सही होने के लिए यह जरूरी है कि दिल की गहराइयों से निकलने वाले जबाब को व्यक्ति की आत्मा, दिल और दिमाक पूर्ण रूप से स्वीकार कर सके। मान लिया जाए कि सबसे पहले कुछ भी नही था, मगर कोई एक तो जरूर था जिसने ये कायनात बना डाली, हाँ यह संभव है कि भले ही उसने केवल एक वस्तु बनाई और फिर उसी वस्तु से कई सारी चीज़ें बन गयी । लेकिन यदि कोई एक भी नही होता तो फिर ये सूरज धरती पाताल आकाश हवा कहां से आ गए। समझ आते ही बच्चो के दिमाग मे अक्सर यह बात आती है और वह अपने मम्मी पापा से यह बात पूछता भी है पर होता यह है कि उसकी जिज्ञासा को शांत किये बगैर, उसको सही जबाब दिए बगैर, हम उसको बहला फुसला देते है क्योंकि हमको भी इस प्रश्न का उत्तर पता नही होता। इतना बुद्धिजीवी मनुष्य जिसने सागर की गहराइयों को नाप लिया, अंतरिक्ष मे चले गया, एक छोटे से प्रश्न का उत्तर नही ढूंढ पाया। यह प्रश्न हजारों वर्षों से लोगों को परेशान करता आया है। लेकिन वैज्ञानिकों ने इस यक्ष प्रश्न का आधा अधूरा जवाब ढूंढ़ निकालने का दावा किया है। शेफील्ड और वारविक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के एक दल ने दावा किया है कि धरती पर अंडे से पहले मुर्गी का जन्म हुआ था।डेली एक्सप्रेस के मुताबिक रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि अंडा पैदा करने वाली मुर्गियां पहले कैसे आईं। चाहे जो भी हो ,घूमफिर के बात फिर वहीं पर आ गयी। परंतु इतना तो पता चला कि सबसे पहले कोई जीवित जरूर था। अब यहां तक पहूँचने मे यह सवाल उठता है कि यदि कोई जीवित था तो वह अकेला क्या कर रहा था, क्या उसके साथ कोई और भी था? मेरी समझ से किसी दुसरे के होने का तो सवाल ही पैदा नही होता क्योंकि 2 होते तो उनके ऊपर भी कोई एक ही होता। घूमफिर के बात फिर वहीं पर आ जाती, इसलिए हम कह सकते है कि वह एक ही था और सुप्त अवस्था मे अक्रियासील रहा होगा। यदि क्रियासील होता तो किसी चीज़ का निर्माण हो रहा होता। ज्ञान और अज्ञान दो शब्द है। ज्ञान का मतलब है जानना और अज्ञान का मतलब है नही जानना। जैसे दिन और रात, उजाला और अँधेरा। उजाले मे ही हम किसी वस्तु का पता लगा सकते है कि फलाना चीज वो है। इसके उलट अन्धकार मे हमको वस्तु बोध नही हो पाता। इसको दूसरी तरह मे हम कह सकते है कि ज्ञान प्रकाशवान है और अज्ञान अन्धकार। यानी सबसे पहले वो अज्ञान यानि अंधकार मे रहा होगा। वैज्ञानिकों ने भी यूनिवर्स की उत्पत्ति को लेकर रहस्योउद्घाटन किया है कि "dark matter is the origin of universe" .
इससे यह बात साबित होती है कि सबसे पहले अन्धकार था, और जो सर्वप्रथम था, वो अकेला अज्ञान मे था। अध्यात्म तथा वैदिक विज्ञानं भी इस बात से पूर्ण रूप से इस रहस्य को उद्घाटित कर चुका है और सहमत है। जब तक किसी जीव को ज्ञान नही होता, तब तक वह एक तरीके से अज्ञान मे ही होता है। यानी अज्ञान से ज्ञान मे जाने की कला, अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाती है। विज्ञान फ़िलहाल इस बात पर मौन है। मौन होना स्वभाविक भी है क्योंकि वह अध्यात्म को नही मानता। हालांकि आज तक विज्ञान के बहुत तरक्की की है पर वह आज तक यह पता नही लगा पाया है कि सीप बारिस के पानी को मोती कैसे बना देती है, कस्तूरी जैसी सुगंध का निर्माण कैसे किया जाए कि सुगंध लंबे अंतराल तक बने रहे, इत्यादि इत्यादि। इतना तो तय है कि जब वो था तब और कुछ नही था, जब उसको अज्ञान की अवस्था मे लंबे समय तक रहने के बाद ज्ञान रूपी प्रकाश पुंज दिखाई दिया होगा तो उसने उस प्रकाश को विस्तार दिया होगा, प्रकाश का स्वतः का गुण यही होता है कि वह फैलता है। प्रकाश मे उसे अपनी परछाई भी दिखाई दी होगी, और संसय भी उत्पन्न हुआ होगा कि मे यह हूँ कि वो जो मेरी परछाई दिखाई दे रही है। यह समझते हुए उसे देर भी नही लगी होगी कि मे परछाई नही हूँ। परंतु इस बीच एक क्षण के लिए संसय आने पर एक घटनाक्रम जरूर उत्पन्न हुआ , जिसे अज्ञान कहते है यानि अन्धकार। अध्यात्म के अनुसार ज्ञान मे आ जाने वाला कोई भी जीव दुबारा अज्ञान मे जाना पसंद नही करता क्योंकि ज्ञान मे सुख है, आनंद है, अभय है, भोग नही है, यानी ज्ञान विकार रहित है जबकी दूसरी तरफ अज्ञान मे भय, भोग, निद्रा, मैथुन जैसे विकार मौजूद हैं। प्रकाश यानी अग्नी। यह अलग बाद है कि प्रकाश ठंडा है या गर्म, परंतु अग्नी प्रकाश का ही एक रूप है जैसे जल के तीन रूप है, ठोस, तरल और वाष्प,पर है तो जल ही!!! अब देखते हैं ज्ञान से सुख और अज्ञान से दुःख कैसे मिलता है? यदि आप किसी ऐसी जगह पर है जहां बिलकुल भी रोशनी नही है अँधेरा ही अँधेरा है और आपको कुछ दिखाई नही दे रहा है तो आपके अंदर भय उत्पन्न हो जायेगा कि कहीं किसी चीज से टकरा न जाऊं, भय उत्पन्न होने से आपके अंदर संसय यानी doubt आ जायेगा, doubt आने से आप तय नही कर पाएंगे कि अगला कदम क्या होगा, आपको दिखाई नही देने के बाद भी आप doubt मे अगला कदम बढ़ा देंगे और आपको चोट लग जाएगी, चोट लगने से आपको कष्ट होगा और आप दुखी होंगे। यानि अंततः आपको अज्ञान के कारण दुःख उठाना पड़ा। जबकी ठीक इसके उलट ज्ञान होने पर आपको सारी चीज़ें साफ़ साफ़ दिखाई दे रही है तो आपको संसय नही आएगा, संसय न आने से आपको कोई कष्ट भी नही होगा, जिस कारण आप सुरक्षित मार्ग पर चल सकेंगे और दुःख आपके पास नही आएगा, यदि कुछ आएगा तो वो होगा सुख। ठीक इसी तरह जब सबसे पहले जीवित जीव को जो अन्धकार व अज्ञान मे था जिसको हम "सबका मालिक एक" भी कहते है, को ज्ञान उत्पन्न हुआ, उस ज्ञान से प्रकाश उत्पन्न हुआ, प्रकाश उत्पन्न होने से उस जीवित व्यक्ति को प्रकाश दिखा, प्रकाश उत्पन्न होने से सुख उत्पन्न हुआ, और सुखी सुखी उसने उस प्रकाश को थोड़ा विस्तार दिया यानी उछाला। जैसे हम तालाब के पानी को दोनों हाथों मै भरकर उछालते है, ऐसे ही उसने भी उस प्रकाश को उछाला, बहुत सारे प्रकाश बिंदु उत्पन्न हुए, और आपस उसी मे समा गए, जैसे पानी को उछालो तो वह वापस गिरकर फिर पानी मे ही मिल जाता है। परंतु एक प्रकाश बिंदु जो अभी हवा मे ही था, ने गिरने से पहले प्रार्थना की कि मेरे अस्तित्व को बनाये रखा जाए, प्रार्थना जानकर ,प्रार्थना करने वाले को देखने पर उसे उस प्रकाश मे अपनी परछाई दिखाई दी, कुछ देर के लिए संसय उत्पन्न हुआ कि मे वो हूँ कि ये हूं, ज्ञानआवस्था मे यह जानने मे देर नही लगी कि जो दूसरी आकृति दिखाई दे रही है वो मेरी परछाई है। उसने प्रकाश बिंदु की प्रार्थना स्वीकार की और कहा कि ठीक है तुम्हारा अस्तित्व बना रहेगा, पर ये मत भूलना कि तुम्हारा अस्तित्व मुझसे है। तुम्हारे अंदर जो मेरी परछाई है वह मे ही हूँ। जिसे अध्यात्म मे soul यानी आत्मा कहा गया है।जिसका कभी विनास नही हो सकता। प्रकाश बिंदु को बाद मे विभिन्न धर्म ग्रंथों मे ब्रह्म, अल्लाह, जीसस कहा गया है। ये ऐसे ही था जैसे अज्ञानवश हम जल को देखकर उसकी तीन अवस्थाओं ( वर्फ ice, भाप steam ,पानी water) कहकर अलग अलग नामों से पुकारते है। वास्तव मे वो तो एक ही है। जिसे ब्रह्म के बारे मे जानकारी है वो ब्रह्म ज्ञानी और जो पूर्ण ब्रह्म के बारे मे जाने उसे परम् ज्ञानी कहकर शास्त्रीय भाषा से सम्भोदित किया गया है।
इससे यह बात साबित होती है कि सबसे पहले अन्धकार था, और जो सर्वप्रथम था, वो अकेला अज्ञान मे था। अध्यात्म तथा वैदिक विज्ञानं भी इस बात से पूर्ण रूप से इस रहस्य को उद्घाटित कर चुका है और सहमत है। जब तक किसी जीव को ज्ञान नही होता, तब तक वह एक तरीके से अज्ञान मे ही होता है। यानी अज्ञान से ज्ञान मे जाने की कला, अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाती है। विज्ञान फ़िलहाल इस बात पर मौन है। मौन होना स्वभाविक भी है क्योंकि वह अध्यात्म को नही मानता। हालांकि आज तक विज्ञान के बहुत तरक्की की है पर वह आज तक यह पता नही लगा पाया है कि सीप बारिस के पानी को मोती कैसे बना देती है, कस्तूरी जैसी सुगंध का निर्माण कैसे किया जाए कि सुगंध लंबे अंतराल तक बने रहे, इत्यादि इत्यादि। इतना तो तय है कि जब वो था तब और कुछ नही था, जब उसको अज्ञान की अवस्था मे लंबे समय तक रहने के बाद ज्ञान रूपी प्रकाश पुंज दिखाई दिया होगा तो उसने उस प्रकाश को विस्तार दिया होगा, प्रकाश का स्वतः का गुण यही होता है कि वह फैलता है। प्रकाश मे उसे अपनी परछाई भी दिखाई दी होगी, और संसय भी उत्पन्न हुआ होगा कि मे यह हूँ कि वो जो मेरी परछाई दिखाई दे रही है। यह समझते हुए उसे देर भी नही लगी होगी कि मे परछाई नही हूँ। परंतु इस बीच एक क्षण के लिए संसय आने पर एक घटनाक्रम जरूर उत्पन्न हुआ , जिसे अज्ञान कहते है यानि अन्धकार। अध्यात्म के अनुसार ज्ञान मे आ जाने वाला कोई भी जीव दुबारा अज्ञान मे जाना पसंद नही करता क्योंकि ज्ञान मे सुख है, आनंद है, अभय है, भोग नही है, यानी ज्ञान विकार रहित है जबकी दूसरी तरफ अज्ञान मे भय, भोग, निद्रा, मैथुन जैसे विकार मौजूद हैं। प्रकाश यानी अग्नी। यह अलग बाद है कि प्रकाश ठंडा है या गर्म, परंतु अग्नी प्रकाश का ही एक रूप है जैसे जल के तीन रूप है, ठोस, तरल और वाष्प,पर है तो जल ही!!! अब देखते हैं ज्ञान से सुख और अज्ञान से दुःख कैसे मिलता है? यदि आप किसी ऐसी जगह पर है जहां बिलकुल भी रोशनी नही है अँधेरा ही अँधेरा है और आपको कुछ दिखाई नही दे रहा है तो आपके अंदर भय उत्पन्न हो जायेगा कि कहीं किसी चीज से टकरा न जाऊं, भय उत्पन्न होने से आपके अंदर संसय यानी doubt आ जायेगा, doubt आने से आप तय नही कर पाएंगे कि अगला कदम क्या होगा, आपको दिखाई नही देने के बाद भी आप doubt मे अगला कदम बढ़ा देंगे और आपको चोट लग जाएगी, चोट लगने से आपको कष्ट होगा और आप दुखी होंगे। यानि अंततः आपको अज्ञान के कारण दुःख उठाना पड़ा। जबकी ठीक इसके उलट ज्ञान होने पर आपको सारी चीज़ें साफ़ साफ़ दिखाई दे रही है तो आपको संसय नही आएगा, संसय न आने से आपको कोई कष्ट भी नही होगा, जिस कारण आप सुरक्षित मार्ग पर चल सकेंगे और दुःख आपके पास नही आएगा, यदि कुछ आएगा तो वो होगा सुख। ठीक इसी तरह जब सबसे पहले जीवित जीव को जो अन्धकार व अज्ञान मे था जिसको हम "सबका मालिक एक" भी कहते है, को ज्ञान उत्पन्न हुआ, उस ज्ञान से प्रकाश उत्पन्न हुआ, प्रकाश उत्पन्न होने से उस जीवित व्यक्ति को प्रकाश दिखा, प्रकाश उत्पन्न होने से सुख उत्पन्न हुआ, और सुखी सुखी उसने उस प्रकाश को थोड़ा विस्तार दिया यानी उछाला। जैसे हम तालाब के पानी को दोनों हाथों मै भरकर उछालते है, ऐसे ही उसने भी उस प्रकाश को उछाला, बहुत सारे प्रकाश बिंदु उत्पन्न हुए, और आपस उसी मे समा गए, जैसे पानी को उछालो तो वह वापस गिरकर फिर पानी मे ही मिल जाता है। परंतु एक प्रकाश बिंदु जो अभी हवा मे ही था, ने गिरने से पहले प्रार्थना की कि मेरे अस्तित्व को बनाये रखा जाए, प्रार्थना जानकर ,प्रार्थना करने वाले को देखने पर उसे उस प्रकाश मे अपनी परछाई दिखाई दी, कुछ देर के लिए संसय उत्पन्न हुआ कि मे वो हूँ कि ये हूं, ज्ञानआवस्था मे यह जानने मे देर नही लगी कि जो दूसरी आकृति दिखाई दे रही है वो मेरी परछाई है। उसने प्रकाश बिंदु की प्रार्थना स्वीकार की और कहा कि ठीक है तुम्हारा अस्तित्व बना रहेगा, पर ये मत भूलना कि तुम्हारा अस्तित्व मुझसे है। तुम्हारे अंदर जो मेरी परछाई है वह मे ही हूँ। जिसे अध्यात्म मे soul यानी आत्मा कहा गया है।जिसका कभी विनास नही हो सकता। प्रकाश बिंदु को बाद मे विभिन्न धर्म ग्रंथों मे ब्रह्म, अल्लाह, जीसस कहा गया है। ये ऐसे ही था जैसे अज्ञानवश हम जल को देखकर उसकी तीन अवस्थाओं ( वर्फ ice, भाप steam ,पानी water) कहकर अलग अलग नामों से पुकारते है। वास्तव मे वो तो एक ही है। जिसे ब्रह्म के बारे मे जानकारी है वो ब्रह्म ज्ञानी और जो पूर्ण ब्रह्म के बारे मे जाने उसे परम् ज्ञानी कहकर शास्त्रीय भाषा से सम्भोदित किया गया है।
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