22 जनवरी 2017

भेदभाव

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भेदभाव में अक्सर किसी व्यक्ति को केवल उसके वर्ग के आधार पर अवसरों, स्थानों, अधिकारों और अन्य चीज़ों से वंछित कर दिया जाता है। भेदभावी परम्पराएँ, नीतियाँ, विचार, क़ानून और रीतियाँ बहुत से समाजों, देशों और संस्थाओं में हैं और अक्सर यह वहाँ भी मिलती हैं जहाँ औपचारिक रूप से भेदभाव को न्यायिक रूप से वर्जित या अनौचित्य समझा जाता है।
हिंदुस्तान में कहा जाता है कि सभी के लिए कानून एक समान है, किसी से भेदभाव नहीं किया जाता. लेकिन क्या ये सिर्फ एक झूठा डायलाग बनकर रह गया है। भारत में बकरीद पर बैन लगाया नहीं जाता जिसमें खुलेआम करोड़ों जीवों को मार दिया जाता है। बकरीद पर खून की नदियाँ बहा दी जाती है. कई बार कई लोग बकरीद पर जानवरों के कत्लेआम को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुकें लेकिन आजतक इन याचिकायों पर कोई कार्यवाई नहीं की गईं है । सलमान खान जैसों के केस सालों साल चलते हैं लेकिन उनको ज़मानत साथ साथ मिल जाती है । याकूब मेनन जैसों के लिए कोर्ट आधी रात खुल सकती हैं पर साध्वी प्रज्ञा के लिए इंसाफ़ कहा है ? कौन करेगा इंसाफ़ ?

जल्लीकटूट को बंद करने के लिए सुप्रीमकोर्ट में याचिका दायर की गईं तो उसपर तुरंत सुनवाई हुई और सुप्रीमकोर्ट ने जल्लीकटूट पर रोक लगा दी. ये है देश का कानून ? बकरीद जैसे हिंसात्मक त्यौहार पर बैन लगाया नहीं जाता और जल्लीकटूट जैसे अहिंसात्मक त्यौहार पर बैन में लगाने में एक सेकंड नहीं लगाते। अगर जल्लीकटूट जीव के प्रति अत्याचार है तो बकरीद क्या भाईचारे और शांति का प्रतीक है?  भारत में जल्लीकटूट बैन, दही हांडी बैन, होली पर पानी बहाना बैन, कावड़ में डीजे बैन, दिवाली पर पटाखे जलाने पर बैन और ना जाने भारत के मुख्य त्योहारों पर क्या क्या बैन कर दिया जाता है । लेकिन  बकरीद जैसे हिंसात्मक त्यौहार पर बैन नहीं लगाया जाता जिसमे करोड़ों बेजुबान जानवरो की बलि चढ़ा दी जाती है. ये कैसा कानून है ?  क्या ये  न्याय है ?



























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