28 फ़रवरी 2017

घुटन होना स्वाभाविक है

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हमारा देश महान
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नेता की तरफ जूते उछालने पे जेल हो जाती है
और सैनिको को पत्थर से मारने वाले मासूम बेकसूर
हद है दोगलेपन की
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पाकिस्तान की क्या औकात जो हिंदुस्तान का कुछ करे,
हमने तो ऐसे कई पाकिस्तान हिंदुस्तान के अंदर पाले है।।
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देशभक्ति जब उफान पर होती है ताे देशविरोधियाे को घुटन होना स्वाभाविक है,

खून मे अगर पाकिस्तानी कीडे है तो आजाद देश मे आजादी मांगना लाजमी है
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वाह रे हमारी 60 साल की सरकार

27 फ़रवरी 2017

परदे की तजबीज

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हिन्दुओं में घूंघट का महत्त्व समझाते हुए कहा कि मर्दों की गंदी और कामुक नज़र से बचने का स्त्रियों के पास यह आज़माया हुआ तरीक़ा है, इसीलिए हमारे धर्मगुरुओं ने जवानी की दहलीज़ पर कदम रखती औरतों के लिए परदे की तजबीज की है।
औरतों के परदे से बाहर आकर स्कर्ट, जींस और टॉप जैसे विदेशी परिधान अपनाने के बाद ही समाज में कामुकता, बेहयाई और बलात्कार बढ़े हैं। मैंने कहा कि अगर समस्या मर्दों से है, तो सदियों से इसकी सज़ा औरतों को क्यों दी जा रही है ? खुद अंडरवियर और गमछे पहनकर पूरा टोला-मोहल्ला घूमने वाले आप मर्द औरतों को शालीनता के साथ भी अपनी पसंद के कपड़े पहनने से रोकने वाले कौन होते हो?
औरतों को सामान की तरह सात पर्दों में लपेट कर रखने से बेहतर तो यह होता कि हमारे धर्मगुरु जवानी की दहलीज़ पर कदम रखते ही दुनिया के सभी मर्दों की आंखें फोड़ देने का फ़रमान ज़ारी कर देते। कम से कम दुनिया की आधी आबादी तो सुरक्षित हो जाती। न कहीं छेड़खानी होती, न बलात्कार, न अश्लील और ब्लू फ़िल्में बनती और देखी जातीं और न अय्याशों के आगे डांस बार या कैबरे में औरत को नंगी-अधनंगी होकर नाचने की ज़िल्लत उठानी पड़ती।
रही बात मर्दों के अंधे होने के बाद घर-परिवार, समाज, देश और दुनिया को चलाने की तो यह कोई मुश्क़िल बात नहीं। घर चलाने की ज़िम्मेदारी हम अंधे मर्दों पर। मर्द अगर घर में रहें तो दुनिया से अपराध भी ख़त्म हो जाएंगे, आतंकवाद भी और बेमतलब के युद्ध भी। घर के बाहर का ज़िम्मा स्त्रियों को। यक़ीन मानिए, वे समाज, देश और दुनिया को हम मर्दों से बहुत बेहतर चला लेंगी। 

24 फ़रवरी 2017

इतना बड़ा श्री यंत्र धरती पर कैसे

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दुनिया के समृद्ध और विकसित देश कहे जाने वाले अमेरिका में आज भी यह पहली अनसुलझी हैं कि आखिर यह हिन्दुओं का इतना बड़ा श्री यंत्र धरती पर कैसे बन गया ? और यदि इसको किशी ने बनाया तो ये कैसे बना … हुआ यह कि इडाहो एयर नेशनल गार्ड का पायलट बिल मिलर 10 अगस्त 1990 को विमान की  नियमित प्रशिक्षण उड़ान पर था तभी उसको ऊंचाई से ओरेगॉन प्रांत की एक सूखी हुई झील की रेत पर कोई विचित्र आकृति दिखाई दी। यह आकृति लगभग चौथाई मील लंबी-चौड़ी थी जबकी लगभग तीस मिनट पहले ही उसने इस मार्ग से उड़ान भरी थी तब उसका ध्यान इस और नही गया था। परंतु सबसे ज्यादा हैरान और परेसान करने वाली बात यह थी कि कई अन्य पायलट भी इसी मार्ग से लगातार उड़ान भरते थे, उन्होंने भी कभी इस विशाल आकृति को कभी नहीं देखा था जबकी आकृति का आकार इतना बड़ा था कि उसको आसमान से आसानी से देखा जा सकता था।
सेना में लेफ्टिनेंट पद पर कार्यरत बिल मिलर ने तत्काल इसकी रिपोर्ट अपने उच्चाधिकारियों को दी, कि ओरेगॉन प्रांत की सिटी ऑफ बर्न्स से सत्तर मील दूर सूखी हुई झील की चट्टानों पर कोई रहस्यमयी आकृति दिखाई दे रही है. मिलर ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि यह आकृति अपने आकार और लकीरों की बनावट से किसी मशीन की आकृति प्रतीत होती है. इस खबर को लगभग सुरक्षा कारणों से तीस दिनों तक आम जनता से छिपाकर रखा गया ताकि सुचना सार्वजानिक होने पर उसके वास्तविक बनावट मे परिवर्तन की सम्भावना से सुरक्षित रखा जाये। लेकिन फिर भी 12 सितम्बर 1990 को प्रेस को इसके बारे में पता चल ही गया।सबसे पहले बोईस टीवी स्टेशन ने यह ब्रेकिंग न्यूज़ दर्शकों को दिखाई ।जैसे ही लोगों ने उस आकृति को देखा तो तत्काल ही समझ गए कि यह हिन्दू धर्म का पवित्र चिन्ह “श्रीयंत्र” है. परन्तु किसी के पास इस बात का जवाब नहीं था कि हिन्दू आध्यात्मिक यन्त्र की विशाल आकृति ओरेगॉन के उस वीरान स्थल पर कैसे और क्यों आई?
14 सितम्बर को अमेरिका असोसिएटेड प्रेस तथा ओरेगॉन की बैण्ड बुलेटिन ने भी प्रमुखता से दिखाया जो आम व् खास लोगों मे चर्चा का विषय बना रहा। इसकी जानकारी एकत्रित करने के लिए वहां की सरकार ने  अपने देश के विख्यात वास्तुविदों एवं इंजीनियरों से संपर्क किया तो उन्होंने भी इस आकृति पर जबरदस्त आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि इतनी बड़ी आकृति को बनाने के लिए यदि जमीन का सिर्फ सर्वे भर किया जाए तब भी कम से कम एक लाख डॉलर का खर्च आएगा। श्रीयंत्र की बेहद जटिल संरचना और उसकी कठिन डिजाइन को देखते हुए जब इसे सादे कागज़ पर बनाना ही मुश्किल होता है तो सूखी झील में आधे मील की लम्बाई-चौड़ाई में जमीन पर इस डिजाइन को बनाना तो बेहद ही मुश्किल और लंबा काम है, यह विशाल आकृति रातोंरात नहीं बनाई जा सकती. इस व्यावहारिक निष्कर्ष से अंदाजा लगाया गया कि निश्चित ही यह मनुष्य की कृति नहीं है।  इस श्री यंत्र की रचना इतनी विशाल थी कि इसे जमीन पर खड़े रहकर बनाना संभव ही नहीं था साथ ही इसकी  आकृति को जमीन पर खड़े होकर भी पूरा नहीं देखा जा सकता था।इसको केवल सैकड़ों फुट की ऊँचाई से ही देखा जाना सम्भव था। अंततः तमाम विद्वान, प्रोफ़ेसर, आस्तिक-नास्तिक, अन्य धर्मों के प्रतिनिधि इस बात पर सहमत हुए कि निश्चित ही यह आकृति किसी रहस्यमयी घटना का नतीजा है. फिर भी वैज्ञानिकों की शंका दूर नहीं हुई तो UFO पर रिसर्च करने वाले दो वैज्ञानिक डोन न्यूमन और एलेन डेकर ने 15 सितम्बर को इस आकृति वाले स्थान का दौरा किया और अपनी रिपोर्ट में लिखा कि इस आकृति के आसपास उन्हें किसी मशीन अथवा टायरों के निशान आदि दिखाई नहीं दिए है।
ओरेगॉन विश्वविद्यालय के डॉक्टर जेम्स देदरोफ़ ने इस अदभुत घटना पर UFO तथा परावैज्ञानिक शक्तियों से सम्बन्धित एक रिसर्च पेपर भी लिखा जो “ए सिम्बल ऑन द ओरेगॉन डेज़र्ट” के नाम से 1991 में प्रकाशित हुआ। अपने रिसर्च पेपर में वे लिखते हैं कि अमेरिकी सरकार अंत तक अपने नागरिकों को इस दैवीय घटना के बारे कोई ठोस जानकारी नहीं दे सकी, क्योंकि किसी को नहीं पता था कि श्रीयंत्र की वह विशाल आकृति वहाँ बनी कैसे? कई नास्तिकतावादी इस कहानी को झूठा और श्रीयंत्र की आकृति को मानव द्वारा बनाया हुआ सिद्ध करने की कोशिश करने वहाँ जुटे रहे लेकिन अपने तमाम संसाधनों, ट्रैक्टर, हल, रस्सी, मीटर, नापने के लिए बड़े-बड़े स्केल आदि के बावजूद उस श्रीयंत्र की आकृति से आधी आकृति भी ठीक से और सीधी नहीं बना सके। आज के परिपेक्ष मे निश्चित ही यह घटना सनातन वैदिक सभ्यता के विज्ञान की ऊंचाई को दर्शाती है।

22 फ़रवरी 2017

करमचंद गाँधी के विवादास्पद कारनामे

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1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए। गान्धी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया।

2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गान्धी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं, किन्तु गान्धी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों को आतंकवादी कहा जाता है।

3. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।

4.मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में गान्धी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला में मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग 1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।

5.1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द जी की हत्या अब्दुल रशीद नामक एक मुस्लिम युवक ने कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।

6.गान्धी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।

7.गान्धी ने जहाँ एक ओर काश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को काश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।

8. यह गान्धी ही था जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।

9. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।

10. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहा था, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।

11. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।

12. 14-15 जून, 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।

13. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने अस्वीकार कर दिया।

14. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।

15. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गान्धी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।

16. 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने काश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।

17.गाँधी ने गौ हत्या पर पर्तिबंध लगाने का विरोध किया

18. द्वितीया विश्वा युध मे गाँधी ने भारतीय सैनिको को ब्रिटेन का लिए हथियार उठा कर लड़ने के लिए प्रेरित किया , जबकि वो हमेशा अहिंसा की पीपनी बजाते है

19. क्या 50000 हिंदू की जान से बढ़ कर थी मुसलमान की 5 टाइम की नमाज़ ????? विभाजन के बाद दिल्ली की जमा मस्जिद मे पानी और ठंड से बचने के लिए 5,000 हिंदू ने जामा मस्जिद मे पनाह ले रखी थी...मुसलमानो ने इसका विरोध किया पर हिंदू को 5 टाइम नमाज़ से ज़यादा कीमती अपनी जान लगी.. इसलिए उस ने माना कर दिया. .. उस समय गाँधी नाम का वो शैतान बरसते पानी मे बैठ गया धरने पर की जब तक हिंदू को मस्जिद से भगाया नही जाता तब तक गाँधी यहा से नही जाएगा....फिर पुलिस ने मजबूर हो कर उन हिंदू को मार मार कर बरसते पानी मे भगाया.... और वो हिंदू--- गाँधी मरता है तो मरने दो ---- के नारे लगा कर वाहा से भीगते हुए गये थे...,,, रिपोर्ट --- जस्टिस कपूर.. सुप्रीम कोर्ट..... फॉर गाँधी वध क्यो ?

20. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च 1931 को फांसी लगाई जानी थी, सुबह करीब 8 बजे। लेकिन 23 मार्च 1931 को ही इन तीनों को देर शाम करीब सात बजे फांसी लगा दी गई और शव रिश्तेदारों को न देकर रातोंरात ले जाकर ब्यास नदी के किनारे जला दिए गए। असल में मुकदमे की पूरी कार्यवाही के दौरान भगत सिंह ने जिस तरह अपने विचार सबके सामने रखे थे और अखबारों ने जिस तरह इन विचारों को तवज्जो दी थी, उससे ये तीनों, खासकर भगत सिंह हिंदुस्तानी अवाम के नायक बन गए थे। उनकी लोकप्रियता से राजनीतिक लोभियों को समस्या होने लगी थी।

उनकी लोकप्रियता महात्मा गांधी को मात देनी लगी थी। कांग्रेस तक में अंदरूनी दबाव था कि इनकी फांसी की सज़ा कम से कम कुछ दिन बाद होने वाले पार्टी के सम्मेलन तक टलवा दी जाए। लेकिन अड़ियल महात्मा ने ऐसा नहीं होने दिया। चंद दिनों के भीतर ही ऐतिहासिक गांधी-इरविन समझौता हुआ जिसमें ब्रिटिश सरकार सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करने पर राज़ी हो गई। सोचिए, अगर गांधी ने दबाव बनाया होता तो भगत सिंह भी रिहा हो सकते थे क्योंकि हिंदुस्तानी जनता सड़कों पर उतरकर उन्हें ज़रूर राजनीतिक कैदी मनवाने में कामयाब रहती। लेकिन गांधी दिल से ऐसा नहीं चाहते थे क्योंकि तब भगत सिंह के आगे इन्हें किनारे होना पड़ता ।

21 फ़रवरी 2017

1492 में जारी किया हुआ आदेश आज भी लागू

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आज से लगभग 450 साल पहले वास्कोडीगामा 20 मई1498 को हिंदुस्तान आया था .  इतिहास  में हमको ये बताया गया कि वास्कोडीगामा ने हिंदुस्तान की खोज की, पर ऐसा लगता है कि जैसे वास्कोडीगामा ने जब हिंदुस्तान की खोज की, तो शायद उसके पहले हिंदुस्तान था ही नहीं. हज़ारो साल का ये देश है, जो वास्कोडीगामा के बाप दादाओं के पहले से इस दुनिया में मौजूद है तो इतिहास  में ऐसा क्यों कहा जाता है कि वास्कोडीगामा ने हिंदुस्तान की खोज की, भारत की खोज की. और मै मानता हु कि वो एकदम गलत है. वास्कोडीगामा ने भारत की कोई खोज नहीं की, हिंदुस्तान की भी कोई खोज नहीं की, हिंदुस्तान पहले से था, भारत पहले से था,
वास्कोडीगामा यहाँ आया था भारतवर्ष को लुटने के लिए, एक बात और जो इतिहास में, मेरे अनुसार बहुत गलत बताई जाती है कि वास्कोडीगामा एक बहूत बहादुर नाविक था, बहादुर सेनापति था, बहादुर सैनिक था, और हिंदुस्तान की खोज के अभियान पर निकला था, ऐसा कुछ नहीं था, सच्चाई ये है कि पुर्तगाल का वो उस ज़माने का डॉन था, माफ़िया था. जैसे आज के ज़माने में हिंदुस्तान में बहूत सारे माफ़िया किंग रहे है, उनका नाम लेने की जरुरत नहीं है, क्योकि मंदिर की पवित्रता ख़तम हो जाएगी, ऐसे ही बहूत सारे डॉन और माफ़िया किंग 15 वी सताब्दी में यूरोप में होते थे.  15 वी सताब्दी का जो यूरोप था, उस ज़माने में वहां दो देश बहूत ताकतवर थें ,  एक था स्पेन और दूसरा था पुर्तगाल. इन दोनों देशो के बीच में अक्सर लड़ाई झगडे होते थे, वो जहांज को लुटते थें तो उनके पास संपत्ति आती थी, तो संपत्ति का झगड़ा होता था कि कौन-कौन संपत्ति ज्यादा रखेगा. वास्कोडीगामा  पुर्तगाल का माफ़िया किंग था.  1490 के आस पास से वास्को डी गामा पुर्तगाल में चोरी का काम, लुटेरे का काम, डकैती डालने का काम किया करता था और अगर आप उसका सच्चा इतिहास  खोजिए तो एक चोर और लुटेरे को हमारे इतिहास में गलत तरीके से हीरो बना कर पेश किया गया. उस ज़माने का पुर्तगाल का ऐसा ही एक दुसरा लुटेरा और डॉन  माफ़िया था कोलंबस, वो स्पेन का था. कोलंबस गया था अमेरिका को लुटने के लिए और वास्कोडीगामा आया था भारतवर्ष को लुटने के लिए. 
उस ज़माने की वहां की जो धर्मसत्ता क्रिस्चियनिटी की सत्ता थी,  क्रिस्चियनिटी की सत्ता 1492 में के आसपास पोप होता था जो सिक्स्थ कहलाता था, छठवा पोप.!
एक बार पुर्तगाल और स्पेन की सत्ताओ के बीच में झगड़ा हुआ.  झगड़ा इस बात को ले कर था कि लूट का माल जो मिले वो किसके हिस्से में ज्यादा जाए. तो उस ज़माने के पोप ने एक अध्यादेश जारी किया.  सारी दुनिया की संपत्ति को उन्होंने दो हिस्सों में बाँटा, और दो हिस्सों में ऐसा बाँटा कि दुनिया का एक हिस्सा पूर्वी हिस्सा, और दुनिया का दूसरा हिस्सा पश्चिमी हिस्सा. तो पूर्वी हिस्से की संपत्ति को लुटने का काम पुर्तगाल करेगा और पश्चिमी हिस्से की संपत्ति को लुटने का काम स्पेन करेगा. ये आदेश 1492 में पोप ने जारी किया. ये आदेश जारी करते समय, जो मूल सवाल है वो ये है कि क्या किसी पोप को ये अधिकार है कि वो दुनिया को दो हिस्सों में बांटे, और उन दोनों हिस्सों को लुटने के लिए दो अलग अलग देशो की नियुक्ति कर दे? स्पैन को कहा की दुनिया के पश्चिमी हिस्से को तुम लूटो, पुर्तगाल को कहा की दुनिया के पूर्वी हिस्से को तुम लूटो और 1492 में जारी किया हुआ वो आदेश और बुल आज भी  लागू है. जिसे बदलने  की जरूरत है

20 फ़रवरी 2017

गांधी जी की हत्या के सिवारे पास कोई दूसरा उपाय नहीं

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30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी ।लेकिन नाथूराम गोड़से घटना स्थल से फरार नही हुआ बल्कि उसने आत्मसमर्पण कर दिया। नाथूराम गोड़से समेत 17 अभियुक्तों पर गांधी जी की हत्या का मुकदमा चलाया गया। इस मुकदमे की सुनवाई के दरम्यान न्यायमूर्ति खोसला से नाथूराम ने अपना वक्तव्य स्वयं पढ़ कर जनता को सुनाने की अनुमति माँगी थी जिसे न्यायमूर्ति ने स्वीकार कर लिया था | हालाँकि सरकार ने नाथूराम के इस वक्तव्य पर प्रतिबन्ध लगा दिया था लेकिन नाथूराम के छोटे भाई और गांधी जी की हत्या के सह-अभियोगी गोपाल गोड़से ने 60 साल की लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट में विजय प्राप्त की और नाथूराम का वक्तव्य प्रकाशित किया गया।नाथूराम गोड़से ने गांधी हत्या के पक्ष में अपनी 150 दलीलें न्यायालय के समक्ष प्रस्तुति की। लुटियंस द्वारा पेश किये गए “नाथूराम गोड़से के वक्तव्य के मुख्य अंश”।




1. नाथूराम का विचार था कि गांधी जी की अहिंसा हिन्दुओं को कायर बना देगी । कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी को मुसलमानों ने निर्दयता से मार दिया था महात्मा गांधी सभी हिन्दुओं से गणेश शंकर विद्यार्थी की तरह अहिंसा के मार्ग पर चलकर बलिदान करने की बात करते थे। नाथूराम गोड़से को भय था गांधी जी की ये अहिंसा वाली नीति हिन्दुओं को कमजोर बना देगी और वो अपना अधिकार कभी प्राप्त नहीं कर पायेंगे।

2.1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोलीकांड के बाद से पुरे देश में ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ आक्रोश उफ़ान पे था। भारतीय जनता इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाने की मंशा लेकर गांधी जी के पास गयी, लेकिन गांधी जी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से साफ़ मना कर दिया।
3. महात्मा गांधी ने खिलाफ़त आन्दोलन का समर्थन करके भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता का जहर घोल दिया। महात्मा गांधी खुद को मुसलमानों का हितैषी की तरह पेश करते थे वो केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के 1500 हिन्दूओं को मारने और 2000 से अधिक हिन्दुओं को मुसलमान बनाये जाने की घटना का विरोध तक नहीं कर सके।
4. कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से काँग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गांधी जी अपने प्रिय सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे। गांधी जी ने सुभाष चन्द्र बोस को जोर जबरदस्ती करके इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर दिया।
5. 23 मार्च 1931 को भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गयी। पूरा देश इन वीर बालकों की फांसी को टालने के लिए महात्मा गांधी से प्रार्थना कर रहा था लेकिन गांधी जी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए देशवासियों की इस उचित माँग को अस्वीकार कर दिया।
6. गांधी जी ने कश्मीर के हिन्दू राजा हरि सिंह से कहा कि कश्मीर मुस्लिम बहुल क्षेत्र है अत: वहां का शासक कोई मुसलमान होना चाहिए। अतएव राजा हरिसिंह को शासन छोड़ कर काशी जाकर प्रायश्चित करना चाहिए जबकि  हैदराबाद निज़ाम के शासन का गांधी जी ने समर्थन किया था , हैदराबाद हिन्दू बहुल क्षेत्र था ।गांधी जी की नीतियाँ धर्म के साथ, बदलती रहती थी। उनकी मृत्यु के पश्चात सरदार पटेल ने सशक्त बलों के सहयोग से हैदराबाद को भारत में मिलाने का कार्य किया ।गांधी जी के रहते ऐसा करना संभव नहीं होता ।
7. पाकिस्तान में हो रहे भीषण रक्तपात से किसी तरह से अपनी जान बचाकर भारत आने वाले विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली। मुसलमानों ने मस्जिद में रहने वाले हिन्दुओं का विरोध किया जिसके आगे गांधी नतमस्तक हो गये और गांधी ने उन विस्थापित हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे , मस्जिदों से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।
8. महात्मा गांधी ने दिल्ली स्थित मंदिर में अपनी प्रार्थना सभा के दौरान नमाज पढ़ी जिसका मंदिर के पुजारी से लेकर तमाम हिन्दुओं ने विरोध किया लेकिन गांधी जी ने इस विरोध को दरकिनार कर दिया। लेकिन महात्मा गांधी अपने जीवन काल मे  एक बार भी किसी मस्जिद में जाकर गीता का पाठ नहीं कर सके ।
9. लाहौर मे सरदार वल्लभभाई पटेल की बहुमत से विजय हुई थी  किन्तु अपनी जिद के द्वारा प्रधानमंत्री का यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिलाने मे महत्वपूर्ण भूमिका रही। गांधी जी अपनी मांग को मनवाने के लिए अनशन-धरना-रूठना किसी से बात न करने जैसी युक्तियों को अपनाकर काम निकलवाने में माहिर थे। इसके लिए वो नीति-अनीति का लेशमात्र विचार भी नहीं करते थे।
10. 14 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, लेकिन गांधी जी ने वहाँ पहुँच कर प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि गांधी जी ने  स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा। न सिर्फ देश का विभाजन हुआ बल्कि लाखों निर्दोष लोगों का कत्लेआम भी हुआ लेकिन गांधी जी ने कुछ नहीं किया ।



11. धर्म-निरपेक्षता के नाम पर मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के जन्मदाता महात्मा गाँधी ही थे। जब मुसलमानों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाये जाने का विरोध किया तो महात्मा गांधी ने सहर्ष ही इसे स्वीकार कर लिया और हिंदी की जगह हिन्दुस्तानी (हिंदी + उर्दू की खिचड़ी) को बढ़ावा देने लगे। बादशाह राम और बेगम सीता जैसे शब्दों का चलन शुरू हुआ।




12. कुछ एक मुसलमान द्वारा वंदेमातरम् गाने का विरोध करने पर महात्मा गांधी झुक गये और इस पावन गीत को भारत का राष्ट्र गान नहीं बनने दिया ।




13. गांधी जी ने अनेक अवसरों पर शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोबिन्द सिंह को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा। वही दूसरी ओर गांधी जी मोहम्मद अली जिन्ना को क़ायदे-आजम कहकर पुकारते थे।




14. कांग्रेस ने 1931 में स्वतंत्र भारत के राष्ट्र ध्वज बनाने के लिए एक समिति का गठन किया था इस समिति ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र को भारत का राष्ट्र ध्वज के डिजाइन को मान्यता दी किन्तु गांधी जी की जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।




15. जब सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया गया तब गांधी जी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे, ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।




16. भारत को स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान को एक समझौते के तहत 75 करोड़ रूपये देने थे भारत ने 20 करोड़ रूपये दे भी दिए थे लेकिन इसी बीच 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया । केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण से क्षुब्ध होकर 55 करोड़ की राशि न देने का निर्णय लिया। जिसका महात्मा गांधी ने विरोध किया और आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप 55 करोड़ की राशि भारत ने पाकिस्तान दे दी ।

महात्मा गांधी भारत के नहीं अपितु पाकिस्तान के राष्ट्रपिता थे जो हर कदम पर पाकिस्तान के पक्ष में खड़े रहे, फिर चाहे पाकिस्तान की मांग जायज हो या नाजायज। गांधी जी ने कदाचित इसकी परवाह नहीं की ।




उपरोक्त घटनाओं को देशविरोधी मानते हुए नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की हत्या को न्यायोचित ठहराने का प्रयास किया । नाथूराम ने न्यायालय में स्वीकार किया कि महात्मा गांधी बहुत बड़े देशभक्त थे उन्होंने निस्वार्थ भाव से देश सेवा की, मैं उनका बहुत आदर करता हूँ लेकिन किसी भी देशभक्त को देश के टुकड़े करने के ,एक समप्रदाय के साथ पक्षपात करने की अनुमति नहीं दे सकता हूँ । गांधी जी की हत्या के सिवा मेरे पास कोई दूसरा उपाय नहीं था।

19 फ़रवरी 2017

“सेक्युलर भारत” की सच्चाई

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चीन की महान दीवार से प्राप्त हुयी पांडुलिपि में ‘पवित्र मनुस्मृति’ का जिक्र मिलता है।  प्राप्त मनुस्मृति में 630 श्लोक थे। सवाल यह उठता है कि जब चीन की इस प्राचीन पांडुलिपी में मनुस्मृति में 630 श्लोक लिखे है तो आज 2400 श्लोक कैसे हो गये ? इससे यह स्पष्ट होता है कि बाद में मनुस्मृति में जानबूझकर षड्यंत्र के तहत अनर्गल तथ्य जोड़े गये जिसका मकसद महान सनातन धर्म को बदनाम करना तथा भारतीय समाज में फूट डालना था।


मनु कहते हैं- जन्मना जायते शूद्र: कर्मणा द्विज उच्यते। अर्थात जन्म से सभी शूद्र होते हैं और कर्म से ही वे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र बनते हैं। वर्तमान दौर में ‘मनुवाद’ शब्द को नकारात्मक अर्थों में लिया जा रहा है। ब्राह्मणवाद को भी मनुवाद के ही पर्यायवाची के रूप में उपयोग किया जाता है। वास्तविकता में तो मनुवाद की रट लगाने वाले लोग मनु अथवा मनुस्मृति के बारे में जानते ही नहीं है या फिर अपने निहित स्वार्थों के लिए मनुवाद का राग अलापते रहते हैं। दरअसल, जिस जाति व्यवस्था के लिए मनुस्मृति को दोषी ठहराया जाता है, उसमें जातिवाद का उल्लेख तक नहीं है। 


शूद्रो ब्राह्मणतामेति ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम।
क्षत्रियाज्जातमेवं तु विद्याद्वैश्यात्तथैव च। 

महर्षि मनु कहते हैं कि कर्म के अनुसार ब्राह्मण शूद्रता को प्राप्त हो जाता है और शूद्र ब्राह्मणत्व को। इसी प्रकार क्षत्रिय और वैश्य से उत्पन्न संतान भी अन्य वर्णों को प्राप्त हो जाया करती हैं। विद्या और योग्यता के अनुसार सभी वर्णों की संतानें अन्य वर्ण में जा सकती हैं। आखिर जिस मनुस्मृति में कहा गया की जन्म से सब सूद्र ही होते है कर्मो से वो ब्राह्मण,क्षत्रिय,वै­श्य बनते है,जातिवाद नही वर्णवाद नियम था की शूद्र के घर पैदा होने वाला ब्राह्मण बन सकता था,,, सब कर्म आधारित था आज उसको जातिवाद की राजनीती का केंद्र बना दिया गया है। मनुस्मृति और सनातन ग्रंथों में मिलावट उसी समय शुरू हो गयी थी जब भारत में बौद्धों का राज बढ़ा, अगर समयकाल के दृष्टि से देखें तो यह मिलावट का खेल 9 वीं शताब्दी के बाद शुरू हुआ था।

मनुस्मृति पर बौद्धों द्वारा अनेक टीकाएँ भी लिखी गयी थीं। लेकिन जो सबसे ज्यादा मिलावट हुई वह अंग्रेजों के शासनकाल में ब्रिटिश थिंक टैंक द्वारा करवाई गयीं जिसका लक्ष्य भारतीय समाज को बांटना और आपस मे लड़ाना था। क्योंकि यह अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति का एक प्रमुख हिस्सा था, जिसकी छाया आज भी भारत की सेक्युलर राजनीती मे दिखाई देती है। उनके द्वारा यह ठीक वैसे ही किया  गया जैसे उन्होंने भारत में मैकाले  की शिक्षा प्रणाली लागू की थी। इस शिक्षा ने भारत के समाज मे काफी विकृति फैलाई। इसी तरह 9 वीं शताब्दी में मनुस्मृति पर लिखी गयी ‘भास्कर मेघतिथि टीका’ की तुलना में 12 वीं शताब्दी में लिखी गई ‘टीका कुल्लुक भट्ट’ के संस्करण में 170 श्लोक ज्यादा थे। यह भी एक और सोची समझी मिलावट थी। चीनी दीवार के बनने का समय लगभग 220 से 206 ईसा पूर्व का है अर्थात लिखने वाले ने कम से कम 220 ईसा पूर्व ही मनु के बारे में अपने हस्तलेख में लिखा।

18 फ़रवरी 2017

राष्ट्रीय एकात्मता

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भारतीय राष्ट्रजीवन पुरातन है। एक तत्वज्ञान के अधिष्ठान से निर्मित समाज जीवनादर्शों से युक्त एक सांस्कृतिक परंपरा से जनजीवन परस्पर संबद्ध है। ईसाई या इस्लाम के आक्रमणकारी आगमन के बहुत पूर्व से विद्यमान है। अनेक पंथ, संप्रदाय, जातियां या कभी-कभी अनेक राज्यों में विभक्त जैसा दृश्यमान होते हुए भी उसकी एकात्मता अविच्छिन्न रही है। जिस मानवसमूह की यह एकात्म जीवनधारा रही है उसे "हिन्दू" इस नाम से संबोधित किया जाता है। अत: भारतीय राष्ट्रजीवन हिन्दू राष्ट्र जीवन है।
राष्ट्रीय एकात्मता का विचार इसी शुद्ध भूमिका में से होना चाहिए। इस वास्तविक राष्ट्र धारा से, उसकी परंपरा-आशा-आकांक्षाओं से एकरसता का निर्माण ही इन्टीग्रेशन (एकरसता) है।
इस राष्ट्रीय अस्मिता को पुष्ट एवं सबल करने वाले कार्य ही राष्ट्रीय हैं। इस अस्मिता से अपने को पृथक मान कर इस राष्ट्र की आशा-आकाक्षाओं के विपरीत, उनके विरुद्ध आकांक्षाओं को धारण कर अपने पृथक अधिकारों की मांग करने वाले समूह कम्यूनल (सांप्रदायिक) कहे जाना चाहिए। अपने विभक्त अधिकारादि की पूर्ति हेतु राष्ट्र के जनसमूह पर आघात करने वाले - यह आघात मतान्तर के रूप में, श्रद्धास्थानों को ध्वस्त या अपमानित करने के रूप में, महापुरुषों को अवगणित करने के रूप में या अन्य किसी रीति से हों- राष्ट्र विरोधी माने जाना चाहिए।
भारत में हिन्दू यह किसी भी प्रकार सांप्रदायिक (कम्युनल) नहीं कहा जा सकता। वह सदैव संपूर्ण भारत की भक्ति करने वाला, उसकी उन्नति तथा गौरव के हेतु परिश्रम करने के लिए तत्पर रहा है। भारत के राष्ट्र जीवन के आदर्श हिन्दु-जीवन से ही प्रस्थापित हुए हैं। अत: वह राष्ट्रीय है, कम्युनल (सांप्रदायिक) कदापि नहीं।
बहुसंख्यकों की सांप्रदायिकता- यह कल्पना निरी भूल है। जनतंत्र में बहुसंख्यकों के मत को व्यावहारिक जीवन में सर्वमान्य मानना आवश्यक है। अत: बहुसंख्यकों का व्यावहारिक अस्तित्व राष्ट्रीय अस्तित्व माना जाना उचित है। इस दृष्टि से भी हिन्दू-जीवन तथा उसके उत्कर्ष हेतु किये प्रयत्न राष्ट्रीय, सांप्रदायिक नहीं। मेजारिटी कम्युनेलिज्म (बहुसंख्यक की सांप्रदायिकता) यह प्रयोग जनतांत्रिक भाव के विरुद्ध हैं। परकीय राज्य में परकीय राज्यकर्ता सब जनता को दास तथा विभिन्न जातियों में विभक्त मानने के कारण वे मेजोरिटी, माइनारिटी, कम्युनेलिज्म जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं। उनकी दृष्टि से यह ठीक हो सकता है किन्तु स्वराज्य में मेजोरिटी का ही प्रभुत्व रहना उचित होने के कारण मेजारिटी कम्युनेलिज्म यह शब्द प्रयोग तर्क के, न्याय के, सत्य के विरुद्ध है।
ऐसी प्रवृत्तियों (राष्ट्र जीवन पर आघात करने वाली) का पोषण करना, उनको धारण कर चलने वाले समूहों की राष्ट्रविरोधी मांगों को पूरा कर उनकी संतुष्टीकरण की नीति अपनाना, तात्कालिक लाभ के लिए उनसे लेन-देन करते रहना, उनके संतुष्टीकरण के हेतु राष्ट्रीय जीवनप्रवाह के स्वाभिमान को, श्रद्धाओं को, हित संबंधों को चोट पहुंचाने की चेष्टा करना राष्ट्रजीवन के लिए मारक है। राष्ट्रीय एकात्मता इन चेष्टाओं से कभी सिद्ध नहीं हो सकती।
इन विपरीत राष्ट्रहित विरोधी भावनाओं का विरोध करने की सप्रवृत्ति को हिन्दू समाज की साम्प्रदायिकता कहना बड़ी भूल है, सत्य का विपर्यास करना है।
उपाय
भारत के विशुद्ध-हिन्दू राष्ट्र जीवन के सत्य का असंदिग्ध उद्घोष कर उसे पुष्ट, बलिष्ठ, वैभवयुक्त, सार्वभौम, निर्भय बनाना संपूर्ण भारत की जनता का सर्वश्रेष्ठ कर्तव्य है, यह शिक्षा जातिपंथ निर्विशेष प्रत्येक व्यक्ति को दें। इस राष्ट्र की उत्कट भक्ति सब में जगाएं।
अहिन्दू व्यक्तियों की उपासना पद्धति को सन्मान्य एवं सुरक्षित रखते हुए भी राष्ट्र की परंपरा, इतिहास, जीवन-धारा, आदर्शों, श्रद्धाओं के प्रति आत्मीयता एवं आदर रखने का, अपनी आकांक्षाओं को राष्ट्र की आकांक्षाओं में विलीन करने का संस्कार उन्हें प्रदान करने का प्रबंध करें।
ऐहिक क्षेत्र में सब नागरिक एक से हैं, इस सत्य का पूर्णरूपेण पालन करें। जाति, पंथ आदि के गुट बनाकर नौकरियों में, आर्थिक सहायता में, शिक्षा मंदिरों के प्रवेश में, किसी भी क्षेत्र में, किसी भी प्रकार के विशेषाधिकार पूर्णतया बंद करें। माइनारिटी, कम्युनिटीज की बातें करना, उस ढंग से सोचना एकदम बंद करें।
स्वतंत्र राष्ट्र के व्यवहार के लिए उसकी अपनी भाषा होती है। संविधान ने राष्ट्र की अनेक भाषाओं में से सुविधा व सरलता की दृष्टि से हिन्दी को स्वीकार किया है। उसे सरलता के नाम पर दुर्बोध करना तथा उसका उर्दूकरण करना यह राष्ट्र की सार्वभौम स्वतंत्रता में सांप्रदायिकता और सांप्रदायिक तुष्टीकरण की मिलावट करना है। राष्ट्र की राज्यव्यवहार-भाषा से यह व्यवहार या परकीय भाषा-दासता के भाव में देश को जकड़ने वाली अंग्रेजी को राज्यभाषा के समकक्ष बनाने का व्यवहार, राष्ट्रभक्ति के विशुद्ध भाव को नष्ट करने वाला है। राष्ट्रभक्ति की उत्कटता पर ही एकात्म भाव सर्वथा अवलम्बित होने के कारण भाषा संबंधी यह दुर्नीतियां त्वरित बंद हों।
एक देश, एक समाज, एक भावात्मक जीवन, एक ऐहिक हित संबंध, एक राष्ट्र अतएव इस राष्ट्र का व्यवहार एक राज्य के द्वारा एकात्म शासन के रूप में व्यक्त होना स्वभाविक है। आज की संघात्मक (फेडरल) राज्य पद्धति पृथकता की भावनाओं का निर्माण तथा पोषण करने वाली, एक राष्ट्रभाव के सत्य को एक प्रकार से अमान्य करने वाली अतएव विच्छेद करने वाली है। इसको जड़ से ही हटाकर तदनुसार संविधान शुद्ध कर एकात्म शासन प्रस्थापित हो।
धार्मिक दृष्टि से जितने प्रकार के आघात या अतिक्रमण होते हैं जैसे पूजास्थानों का विध्वंस, मूर्तिभंजन, गोहत्या, किसी भी सार्वजनिक या वैयक्तिक स्थान पर पीर-कब्रा, दरगाह, मजार, क्रास आदि अनधिकार रूप से खड़ा करना, अन्यायपूर्ण व्यवहार से धार्मिक शोभा यात्रा आदि को रोकना, मारपीट करना, धमकियां देना इनका निवारण करने के स्थान पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में इन अन्यायों का पृष्ठ पोषण करना, प्रोत्साहन देना यह आज की शासकीय नीति कटुता उत्पन्न करने वाली होने से इसका अविलब त्याग कर ऐसे अन्यायों को दृढता से दूर करने की नीति का पालन करना प्रारंभ हो।
हिन्दू के लिए धर्म की पुकार भारत में ही है। धर्म क्षेत्रों का आकर्षण उसे भारत में ही देशभर भ्रमण करने के लिए प्रेरित करता है। उसकी ऐहिक कामनाएं भारत से ही संबद्ध हैं। अर्थात् उसकी अंतर्बाह्र परिपूर्ण निष्ठा भारत पर ही है। अत: धर्म और देश आदि के आकर्षणों का उसके जीवन में परस्पर विरोध हो ही नहीं सकता, सदैव एकरूपता रहती है। उसमें डिवाइडेड लॉयलटी (विभक्त निष्ठा) नहीं है, लॉयलटी टू रिलिजन इन कान्ट्राडिक्शन टू ऑर इन अपोजिशन टू दि लॉयलटी टू कन्ट्री- राष्ट्रनिष्ठा के विरुद्ध या विभक्त संप्रदायनिष्ठा- हिन्दू के संबंध में सर्वथा असंभव है। उसके शुद्ध राष्ट्रीय समाज होने का यह सुदृढ प्रमाण है। उसे कम्युनल कहकर जिनकी डिवाइडेड और कभी-कभी संदेहास्पद निष्ठाएं हैं उनके स्तर पर लाकर हिन्दू को खड़ा करना अन्यायपूर्ण, अविवेकपूर्ण है।
हिन्दू का अन्य मत में धर्मान्तर होना एकनिष्ठ राष्ट्रभक्ति के स्थानपर विभक्तनिष्ठता यानी निष्ठाहीनता उत्पन्न होना है। देश, राष्ट्र की दृष्टि से यह घातक है। अत: इस पर रोक लगाना आवश्यक है। यह धर्मान्तर सोचकर, तत्वज्ञान आदि के अध्ययन-तुलना के आधार पर नहीं होता है। अज्ञान का लाभ उठाकर, दारिद्रय का लाभ उठाकर, भुला-फुसला कर, प्रलोभन देकर यह किया जाता है, अत: इसमें सद्भाव से किसी उपासना मत का अंगीकार नहीं है। सद्भावरहित इस प्रकार के धर्मान्तरण को रोकना न्याय है, अज्ञान, दारिद्रय से पीड़ित अपने बांधवों की उचित रक्षा का आवश्यक कर्तव्यपालन है।
हिन्दू तत्वज्ञान सर्व संग्राहक होने से अहिन्दु समाजों को आत्मसात करने की उसमें शक्ति है। मान्यवर पं. नेहरू ने इसको ध्यान में रखकर ही कहा था कि पूर्वेतिहास में आक्रमणकारी के रूप में आये हुए शक हूणादिकों को अपने राष्ट्रजीवन में हिन्दू ने जैसा समाविष्ट किया था वैसा ही मुस्लिम, ईसाई आदि का समावेश करना उचित है। मान्यवर पंडितजी ने इस भाषण में राष्ट्रीय एकता प्रस्थापना का, सर्वसंप्रदायों के एकीकरण का, उसमें एनिष्ठता निर्माण करने का सत्य मार्ग प्रदिष्ट किया है। परंतु हिन्दू को अवगणित कर हिन्दू-विरोधी तत्वों को गर्वोद्धत आक्रमणों में भी संतुष्टीकरण की नीति से अधिक उद्धत एवं आक्रमणशील बनाने से, हिन्दू स्वत्व, परंपरा को अपमानित कर हिन्दू को निर्वीर्य स्वसंरक्षण करने में भी अक्षम बनाने की आज की विकृत नीति से इस सत्य मार्ग का त्याग ही नहीं उसे नष्ट करना भी हो रहा है। यह विकृति दूर करना व अविच्छिन्न राष्ट्रनिष्ठा का अनुसरण करने वाले हिन्दू का वास्तविक स्थान मान्य कर अन्यों को उस मान्यता के अनुरूप उससे समरस बनाने की नीति अपनाना अनिवार्य रूप से आवश्यक है।
राष्ट्रीय एकता के नाम पर बनी हुई समिति ने अनेक असंतुष्ट गुटों को अपनी शिकायतें, मांगे आदि प्रकट करने का अवसर देकर विभक्तीकरण से विशिष्ट मांगों की पूर्ति होने की आशाएं उनमें जगाई हैं। सांप्रदायिकता का निवारण करने के लिए उसकी व्याख्या बनाकर मार्ग निर्धारण करने का दावा कर उनके स्वार्थ, तथाकथित अधिकार आदि की पूर्ति होने की अपेक्षा (आकांक्षा) उत्पन्न की है। इससे प्रत्येक संप्रदाय में आग्रह से विभक्त रहने की इच्छा बलवती हो सकती है। राष्ट्रीय एकता प्रस्थापित करने की रट लगाने से, उसका अभी अभाव है, यह धारणा जागकर दृढ होती जाती है। अत: अपने हेतु के मूल उद्देश्य के विपरीत ही इस समिति का अस्तित्व दिखाई देता है। अत: इसे अविलम्ब विसर्जित कर दिया जाय। राष्ट्रीय ऐकात्म्य के विकास के लिए यह बहुत उपकारक होगा।


17 फ़रवरी 2017

No one can save INDIA apart from its Armed Forces

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No one can save INDIA apart from its Armed Forces....
It's ARMY, ITS NAVY & ITS AIRFORCE.....
COZ they are the only people who are trained to do their job in WAR and in PEACE.... come what may....
Give them a chance to clean INDIA.... Swachha BHARAT from terrorist and terrorism and please stop giving  gyan of how to do the OPS as its our SOP TO UPROOT ALL THESE Bastards out of their Fox Holes and kill them.... Please educate the Human Rights BITCHES and WHORES Not to intervene in our work of cleansing INDIA....
Mera BHARAT MAHAN SARE HUMAN RIGHTS BASTARDS BEIMAAN....
LETS KILL SOME TERRORIST AND THEIR SYMPATHISERS .....NO LAW CAN PREVENT US NO POLITICIANS CAN STOP US...
it can be ur next door neighbor's son or daughter who is a terrorist sympathiser ...so please inform the Min of Home Affairs immediately Govt of INDIA by email thus requesting them in keeping ur identity classified ....
No Mercy for these Bacteria and parasites of our society...
U might find a wall written with anti INDIA slogan mentioning AISA at the bottom.... Please don't hesitate to inform the Govt of INDIA authorities.... But don't inform the cops they are the informers....
Some safety protocols...
arm forces care for us and they are there for U.... India...
Don't worry u can sleep in room without disturbances coz armed forces are watching us and saving us...
Loving my nation
ONE NATION ONE BLOOD MY INDIA OUR INDIA....
JAI HIND

16 फ़रवरी 2017

राष्ट्र धर्म

ca-pub-6689247369064277                            मित्रों हमारे देश में ISI के एजेंटो का मिलना आम हो गया है ओर अब तो ISIS जैसे मानवता के शत्रु आतंकी संगठन के रिक्रूटर भी मिलने लगे हैं | हमे किसी भी समस्या का सामना करने के लिए सावधान रहना होगा अपने आस पास दृष्टि रखें किसी भी व्यक्ति पर शक होने पर अपने यहाँ के निकट थानों या ख़ुफ़िया विभाग ( LIU, IB ) को जानकारी उपलब्ध कराएं |

सवेदनशील क्षेत्र :- पश्चिम बंगाल, हैदराबाद, महाराष्ट्रा, राजस्थान, असम एवं उत्तर प्रदेश |

अपने राष्ट्र की रक्षार्थ

क). राष्ट्रवादी ही राष्ट्र का रक्षक होता है (जिससे हमे प्रेम होता है उसके लिए प्राण भी दाव पर लग जाए कोई अंतर नहीं इसलिए सभी युवाओं के अंदर देशप्रेम पैदा करें)

ख). एकता में ही शक्ति है (अपने गाँव, कस्बा व शहर में एक सूत्र में सभी राष्ट्रवादी युवाओं को पिरोना)

ग). आत्मबल सभी बलों में सर्वोत्तम बल है (हमें युवाओं के अंदर आत्म शक्ति का संचय करना होगा)

घ). बौद्धिक बल (रक्षा के लिए युद्ध की आवश्यकता होती है और युद्ध जितने के लिए रणनिति की इसलिए महाभारत, चाणक्य सूत्र का अवलोकन आवश्यक है)

ङ). शारीरिक बल (शारीरिक बल शत्रु पर मानसिक दबाव के लिए आवश्यक है)

च). आत्मरक्षा की तैयारी (आत्मरक्षा के लिए कुश्ती, कबड्डी, लाठी चलाना, भाला फेंकना का पूर्ण ज्ञान)

छ). छद्म प्रवर्ति (आज के समय में सिद्धांतो का महत्व नहीं इसलिए साम, दाम, दण्ड भेद जो भी आवश्यक हो उसको अपनाया जाए)

ज). जागरूकता (जागरूकता से समय पर शत्रु की निति का समय पर पता चला जाता है ताकि भविष्यात्मक तैयारी हो सके)

झ). धैर्य (धैर्यवान होने से सही निति बनाने में पूर्णता आती है)

ञ). सवांद (कम समय में ज्यादा से ज्यादा संख्या में सूचनाओ का आदान-प्रदान)

14 फ़रवरी 2017

ट्रम्प की कल्पना

ca-pub-6689247369064277                                
अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप के प्रमुख सलाहकार दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड को अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठन घोषित करने वाले हैं। अगर ये कदम अमेरिका उठा लेता है तो ये अब तक के इतिहास का सबसे बड़ा कदम होगा जिसमे किसी संगठन पर इतनी बड़ी करवाई की गयी जायेगी। आपको एक बात हम बता दें की ये मुस्लिम ब्रदरहुड दुनिया का सबसे बड़ा संगठन है मुसलमानों का राजनितिक और सामाजिक स्तर पर ,लेकिन हमेशा से ही इस संगठन पर आंतकियों का साथ देने और कटरपंथी सोच रखने के आरोप लगते रहे है।
मुस्लिम ब्रदरहुड से जुडी कुछ संस्थाएं हैं जो की तुनीसिया और तुर्की में राजनीतिक दलों में शामिल हो चुकी हैं.अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा पर भी लगातार दबाव था कि वह मुस्लिम ब्रदरहुड को आंतकी संगठन घोषित करे ,लेकिन ओबामा अपने कार्यकाल में ये नहीं कर सके। ये मुस्लिम संगठन शरियत के मुताबिक समाजिक व्यवस्था की बात करता है। इस संगठन की कुछ पुराने सदस्य और शाखाएं है जिसमे फिलिस्तान का सबसे बड़ा आंतकी संगठन हमस भी शामिल है और ये संगठन हमेशा से आंतकवाद का सहारा लेता रहा है।
न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक इस प्रस्ताव पर काम कर रहे डोनाल्ड ट्रंप के सलाहकारों का मानना है कि मुस्लिम ब्रदरहुड के एक उग्र संगठन चोरी-छिपे अमेरिका में घुसपैठ बना ली है जिससे वहां शरियत कानून की मांग को मजबूत किया जा सके. ट्रंप के इन सलाहकारों के मुताबिक अब इनके खिलाफ कड़े कदम उठाने का वक्त आ गया है. अमेरिका के लोगों ने जिस बजह से ट्रंप को अपना राष्ट्रपति चुना था ट्रंप उसी राह पर आगे बढ़ते नजर आ रहे है।
ट्रंप प्रशाषन के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि मुस्लिम ब्रदरहुड को आतंकी संगठन घोषित करने से खाड़ी देशों से उसका रिश्ता बेहद खराब हो जाएगा. हालांकि मिस्र और संयुक्त अरब अमीरात के कुछ नेताओं ने अपने अंदरूनी विरोधियों को काबू करने के लिए डोनाल्ड ट्रंप से मुस्लिम ब्रदरहुड पर लगाम लगाने की अपील की है.
 मुस्लिम ब्रदरहुड को आतंकी संगठन घोषित करने के साथ-साथ ट्रंप प्रशाषन के सामने ईरान के इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प को भी अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठन घोषित करने का प्रस्ताव है.

12 फ़रवरी 2017

धर्म

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धर्म जीवन पद्धति और ईस्वर प्राप्ती के संशाधन बताता है।इन दोनों के समावेश से सच्चे धर्म का निर्माण होता है।अच्छा आचरण, विचार और सद्चरित्र ही धर्म है जो व्यक्त्ति नैतिक है, जिसका आचरण पवित्र है, जो अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से निर्वहन करता है तथा जो अपने कर्मों के प्रति निष्ठावान है वही व्यक्ति धार्मिक है।पूजा पाठ किये बगैर भी कोई व्यक्ति धार्मिक हो सकता है। संत रविदास मंदिरों मै बैठकर पूजा पाठ करने के बजाय जूते सिलकर अपने धर्म का पालन करते थे। कवीर शाहिब कभी किशी मंदिर मे नही गए, कोई तिलक या माला धारण नही की लेकिन इन लोगों से बड़ा धार्मिक मनुष्य खोजना बड़ा मुश्किल काम है।इनका चरित्र ही धार्मिक था।ये सम्पूर्ण रूप से धार्मिक थे।
मूल रूप से धर्म का मतलब होता है जो धारण किया जाये, जो धारण करने योग्य हो। जो विचार, चरित्र और नैतिकता हम जीवन मे धारण करते है वही जीवन पद्धति है। धर्म का मतलब है कर्तव्य। इसलिए प्रायः लोग कहते भी हैं क़ि पुत्र धर्म,छात्र धर्म,पत्नी धर्म, राष्ट्र धर्म, सामाजिक धर्म इत्यादि। मूल रूप से धर्म वही है जिस पर महापुरुष लोग चलते हैं। जो लोग आगे चलकर लोगों के लिए प्रेरणाश्रोत बन जाते हैं। समाज भी उनको ईस्वर रूप मे स्वीकार कर लेता है।

अपनी जीवन पद्धति को और ईस्वर मार्ग मे चलने के लिए अनेक लोगों ने उनके बताये मार्ग का अनुसरण किया। अलग अलग मार्गों का अनुसरण करने के कारण उनके नाम भी अलग अलग पड़ गए परन्तु सबकी मंज़िल एक ही थी। भगवत गीता मै कहा गया है कि अपने कर्तव्य के मार्ग के निर्वहन मै यदि मृत्यु भी हो जाये तो कोई बात नही लेकिन दूसरों के कर्तव्य निर्वहन मे बाधा डालना उचित नही। धर्म का पालन ही अपने नैतिक कर्तव्यों का निर्वहन है।

11 फ़रवरी 2017

हिटलर-हिमलर

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सनातन धर्म के पवित्र चिन्ह ‘स्वास्तिक’ को अपनाकर अपना प्रतीक चिन्ह  बनाने के कारण हिटलर व नाजियों से दुनिया पहले भी प्राचीन भारत का कनेक्शन तलाशती रही है। लेकिन जो सबसे रोचक तथ्य है वो यह है कि ना ही मात्र हिटलर खुद को आर्य समझता था, बल्कि हिटलर सहित उसके कई अन्य अधिकारी भी भारत और सनातन धर्म से बेहद प्रभावित थे। यहाँ हम बात कर रहे हैं नाजियों में नंबर दो की पोजीशन रखने वाले हेनरी हिमलर की जो सनातन धर्म और प्राचीन भारत के प्रति रूचि तो रखता ही थे इसके साथ ही वह संस्कृत में भी मास्टर थे।


कई पश्चिमी इतिहासकारों ने हिटलर-हिमलर तथा नाजियों के प्राचीन भारत के कनेक्शन के बारे में बताते हुए कहा है कि ‘हिमलर जैसे नाजी ना ही मात्र भारतीय संस्कृति और हिन्दू धर्म में रूचि रखते थे बल्कि उन्होंने हिन्दुओं के गीता जैसे पवित्र पुस्तको का भी अच्छे से अध्ययन कर रखा था, जिसे वो अपने जीवन में भी फॉलो करते थे। हिमलर के बारे में बताया जाता है कि वह हमेशा अपने पास सनातन धर्म के पवित्र ग्रंथ ‘श्रीमदभागवत गीता’ की एक प्रति रखते थे, हिमलर की भारत और भारतीयों के बारे में काफी सकारात्मक सोच थी, वह कई विषयों पर खुद को भारतीयों से तुलनात्मक रूप में देखा करता थे। जर्मन इतिहासकार दम्पत्ति मिस्टर एंड मिसेज ट्रिमोंडी बताते हैं कि हिमलर अपने पास एक ऐसी डायरी रखते थे जिसमें उन्होंने उन पुस्तकों का ना ही मात्र क्रमवार ब्यौरा दे रखा था जिसके बारे में उन्होंने पढ़ा था बल्कि उन्होंने उनके बारे में अपने कमेंट्स भी लिख रखे थे कि वह उन पुस्तकों के बारे में अपनी क्या राय रखते थे। हिमलर की डायरी में बनी लिस्ट के अनुसार उनकी भारत से संबंधित साहित्य तथा भारतीय ग्रन्थ पढने की शुरुआत सन 1919 से ही शुरू हो गयी थी जब ना ही हिटलर का उत्थान हुआ था और ना ही नाजी पार्टी का जन्म हुआ था। हिमलर ने भारतीय पुस्तकों से जो पढ़ा सीखा था वह उन्हें नाजियो व जर्मन सेनाओं को दिए जाने वाले अपने भाषणों में भी प्रयोग करते थे, अक्सर उनके भाषणों में ‘पवित्र गीता’ से उठाये गये वाक्यों का समावेश होता था। चारों दिशाओं के युद्ध में विजेता बनने के बाद प्राचीन भारत में चुने जाने वाले चक्रवर्ती सम्राटों के सिद्धांत से भी हिटलर-हिमलर दोनों खासे प्रभावित थे व वे खुद भी कुछ ऐसा ही बनने का सपना देखते थे। कुछ इतिहासकार बताते हैं कि हिमलर को संस्कृत भाषा में भी मास्टरी हासिल थी, वो ना ही मात्र संस्कृत अच्छे से पढ़ लिया करते थे बल्कि लिख व बोल भी सकते थे। हिमलर भारतीय ग्रन्थों खासकर ‘पवित्र गीता’ से इतने प्रभावित थे कि जहां वह हिटलर को ‘श्रीकृष्ण’ समझने लगे थे वहीं खुद को वह ‘अर्जुन’ तथा नाजी योद्धाओं को वह भारत के ‘क्षत्रिय योद्धाओं’ के तौर पर देखनने लगे थे। सही हो या गलत हिमलर ने अपने नाजी कैरियर में वही किया जिसका उन्हें हिटलर से आदेश मिला। ज्ञात हो कि, भारत में जर्मनों या यूरोपियनों की रूचि हिटलर या नाजियों से बहुत पहले से है, भारतीय संस्कृति तथा भारतीय परम्पराओं से जर्मन पहले से भी काफी प्रभावित रहे हैं हाँ नाजियों के उत्थान के बाद इसमें कुछ ज्यादा ही बढ़ोतरी जरुर देखने को मिलती है, आज जर्मनी के ज्यादातर विश्वविद्यालयों में संस्कृत की क्लासेज भी चलती हैं जिनमें जर्मन बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं ।


10 फ़रवरी 2017

गांधी या अंगरेज़

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यदि आप पूरा स्वतंत्रता संग्राम पढ़ेंगे तो आपको पता चल जायेगा ...
1- मोहनदास गाँधी को कभी भी अंग्रेजों ने लम्बे समय तक जेल में नहीं रखा ..और उन्हें जेल के बजाय पूना में आगा खान के आलिशान महल में "कैद" किया जाता था ..जबकि उस महल में सारी सुख सुविधाए थी।
२- जो अंग्रेज वीर सावरकर को काला पानी देकर अंडमान की जेल में ...बाल गंगाधर तिलक को म्यांमार की मांडले
जेल में कैद करते थे वो अंग्रेज हमेशा गाँधी पर मेहरबान क्यों रहे ?
३- अंग्रेजो ने हजारो सेनानियों को फांसी पर लटका दिया था ..लाला लाजपत राय की लाठियों से पीट पीटकर मार डाला... उन्ही अंग्रेजो ने गाँधी को कभी एक थप्पड़ तक क्यों नही मारा ?
४- भारत छोड़ो आन्दोलन जब अपने चरम परथा.....लोग अग्रेजो के खिलाफ संगठित होकर विद्रोह करने लगे थे ..तब अचानक गाँधी ने चौरीचौरा कांड का बहाना बनाकर आन्दोलन को वापस क्यों ले लिया ??
५- नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने जब सशस्त्र हमला किया तब गाँधी ने लोगो को नेताजी के आदोलन में शामिल न होने के लिए अपील क्यों किया ?
६- जब नेताजी सुभाषचंद्र बोस बहुमत से कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव जीते और उनके प्रतिद्वंदी पट्टाभिसीतारमैया को सिर्फ दो वोट मिला थे ... तब लोकतंत्र का सम्मान करते हुए गाँधी ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को कांग्रेस अध्यक्ष क्यों नही बनने दिया ? क्यों बयानबाजी करने लगे कि पट्टाभिसीतारमैया की हार मेरी हार है और अब मेरा कांग्रेस में रहना असम्भव है ?
गाँधी ने नेताजी को इमोशनल ब्लेकमेल करके त्यागपत्र देने पर विवश कर दिया था ...मित्रो ... ऐसे एक दो नहीं बल्कि सैकड़ो उदाहरण है जो प्रमाणित करते है कि मोहनदास गाँधी ने हमेशा अंग्रेजों का हित सिद्ध किया था, उनके कारण ही भारत को इतनी देर से और खण्डित आज़ादी मिली।
लार्ड इरविन पैक्ट की आड़ में गांधी एवं अंग्रेजों के बीच अघोषित समझौता हुआ था कि सत्ता कांग्रेस को सौंपी जायेगी अन्यथा क्रांतिकारियों के बल पर आजादी मिलती तो एक भी अंग्रेज जीवित वापस नहीं जा पाते। गांधी ने सहमति जताई थी कि सुभाष, सावरकर एवं अन्य क्रांतिकारियों का विरोध किया जायेगा,,, उनके आंदोलन को कुंद कर दिया जायेगा।
जिन्हें चरखे पर मिली आजादी, उन्हें गांधी नेहरू याद रहा। आजादी के परवानों को सदा, नेताजी सुभाष भगत सिंह याद रहा।

8 फ़रवरी 2017

अद्भुद

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ग़जब है - 550 साल से योग मुद्रा में बैठे हैं संत, अब भी बढ़ रहे हैं बाल और नाखून

Egypt की MUMYऔर इस प्रक्रिया के बारे में आपने अनेक बार सुना पढ़ा होगा, लेकिन एक ऐसी भी ममी है जो बैठी हुई अवस्था में है और उसके बाल और नाखून अब भी बढ़ रहे हैं। लोक मान्यता के अनुसार एक संत हैं जो 550 साल से ध्यान मुद्रा में हैं।

तिब्बत से करीब 2 किलोमीटर दूरी पर हिमाचल प्रदेश में लाहुल स्पिती के गीयू गांव में एक ध्यान-मग्न संत की ममी मिली है। हालांकि, विशेषज्ञ इसे ममी मानने से इन्कार कर रहे हैं, क्योंकि इसके बाल और नाख़ून आज भी बढ़ रहे हैं। पता चला है कि वह एक ध्यानस्थ संत की ममी है। गांव वालों के अनुसार ये ममी पहले गांव में ही रखी हुई थी और एक स्तूप में स्थापित थी। तिब्बत के नजदीक होने के कारण वह बौद्ध भिक्षु की ममी लगती है।

जब इसे मलबों से बाहर निकाला गया था, तब विशेषज्ञों ने इसकी जांच की थी। बताया गया कि यह करीब 545 वर्ष पुरानी ममी है। लेकिन अचरज इस बात का है कि इतने साल तक बिना किसी लेप के और जमीन में दबी रहने के बावजूद ये कैसे इस अवस्था में यथावत है। गौरतलब है कि गीयू गांव साल के 7-8 महीने भारी बर्फबारी के कारण दुनिया से लगभग कटा रहता है।

ऐसा पहली बार नहीं है कि ऐसी जीवित ममियां पहली बार देखी गई हैं। भारत के कई हिस्सों में पुरातन कंदराओं में जीवित ममीनुमा ध्यानस्थ संतों के देखे जाने के प्रमाण हैं।                      
गीयू गांव के बुजुर्गों का कहना है कि 15वीं शताब्दी में गांव में एक संत तपस्यारत रहते थे। उसी दौरान गांव में बिच्छुओं का बहुत प्रकोप हो गया। इस प्रकोप से गांव को बचाने के लिए इस संत ने ध्यान लगाने की सलाह दी। संत की समाधि लगते ही गांव में बिना बारिश के इंद्रधनुष निकला और गांव बिछुओं से मुक्त हो गया।

एक अन्य मान्यता के मुताबिक़ ये जीवित ममी बौद्ध भिक्षु सांगला तेनजिंग की है, जो तिब्बत से भारत आए और यहीं इसी गांव में आकर ध्यान में बैठ गए और फिर उठे ही नहीं।

1974 में आए शक्तिशाली भूकम्प के बाद ये कहीं मलबों में दब गई। वर्ष 1995 में ढ्ढञ्जक्चक्क के जवानों को सडक निर्माण के दौरान ये ममी मिली। स्थानीय लोगों के मुताबिक़, उस समय इस ममी के सिर पर कुदाल लगने की वजह से खून भी निकला, जिसके निशान आज भी साफ देखे जा सकते हैं।

वर्ष 2009 तक ये ममी ढ्ढञ्जक्चक्क के कैम्पस में ही रखी रही। बाद में ग्रामीणों ने इसे धरोहर मानते हुए अपने गांव में स्थापित कर दिया। ममी को रखने के लिए शीशे का एक केबिन बनाया गया, जिसमें इसे रखा दिया गया। इस ध्यानस्थ ममी की देखभाल गांव में रहने वाले परिवार बारी-बारी से करते हैं।

7 फ़रवरी 2017

'ॐ' और 'अल्लाह

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योग के साथ ‘ॐ’ का दायरा भी विस्तृत हो रहा है।  160 से अधिक देशों में योग दिवस मनाया गया, जिनमें 40 मुस्लिम देश शामिल हैं। केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय ने 21 जून को योग-दिवस के अवसर पर एक दिशा-निर्देश जारी करके नया विवाद मोल ले लिया था, लेकिन अब इस पर बाबा रामदेव ने ‘ॐ’ के साथ पर ‘आमीन’ बोलने के विकल्प का सुझाव देकर इस विवाद पर विराम लगा दिया। हालांकि सनातन भारतीय मिथक और प्रतीक चिह्नों पर खड़े किए जा रहे विवादों से लाभ यह हो रहा है, कि अब इनका प्रतिपक्ष यानी वैज्ञानिक स्वरूप सामने आने लगा है, इस कारण कई धर्मों के लोग इन्हें स्वेच्छा से अपनाने लगे हैं। योग को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा अंतरराष्ट्रीय योग-दिवस के रूप में मान्यता मिलते वक्त यही हुआ और अब ॐ के साथ भी ऐसी ही संभावनाएं बनती दिख रही हैं। दरअसल योग हो या ‘ॐ’ ये ऐसी शारीरिक क्रियाएं और उच्चारण हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए आश्चर्यजनक रूप से लाभदायी हैं। शरीर विज्ञानी भी अब इन विलक्षण विधाओं को लंबे शोध और परीक्षण के बाद विज्ञान-सम्मत मानने लगे हैं।

हमारी दर्शन परंपरा में माना गया है कि संसार का सार ‘वेद’ है और वेद का सार है, ‘गायत्री मंत्र और गायत्री मंत्र का भी सार है, ‘प्रणब’। प्रणब का अर्थ है, ओम! इसे एक अक्षर ध्वनि के प्रतीक स्वरूप ‘ॐ’ आकार में लिखा व पढ़ा जाता है। सनातन धर्म में इस अक्षर की मान्यता  ब्रह्म या  परमात्मा के रूप में प्रचलित है। ॐ सर्वाधिक, सारगर्भित और प्रभावी अभिव्यक्ति है। लंबे समय से देश-विदेश में चले शोधों के निष्कर्ष से भी पुष्टि हुई है कि ॐ का नियमित जाप कई तरह के असाध्य रोगों के उपचार में रामबाण सिद्ध हुआ है।
आजादी के बाद से लेकर अब तक वामपंथी वैचारिक प्रभाव के चलते विश्व प्रसिद्ध और लोकमान्य भारतीय मिथकीय चरित्र और हिंदू प्रतीक चिह्नों को वह आधिकारिक महत्त्व नहीं मिला, जिसकी समाज को जरूरत थी। जबकि पश्चिम में अप्रकट रूप से वेद, पुराण और उपनिषदों से जुड़ी हजारों वर्ष पुरानी ज्ञान परंपराओं की विशिष्टताओं के वैज्ञानिक विश्लेषण में जुटे रहे। वैज्ञानिक सूत्रों का यही अथाह भंडार पश्चिम की वैज्ञानिक उपलब्धियों का मूलाधार रहा है। बावजूद वे भारत को अंधविश्वासी बताते रहे हैं। यही नहीं हमारे जो वैज्ञानिक नोबेल पुरस्कार विजेता रहे हैं, उनमें से ज्यादातर की प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत में हुई थी। संस्कृत ग्रंथों से मिले सूत्रों को ही उन्होंने वैज्ञानिक उपलब्धियों का आधार बनाया था। इन वैज्ञानिकों की जीवनियां पढ़ने से इन रहस्यों का खुलासा हुआ है।
खासतौर पर अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी में ॐ के उच्चारण और मंत्र-जाप से संबंधित जो प्रयोग हुए हैं, उन्हें विश्व की जानी-मानी विज्ञान पत्रिका ‘साइंस’ भी अपने अंकों में छाप चुकी है। कुछ साल पहले अमेरिका के रिसर्च एंड एक्सपेरिमेंटल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइंसेज के दल के शोध निष्कर्ष प्रकाशित हुए थे। इस दल के प्रमुख प्राध्यापक जे. मॉर्गन के अनुसार, उनके दल ने सात वर्षों तक दिल और दिमाग से परेशान रोगियों पर ॐ के उच्चारण के प्रभाव के परीक्षण किए हैं। इन परीक्षणों से ज्ञात हुआ कि ॐ का अलग-अलग आवृत्तियों और ध्वनियों में नियमित जाप आश्चर्यजनक ढंग से असरकारी रहा है। ॐ का मंत्र जाप पेट, छाती और मस्तिष्क में एक स्पंदन पैदा करता है। यह कंपन इतना विलक्षण व प्रभावी होता है कि इससे मृत कोशिकाएं पुनर्जीवन प्राप्त कर लेती हैं और नई कोशिकाओं का भी निर्माण होता है। ॐ का उच्चारण मस्तिष्क से लेकर नाक, कान, गला तथा फेफड़ों में प्रकंपन पैदा कर तरंगों की गति में समन्वय बिठाकर संतुलित करने का काम करता है।
इस परीक्षण में 2500 पुरुष और 2000 महिलाओं को शामिल किया गया था। इनमें से कईयों की बीमारी अंतिम पड़ाव पर थी। मसलन रोगी मरणासन्न अवस्था में पहुंच गए थे। प्राध्यापक मॉर्गन ने धीरे-धीरे इन्हें दी जाने वाली दवाओं में से वही जारी रखीं, जो जीवन रक्षक दवाएं थीं। चिकित्सीय देख-रेख में रोगियों को रोजाना सुबह एक घंटे विभिन्न आवृत्तियों में ॐ का जाप कराया जाता था। इस काम के लिए योग और ध्यान के मर्मज्ञ प्रशिक्षक रखे गए। प्रत्येक तीन माह में एक बार मरीजों का शारीरिक परीक्षण किया गया। मंत्र-जाप की इस नियमित प्रक्रिया चलने के चार वर्ष बाद निकले परिणाम चौंकाने वाले थे। 70 प्रतिशत पुरुष और 85 प्रतिशत महिलाओं के रोगों का 90 प्रतिशत रोग का निदान हो गया था। हालांकि जिन लोगों के शरीर में मर्ज अंतिम चरण में पहुंच गया था, उन्हें जरूर महज 10 फीसदी ही लाभ मिला।
इस अध्ययन के कुछ समय पहले भारतीय मूल की आयुर्वेदाचार्य सुश्री प्रतिमा रायचुर ने अमेरिका के ही ओहियो विवि. में वैदिक ऋचाओं से जुड़़ा एक प्रयोग किया। इसमें पाया गया कि वेदों की ऋचाओं के उच्चारण से कैंसर की कोशिकाओं की वृद्धि धीमी पड़ जाती है। इसका प्रयोग चूहों पर करके देखा गया। इस तरह के मरीजों को कीमोथैरेपी की भारी खुराक दी जाती है, साथ ही ऑटोलोगस स्तंभ कोशिकाओं का प्रत्यारोपण भी किया जाता है। यदि इन मरीजों को म्यूजिक थैरेपी मसलन संगीत पद्धति के माध्यम से वेदों की ऋचाएं सुनाई जाएं तो मरीजों की उद्धिग्नता कम होती है और कीमोथैरेपी का कष्ट भी झेलना नहीं पड़ता है। चूहों पर सफल प्रयोग के बाद प्रतिमा ने यही प्रयोग कैंसर से ग्रस्त अपने पिता पर भी किया था। उनके पिता को मायलोमा था। यह एक तरह का अस्थि-मज्जा कैंसर होता है।
इन प्रयोगों की सफलता के बाद अमेरिका के न्यूजर्सी प्रांत की रटगर्स यूनिवसिर्टी में जो भारतीय छात्र हिंदू जीवन शैली में विश्वास रखते हैं, वे इस शैली में शामिल प्रतीक चिह्नों और मंत्रों के रहस्यों को जानने की दिशा में अनुसंधान करें। इन्हें वैज्ञानिक रूप में जानने-समझने के लिए विवि में हिंदुत्व से संबंधित छह प्रकार के पाठ्यक्रम तैयार किए। इनमें वाचन परंपरा, हिंदू संस्कार, महोत्सव एवं परंपराओं के प्रतीक योग और ध्यान शामिल किए गए। अब इस पाठ्यक्रम को विस्तार देते हुए इसमें शास्त्रीय संगीत और लोक नृत्य भी शामिल कर लिए गए हैं। इस तरह के अध्ययनों से खास बात सामने आई वह यह थी कि भारतीय मिथकों, प्रतीकों, योग और ध्यान को समझने के नजरिए से पश्चिम के दृष्टिकोण में खुलापन आया है और स्वीकार्यता बढ़ी है। इस स्वीकार्यता का एक सकारात्मक परिणाम यह भी निकला है कि भारत के जो पूर्वाग्रही कथित मार्क्सवादी प्रगतिशील हैं, उनकी सोच भी लचीला रुख अपनाने लगी है। अलबत्ता धर्म से जुड़ी कट्टरता जरूर इतर विषय है।
ॐ सृष्टि का एकमात्र ऐसा स्वर है, जिसके उच्चारण में प्राण वायु शरीर के भीतर जाती है। जबकि शेष सभी उच्चारणों में प्राण वायु बाहर आती है। यानी ॐ के उच्चारण से हम अधिकतम प्राण वायु अर्थात ऊर्जा ग्रहण करते हैं। अब हम ‘अ’ का उच्चारण करते हैं, तो हमारे ब्रह्मरंध्र से लेकर कंठ तक स्पंदन होता है। जब ‘उ’ का उच्चारण करते हैं, तो कंठ से लेकर नाभि तक शरीर स्पंदित होता है और जब ‘म’ का उच्चारण करते हैं, तो नाभि से लेकर पैरों तक का भाग प्रकंपित होता है। इस स्पंदन से हर तरह के रोग नियंत्रित होते हैं। साफ है, ॐ का उच्चारण शरीर और मन को विभिन्न स्तरों पर ऊर्जा देने का काम करता है। अर्थात इसके स्पष्ट उच्चारण से जो स्पंदन पैदा होता है, वह हमारी संपूर्ण शारीरिक रचना को प्रभावित करता है। इसके सही उच्चारण से पंचमहाभूत पृथ्वी, आकाश, जल, वायु और अग्नि का शरीर में संतुलन बना रहता है। शरीर में इन तत्त्वों के असंतुलन से ही बीमारियां और विकार उत्पन्न होते हैं। आधुनिक चिकित्सा विज्ञानियों का मानना है कि मेटाबोलिक डिसऑर्डर यानी चयापचय असंतुलन के कारण ही शारीरिक व्याधियां पनपती हैं। इसलिए ॐ के जाप को नकारने की बजाय जरूरत तो यह है कि भारतीय ज्ञान परंपरा के इस अनूठे अक्षर को और गहराई से परखा जाए।

5 फ़रवरी 2017

महाभारत में परमाणु हथियार !

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महाभारत में परमाणु हथियार भी कुछ लोगों के पास थे. महाभारत में परमाणु हथियार का उपयोग यदि कर दिया जाता तो निश्चित रूप से तबाही आ सकती थी. आप बेशक यह बात पढ़कर हँस रहे होंगे क्योकि आपको यह बात बिना हाथ पैर वाली लग रही होगी. आपको बता दें कि जिन हथियारों के बारें में आज बोला जाता है कि वह धरती को खत्म कर सकते हैं, ऐसे कई हथियारों के बारें में महाभारत के अंदर पहले से ही लिखा हुआ है.
महाभारत कोई आज तो लिखा नही गया है और ना ही आज उनको एडिट किया गया है. सालों पहले ऐसा यहाँ लिखा हुआ है कि महाभारत के कुछ योद्धाओं के पास ऐसे हथियार थे जो पूरी सेना को एक ही बार में और एक पूरे देश को मिनटों में तबाह कर सकते थे. आपको यह भी बता दें कि जब महाभारत शुरू हो रहा था तभी यह बात निश्चित की गयी थी कि इस युद्ध में कोई भी ब्रह्मास्त्र का उपयोग नहीं करेगा. क्योकि यही ब्रह्मास्त्र ही सारी दुनिया को खत्म कर सकते थे. वैसे यह ब्रह्मास्त्र आज के परमाणु हथियार से ज्यादा शक्तिशाली और अत्याधुनिक था. अश्वत्थामा का नाम सबसे पहले इसलिए लिखा गया है क्योकि अश्वत्थामा ने महाभारत के अंदर ब्रह्मास्त्र का उपयोग किया था. इस हथियार से सारी दुनिया तबाह हो सकती थी किन्तु अर्जुन ने अपने ब्रह्मास्त्र का उपयोग कर इसकी मारक क्षमता को खत्म कर दिया था.
महाभारत का दूसरा योद्धा अर्जुन है जिसके पास परमाणु हथियार था. जब अश्वत्थामा ने अपना ब्रह्मास्त्र छोड़ा था तो उसके बाद अर्जुन ने उसको रोकने के लिए अपना हथियार चलाया था. ऐसा भी महाभारत में लिखा हुआ है कि जब दोनों हथियार चले थे तो इतनी रोशनी आसमान में हुई थी जैसे कि हजारों सूरज निकल गये हो. चारों तरफ धुँआ था और सैनिकों की चमड़ी उतरने लगी थी.
महाभारत का तीसरा योद्धा भीष्म पितामह हैं जिनके पास परमाणु हथियार था. भीष्म में कभी भी इस हथियार का उपयोग नहीं किया था. वैसे कई मौकों पर भीष्म ने सोचा तो जरुर था कि इसका उपयोग किया जाए किन्तु इनके ज़मीर ने ऐसा कभी इनको करने नहीं दिया था.
कर्ण के पास भी यह ब्रह्मास्त्र था. महाभारत में इसका जिक्र है कि दुर्योधन ने कर्ण को कई बार चेताया भी था कि वह जरूरत पड़ने पर ब्रह्मास्त्र का उपयोग कर सकता है. किन्तु कर्ण ने युद्ध के नियमों को तोड़ना कभी सही नहीं समझा और इसने कभी ब्रह्मास्त्र का उपयोग नहीं किया था.
अब अगर गुरु के पास ब्रह्मास्त्र नहीं होगा तो वह कैसे अपने शिष्यों को ब्रह्मास्त्र के बारें में बता सकता है. जब द्रोणाचार्य पांडवों को शिक्षा दे रहे थे तब इन्होनें अर्जुन को ब्रह्मास्त्र प्राप्त करने की आज्ञा दी थी. द्रोणाचार्य ने कुछ ही लोगों चुना था कि वह ब्रह्मास्त्र को प्राप्त करें क्योकि जिसके पास यह शक्ति हो वह धैर्यवान होना भी जरुरी होना चाहिए. अन्यथा तो धरती कभी भी खत्म हो सकती थी.

4 फ़रवरी 2017

दरिद्रता दूर करने-वाला चमत्कारिक मंदिर

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अगर आप गरीब हैं तो उत्तराखंड के इस गांव में आइए। यहां भगवान शिव की ऐसी महिमा है कि जो भी आता है उसकी गरीबी दूर हो जाती है। यहीं नहीं इस गांव को श्रापमुक्त जगह का दर्जा प्राप्त है। ये माना जाता है कि यहां आने पर व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है।

उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित देश का सबसे अंतिम गांव माणा। यहीं पर माना पास है जिससे होकर भारत और तिब्बत के बीच वर्षों से व्यापार होता रहा था। पवित्र बदरीनाथ धाम से 3 किमी आगे भारत और तिब्बत की सीमा स्थित इस यह गांव का नाम भगवान शिव के भक्त मणिभद्र देव के नाम पर पड़ा था। उत्तराखंड संस्कृत अकादमी, हरिद्वार के उपाध्यक्ष पंडित नंद किशोर पुरोहित बताते हैं कि इस गांव में आने पर व्यक्ति स्वप्नद्रष्टा हो जाता है। जिसके बाद वह होने वाली घटनाओं के बारे में जान सकता है। माणिक शाह नाम एक व्यापारी था जो शिव का बहुत बड़ा भक्त था। एक बार व्यापारिक यात्रा के दौरान लुटेरों ने उसका सिर काटकर कत्ल कर दिया। लेकिन इसके बाद भी उसकी गर्दन शिव का जाप कर रही थी। उसकी श्रद्धा से प्रसन्न होकर शिव ने उसके गर्दन पर वराह का सिर लगा दिया। इसके बाद माना गांव में मणिभद्र की पूजा की जाने लगी।

शिव ने माणिक शाह को वरदान दिया कि माणा आने पर व्यक्ति की दरिद्रता दूर हो जाएगी। डॉं नंदकिशोर के मुताबिक मणिभद्र भगवान से बृहस्पतिवार को पैसे के लिए प्रार्थना की जाए तो अगले बृहस्पतिवार तक मिल जाता है। इसी गांव में गणेश जी ने व्यास ‌ऋषि के कहने पर महाभारत की रचना की थी। यही नहीं महाभारत युद्ध के समाप्त होने पर पांडव द्रोपदी सहित इसी गांव से होकर ही स्वर्ग को जाने वाली स्वर्गारोहिणी सीढ़ी तक गए थे। 

3 फ़रवरी 2017

स्वर्ग से आए घोड़े

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यह पृथ्वी पर सबसे प्राचीन नस्ल है। यह दुनिया में सबसे सुंदर  घोड़ों में से एक है। दुनिया में घोड़ों की कई तरह की प्रजातियां मौजूद हैं जिनमें से कुछ प्रजातियों के घोड़े बहुत खूबसूरत होते हैं। किसी के बाल काफी सुन्दर होते हैं तो किसी का रंग आकर्षक होता है। लेकिन आज हम आपको घोड़े की एक ऐसी प्रजाति के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं जिसे इस दुनिया का सबसे खूबसूरत जानवर कहा जाता है।

अखाल-टैके ( वैज्ञानिक नाम: Equus ferus caballus ) के नाम से प्रसिद्ध ये घोड़े सोने जैसे रंग के होते हैं जिन्हें लोग जानवरों की दुनिया के सुपरमॉडल की संज्ञा भी देते हैं। ये घोड़े इतने खूबसूरत होते हैं की इन्हें देखकर हर कोई कहता है..इतना सुन्दर जानवर कभी नहीं देखा। ये घोड़े रौशनी में तो और भी ज्यादा खूबसूरत दिखाई देते हैं। इस प्रजाति के घोड़े सिर्फ रूस और तुर्कमेनिस्तान में ही पाए जाते हैं और तुर्कमेनिस्तान के लोग इन्हें वहां का राष्ट्रीय खज़ाना मानते हैं। वहीँ अगर चीन की बात करें तो चीन में इन्हें “स्वर्ग से आए घोड़े” या “सोने के घोड़े” की संज्ञा दी जाती है। इस तरह के घोड़े बेहद खूबसूरत होने के साथ साथ बहुत ही ताकतवर और फुर्तीले भी होते हैं और ये किसी भी मौसम में रहने के आदि होते हैं।

2 फ़रवरी 2017

सत्ताचक्र को नहीं

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कानपुर विश्वविद्यालय के ठीक पीछे बने इस मंदिर का नाम है 'भ्रष्ट तंत्र विनाशक शनि मंदिर'. मंदिर के निर्माण के बाद इसका लोकार्पण भी किसी बड़े आदमी ने नहीं, बल्कि पवन राणे बाल्मीकि नाम के एक निशक्त व्यक्ति ने किया था. इस मंदिर में मूर्तियों को भी किसी लॉजिक के साथ लगाया गया है. शनिदेव की तीन मूर्तियों और ब्रह्मा जी की मूर्ति को ऐसे रखा गया है कि ब्रह्मा जी शनिदेव को देख रहे हैं. साथ ही मंदिर में एक मूर्ति हनुमान जी की भी लगाई गई है. भगवान की मूर्तियों के अलावा मंदिर में अधिकारियों, मंत्रियों, नेताओं और इलाहाबाद न्यायालय के न्यायाधीशों की तस्वीरें भी लगाई गई हैं. ये तस्वीरें इस तरह से लगाई गई हैं कि देखने वालों को ऐसा प्रतीत होता है कि शनिदेव की सीधी नज़र इन पर है. इसका मकसद ये है कि ऐसे अधिकारी जनता विरोधी फ़ैसले लेने से पहले शानिदेव के गुस्से का शिकार होने से डरें. 

इस खास मंदिर में आम नागरिक ही जा सकते हैं. भ्रष्ट, अधिकारियों, मंत्रियों और नेताओं का प्रवेश यहां वर्जित है. ये भी प्रावधान है कि आने वाले 20 वर्षों में अगर हालात सुधरे, तो इस वर्जित वर्ग को भी प्रवेश दिया जाएगा. अनोखी बात ये है कि इस मंदिर में शानिदेव के ऊपर तेल चढ़ाना, प्रसाद चढ़ाना और घंटी बजाना मना है. पर लोग लौंग, इलाइची और काली मिर्च के साथ मिट्टी के दिये जला सकते हैं. शराबियों का यहां प्रवेश, तम्बाकू और खैनी खाना, थूकना इस मंदिर में घृणित काम की श्रेणी में रखे गये हैं.इस मंदिर का निर्माण करवाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता रौबी शर्मा का ऐसा मानना है कि इस मंदिर के निर्माण से लोग थोड़े जागरूक होंगे और वो अधिकारियों को भगवान समझने की गलती नहीं करेंगे. इस मंदिर में भ्रष्ट लोगों का बहिष्कार कर ये दिखाया जा रहा है कि चाहे कितना भी बड़ा अधिकारी हो, भगवान के सामने उसकी भ्रष्टता माफ़ नहीं होती.