ca-pub-6689247369064277
क्या भारत पर कथित आठ सौ वर्षों तक पर इस्लामी शासन था? क्या भारत मुसलमानों का गुलाम था?
नहीं कभी नहीं
क्योंकि यदि आज भारत में हिंदू बहुसंख्यक बचा है तो वह मुसलमानों के सत्ता में रहते हुए कभी संभव नहीं था। कथित इस्लामी शासन के बाद बावजूद आज भी यदि हिंदू बहुसंख्यक बचा है तो इसके दो कारण ही हो सकते हैं:
एक तो यह कि मुसलमानी शासन में हिन्दुओं के प्रति शासको का व्यवहार उदार, सहानुभूति पूर्ण और भाईचारे का रहा हो - लेकिन यह तो कभी न हुआ, न होगा।
आज हिन्दुओं के बहुसंख्यक बचे रहने का दूसरा और वास्तविक कारण कि भारत पर इस्लामी शासन था ही नहीं या भारत के बहुत कम क्षेत्रों में और बहुत कम समय के लिए रहा हो।
मुस्लिम इतिहासकार ऐसा लिखते है कि इस्लाम द्वारा भारत विजय का प्रारंभ मुहम्मद बिन कासिम के 712 AD में सिंध पर आक्रमण से हुआ और महमूद गजनवी के आक्रमणों से स्थापित, तथा मुहम्मद गौरी के द्वारा दिल्ली के प्रथ्वीराज चौहान को 1O92 A.D. में हराने से पूर्ण हुआ - फिर दिल्ली सल्तनत के गुलाम वंश, खिलजी, तुगलक, सैयद और लोदी वंश के सुल्तान और मुग़ल बादशाह हिंदुस्तान के शासक बताये गए, पर यह काफी हद तक सच नहीं हैं।
सच यह है कि य़ह 800 वर्षोँ तक चलने वाला हिन्दू मुस्लिम युद्ध था जिसमे अंतिम विजय मराठा साम्राज्य , राजपूत और सिख साम्राज्य के रूप में हुई और अब सच की विवेचना के लिए इनके बारे में कुछ तथ्य: मुहम्मद बिन कासिम 712 AD में जब वह सिंध के राजा दाहिर को हराकर आगे बढ़ा उसे गहलोत वंश के राजा कालभोज ने बुरी तरह हराकर वापस भेजा (सेनानायक तक्षक की अहम भूमिका थी), अब अगले 250 वर्ष तक मुस्लिम प्रयास तो बहुत हुए, पर पीछे धकेल दिए गए इस बीच भारत में हिन्दू राज्य ही प्रभावी रहे।
1000 AD से महमूद गजनवी के कथित सत्रह आक्रमणों में पांच हारे, और पांच मन्दिरों की लूट की, सबसे महत्वपूर्ण सोमनाथ की लूट की दौलत भी गजनी तक वापस नहीं ले जा पाया, जिसे सिन्ध के जाटों ने लूट लिया था। वह कही भी सत्ता स्थापित नहीं कर पाया।
इसके बाद अगले 150 वर्ष तक फिर कोई मुसलमान हिन्दू सत्ता को चुनौती देने को नहीं आया और भारत में हिन्दू राज्य प्रभावी बने रहे।
1178 में मुहम्मद गौरी का गुजरात पर आक्रमण हुआ , चालुक्य राजा ने गौरी को बुरी तरह हराया , 1191 में पृथ्वीराज ने भी गौरी को हराया।
1192 में गौरी ने पृथ्वीराज को हराया फिर गौरी ने पंजाब, सिंध, दिल्ली, और कन्नौज जीते... पर ये विजयें अस्थायी रहीं क्योंकि वह 1206 में सिंध के खक्खरों के साथ युद्ध में गौरी मार डाला गया। उसके बाद सत्ता में आया कुतुबुद्दीन ऐबक भी 1210 में लाहौर में ही मर गया और गौरी का जीता हुआ क्षेत्र बिखर गया।
उसके बाद इल्तुतमिश ने अजमेर, रणथम्मौर, ग्वालियर, कालिंजर और महोबा जीते मगर कुछ समय में ही कालिंजर चंदेलों ने, ग्वालियर के प्रतिहारों ने, बूंदी को चौहानो ने, मालवा को परमारों ने वापस ले लिया। रणथम्मौर, मथुरा पर राजपूत कब्ज़ा कर चुके थे गहलोत वंशी जैत्र सिंह ने इल्तुतमिश से चित्तौड़ वापस ले लिया। इस प्रकार सत्ता हिन्दुओं के हाथ में ही रही थी।
