ca-pub-6689247369064277
धर्म जीवन पद्धति और ईस्वर प्राप्ती के संशाधन बताता है।इन दोनों के समावेश से सच्चे धर्म का निर्माण होता है।अच्छा आचरण, विचार और सद्चरित्र ही धर्म है जो व्यक्त्ति नैतिक है, जिसका आचरण पवित्र है, जो अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से निर्वहन करता है तथा जो अपने कर्मों के प्रति निष्ठावान है वही व्यक्ति धार्मिक है।पूजा पाठ किये बगैर भी कोई व्यक्ति धार्मिक हो सकता है। संत रविदास मंदिरों मै बैठकर पूजा पाठ करने के बजाय जूते सिलकर अपने धर्म का पालन करते थे। कवीर शाहिब कभी किशी मंदिर मे नही गए, कोई तिलक या माला धारण नही की लेकिन इन लोगों से बड़ा धार्मिक मनुष्य खोजना बड़ा मुश्किल काम है।इनका चरित्र ही धार्मिक था।ये सम्पूर्ण रूप से धार्मिक थे।
मूल रूप से धर्म का मतलब होता है जो धारण किया जाये, जो धारण करने योग्य हो। जो विचार, चरित्र और नैतिकता हम जीवन मे धारण करते है वही जीवन पद्धति है। धर्म का मतलब है कर्तव्य। इसलिए प्रायः लोग कहते भी हैं क़ि पुत्र धर्म,छात्र धर्म,पत्नी धर्म, राष्ट्र धर्म, सामाजिक धर्म इत्यादि। मूल रूप से धर्म वही है जिस पर महापुरुष लोग चलते हैं। जो लोग आगे चलकर लोगों के लिए प्रेरणाश्रोत बन जाते हैं। समाज भी उनको ईस्वर रूप मे स्वीकार कर लेता है।
अपनी जीवन पद्धति को और ईस्वर मार्ग मे चलने के लिए अनेक लोगों ने उनके बताये मार्ग का अनुसरण किया। अलग अलग मार्गों का अनुसरण करने के कारण उनके नाम भी अलग अलग पड़ गए परन्तु सबकी मंज़िल एक ही थी। भगवत गीता मै कहा गया है कि अपने कर्तव्य के मार्ग के निर्वहन मै यदि मृत्यु भी हो जाये तो कोई बात नही लेकिन दूसरों के कर्तव्य निर्वहन मे बाधा डालना उचित नही। धर्म का पालन ही अपने नैतिक कर्तव्यों का निर्वहन है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें