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सनातन धर्म के पवित्र चिन्ह ‘स्वास्तिक’ को अपनाकर अपना प्रतीक चिन्ह बनाने के कारण हिटलर व नाजियों से दुनिया पहले भी प्राचीन भारत का कनेक्शन तलाशती रही है। लेकिन जो सबसे रोचक तथ्य है वो यह है कि ना ही मात्र हिटलर खुद को आर्य समझता था, बल्कि हिटलर सहित उसके कई अन्य अधिकारी भी भारत और सनातन धर्म से बेहद प्रभावित थे। यहाँ हम बात कर रहे हैं नाजियों में नंबर दो की पोजीशन रखने वाले हेनरी हिमलर की जो सनातन धर्म और प्राचीन भारत के प्रति रूचि तो रखता ही थे इसके साथ ही वह संस्कृत में भी मास्टर थे।
कई पश्चिमी इतिहासकारों ने हिटलर-हिमलर तथा नाजियों के प्राचीन भारत के कनेक्शन के बारे में बताते हुए कहा है कि ‘हिमलर जैसे नाजी ना ही मात्र भारतीय संस्कृति और हिन्दू धर्म में रूचि रखते थे बल्कि उन्होंने हिन्दुओं के गीता जैसे पवित्र पुस्तको का भी अच्छे से अध्ययन कर रखा था, जिसे वो अपने जीवन में भी फॉलो करते थे। हिमलर के बारे में बताया जाता है कि वह हमेशा अपने पास सनातन धर्म के पवित्र ग्रंथ ‘श्रीमदभागवत गीता’ की एक प्रति रखते थे, हिमलर की भारत और भारतीयों के बारे में काफी सकारात्मक सोच थी, वह कई विषयों पर खुद को भारतीयों से तुलनात्मक रूप में देखा करता थे। जर्मन इतिहासकार दम्पत्ति मिस्टर एंड मिसेज ट्रिमोंडी बताते हैं कि हिमलर अपने पास एक ऐसी डायरी रखते थे जिसमें उन्होंने उन पुस्तकों का ना ही मात्र क्रमवार ब्यौरा दे रखा था जिसके बारे में उन्होंने पढ़ा था बल्कि उन्होंने उनके बारे में अपने कमेंट्स भी लिख रखे थे कि वह उन पुस्तकों के बारे में अपनी क्या राय रखते थे। हिमलर की डायरी में बनी लिस्ट के अनुसार उनकी भारत से संबंधित साहित्य तथा भारतीय ग्रन्थ पढने की शुरुआत सन 1919 से ही शुरू हो गयी थी जब ना ही हिटलर का उत्थान हुआ था और ना ही नाजी पार्टी का जन्म हुआ था। हिमलर ने भारतीय पुस्तकों से जो पढ़ा सीखा था वह उन्हें नाजियो व जर्मन सेनाओं को दिए जाने वाले अपने भाषणों में भी प्रयोग करते थे, अक्सर उनके भाषणों में ‘पवित्र गीता’ से उठाये गये वाक्यों का समावेश होता था। चारों दिशाओं के युद्ध में विजेता बनने के बाद प्राचीन भारत में चुने जाने वाले चक्रवर्ती सम्राटों के सिद्धांत से भी हिटलर-हिमलर दोनों खासे प्रभावित थे व वे खुद भी कुछ ऐसा ही बनने का सपना देखते थे। कुछ इतिहासकार बताते हैं कि हिमलर को संस्कृत भाषा में भी मास्टरी हासिल थी, वो ना ही मात्र संस्कृत अच्छे से पढ़ लिया करते थे बल्कि लिख व बोल भी सकते थे। हिमलर भारतीय ग्रन्थों खासकर ‘पवित्र गीता’ से इतने प्रभावित थे कि जहां वह हिटलर को ‘श्रीकृष्ण’ समझने लगे थे वहीं खुद को वह ‘अर्जुन’ तथा नाजी योद्धाओं को वह भारत के ‘क्षत्रिय योद्धाओं’ के तौर पर देखनने लगे थे। सही हो या गलत हिमलर ने अपने नाजी कैरियर में वही किया जिसका उन्हें हिटलर से आदेश मिला। ज्ञात हो कि, भारत में जर्मनों या यूरोपियनों की रूचि हिटलर या नाजियों से बहुत पहले से है, भारतीय संस्कृति तथा भारतीय परम्पराओं से जर्मन पहले से भी काफी प्रभावित रहे हैं हाँ नाजियों के उत्थान के बाद इसमें कुछ ज्यादा ही बढ़ोतरी जरुर देखने को मिलती है, आज जर्मनी के ज्यादातर विश्वविद्यालयों में संस्कृत की क्लासेज भी चलती हैं जिनमें जर्मन बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं ।
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