27 जनवरी 2017

भगत सिंह

ca-pub-6689247369064277
भगत सिंह  भारत के पानी ,जोश , हिम्मत और नौजवानी के प्रतीक हैं और भारत का  हर नौजवान उनकी तरह होना चाहेगा । लेकिन वैसा बहादुर होना क्या आसान है ? उसके लिए अपने को शरीर नही बल्कि एक देशप्रेम से ओत प्रोत आत्मा मानना पड़ता है । वैसे तो अंग्रेज़ी हुकूमत में राजद्रोह का आरोप कई लोगों पर लगा था   जैसे गांधी, तिलक, एनी बेसेंट, पर भगत सिंह आपने आप मे बेजोड़ थे। उनको झुकाना आसमान को झुकाने के सामान था। 

आज के दौर के सेकुलरिज्म नेता  ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों  के सामने कन्हैया की तुलना भगत सिंह से करके अपनी बुद्धि का परिचय दे ही दिया। उनके द्वारा भगत सिंह के नाम पर हंसी की लहर दौडाई गई । कॉंग्रेस ने तथाकथित नेता ने भी इसका मज़ा लिया और कहा, 'हां! भगत सिंह उस दौर के कन्हैया ही थे. जो भी राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानेगा उसको बुरा जरूर लगेगा। भारतीय जनता पार्टी को यह तुलना नागवार गुजरी उन्होंने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी कि कहां भगत सिंह, कहां कन्हैया । पर सेकुलरिज्म का चोला ओढ़कर अपनी राजनीती चमकाने वाले चुप रहे। तथाकथित नेता ने भगत सिंह की तुलना करके भगत सिंह का अपमान किया गया । क्रांतिकारी और राष्ट्रप्रेमी भगत सिंह ने देश पर सब कुछ न्योछावर करके और ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाते हुए फांसी का फंदा चूम लिया था। कन्हैया तो जनता के टैक्स के पैसे पर जेएनयू में मौज कर रहा है और देश की पहली राष्ट्रवादी सरकार पर हमले कर रहा है! ( हालांकि भगत सिंह के आख़िरी पलों के ब्योरे में जिस नारे का जिक्र है, वह है : इन्कलाब जिंदाबाद! साम्राज्यवाद का नाश हो! लेकिन राष्ट्रवादियों को कुछ भी कह देने की अनुमति है, उनके लिए तथ्यों को काँट छाँट करने की क्या ज़रूरत ?  अक्सर लोग पिछली पीढ़ी के किशी आदर्श पुरुष को सम्भोदित करते हुए कहते सुने गए है कि अगर वो होते तो  क्या करते ?  क्या वे इस दमनकारी राज्य का विरोध करते या चुप्पी मारकर बैठे रहते ? क्योंकि आज हम आठों पहर भारत माता की जय का नारा लगाते हुए  भी यह सब देख रहे हैं कि भारत माता को गाली दो , देश के खिलाफ जहर उगलो, इसको लूटने की नियत रखो और चर्चित नेता बन जाओ। जवाब हमें खोजना होगा. तभी हम भगत सिंह की किसी से तुलना और उसकी उपयुक्तता पर भी बात कर पाएंगे.

कोई टिप्पणी नहीं: