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तीन तलाक का कतइ यह मतलब नहीं है कि एकबार में तीन तलाक कहकर तलाक दे देना । कुरआन शरीफ में तीन तलाक नहीं है बल्कि यह खलीफा उमर की देन है।
कुरआन के अनुसार एक बार तलाक बोले या हजार बार वह तलाक है . ट्रिपल तलाक का मतलब हुआ तीन माह तक इंतज़ार और उस दौरान बीबी पति के घर ही रहेगी, जब तीन मासिक धर्म पूरा हो जाएगा तब वह किसी दुसरे से निकाह कर सकती है परन्तु अगर इस तीन माह के दौरान पति पत्नी में समझौता हो गया तो वे पुन: पति पत्नी की तरह संबंध बना सकते है, इस्लाम के मुताबिक़ वह हराम नहीं मानी जायेगी और उसको किसी अन्य के साथ निकाह कर के तलाक लेना जिसे हलाला कहते है उसकी कोई जरूरत नहीं पड़ेगी । लेकिन अगर पति पत्नी में संबंध बन भी गया और किसी मजबूत तार्किक कारण से पति ने दुबारा तलाक चाहे दो -चार साल बाद भी कह दिया तो पुन: तीन माह तक वही प्रक्रिया दुहराई जायेगी अगर समझौता हो गया तब फिर से संबंध बहाल हो जाएगा।
दूसरे तलाक की स्थिति में घर परिवार धार्मिक मौलवी का यह फर्ज है कि समझौता करवा दे । पुन: अगर तीसरी बार पति तलाक देता है चाहे दुसरे तलाक के दस साल बाद ही क्यों नहीं तो इस स्थिति में कोई समझौता नहीं होगा, तथा पति और पत्नी के दरम्यान कोई भी संबन्ध हराम माना जाएगा। हां उसके लिए एक ही प्रावधान है अगर पत्नी ने किसी अन्य के साथ निकाह कर लिया है। और उस दूसरे पति ने जायज कारणों से उसको तलाक दे दिया हो या वह बेवा हो गई तो वह पुन: अपने पूर्व पति से निकाह कर सकती है , इस प्रावधान का ही बेजा फायदा मौलवी उठाते है और इस्लाम के विपरीत तीन तलाक होने के बाद दूसरे के साथ निकाह करके तलाक दिलवा कर पुन: पूर्व पति से निकाह करवा देते है ।दूसरे पति से तलाक या बेवा होने के बाद पूर्व पति से निकाह करना और संबन्ध बनाना हराम नहीं रह जाता बल्कि वह हलाल होता है और इस प्रक्रिया को ही हलाला नाम मुल्लाओ ने दे दिया है ।. अब अगर ट्रिपल तलाक का अवलोकन करें तो स्पष्ट है कि इस प्रकार विवाद की स्थिति में दो अवसर पूरी जिन्दगी में दिया गया है आपस में सुलह करने का I
अफ़सोस मुल्ला मौलवी यह सब नहीं बताते है और गलत व्याख्या करते है जिसका परिणाम महिलाओं को भुगतना पड़ता है
तीन तलाक का कतइ यह मतलब नहीं है कि एकबार में तीन तलाक कहकर तलाक दे देना । कुरआन शरीफ में तीन तलाक नहीं है बल्कि यह खलीफा उमर की देन है।
कुरआन के अनुसार एक बार तलाक बोले या हजार बार वह तलाक है . ट्रिपल तलाक का मतलब हुआ तीन माह तक इंतज़ार और उस दौरान बीबी पति के घर ही रहेगी, जब तीन मासिक धर्म पूरा हो जाएगा तब वह किसी दुसरे से निकाह कर सकती है परन्तु अगर इस तीन माह के दौरान पति पत्नी में समझौता हो गया तो वे पुन: पति पत्नी की तरह संबंध बना सकते है, इस्लाम के मुताबिक़ वह हराम नहीं मानी जायेगी और उसको किसी अन्य के साथ निकाह कर के तलाक लेना जिसे हलाला कहते है उसकी कोई जरूरत नहीं पड़ेगी । लेकिन अगर पति पत्नी में संबंध बन भी गया और किसी मजबूत तार्किक कारण से पति ने दुबारा तलाक चाहे दो -चार साल बाद भी कह दिया तो पुन: तीन माह तक वही प्रक्रिया दुहराई जायेगी अगर समझौता हो गया तब फिर से संबंध बहाल हो जाएगा।
दूसरे तलाक की स्थिति में घर परिवार धार्मिक मौलवी का यह फर्ज है कि समझौता करवा दे । पुन: अगर तीसरी बार पति तलाक देता है चाहे दुसरे तलाक के दस साल बाद ही क्यों नहीं तो इस स्थिति में कोई समझौता नहीं होगा, तथा पति और पत्नी के दरम्यान कोई भी संबन्ध हराम माना जाएगा। हां उसके लिए एक ही प्रावधान है अगर पत्नी ने किसी अन्य के साथ निकाह कर लिया है। और उस दूसरे पति ने जायज कारणों से उसको तलाक दे दिया हो या वह बेवा हो गई तो वह पुन: अपने पूर्व पति से निकाह कर सकती है , इस प्रावधान का ही बेजा फायदा मौलवी उठाते है और इस्लाम के विपरीत तीन तलाक होने के बाद दूसरे के साथ निकाह करके तलाक दिलवा कर पुन: पूर्व पति से निकाह करवा देते है ।दूसरे पति से तलाक या बेवा होने के बाद पूर्व पति से निकाह करना और संबन्ध बनाना हराम नहीं रह जाता बल्कि वह हलाल होता है और इस प्रक्रिया को ही हलाला नाम मुल्लाओ ने दे दिया है ।. अब अगर ट्रिपल तलाक का अवलोकन करें तो स्पष्ट है कि इस प्रकार विवाद की स्थिति में दो अवसर पूरी जिन्दगी में दिया गया है आपस में सुलह करने का I
अफ़सोस मुल्ला मौलवी यह सब नहीं बताते है और गलत व्याख्या करते है जिसका परिणाम महिलाओं को भुगतना पड़ता है
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