जानिए महाराणा प्रताप से जुड़ी कुछ अद्भुत बातें..
महाराणा प्रतात भारत के एक महान योद्धा थे और उन्होंने अपने हर युद्ध में जमकर मुकाबला करते हुए विपक्षी को धूल चटाई थी। वे भारत के पहले स्वतंत्रता सेनानी भी माने जाते है। उन्होंने अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता और स्वाभिमान के लिए अपने सिंहासन को छोड़ दिया और जंगलों में अपना जीवन बिताया लेकिन मुग़ल बादशाह अकबर के सामने मरते दम तक अपना शीश नहीं झुकाया। इतिहास के पन्नों में महाराणा प्रताप की वीरता और स्वाभिमान हमेशा के लिए अमर हो गयी| आज महाराणा प्रताप करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा श्रोत हैं।
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 में मेवाड़ (राजस्थान) में हुआ। महाराणा प्रताप मेवाड़ के राजा उदयसिंह के पुत्र थे। महाराणा प्रताप बचपन से ही वीर और साहसी थे।वे 22 पत्नियों के एकलौते वीर पति थे।उन्होंने जीवन भर अपनी मातृभूमि की रक्षा और स्वाभिमान के लिए संघर्ष किया। जब पूरे हिन्दुस्तान में अकबर का साम्राज्य स्थापित हो रहा था, तब वे 16वीं शताब्दी में भारत के अकेले राजा थे जिन्होंने अकबर के सामने खड़े होने का साहस किया| वे जीवन भर संघर्ष करते रहे लेकिन कभी भी स्वंय को अकबर के हवाले नहीं किया।
महाराणा प्रताप का कद साढ़े सात फुट एंव उनका वजन 110 किलोग्राम था| उनके सुरक्षा कवच का वजन 72 किलोग्राम और भाले का वजन 80 किलो था| कवच, भाला, ढाल और तलवार आदि को मिलाये तो वे युद्ध में 200 किलोग्राम से भी ज्यादा वजन उठाकर लड़ते थे| आज भी महाराणा प्रताप का कवच, तलवार आदि वस्तुएं उदयपुर राजघराने के संग्रहालय में सुरक्षित रखे हुए है।
कहते हैं रात को यदि अकबर को सपने मे प्रताप दिख जाते तो उनकी नींद गायब हो जाती थी। अकबर ने प्रताप के सामने एक प्रस्ताव रखा था कि अगर महाराणा प्रताप उनकी सियासत को स्वीकार करते है, तो आधे हिंदुस्तान की सत्ता महाराणा प्रताप को दे दी जाएगी लेकिन महाराणा ने उनके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया| लगातार 30 वर्षों तक प्रयास करने के बावजूद अकबर महाराणा प्रताप को बंदी नहीं बना सका।
महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच हल्दीघाटी का महायुद्ध 1576 ई. लड़ा गया| इस युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना में सिर्फ 20000 सैनिक तथा अकबर की सेना के 85000 सैनिक थे| अकबर की विशाल सेना और संसाधनों की ताकत के बावजूद महाराणा प्रताप ने हार नहीं मानी और मातृभूमि के सम्मान के लिए संघर्ष करते रहे| हल्दीघाटी का युद्ध इतना भयंकर था कि युद्ध के 300 वर्षों बाद भी वहां पर तलवारें पायी गयी| आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 को हल्दीघाटी में मिला था|
महाराणा प्रताप की वीरता के साथ साथ उनके घोड़े चेतक की वीरता भी विश्व विख्यात है| चेतक बहुत ही समझदार और वीर घोड़ा था जिसने अपनी जान दांव पर लगाकर 26 फुट गहरे दरिया से कूदकर महाराणा प्रताप की रक्षा की थी| हल्दीघाटी में आज भी चेतक का मंदिर बना हुआ है| हम भारत वासियों को भारत के ऐसे महावीरों के जन्मदिन को खाली नही जाने दिया जाना चाहिए जिन्होंने अपने जान की परवाह न करते हुए भी मातृभूमि के देशद्रोहियों और आक्रमणकारियों से जम कर लोहा लिया और देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। जय हिन्द
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