उसके बाद बलबन ने राज्य बिखराव और हिन्दू ज्वार रोकने में असफल रहा और सल्तनत सिमटकर दिल्ली के आसपास सिमट कर रह गयी थी। गुलाम वंश को हटाकर खिलजी वंश आया, इस वंश के अलाउद्दीन खिलजी ने1298 में गुजरात और 1303 मे चित्तौड़ जीत लिया- पर 1316 में राजपूतों ने पुनः चित्तौड़ वापस जीत लिया, रणथम्मौर में भी खिलजी को हार का मुंह देखना पड़ा था। खिलजी के सेनापति मलिक काफूर ने देवगिरी, वारंगल, द्वारसमुद्र और मदुराई पर अभियान किया और जीता, पर उसके वापस जाते ही इन राजाओं ने अपने को स्वतत्र घोषित कर दिया। 1316 में खिलजी के मरने के बाद उसका राज्य ध्वस्त हो गया। इसके बाद तुगलक वंश आया,1325 में मुहम्मद तुगलक ने देवगिरी और काम्पिली राज्य पर विजय और द्वारसमुद्र और मदुराई को शासन के अन्तर्गत लाया , राजधानी दिल्ली से हटाकर देवगिरी ले गया। पर मेवाड़ के महाराणा हम्मीर सिंह ने मुहम्मद तुगलक को बुरी तरह हराया और कैद कर लिया था फिर अजमेर, रणथम्मौर और नागौर पर आधिपत्य के साथ 50 लाख रुपये देने पर छोड़ा जिससे तुगलक राज्य दिल्ली तक सीमित रह गया और 1399 में तैमूर के आक्रमण से तुगलक राज्य पूरी तरह बिखर गया। मुहम्मद तुगलक पर विजय के उपलक्ष्य में हम्मीर ने “महाराणा“ की उपाधि धारण की उसके बाद महाराणा कुम्भा द्वारा गुजरात के राजा कुतुबुद्दीन और मालवा के सुल्तान पर विजय। इन विजयों के उपलक्ष्य में चित्तौड़ गढ़ मे विजय स्तम्भ और पूरे राजस्थान में 32 किले भी बनवाये। महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) ने मालवा के शासक को पराजित कर बंदी बनाया और छह महीने बाद छोड़ा। 1519 में इब्राहीम लोदी को हराया। इस प्रकार महाराणा हम्मीर से राणा सांगा तक 1326 से 1527 (200 वर्ष तक) उत्तर भारत के सबसे बड़े भूभाग पर हिन्दू साम्राज्य छा रहा था और इन्हें चुनौती देने वाला कोई नहीं था।
इसी बीच दक्षिण में विजय नगर साम्राज्य हिन्दू शक्ति के रूप में केन्द्रित हो चूका था और कृष्ण देव राय (1505-1530) के समय चरम उत्कर्ष पर था और उड़ीसा ने भी हिन्दू स्वातंत्र्य पा लिया था।
तुगलकों के बाद सैयद वंश 1414 से 1451 तक और लोदी वंश 1451 से 1526 तक रहा जो दिल्ली के आस पास तक ही रह गया था इसके बाद , फिर इब्राहीम लोदी को राणा सांगा ने हराया।
प्रमुख इतिहासकार आर सी मजूमदार लिखते है कि दिल्ली सल्तनत अलाउद्दीन खिलजी राज्य के 20 साल (1300-1320) और मुहम्मद तुगलक के 10 साल, इन दो समय को छोड़कर भारत पर तुर्की का कोई साम्राज्य नहीं रहा था।
फिर मुग़ल वंश आया मुग़ल बाबर ने कुछ विजयें अपने नाम की पर कोई स्थायी साम्राज्य बनाने में असफल रहा, उसका बेटा हुमायु भी शेरशाह से हार कर भारत से बाहर भाग गया था।
शेर शाह (1540-1545) तक रण थम्मौर और अजमेर को जीता पर कालिंजर युद्ध के दौरान उसकी मौत हो गयी और उसका राज्य अस्थायी ही रहा। और फिर एक बार हिन्दू राज्य सगठित हुए और दिल्ली की गद्दी पर राजा हेम चन्द्र ने 1556 में विक्रमादित्य की उपाधि धारण की।
1556 में ही अकबर ने हेमचन्द्र (हेमू ) को हराकर मुग़ल साम्राज्य का स्थायी राज्य स्थापित किया जो 150 वर्ष तक चला जिसमे सभी दिशाओं राज्य विस्तार हुआ, ये अधिकांश विजयें राजपूत सेनापतियों और उनकी सेनाओं द्वारा हासिल की गयीं जिनका श्रेय अकबर ने अकेले लिया। अकबर ने इस्लामिक कट्टरता छोड़ राजपूतों की शक्ति को समझा और उन्हें सहयोगी बनाया, जहाँगीर और शाहजहाँ के समय तक यही नीति चली, इन 100 वर्षों में मुसलमानों और हिन्दुओं का संयुक्त और हिन्दू शक्ति पर आश्रित राज्य था इस्लामी राज्य नहीं | पूरे मुग़ल राज्य के बीच भी मेवाड़ में राजपूतों की सत्ता कायम रही।
औरंगजेब ने जैसे ही अकबर की नीतियों के विपरीत इस्लामी नीतियां लागू करनी आरम्भ की, राजपूतों ने अपने को स्वतन्त्र कर लिया, उधर शिवाजी ने मुग़ल साम्राज्य की नीव खोद दी और 1707 तक मुग़ल राज्य का समापन हो गया उसके बाद के दिल्ली के बादशाह दयनीय स्थिति में कभी मराठों के, कभी अंग्रेजों के आश्रित रहे।
1674 से 1818 तक मराठा हिन्दू साम्राज्य भारत के दो तिहाई हिस्से पर छा गया था राजस्थान में राजपूत राज्य और पंजाब में सिख साम्राज्य हिन्दू राज्य के रूप में विजयी हुए| इन हिन्दू शक्तियों के द्वारा मुस्लिम सत्ता की पूर्ण पराजय और अंत हुआ।
इस प्रकार जिसे मुस्लिम साम्राज्य कहा जाता है वह वस्तुतः हिन्दू राजाओं और मुसलमान आक्रमण कारियों के बीच एक लम्बे समय (800 वर्ष) तक चलने वाला युद्ध था कुछ लड़ाइयाँ हिन्दू हारे , कुछ में हराया और अंतिम जीत हिन्दुओं की ही रही।
इस्लाम 800 वर्षो तक भारत को जीतने के लिए संघर्ष करता रहा और अंत में प्रबल हिन्दू प्रतिरोध के चलते साम्राज्य बनाने में असफल हुआ और हिन्दू शक्तियां विजयी रही और हिन्दू समाज सुरक्षित रहते हुए बहुसंख्यक बना रहा।
क्या भारत पर कथित आठ सौ वर्षों तक पर इस्लामी शासन था? क्या भारत मुसलमानों का गुलाम था?
नहीं कभी नहीं
क्योंकि यदि आज भारत में हिंदू बहुसंख्यक बचा है तो वह मुसलमानों के सत्ता में रहते हुए कभी संभव नहीं था। कथित इस्लामी शासन के बाद बावजूद आज भी यदि हिंदू बहुसंख्यक बचा है तो इसके दो कारण ही हो सकते हैं:
एक तो यह कि मुसलमानी शासन में हिन्दुओं के प्रति शासको का व्यवहार उदार, सहानुभूति पूर्ण और भाईचारे का रहा हो - लेकिन यह तो कभी न हुआ, न होगा।
आज हिन्दुओं के बहुसंख्यक बचे रहने का दूसरा और वास्तविक कारण कि भारत पर इस्लामी शासन था ही नहीं या भारत के बहुत कम क्षेत्रों में और बहुत कम समय के लिए रहा हो।
मुस्लिम इतिहासकार ऐसा लिखते है कि इस्लाम द्वारा भारत विजय का प्रारंभ मुहम्मद बिन कासिम के 712 AD में सिंध पर आक्रमण से हुआ और महमूद गजनवी के आक्रमणों से स्थापित, तथा मुहम्मद गौरी के द्वारा दिल्ली के प्रथ्वीराज चौहान को 1O92 A.D. में हराने से पूर्ण हुआ - फिर दिल्ली सल्तनत के गुलाम वंश, खिलजी, तुगलक, सैयद और लोदी वंश के सुल्तान और मुग़ल बादशाह हिंदुस्तान के शासक बताये गए, पर यह काफी हद तक सच नहीं हैं।
सच यह है कि य़ह 800 वर्षोँ तक चलने वाला हिन्दू मुस्लिम युद्ध था जिसमे अंतिम विजय मराठा साम्राज्य , राजपूत और सिख साम्राज्य के रूप में हुई और अब सच की विवेचना के लिए इनके बारे में कुछ तथ्य: मुहम्मद बिन कासिम 712 AD में जब वह सिंध के राजा दाहिर को हराकर आगे बढ़ा उसे गहलोत वंश के राजा कालभोज ने बुरी तरह हराकर वापस भेजा (सेनानायक तक्षक की अहम भूमिका थी), अब अगले 250 वर्ष तक मुस्लिम प्रयास तो बहुत हुए, पर पीछे धकेल दिए गए इस बीच भारत में हिन्दू राज्य ही प्रभावी रहे।
1000 AD से महमूद गजनवी के कथित सत्रह आक्रमणों में पांच हारे, और पांच मन्दिरों की लूट की, सबसे महत्वपूर्ण सोमनाथ की लूट की दौलत भी गजनी तक वापस नहीं ले जा पाया, जिसे सिन्ध के जाटों ने लूट लिया था। वह कही भी सत्ता स्थापित नहीं कर पाया।
इसके बाद अगले 150 वर्ष तक फिर कोई मुसलमान हिन्दू सत्ता को चुनौती देने को नहीं आया और भारत में हिन्दू राज्य प्रभावी बने रहे।
1178 में मुहम्मद गौरी का गुजरात पर आक्रमण हुआ , चालुक्य राजा ने गौरी को बुरी तरह हराया , 1191 में पृथ्वीराज ने भी गौरी को हराया।
1192 में गौरी ने पृथ्वीराज को हराया फिर गौरी ने पंजाब, सिंध, दिल्ली, और कन्नौज जीते... पर ये विजयें अस्थायी रहीं क्योंकि वह 1206 में सिंध के खक्खरों के साथ युद्ध में गौरी मार डाला गया। उसके बाद सत्ता में आया कुतुबुद्दीन ऐबक भी 1210 में लाहौर में ही मर गया और गौरी का जीता हुआ क्षेत्र बिखर गया।
उसके बाद इल्तुतमिश ने अजमेर, रणथम्मौर, ग्वालियर, कालिंजर और महोबा जीते मगर कुछ समय में ही कालिंजर चंदेलों ने, ग्वालियर के प्रतिहारों ने, बूंदी को चौहानो ने, मालवा को परमारों ने वापस ले लिया। रणथम्मौर, मथुरा पर राजपूत कब्ज़ा कर चुके थे गहलोत वंशी जैत्र सिंह ने इल्तुतमिश से चित्तौड़ वापस ले लिया। इस प्रकार सत्ता हिन्दुओं के हाथ में ही रही थी।
उसके बाद बलबन ने राज्य बिखराव और हिन्दू ज्वार रोकने में असफल रहा और सल्तनत सिमटकर दिल्ली के आसपास सिमट कर रह गयी थी। गुलाम वंश को हटाकर खिलजी वंश आया, इस वंश के अलाउद्दीन खिलजी ने1298 में गुजरात और 1303 मे चित्तौड़ जीत लिया- पर 1316 में राजपूतों ने पुनः चित्तौड़ वापस जीत लिया, रणथम्मौर में भी खिलजी को हार का मुंह देखना पड़ा था। खिलजी के सेनापति मलिक काफूर ने देवगिरी, वारंगल, द्वारसमुद्र और मदुराई पर अभियान किया और जीता, पर उसके वापस जाते ही इन राजाओं ने अपने को स्वतत्र घोषित कर दिया। 1316 में खिलजी के मरने के बाद उसका राज्य ध्वस्त हो गया। इसके बाद तुगलक वंश आया,1325 में मुहम्मद तुगलक ने देवगिरी और काम्पिली राज्य पर विजय और द्वारसमुद्र और मदुराई को शासन के अन्तर्गत लाया , राजधानी दिल्ली से हटाकर देवगिरी ले गया। पर मेवाड़ के महाराणा हम्मीर सिंह ने मुहम्मद तुगलक को बुरी तरह हराया और कैद कर लिया था फिर अजमेर, रणथम्मौर और नागौर पर आधिपत्य के साथ 50 लाख रुपये देने पर छोड़ा जिससे तुगलक राज्य दिल्ली तक सीमित रह गया और 1399 में तैमूर के आक्रमण से तुगलक राज्य पूरी तरह बिखर गया। मुहम्मद तुगलक पर विजय के उपलक्ष्य में हम्मीर ने “महाराणा“ की उपाधि धारण की उसके बाद महाराणा कुम्भा द्वारा गुजरात के राजा कुतुबुद्दीन और मालवा के सुल्तान पर विजय। इन विजयों के उपलक्ष्य में चित्तौड़ गढ़ मे विजय स्तम्भ और पूरे राजस्थान में 32 किले भी बनवाये। महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) ने मालवा के शासक को पराजित कर बंदी बनाया और छह महीने बाद छोड़ा। 1519 में इब्राहीम लोदी को हराया। इस प्रकार महाराणा हम्मीर से राणा सांगा तक 1326 से 1527 (200 वर्ष तक) उत्तर भारत के सबसे बड़े भूभाग पर हिन्दू साम्राज्य छा रहा था और इन्हें चुनौती देने वाला कोई नहीं था।
इसी बीच दक्षिण में विजय नगर साम्राज्य हिन्दू शक्ति के रूप में केन्द्रित हो चूका था और कृष्ण देव राय (1505-1530) के समय चरम उत्कर्ष पर था और उड़ीसा ने भी हिन्दू स्वातंत्र्य पा लिया था।
तुगलकों के बाद सैयद वंश 1414 से 1451 तक और लोदी वंश 1451 से 1526 तक रहा जो दिल्ली के आस पास तक ही रह गया था इसके बाद , फिर इब्राहीम लोदी को राणा सांगा ने हराया।
प्रमुख इतिहासकार आर सी मजूमदार लिखते है कि दिल्ली सल्तनत अलाउद्दीन खिलजी राज्य के 20 साल (1300-1320) और मुहम्मद तुगलक के 10 साल, इन दो समय को छोड़कर भारत पर तुर्की का कोई साम्राज्य नहीं रहा था।
फिर मुग़ल वंश आया मुग़ल बाबर ने कुछ विजयें अपने नाम की पर कोई स्थायी साम्राज्य बनाने में असफल रहा, उसका बेटा हुमायु भी शेरशाह से हार कर भारत से बाहर भाग गया था।
शेर शाह (1540-1545) तक रण थम्मौर और अजमेर को जीता पर कालिंजर युद्ध के दौरान उसकी मौत हो गयी और उसका राज्य अस्थायी ही रहा। और फिर एक बार हिन्दू राज्य सगठित हुए और दिल्ली की गद्दी पर राजा हेम चन्द्र ने 1556 में विक्रमादित्य की उपाधि धारण की।
1556 में ही अकबर ने हेमचन्द्र (हेमू ) को हराकर मुग़ल साम्राज्य का स्थायी राज्य स्थापित किया जो 150 वर्ष तक चला जिसमे सभी दिशाओं राज्य विस्तार हुआ, ये अधिकांश विजयें राजपूत सेनापतियों और उनकी सेनाओं द्वारा हासिल की गयीं जिनका श्रेय अकबर ने अकेले लिया। अकबर ने इस्लामिक कट्टरता छोड़ राजपूतों की शक्ति को समझा और उन्हें सहयोगी बनाया, जहाँगीर और शाहजहाँ के समय तक यही नीति चली, इन 100 वर्षों में मुसलमानों और हिन्दुओं का संयुक्त और हिन्दू शक्ति पर आश्रित राज्य था इस्लामी राज्य नहीं | पूरे मुग़ल राज्य के बीच भी मेवाड़ में राजपूतों की सत्ता कायम रही।
औरंगजेब ने जैसे ही अकबर की नीतियों के विपरीत इस्लामी नीतियां लागू करनी आरम्भ की, राजपूतों ने अपने को स्वतन्त्र कर लिया, उधर शिवाजी ने मुग़ल साम्राज्य की नीव खोद दी और 1707 तक मुग़ल राज्य का समापन हो गया उसके बाद के दिल्ली के बादशाह दयनीय स्थिति में कभी मराठों के, कभी अंग्रेजों के आश्रित रहे।
1674 से 1818 तक मराठा हिन्दू साम्राज्य भारत के दो तिहाई हिस्से पर छा गया था राजस्थान में राजपूत राज्य और पंजाब में सिख साम्राज्य हिन्दू राज्य के रूप में विजयी हुए| इन हिन्दू शक्तियों के द्वारा मुस्लिम सत्ता की पूर्ण पराजय और अंत हुआ।
इस प्रकार जिसे मुस्लिम साम्राज्य कहा जाता है वह वस्तुतः हिन्दू राजाओं और मुसलमान आक्रमण कारियों के बीच एक लम्बे समय (800 वर्ष) तक चलने वाला युद्ध था कुछ लड़ाइयाँ हिन्दू हारे , कुछ में हराया और अंतिम जीत हिन्दुओं की ही रही।
इस्लाम 800 वर्षो तक भारत को जीतने के लिए संघर्ष करता रहा और अंत में प्रबल हिन्दू प्रतिरोध के चलते साम्राज्य बनाने में असफल हुआ और हिन्दू शक्तियां विजयी रही और हिन्दू समाज सुरक्षित रहते हुए बहुसंख्यक बना रहा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें