9 जुलाई 2017

अस्तित्व का सवाल

ca-pub-6689247369064277     हम अक्सर बात करते हैं, भारत आतंक से वैसे क्यों नहीं निबट सकता जैसे इजराइल निबटता है? फिर ले दे कर बात इसपर आती है कि हम यहूदियों जैसे नहीं हैं...
पर यहूदी हमेशा ऐसे नहीं थे जैसे आज हैं. यहूदी 1500 सालों तक फिलिस्तीनियों से मार खाकर भागे रहे. अपना एक मुल्क नहीं था. यहूदी पूरी दुनिया में फैला रहा, उसे सिर्फ अपने पैसे कमाने से मतलब रहा. दुनिया की सबसे पढ़ी-लिखी और संपन्न कौम होने के बावजूद यहूदी पूरी दुनिया की घृणा और वितृष्णा का पात्र रहा. और यहूदी भी तब तक नहीं जागे जब तक उनका अस्तित्व खतरे में नहीं आ गया. हिटलर अकेला उन्हें नहीं मार रहा था, पूरा यूरोप उनके मार खाने पर खुश था ।

इंग्लैंड की विदेश नीति में द्वितीय विश्व युद्ध तक यहूदियों के लिए कोई सहानुभूति नहीं थी. आपने अगर लॉरेंस ऑफ़ अरबिया फिल्म देखी हो तो याद होगा...पहले विश्वयुद्ध में अंग्रेजों और अरबों में बहुत याराना था. यह दूसरे विश्वयुद्ध तक चला, और जब दुनिया भर के यहूदी फिलिस्तीन में छुप कर सर्वाइव करने का प्रयास कर रहे थे तब भी सरकारी ब्रिटिश नीति अरबों के पक्ष में थी.
उस समय एक अँगरेज़ फौजी अफसर फिलिस्तीन में इंटेलिजेंस ऑफिसर बन कर आया. नाम था कैप्टेन ऑर्ड विनगेट, विनगेट एक अजीब सी, पर असाधारण शख्सियत था. वह एक इन्फेंट्री जीनियस था. व्यक्तिगत रूप से उसे यहूदियों से बहुत सहानुभूति थी. और सरकारी ब्रिटिश नीति के विरुद्ध जाकर उसने यहूदियों को एकत्र करना और उन्हें लड़ाई के लिए तैयार करना शुरू किया. ज़्वी ब्रेनर और मोशे दयान जैसे भविष्य के इसरायली मिलिट्री लीडर उसके शिष्य बने. विनगेट ने इस्राएलियों को उनकी यह आक्रामक नीति दी...उसके पहले इसरायली कैम्पों में बैठे रक्षात्मक मोर्चे लिए रहते थे. अरब गैंग आते और उनपर हमले करके चले जाते, इसरायली सिर्फ जरूरत भर रक्षात्मक कार्रवाई करते थे.
एक दिन विनगेट ने ज़्वी ब्रेनर से बात करते हुए पूछा - तुम्हें पता है, इन पहाड़ियों के पार जो अरब हैं, वे तुम्हारे खून के प्यासे हैं...एक दिन ये आएंगे और तुम्हारा अस्तित्व मिटा देंगे.....

ब्रेनर ने कहा - वे यह आसानी से नहीं कर पाएंगे...हम बहादुरी से उनका मुकाबला करेंगे...
विनगेट ब्रेनर पर बरस पड़ा - तुम यहूदी भी ना, masochist (आत्मपीड़क) हो...तुम कहते हो - आओ, मुझे मारो...जब तक वह तुम्हारे भाई का क़त्ल नहीं कर दे, तुम्हारी बहन का रेप नहीं कर दे, तुम्हारे माँ-बाप को नाले में नहीं फेंक दे, तुम हाथ नहीं उठाओगे...
तुम लड़ कर जीत सकते हो, पर मैं तुम्हें सिखाऊंगा कि लड़ना कैसे है...
फिर विनगेट ने यहूदियों की टुकड़ियों का कई सैनिक अभियानों में नेतृत्व किया. वह अरब ठिकानों का पता लगाता, उनपर घात लगा कर हमला करता, उन्हें बेरहमी से मार डालता और कई बार अरबों की लाशें लॉरी में लादकर फिलिस्तीनी पुलिस स्टेशन के सामने फेंक आता...

विनगेट ने यहूदियों की मिलिट्री स्ट्रेटेजी ही नहीं, उनकी मानसिक अवस्था बदल दी. उन्हें रक्षात्मक से आक्रामक बनाया...इजराइल को मोशे दयान जैसे जनरल तैयार करके दिए...विनगेट अकेला एक ऐसा गैर-यहूदी है जिसकी मूर्ति इजराइल में लगाई गई है...
देश की मनस्थिति भी नेता निर्धारित करता है. इसी लिए उसे नेता कहते हैं. एक नेता का अपना कॉन्फिडेंस पूरे देश को छूत की तरह लग जाता है. हम इजराइल जैसे नहीं हैं, हमसे नहीं होगा...यह बहाना काफी नहीं है. नेता को निर्धारित करना होता है कि हमें बनना कैसा है, फिर वह हमें नियत दिशा में लेकर चलता है...और भेंड़ बना यहूदियों का झुण्ड इजराइल बन कर शेर की तरह रहना सीख लेता है...तो हम तो भरत वंशी हैं जिनका बचपन ही सिंह शावकों के साथ बीता था

20 जून 2017

शाहजहां का प्यार

ca-pub-6689247369064277.                इतिहासकार वी.स्मिथ ने लिखा है, ''शाहजहाँ के हरम में 8000 रखैलें थीं जो उसे उसके पिता जहाँगीर से विरासत में मिली थी। उसने बाप की सम्पत्ति को और बढ़ाया। उसने हरम की महिलाओं की व्यापक छाँट की तथा बुढ़ियाओं को भगा कर और अन्य हिन्दू परिवारों से बलात लाकर हरम को बढ़ाता ही रहा।'' (अकबर दी ग्रेट मुगल : वी स्मिथ, पृष्ठ 359)

कहते हैं कि उन्हीं भगायी गयी महिलाओं से दिल्ली का रेडलाइट एरिया जी.बी. रोड गुलजार हुआ था और वहाँ इस धंधे की शुरूआत हुई थी। जबरन अगवा की हुई हिन्दू महिलाओं की यौन-गुलामी और यौन व्यापार को शाहजहाँ प्रश्रय देता था, और अक्सर अपने मंत्रियों और सम्बन्धियों को पुरस्कार स्वरूप अनेकों हिन्दू महिलाओं को उपहार में दिया करता था।

यह नर पशु, यौनाचार के प्रति इतना आकर्षित और उत्साही था, कि हिन्दू महिलाओं का मीना बाजार लगाया करता था, यहाँ तक कि अपने महल में भी। सुप्रसिद्ध यूरोपीय यात्री फ्रांकोइस बर्नियर ने इस विषय में टिप्पणी की थी कि, ''महल में बार-बार लगने वाले मीना बाजार, जहाँ अगवा कर लाई हुई सैकड़ों हिन्दू महिलाओं का, क्रय-विक्रय हुआ करता था, राज्य द्वारा बड़ी संख्या में नाचने वाली लड़कियों की व्यवस्था, और नपुसंक बनाये गये सैकड़ों लड़कों की हरमों में उपस्थिती, शाहजहाँ की अनंत वासना के समाधान के लिए ही थी। (टे्रविल्स इन दी मुगल ऐम्पायर- फ्रान्कोइस बर्नियर :पुनः लिखित वी. स्मिथ, ऑक्‍सफोर्ड, 1934)

शाहजहाँ को प्रेम की मिसाल के रूप पेश किया जाता रहा है और किया भी क्यों न जाए , आठ हजार औरतों को अपने हरम में रखने वाला अगर किसी एक में ज्यादा रुचि दिखाए तो वो उसका प्यार ही कहा जाएगा। आप यह जानकर हैरान हो जायेंगे कि मुमताज का नाम मुमताज महल था ही नहीं बल्कि उसका असली नाम "अर्जुमंद-बानो-बेगम" था। और तो और जिस शाहजहाँ और मुमताज के प्यार की इतनी डींगे हांकी जाती है वो शाहजहाँ की ना तो पहली पत्नी थी ना ही आखिरी ।

मुमताज शाहजहाँ की सात बीबियों में चौथी थी । इसका मतलब है कि शाहजहाँ ने मुमताज से पहले 3 शादियाँ कर रखी थी और, मुमताज से शादी करने के बाद भी उसका मन नहीं भरा तथा उसके बाद भी उस ने 3 शादियाँ और की यहाँ तक कि मुमताज के मरने के एक हफ्ते के अन्दर ही उसकी बहन फरजाना से शादी कर ली थी। जिसे उसने रखैल बना कर रखा था जिससे शादी करने से पहले ही शाहजहाँ को एक बेटा भी था। अगर शाहजहाँ को मुमताज से इतना ही प्यार था तो मुमताज से शादी के बाद भी शाहजहाँ ने 3 और शादियाँ क्यों की?

शाहजहाँ की सातों बीबियों में सबसे सुन्दर मुमताज नहीं बल्कि इशरत बानो थी जो कि उसकी पहली पत्नी थी । शाहजहाँ से शादी करते समय मुमताज कोई कुंवारी लड़की नहीं थी बल्कि वो भी शादीशुदा थी और उसका पति शाहजहाँ की सेना में सूबेदार था जिसका नाम "शेर अफगान खान" था। शाहजहाँ ने शेर अफगान खान की हत्या कर मुमताज से शादी की थी।

गौर करने लायक बात यह भी है कि 38 वर्षीय मुमताज की मौत कोई बीमारी या एक्सीडेंट से नहीं बल्कि चौदहवें बच्चे को जन्म देने के दौरान अत्यधिक कमजोरी के कारण हुई थी। यानी शाहजहाँ ने उसे बच्चे पैदा करने की मशीन ही नहीं बल्कि फैक्ट्री बनाकर मार डाला था।

13 जून 2017

क्या हे आत्मा?

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Nation first

ca-pub-6689247369064277                                

Few months after 26/11, Taj group of Hotels owned by TATAs
launched their biggest tender ever for remodeling all their Hotels
in India and abroad. Some of the companies who applied for that tender were also Pakistanis. To make their bid stronger, two big industrialists from Pakistan visited Bombay House ( Head office of Tata ) in Mumbai without an appointment to meet up with Ratan Tata since he was not giving them any prior appointment. They were made to sit at the reception of Bombay house and after a few hours a message was conveyed to them that Ratan Tata
is busy and can not meet anyone without an appointment.
Frustrated, these two Paki industrialists went to Delhi and thru their High Commission met up with a Minister. The minister Anand Sharma immediately called up Ratan Tata requesting him to meet up with the two Paki
Industrialists and consider their tender "enthusiastically ". Ratan Tata replied..."you could be shameless, I am not" and put the
phone down. Few months later when Pakistani government placed an order of Tata Sumo's to be imported into Pakistan, Ratan Tata refused to ship a single vehicle to that country. This is the respect and love for motherland that Ratan Tata has. Something that our current Politicians should learn from. Hats off to you sir..
Awake Country men, the Nation is above everything else.


6 जून 2017

संत

ca-pub-6689247369064277    एक बार एक बकरवाल जंगल मे बकरीया चरा रहा था तभी उसने जंगल के शेर के बच्चे को देखा ।वह उसको उठाकर घर ले आया और बकरियो के साथ पालने लगा।जंगल के शेर का बच्चा अब बडा भी हो गया और  वह बकरियो के साथ खेलने भी लगा। बकरवाल जैसे बकरियो को डंडा मारता था उसे भी मारता था ।एक दिन जंगल के बडे शेर ने बकरवाल वाले शेर को बकरियो के साथ घूमते देखा तो उसको बडा आशचर्य हुआ कि यह बकरियो के बीच क्या कर रहा है ? जंगल के शेर ने उसे अपने पास बुलाया और कहा कि तू अपनी  बिरादरी का होकर वहां बकरियो के बीच क्या कर रहा है? यहां आ और चल मेरे साथ , तो बकरवाल वाला शेर बोला नहीं!!! मै शेर नहीं बकरी हू ,तू मुझे खा जायेगा।जंगल के शेर ने कहा भाई तू बकरी नहीं शेर है और तू बकरियो के साथ घास भी खा रहा है और ये बकरी की तरह  क्यौ मिमिया रहा है ? देख तेरे बाल भी मेरे जैसे है और नाखून भी,   तू मेरा जैसा ही है
 बकरवाल वाले शेर ने अपने को देखा और सोचा ये सही कह रहा है जंगल के शेर ने उसे पोखर मै ले जाकर उसको उसकी शकल दिखायी और कहा देख तू दिखता भी मेरे जैसा है ।उसने सोचा हाँ मै तो सच मै शेर हूं, जंगल के शेर ने उसको दहाडना सिखाया और कहा अब जा और बकरवाल को दिखा अपना जलवा।वह गया और दहाडा और अपना रौद रुप दिखाया बकरिया भी भग गयी और बकरवाल भी। कहने का आशय यह है कि यह परमातमा रूपी शेर का बच्चा यह आत्मा मन रुपी भेडिये के हाथ आ गयी है और इनद्रियौ रूपी बकरियौ के साथ यह विषय रुपी घास खा रही है और संत रूपी शेर आकर उसे बताते है कि अरे तू क्या कर रहा है....

3 जून 2017

Character is a complex phenomenon.

ca-pub-6689247369064277                                   Can u judge who is the better person out of these 3 ?

Mr A - He had friendship with bad politicians, consults astrologers, two wives, chain smoker, drinks eight to 10 times a day.

Mr B - He was kicked out of office twice, sleeps till noon, used opium in college & drinks whiskey every evening.

Mr C - He is a decorated war hero, a vegetarian, doesn't smoke, doesn't drink  and never cheated on his wife.

You would say Mr.C

right?

But..
Mr. A was Franklin Roosevelt! ( 32nd President of the USA)

Mr. B was Winston Churchill!! (Former British Prime Minister)

Mr C Was ADOLF HITLER!!!

Strange but true..
Its risky to judge anyone by his habits !
Character is a complex phenomenon.

So every person in ur life is important, don't judge them, accept them.

..The same Boiling Water that hardens the egg, Will Soften the Potato!
It depends upon Individual's reaction To stressful circumstances!

Enjoy the journey

2 जून 2017

Man can change if he want.

ca-pub-6689247369064277 This is a story of a famous and big entrepreneur , who was living in a 7 star hotel in their foreign travel. One day he require some flower but unfortunately the flowers was not available in the hotel. He saw outside the window and saw a man  in the road side with some flowers in the basket but he was sleeping. Entrepreneur went there to purchase some flowers to them, and said do you have flowers to sale, I have to purchase few. Salesman said yes, flowers are kept for sale.Entrepreneur while purchasing flower, said to sales person, you are sleeping here to sold your flower, if you will cry to sold flower, more people may come to you, it will increase your sale. Salesman said ok, assume my sales is increase, then? Entrepreneur said when sale will increase your profit will increase and now you can make your proper shop. Salesman said, assume I have shop then? Entrepreneur said now your income would be double and you can make musium of flowers. Salesman said assume I have musium now, then? Entrepreneur said from musium your capital would be many more and then you can make more musium and you can now depute sales staff on salery to run smoothly your business. Sales man said assume I have these all, then? Entrepreneur said now you can sleep sound with satisfaction. Sales man said this is what I am doing now. The story told us that you can change yourself if you want else nobody can change you. 

29 मई 2017

पहले अंडा आया या मूर्गी

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पहले अंडा आया या मुर्गी, यह एक ऐसा प्रश्न बन गया है जिसको सोचकर बड़े से बड़ा बुद्धिजीवी भी दो मिनट तक सोचता ही रह जाता है, जबाब जरूर सूझता है पर संसय नही जाता, कहीं न कहीं उसके मन मे धुंध जरूर रहती है। वह पूरे आत्मविस्वास के साथ इसका उत्तर देकर संतुस्ट नही हो पाता। जब तक व्यक्ति दिमाक और दिल की गहराइयों तक गोता नही लगा ले, वह इस प्रश्न का उत्तर ढूंढ भी नही सकता। प्रश्न के उत्तर के सही होने के लिए यह  जरूरी है कि दिल की गहराइयों से निकलने वाले जबाब को व्यक्ति की आत्मा, दिल और दिमाक पूर्ण रूप से स्वीकार कर सके। मान लिया जाए कि सबसे पहले कुछ भी नही था, मगर कोई एक तो जरूर था जिसने ये कायनात बना डाली, हाँ यह संभव है कि भले ही उसने केवल एक वस्तु बनाई और फिर उसी वस्तु से  कई सारी चीज़ें बन गयी । लेकिन यदि कोई एक भी नही होता तो फिर  ये सूरज धरती पाताल आकाश हवा कहां से आ गए। समझ आते ही बच्चो के दिमाग मे अक्सर यह बात आती है और वह अपने मम्मी पापा से यह बात पूछता भी है पर होता यह है कि उसकी जिज्ञासा को शांत किये बगैर, उसको सही जबाब दिए बगैर, हम उसको बहला फुसला देते है क्योंकि हमको भी इस प्रश्न का उत्तर पता नही होता। इतना बुद्धिजीवी मनुष्य जिसने सागर की गहराइयों को नाप लिया, अंतरिक्ष मे चले गया, एक छोटे से प्रश्न का उत्तर नही ढूंढ पाया। यह प्रश्न हजारों वर्षों से लोगों को परेशान करता आया है। लेकिन वैज्ञानिकों ने इस यक्ष प्रश्न का आधा अधूरा जवाब ढूंढ़ निकालने का दावा किया है। शेफील्ड और वारविक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के एक दल ने दावा किया है कि धरती पर अंडे से पहले मुर्गी का जन्म हुआ था।डेली एक्सप्रेस के मुताबिक रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि अंडा पैदा करने वाली मुर्गियां पहले कैसे आईं। चाहे जो भी हो ,घूमफिर के बात फिर वहीं पर आ गयी। परंतु इतना तो पता चला कि सबसे पहले कोई जीवित जरूर था। अब यहां तक पहूँचने मे  यह सवाल  उठता है कि यदि कोई जीवित था तो वह अकेला क्या कर रहा था, क्या उसके साथ कोई और भी था? मेरी समझ से किसी दुसरे के होने का तो सवाल ही पैदा नही होता क्योंकि 2 होते तो उनके ऊपर भी कोई एक ही होता। घूमफिर के बात फिर वहीं पर आ जाती, इसलिए हम कह सकते है कि वह एक ही था और सुप्त अवस्था मे अक्रियासील रहा होगा। यदि क्रियासील होता तो किसी चीज़ का निर्माण हो रहा होता।  ज्ञान और अज्ञान दो शब्द है। ज्ञान का मतलब है जानना और अज्ञान का मतलब है नही जानना। जैसे दिन और रात, उजाला और अँधेरा। उजाले मे ही हम किसी वस्तु का पता लगा सकते है कि फलाना चीज वो है। इसके उलट अन्धकार मे हमको वस्तु बोध नही हो पाता। इसको दूसरी तरह मे हम कह सकते है कि ज्ञान प्रकाशवान है और अज्ञान अन्धकार। यानी सबसे पहले  वो अज्ञान यानि अंधकार मे रहा होगा। वैज्ञानिकों ने भी यूनिवर्स की उत्पत्ति को लेकर रहस्योउद्घाटन किया है कि   "dark matter is the origin of universe" .

इससे यह बात साबित होती है कि सबसे पहले अन्धकार था, और जो सर्वप्रथम था, वो अकेला अज्ञान मे था। अध्यात्म तथा वैदिक विज्ञानं भी इस बात से पूर्ण रूप से इस रहस्य को उद्घाटित कर चुका है और सहमत है। जब तक किसी जीव को ज्ञान नही होता, तब तक वह एक तरीके से अज्ञान मे ही होता है। यानी अज्ञान से ज्ञान मे जाने की कला, अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाती है। विज्ञान फ़िलहाल इस बात पर मौन है। मौन होना स्वभाविक भी है क्योंकि वह अध्यात्म को नही मानता। हालांकि आज तक विज्ञान के बहुत तरक्की की है पर वह आज तक यह पता नही लगा पाया है कि सीप बारिस के पानी को मोती कैसे बना देती है, कस्तूरी जैसी सुगंध का निर्माण कैसे किया जाए कि सुगंध लंबे अंतराल तक बने रहे, इत्यादि इत्यादि।  इतना तो तय है कि जब वो था तब और कुछ नही था, जब उसको अज्ञान की अवस्था मे लंबे समय तक रहने के बाद ज्ञान रूपी प्रकाश पुंज दिखाई दिया होगा तो उसने उस प्रकाश को विस्तार दिया होगा, प्रकाश का स्वतः का गुण यही होता है कि वह फैलता है। प्रकाश मे उसे अपनी परछाई भी दिखाई दी होगी, और संसय भी उत्पन्न हुआ होगा कि मे यह हूँ कि वो जो मेरी परछाई  दिखाई दे रही है। यह समझते हुए उसे देर भी नही लगी होगी कि मे परछाई नही हूँ। परंतु  इस बीच  एक क्षण के लिए संसय आने पर एक घटनाक्रम जरूर उत्पन्न हुआ , जिसे अज्ञान कहते है यानि अन्धकार। अध्यात्म के अनुसार ज्ञान मे आ जाने वाला कोई भी जीव दुबारा अज्ञान मे जाना पसंद नही करता क्योंकि ज्ञान मे सुख है, आनंद है,  अभय है, भोग नही है, यानी ज्ञान विकार रहित है जबकी दूसरी तरफ अज्ञान मे भय, भोग, निद्रा, मैथुन जैसे विकार मौजूद हैं।  प्रकाश यानी अग्नी। यह अलग बाद है कि प्रकाश ठंडा है या गर्म, परंतु अग्नी प्रकाश का ही एक रूप है जैसे जल के तीन रूप है, ठोस, तरल और वाष्प,पर है तो जल ही!!! अब देखते हैं ज्ञान से सुख और अज्ञान से दुःख कैसे मिलता है? यदि आप किसी ऐसी जगह पर है जहां बिलकुल भी रोशनी नही है अँधेरा ही अँधेरा है और आपको कुछ दिखाई नही दे रहा है तो आपके अंदर भय उत्पन्न हो जायेगा कि कहीं किसी चीज से टकरा न जाऊं, भय उत्पन्न होने से आपके अंदर संसय यानी doubt आ जायेगा, doubt आने से आप तय नही कर पाएंगे कि अगला कदम क्या होगा, आपको दिखाई नही देने के बाद भी आप doubt मे अगला कदम बढ़ा देंगे और आपको चोट लग जाएगी, चोट लगने से आपको कष्ट होगा और आप दुखी होंगे। यानि अंततः आपको अज्ञान के कारण दुःख उठाना पड़ा। जबकी ठीक इसके उलट ज्ञान होने पर आपको सारी चीज़ें साफ़ साफ़ दिखाई दे रही है तो आपको संसय नही आएगा, संसय न आने से आपको कोई कष्ट भी नही होगा, जिस कारण आप सुरक्षित मार्ग पर चल सकेंगे और दुःख आपके पास नही आएगा, यदि कुछ आएगा तो वो होगा सुख। ठीक इसी तरह जब सबसे पहले जीवित जीव को जो अन्धकार व अज्ञान मे था जिसको हम "सबका मालिक एक" भी कहते है, को ज्ञान उत्पन्न हुआ, उस ज्ञान से प्रकाश उत्पन्न हुआ, प्रकाश उत्पन्न होने से उस जीवित व्यक्ति को प्रकाश दिखा, प्रकाश उत्पन्न होने से सुख उत्पन्न हुआ, और सुखी सुखी उसने उस प्रकाश को थोड़ा विस्तार दिया यानी उछाला। जैसे हम तालाब के पानी को दोनों हाथों मै भरकर उछालते है, ऐसे ही उसने भी उस प्रकाश को उछाला, बहुत सारे प्रकाश बिंदु उत्पन्न हुए, और आपस उसी मे समा गए, जैसे पानी को उछालो तो वह वापस गिरकर फिर पानी मे ही मिल जाता है।  परंतु एक प्रकाश बिंदु जो अभी हवा मे ही था, ने गिरने से पहले प्रार्थना की कि मेरे अस्तित्व को बनाये रखा जाए, प्रार्थना जानकर ,प्रार्थना करने वाले को देखने पर उसे उस प्रकाश मे अपनी परछाई दिखाई दी, कुछ देर के लिए संसय उत्पन्न हुआ कि मे वो हूँ कि ये हूं, ज्ञानआवस्था मे यह जानने मे देर नही लगी कि जो दूसरी आकृति दिखाई दे रही है वो मेरी परछाई है। उसने प्रकाश बिंदु की प्रार्थना स्वीकार की और कहा कि ठीक है तुम्हारा अस्तित्व बना रहेगा, पर ये मत भूलना कि तुम्हारा अस्तित्व मुझसे है। तुम्हारे अंदर जो मेरी परछाई है वह मे ही हूँ। जिसे अध्यात्म मे soul यानी आत्मा कहा गया है।जिसका कभी विनास नही हो सकता। प्रकाश बिंदु को बाद मे विभिन्न धर्म ग्रंथों मे ब्रह्म, अल्लाह, जीसस कहा गया है। ये ऐसे ही था जैसे अज्ञानवश हम जल को देखकर उसकी तीन अवस्थाओं ( वर्फ ice, भाप steam ,पानी water) कहकर अलग अलग नामों से पुकारते है। वास्तव मे वो तो एक ही है।  जिसे ब्रह्म के बारे मे जानकारी है वो ब्रह्म ज्ञानी और जो पूर्ण ब्रह्म के बारे मे जाने उसे परम् ज्ञानी कहकर शास्त्रीय भाषा से सम्भोदित किया गया है। 

23 मई 2017

भारत पर इस्लामी साम्राज्य का झूठ

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क्या भारत पर कथित आठ सौ वर्षों तक पर इस्लामी शासन था? क्या भारत मुसलमानों का गुलाम था?

नहीं कभी नहीं

क्योंकि यदि आज भारत में हिंदू बहुसंख्यक बचा है तो वह मुसलमानों के सत्ता में रहते हुए कभी संभव नहीं था। कथित इस्लामी शासन के बाद बावजूद आज भी यदि हिंदू बहुसंख्यक बचा है तो इसके दो कारण ही हो सकते हैं:
एक तो यह कि मुसलमानी शासन में हिन्दुओं के प्रति शासको का व्यवहार उदार, सहानुभूति पूर्ण और भाईचारे का रहा हो - लेकिन यह तो कभी न हुआ, न होगा।
आज हिन्दुओं के बहुसंख्यक बचे रहने का दूसरा और वास्तविक कारण कि भारत पर इस्लामी शासन था ही नहीं या भारत के बहुत कम क्षेत्रों में और बहुत कम समय के लिए रहा हो।

मुस्लिम इतिहासकार ऐसा लिखते है कि इस्लाम द्वारा भारत विजय का प्रारंभ मुहम्मद बिन कासिम के 712 AD में सिंध पर आक्रमण से हुआ और महमूद गजनवी के आक्रमणों से स्थापित, तथा मुहम्मद गौरी के द्वारा दिल्ली के प्रथ्वीराज चौहान को 1O92 A.D. में हराने से पूर्ण हुआ - फिर दिल्ली सल्तनत के गुलाम वंश, खिलजी, तुगलक, सैयद और लोदी वंश के सुल्तान और मुग़ल बादशाह हिंदुस्तान के शासक बताये गए, पर यह काफी हद तक सच नहीं हैं।    
                 
सच यह है कि य़ह 800 वर्षोँ तक चलने वाला हिन्दू मुस्लिम युद्ध था जिसमे अंतिम विजय मराठा साम्राज्य , राजपूत और सिख साम्राज्य के रूप में हुई और अब सच की  विवेचना के लिए इनके बारे में कुछ तथ्य:                                                                                           मुहम्मद बिन कासिम 712 AD में जब वह सिंध के राजा दाहिर को हराकर आगे बढ़ा उसे गहलोत वंश के राजा कालभोज ने बुरी तरह हराकर वापस भेजा (सेनानायक तक्षक की अहम भूमिका थी), अब अगले 250 वर्ष तक मुस्लिम प्रयास तो बहुत हुए, पर पीछे धकेल दिए गए  इस  बीच भारत में हिन्दू राज्य ही प्रभावी रहे।

1000 AD से महमूद गजनवी के कथित सत्रह आक्रमणों में पांच हारे, और पांच मन्दिरों की लूट की, सबसे महत्वपूर्ण सोमनाथ की लूट की दौलत भी गजनी तक वापस नहीं ले जा पाया, जिसे सिन्ध के जाटों ने लूट लिया था। वह कही भी सत्ता स्थापित नहीं कर पाया।

इसके बाद अगले 150 वर्ष तक फिर कोई मुसलमान हिन्दू सत्ता को चुनौती देने को नहीं आया और भारत में  हिन्दू राज्य प्रभावी बने रहे।

1178 में मुहम्मद गौरी का गुजरात पर आक्रमण हुआ , चालुक्य राजा ने गौरी को बुरी तरह हराया , 1191 में पृथ्वीराज ने भी गौरी को हराया।

1192 में गौरी ने पृथ्वीराज को हराया फिर गौरी ने पंजाब, सिंध, दिल्ली, और कन्नौज जीते... पर ये विजयें अस्थायी रहीं क्योंकि वह 1206 में सिंध के खक्खरों के साथ युद्ध में गौरी मार डाला गया। उसके बाद सत्ता में आया कुतुबुद्दीन ऐबक भी 1210 में लाहौर में ही मर गया और गौरी का जीता हुआ क्षेत्र बिखर गया।

उसके बाद इल्तुतमिश ने अजमेर, रणथम्मौर, ग्वालियर, कालिंजर और महोबा जीते मगर कुछ समय में ही कालिंजर चंदेलों ने, ग्वालियर के प्रतिहारों ने, बूंदी को चौहानो ने, मालवा को परमारों ने वापस ले लिया। रणथम्मौर, मथुरा पर राजपूत कब्ज़ा कर चुके थे गहलोत वंशी जैत्र सिंह ने इल्तुतमिश से चित्तौड़ वापस ले लिया। इस प्रकार सत्ता हिन्दुओं के हाथ में ही रही थी।
                                                                                                                                                                    उसके बाद बलबन ने राज्य बिखराव और हिन्दू ज्वार रोकने में असफल रहा और सल्तनत सिमटकर दिल्ली के आसपास सिमट कर रह गयी थी। गुलाम वंश को हटाकर खिलजी वंश आया, इस वंश के अलाउद्दीन खिलजी ने1298 में गुजरात और 1303 मे चित्तौड़ जीत लिया- पर 1316 में राजपूतों ने पुनः चित्तौड़ वापस जीत लिया, रणथम्मौर में भी खिलजी को हार का मुंह देखना पड़ा था। खिलजी के सेनापति  मलिक काफूर ने देवगिरी, वारंगल, द्वारसमुद्र और मदुराई पर अभियान किया और जीता, पर उसके वापस जाते ही इन राजाओं ने अपने को स्वतत्र घोषित कर दिया। 1316 में खिलजी के मरने के बाद उसका  राज्य ध्वस्त हो गया। इसके बाद तुगलक वंश आया,1325 में मुहम्मद तुगलक ने  देवगिरी और काम्पिली राज्य पर विजय और द्वारसमुद्र और मदुराई को शासन के अन्तर्गत लाया , राजधानी दिल्ली से हटाकर देवगिरी ले गया। पर मेवाड़ के महाराणा हम्मीर सिंह ने मुहम्मद तुगलक को बुरी तरह हराया और कैद कर लिया था फिर अजमेर, रणथम्मौर और नागौर पर आधिपत्य के साथ 50 लाख रुपये देने पर छोड़ा जिससे तुगलक राज्य दिल्ली तक सीमित रह गया और 1399 में तैमूर के आक्रमण से तुगलक राज्य पूरी तरह बिखर गया। मुहम्मद तुगलक पर विजय के उपलक्ष्य में हम्मीर ने “महाराणा“ की उपाधि धारण की उसके बाद महाराणा कुम्भा द्वारा गुजरात के राजा कुतुबुद्दीन और मालवा के सुल्तान पर विजय। इन विजयों के उपलक्ष्य में चित्तौड़ गढ़ मे विजय स्तम्भ और पूरे राजस्थान में 32 किले भी बनवाये। महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) ने मालवा के शासक को पराजित कर बंदी बनाया और छह महीने बाद छोड़ा। 1519 में इब्राहीम लोदी को हराया। इस प्रकार महाराणा हम्मीर से राणा सांगा तक 1326 से 1527 (200 वर्ष तक) उत्तर भारत के सबसे बड़े भूभाग पर हिन्दू साम्राज्य छा रहा था और इन्हें चुनौती देने वाला कोई नहीं था।

इसी बीच दक्षिण में विजय नगर साम्राज्य हिन्दू शक्ति के रूप में केन्द्रित हो चूका था और कृष्ण देव राय (1505-1530) के समय चरम उत्कर्ष पर था और उड़ीसा ने भी हिन्दू स्वातंत्र्य पा लिया था।

तुगलकों के बाद सैयद वंश 1414 से 1451 तक और लोदी वंश 1451 से 1526 तक रहा जो दिल्ली के आस पास तक ही रह गया था इसके बाद , फिर इब्राहीम लोदी को राणा सांगा ने हराया।
                                       
प्रमुख इतिहासकार आर सी मजूमदार लिखते है कि दिल्ली सल्तनत अलाउद्दीन खिलजी राज्य के 20 साल (1300-1320) और मुहम्मद तुगलक के 10 साल, इन दो समय को छोड़कर भारत पर तुर्की का कोई साम्राज्य नहीं रहा था।

फिर मुग़ल वंश आया मुग़ल बाबर ने कुछ विजयें अपने नाम की पर कोई स्थायी साम्राज्य बनाने में असफल रहा, उसका बेटा  हुमायु भी शेरशाह से हार कर भारत से बाहर भाग गया था।

शेर शाह (1540-1545) तक रण थम्मौर और अजमेर को जीता पर कालिंजर युद्ध के दौरान उसकी मौत हो गयी और उसका राज्य अस्थायी ही रहा। और फिर एक बार हिन्दू राज्य सगठित हुए और दिल्ली की गद्दी पर राजा हेम चन्द्र ने 1556 में विक्रमादित्य की उपाधि धारण की।

1556 में ही अकबर ने हेमचन्द्र (हेमू ) को हराकर मुग़ल साम्राज्य का स्थायी राज्य स्थापित किया जो 150 वर्ष तक चला जिसमे सभी दिशाओं राज्य विस्तार हुआ, ये अधिकांश विजयें राजपूत सेनापतियों और उनकी सेनाओं द्वारा हासिल की गयीं जिनका श्रेय अकबर ने अकेले लिया। अकबर ने इस्लामिक कट्टरता छोड़ राजपूतों की शक्ति को समझा और उन्हें सहयोगी बनाया, जहाँगीर और शाहजहाँ के समय तक यही नीति चली, इन 100 वर्षों में  मुसलमानों और हिन्दुओं का संयुक्त और हिन्दू शक्ति पर आश्रित राज्य था इस्लामी राज्य नहीं | पूरे मुग़ल राज्य के बीच भी मेवाड़ में राजपूतों की सत्ता कायम रही।

औरंगजेब ने जैसे ही अकबर की नीतियों के विपरीत इस्लामी नीतियां लागू करनी आरम्भ की, राजपूतों ने अपने को स्वतन्त्र कर लिया, उधर शिवाजी ने मुग़ल साम्राज्य की नीव खोद दी और 1707 तक मुग़ल राज्य का समापन हो गया उसके बाद के दिल्ली के बादशाह दयनीय स्थिति में कभी मराठों के, कभी अंग्रेजों के आश्रित रहे।

1674 से 1818 तक  मराठा हिन्दू साम्राज्य भारत के दो तिहाई हिस्से पर छा गया था राजस्थान में राजपूत राज्य और पंजाब में सिख साम्राज्य हिन्दू राज्य के रूप में विजयी  हुए| इन हिन्दू शक्तियों के द्वारा मुस्लिम सत्ता की पूर्ण पराजय और अंत हुआ।

इस प्रकार जिसे मुस्लिम साम्राज्य कहा जाता है वह वस्तुतः हिन्दू राजाओं और मुसलमान आक्रमण कारियों  के बीच एक लम्बे समय (800 वर्ष) तक चलने वाला युद्ध था कुछ लड़ाइयाँ हिन्दू हारे , कुछ में हराया और अंतिम जीत हिन्दुओं की ही रही।

इस्लाम 800 वर्षो तक भारत को जीतने के लिए संघर्ष करता रहा और अंत में प्रबल हिन्दू प्रतिरोध के चलते साम्राज्य बनाने में असफल हुआ और हिन्दू शक्तियां विजयी रही और हिन्दू समाज सुरक्षित रहते हुए बहुसंख्यक बना रहा।


12 मई 2017

तीन तलाक़

ca-pub-6689247369064277 :

तीन तलाक का कतइ यह मतलब नहीं है कि एकबार में तीन तलाक कहकर तलाक दे देना । कुरआन शरीफ में तीन तलाक नहीं है बल्कि यह खलीफा उमर की देन है।

कुरआन के अनुसार एक बार तलाक बोले या हजार बार वह तलाक है . ट्रिपल तलाक का मतलब हुआ तीन माह तक इंतज़ार और उस दौरान बीबी पति के घर ही रहेगी, जब तीन मासिक धर्म पूरा हो जाएगा तब वह किसी दुसरे से निकाह कर सकती है परन्तु अगर इस तीन माह के दौरान पति पत्नी में समझौता हो गया तो वे पुन: पति पत्नी की तरह संबंध बना सकते है, इस्लाम के मुताबिक़ वह हराम नहीं मानी जायेगी और उसको किसी अन्य के साथ निकाह कर के तलाक लेना जिसे हलाला कहते है उसकी कोई जरूरत नहीं पड़ेगी । लेकिन अगर पति पत्नी में संबंध बन भी गया और किसी मजबूत तार्किक कारण से पति ने दुबारा तलाक चाहे दो -चार साल बाद भी कह दिया तो पुन: तीन माह तक वही प्रक्रिया दुहराई जायेगी अगर समझौता हो गया तब फिर से संबंध बहाल हो जाएगा।

दूसरे तलाक की स्थिति में घर परिवार धार्मिक मौलवी का यह फर्ज है कि समझौता करवा दे । पुन: अगर तीसरी बार पति तलाक देता है चाहे दुसरे तलाक के दस साल बाद ही क्यों नहीं तो इस स्थिति में कोई समझौता नहीं होगा, तथा पति और पत्नी के दरम्यान कोई भी संबन्ध हराम माना जाएगा।  हां उसके लिए एक ही प्रावधान है अगर पत्नी ने किसी अन्य के साथ निकाह कर लिया है। और उस दूसरे पति ने जायज कारणों से उसको तलाक दे दिया हो या वह बेवा हो गई तो वह पुन: अपने पूर्व पति से निकाह कर सकती है , इस प्रावधान का ही बेजा फायदा मौलवी उठाते है और इस्लाम के विपरीत तीन तलाक होने के बाद दूसरे के साथ निकाह करके तलाक दिलवा कर पुन: पूर्व पति से निकाह करवा देते है ।दूसरे पति से तलाक या बेवा होने के बाद पूर्व पति से निकाह करना और संबन्ध बनाना हराम नहीं रह जाता बल्कि वह हलाल होता है और इस प्रक्रिया को ही हलाला नाम मुल्लाओ ने दे दिया है ।. अब अगर ट्रिपल तलाक का अवलोकन करें तो स्पष्ट है कि इस प्रकार विवाद की स्थिति में दो अवसर पूरी जिन्दगी में दिया गया है आपस में सुलह करने का I

अफ़सोस मुल्ला मौलवी यह सब नहीं बताते है और गलत व्याख्या करते है जिसका परिणाम महिलाओं को भुगतना पड़ता है

20 अप्रैल 2017

‘भाग्यशाली’ व्यक्ति की पहचान

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आज हम आपके समक्ष कुछ ऐसे संकेत एवं लक्षण प्रस्तुत कर रहे हैं जो एक ‘भाग्यशाली’ व्यक्ति की पहचान कराते हैं। भाग्य, जो अपने निर्माण के साथ हमारा भी निर्माण करता है। लेकिन वह अच्छा होगा या बुरा, यह तो समय ही बताता है। तो चलिए जानते हैं, कि क्या आप इस श्रेणी में आते हैं........
ऐसा व्यक्ति जिसका स्वास्थ्य अच्छा है, जो कभी नहीं या फिर बेहद कम बीमार पड़ता हो, ऐसा व्यक्ति भाग्यशाली है। जो लोग निरंतर बीमार पड़ते हैं, वे जीवन में पल-पल नुकसान झेलते हैं। इसलिए उन्हें भाग्यहीन कहा जाता है। आप सौभाग्यशाली है या नहीं, यह आपके जीवनसाथी पर भी निर्भर करता है। जिन लोगों के जीवनसाथी विनम्र स्वभाव वाले होते हैं, उन्हें भाग्यशाली लोगों की श्रेणी में आंका जाता है। क्योंकि ऐसा जीवनसाथी जो पल-पल आपको सहारा दे, आपसे प्यार से बात करे, समाज में आपकी प्रतिष्ठा का ख्याल रखे, वही आपको जीवन में सफल बना सकता है। लेकिन इसके विपरीत यदि आपको ऐसा जीवनसाथी मिल जाए, जो छोटी-छोटी बात पर झगड़ा करे, आपसे सबके सामने चीखकर बात करे, आपके सम्मान को ठेस पहुंचाए, ऐसा पार्टनर आपके आने वाले अच्छे भविष्य का कबाड़ा कर देता है।

जीवनसाथी के बाद जीवन को यदि और सुगम बनाने के लिए किसी का नाम लिया जाए, तो वो हैं हमारे
बच्चे। संतान का सुख हर कोई पाना चाहता है। लेकिन केवल संतान होना ही संतान सुख नहीं, यदि
संतान आपकी आज्ञा मानती हो तो ही आपको असल सुख की प्राप्ति होती है। 
किसी महान पुरुष ने कहा है कि कलियुग में ‘धन’ ही अच्छे कुल की पहचान कराएगा। इसलिए अगर आपके
पास धन है और धन कमाने का निरंतर माध्यम है तो खुद को भाग्यशाली मानें।किंतु अचानक से धन कमाने 
के बाद लंबे समय के लिए धनहीन हो जाने वाले लोग भाग्यहीन माने जाते हैं।
शिक्षा से तात्पर्य केवल स्कूल की या कालेज की पढ़ाई नहीं है, यदि आपने समाज मंा खुद की पहचान बनाने 
की शिक्षा प्राप्त की है, बड़ों का आदर करने की शिक्षा प्राप्त की है, खुद को सफल बनाने में सक्षम हैं, तो आप
 विदुर नीति के अनुसार भाग्यशाली माने जाते हैं

8 अप्रैल 2017

मरने से पहले की फीलिंग

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जो भी इस धरती पर पैदा हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है और ये दुनिया का सार्व भौमिक सत्य भी है। अक्सर हमारे दिमाग में मृत्यु को लेकर तमाम सवाल उठते रहते है। लोग हमेसा सोचते रहते कि उनके मरने के बाद क्या होगा? और उनकी आत्मा कहाँ जायेगी? तथा क्या उनका दुबारा जन्म होगा? इस धरती पर या नहीं? हालाँकि लोग यह भी कहते है कि मरने से पहले व्यक्ति यदि बीमार है तो भी ठीक हो जाता है और उसे उसके अंतिम समय का अहसास भी हो जाता है।विशेषज्ञों की मानें तो स्वर्गवासी होने से पहले व्यक्ति जीवन के उन पलों को याद करता है जिसका संबंध उसके अच्छे और बुरे होने से है. ज्यादातर वह व्यक्ति अपने उन बुरे कर्मों को याद करता है जब उसने जीवन जीने के दौरान दूसरे पर किए. वहीं अगर हॉस्पिटल में काम करने वाली नर्सों की बात करें जो अकसर मृत्यु के दौरान अपने मरीजों के पास होती हैं तो व्यक्ति स्वर्गवासी होने से पहले बहुत ही शांत रहने की कोशिश करता है. उस दौरान उसका दिल बहुत ही बड़ा हो जाता है और उन सभी बातों की पोल खोलता है जिनके बारे में अब तक उसने किसी को नहीं बताया था.

आइए इसी तरह के खेदों पर प्रकाश डालते हैं जिन्हें व्यक्ति मरने से पहले एक बार जरूर याद करता है: सपने पूरा न होने का खेद: यह एक सामान्य तरह का खेद है जो हर कोई मरने से पहले जताता है. जब इंसान को लगता है कि उसका यह आखिरी वक्त चल रहा है तो वह उन सभी बातों को फ्लैश बैक में जाकर याद करता है जिसको उसने या तो अधूरा छोड़ दिया या फिर शुरू ही नहीं किया. मेरी इच्छा थी कि मैं अपने परिवार के लिए कुछ कर सकता: मरने से पहले इस तरह के ख्यालात हर किसी के अंदर आते हैं खासकर पुरुषों के अंदर. क्योंकि घर की जिम्मेदारी अकसर पुरुषों के कंधों पर होती है और ज्यादातर वही अपने परिवार की अच्छी-बुरी लाइफइस्टाल के लिए उत्तरदायी होते हैं.ऐसे में यदि मरीज को लगता है कि उसने अपने परिवार के लिए कुछ नहीं किया तो वह इसके लिए खेद जताता है. काश मुझे खुद की फीलिंग को व्यक्त करने की प्रेरणा मिल जाती: यह एक ऐसा खेद है जिसे व्यक्ति जीवित रहने के दौरान भी कई बार जता चुका होता है. जैसे काश मैं उसे अपनी फीलिंग बता देता तो आज वह मेरी होती, अपनी फीलिंग न बताने की वजह से ही मेरे दोस्तों ने मुझे गलत समझा आदि. इस तरह की फीलिंग मरने से पहले भी एक इंसान को सताती है. काश मैं दोस्तों के साथ दोस्ती निभा सकता: इस तरह का एहसास उस व्यक्ति को सबसे ज्यादा होता है जिसने अपनी जिंदगी में अपने ही दोस्तों को मुसीबत के समय धोखा दिया हो या फिर उसने दोस्ती होने का फर्ज नहीं निभाया हो. स्वर्गवासी होने से पहले वही व्यक्ति खेद जताते हुए अपने इन्हीं दोस्तों से क्षमा मांगना चाहेगा. काश मैं खुद को खुश रख पाता: सबकी चिंता करने के बाद अंत में मृत्यु से पहले व्यक्ति खुद के बारे में भी विचार करता है. वह सोचता है कि खुद को खुश रखने के लिए अपनी जिंदगी में उसने कुछ किया क्यों नहीं? वह क्यों पारंपरिक सोच पर कायम रहते हुए आधुनिक चीजों को दरकिनार करता रहा?

27 मार्च 2017

आरक्षण को देश का दुर्भाग्य कहें या सौभाग्य ?

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भारत की संविधान सभा ने अब अपना कार्य शुरू कर दिया था, विभिन्न विषयों पर चर्चा होने लगी थी जैसे मौलिक अधिकार, भाषा आदि! इन्हीं प्रस्तावों के बीच एक दिन आरक्षण का भी मुद्दा उठाया गया। इस विषय पर चर्चा के थोड़ी ही देर बाद पता चल गया कि सभा के ज्यादातर सदस्य इसके खिलाफ थे।
उस दिन की कार्यवाही समाप्त होने के बाद के.एम. मुंशी जो संविधान सभा के एक वरिष्ठ और विद्वान् सदस्य थे, ने डॉ अम्बेडकर को अपने पास बुलाया और कहा कि शायद आरक्षण देश के लिए ठीक नहीं होगा और चूँकि कांग्रेस के भी ज्यादातर सदस्य इसके खिलाफ ही हैं तो क्यों ना आप इसे संविधान से निकाल ही दें।
मुंशी जी का इतना कहना ही था कि बाबा आंबेडकर चिल्ला उठे और जोर से कहा कि जब तक मैं यहाँ हूँ, संविधान में आरक्षण रहेगा जब आप लोगों को मुझसे इतना घृणा ही है तो में अपना इस्तिफा दे दूंगा। और इस प्रकार उन्होंने संविधान सभा का अपना काम बंद कर दिया और घर बैठ गए।
इन सब बातों की जानकारी जब सरदार पटेल को हुई तो वह बाबा अम्बेडकर के घर गए और उनका पक्ष जानने का प्रयास किया और कहा कि आप क्यों सब काम छोड़कर घर बैठे हुए हैं। डॉ अम्बेडकर ने फिर वही आरक्षण वाली अपनी बात दोहराई, सरदार पटेल ने तब साफ़ कहा कि देखो अम्बेडकर जो बड़े पद हैं उन पर तो हम मेरिट के आधार पर ही लोगों का चयन करेंगें फिर क्यों तुम क्लर्कों के पद के लिए इतना बड़ा जोखिम उठा रहे हो।
डॉ अम्बेडकर ने कहा कि कैसा जोखिम पटेल जी?
उस पर सरदार पटेल ने कहा कि देखो अगर आज हम अछूतों (sc,st ) को आरक्षण दे देते हैं तो फिर हर समुदाय जैसे मुस्लिम, सिख, इसाई,और हिन्दुओं की अन्य जातियां आदि सभी आरक्षण की मांग करने लगेगें और देश में जाति और धर्म की ये तकरार लगातार बढ़ती जायेगी और जिस जाति व्यवस्था को हम भारत से मिटाना चाहतें हैं वो तो और भी मजबूत हो जायेगी।
(सोच के देखिये सरदार पटेल की दूरदर्शिता आज आरक्षण के नाम पर देश में क्या हो रहा हैं)
सरदार पटेल की हर बात का डॉ अम्बेडकर ने खंडन किया और अपना कानून मंत्री का इस्तीफा उनको सौंप दिया, एक जाति मुक्त भारत, अन्याय मुक्त भारत और दलितों के प्रति अपनी उदारवादी सोच की वजह से, बड़े बड़े राजाओं के सामने भी ना झुकने वाला यह लौह स्तम्भ अपने जीवन में पहली बार डॉ अम्बेडकर के सामने झुक गए और उनका इस्तीफा नहीं स्वीकारा। ( शायद ये आजाद भारत की सबसे पहली ब्लैकमेलिंग थी), और इस प्रकार भारत में आरक्षण का सूत्रपात हो गया।
लेकिन जब भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ, तो उसके मौलिक अधिकार वाले भाग 3 में अनुच्छेद 15 स्पष्ट घोषणा कर रहा था कि धर्म, लिंग, जाति, जन्मस्थान के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा और आरक्षण तो यही कर रहा है, 
अत: भारत का पहला (1) संविधान संशोधन लाया गया जो अनु.15 (4) कहा गया 
जिसने स्पष्ट घोषणा कर दी कि इस अनु. यानी 15 और अनु. 29(2) की कोई भी बात राज्य को सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े नागरिकों के किन्ही वर्गों और sc,st के लिए विशेष उपबंध यानी आरक्षण देने से नहीं रोकेगी।अब ये सब चल ही रहा था उधर संविधान का संरक्षक सुप्रीम कोर्ट संविधान की आत्मा में हो रहे बदलावों को देख रहा था और बार बार सरकारों से कह रहा था कि संविधान में सामाजिक पिछड़ा और शैक्षणिक पिछड़ा व sc,st के लिए आरक्षण हो एसी बात कही गयी है। और आप लोग तो पूरी की पूरी एक जाति को ही पिछड़ा बता रहे हैं ये कैसे सम्भव है कि किसी एक जाति में कोई एक भी व्यक्ति आर्थिक सामाजिक और शैक्षणिक रूप से सबल ना हो! किन्तु सरकारों ने हमेशा कहा कि भारत में पिछड़ा वर्ग का मतलब है विशेष जातियां। इन सबसे खीजकर सुप्रीम कोर्ट बारबार सरकारों को चेताता है कि आप को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि यह व्यवस्था(आरक्षण) अनादि काल तक नहीं चलने वाला है और अगर आप इसे अनादि काल तक चलाना ही चाहते हैं, तो फिर इस आरक्षण को देने का फायदा ही क्या हुआ जब 70 वर्षों से ज्यादा बीत जाने पर भी आप लोगों को गरीबी से ऊपर नहीं उठा पा रहें हैं।





देश का दुर्भाग्य कहें या सौभाग्य सरकारें लगातार संविधान विरोधी कार्य करती रहीं, जिस आरक्षण के बारे में डॉ अम्बेडकर ने स्पष्ट रूप से कहा था कि “यह तो बैसाखी मात्र है और दलितों को ध्यान रखना चाहिए कि इससे बहुत दूर तक नहीं दौड़ा जा सकता”. परन्तु वोट बैंक कि राजनीति ने इस सन्देश को कभी तरजीह  ही नहीं दी और जो आरक्षण शुरू में केवल 10 वर्षों के लिए दिया गया उसे लगातार हर 10 वर्ष बाद बिना हो हल्ला के अगले 10 वर्षो के लिए बढ़ा दिया जाता है, और यह लगातार हो रहा है जो आज तक जारी है। इतने के बाद भी जब सरकारों को चैन नहीं मिला और बसपा जैसी पार्टी का UP में उदय हुआ तो एक अजीब तरह की मांग फिर उठ गयी और वो थी पदोन्नति में आरक्षण।
और इस तरह अनु. 16 जिसमें पहले चार प्वाइंट थे उसमें 77वां संविधान संशोधन 1995 कर एक नया प्वाइंट 16(4) (A), जोड़ दिया गया जिसने इस आधार पर सरकारों को छुट दे दी कि अगर वो ये मानते हैं कि राज्य सरकार की नौकरियों में उच्च पदों पर sc,st का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है तो सरकारें पदोन्नति में भी आरक्षण दे सकती हैं। (अब यहाँ आप को ध्यान ये रखना है कि आजादी के बाद से ही 27% सीटें पहले ही आरक्षित हैं तो जाहिर सी बात है कि पद्दोन्न्ति में समान नियम के कारण ये वर्ग भी तो उच्च पदों पर पहुंचा ही होगा), अब इतना सब हो जाने के बाद भी सरकारों का मन नहीं भरा और उन्होंने एक और संविधान संशोधन (80 वां 2000) कर डाला। जिसने यह व्यवस्था दी है कि अगर किसी एक वर्ष या कई वर्षो में सरकारी नौकरियों में sc, st की सीटें खाली रह जाती है तो वह समाप्त नहीं होंगी और अगले वर्षो के लिए सुरक्षित रख ली जायेंगी और ये करते वक्त 50% आरक्षण की सीमा जो सुप्रीम कोर्ट ने तय की है, उसका उलंघन नहीं माना जाएगा।
कुल मिलाकर देखा जाय तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि सरकारों का पक्ष वोट बैंक की राजनीति की वजह से हमेशा आरक्षण के पक्ष में रहा है. और रही सुप्रीम कोर्ट की बात तो वह यह अंधेरगर्दी चुप चाप इसलिए देख रहा है कि उसे ये विश्वास नहीं हो पा रहा है कि आरक्षण के खिलाफ दिए गए उसके फैसले में भारत के लोग या इससे प्रभावित लोग उसका समर्थन करेंगें।

26 मार्च 2017

कत्लखाने बन्द होने पर सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर.

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योगी आदित्यनाथ ने यूपी के मुख्यममंत्री बनने के बाद कई कत्लखाने बन्द करवा दिए पर इस कार्य की सराहना करने की बजाय मीडिया की सुर्खियों में कुछ नया विवाद ही देखने को मिल रहा है। जैसे कि कत्लखाने बंद होने से करोड़ों का नुकसान होगा, कई लोग बेरोजगार हो जाएंगे आदि । लेकिन ऐसा ही मामला स्वर्गीय श्री राजीव दीक्षित सुप्रीम कोर्ट में लेकर गए थे ।आइये जानते है क्या कहा था राजीव दीक्षित ने, और क्या था सुप्रीम कोर्ट का आर्डर !!
राजीव दीक्षित ने सुप्रीम कोर्ट के मुकदमें मे कसाईयों द्वारा गाय काटने के लिए वही सारे कुतर्क रखे जो कभी शरद पवार द्वारा बोले गए या इस देश के ज्यादा पढ़ें लिखे लोगों द्वारा बोले जाते हैं या देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू द्वारा कहे गए थे और आज जो मीडिया द्वारा कहे जा रहे हैं ।
कसाईयो के कुतर्क
  • गाय जब बूढ़ी हो जाती है तो बचाने मे कोई लाभ नहीं उसे कत्ल करके बेचना ही बढ़िया है और हम भारत की अर्थ व्यवस्था को मजबूत बना रहे हैं क्योंकि गाय का मांस एक्सपोर्ट कर रहे हैं ।
  • भारत में गाय के चारे की कमी है । वह भूखी मरे इससे अच्छा ये है कि हम उसका कत्ल करके बेचें ।
  • भारत में लोगो को रहने के लिए जमीन नहीं है गाय को कहाँ रखें ?
  • इससे विदेशी मुद्रा मिलती है और सबसे खतरनाक कुतर्क जो कसाइयों की तरफ से दिया गया है कि गाय की हत्या करना हमारे इस्लाम धर्म में लिखा हुआ है कि हम गायों की हत्या करें (this is our religious right )
  • श्री राजीव दीक्षित की तरफ से बिना क्रोध प्रकट किए बहुत ही धैर्य से इन सब कुतर्को का तर्कपूर्वक जवाब दिया गया।

उनका पहला कुतर्क गाय का मांस बेचते हैं तो आमदनी होती है देश को । राजीव भाई ने सारे आंकड़े सुप्रीम कोर्ट में रखे कि एक गाय को जब काट देते हैं तो उसके शरीर में से कितना मांस निकलता है? कितना खून निकलता है?? कितनी हड्डियाँ निकलती हैं ??
  • एक स्वस्थ्य गाय का वजन कमसे कम 3 से साढ़े तीन कवींटल होता है उसे जब काटे तो उसमे से मात्र 70 किलो मांस निकलता है एक किलो गाय का मांस जब भारत से एक्सपोर्ट (Export )होता है तो उसकी कीमत है लगभग 50 रुपए ! तो 70 किलो का 50 से गुना को ! 70 x 50 = 3500 रुपए !
  • खून जो निकलता है वो लगभग 25 लीटर होता है ! जिससे कुल कमाई 1500 से 2000 रुपए होती है !
  • फिर *हड्डिया निकलती है वो भी 30-35 किलो हैं ! जो 1000 -1200 के लगभग बिक जाती है !!

तो कुल मिलकर एक गाय का जब कत्ल करें और मांस ,हड्डियाँ खून समेत बेचें तो सरकार को या कत्ल करने वाले कसाई को 7000 रुपए से ज्यादा नहीं मिलता !!
फिर राजीव भाई द्वारा कोर्ट के सामने उल्टी बात रखी गई कि यदि गाय को कत्ल न करें तो क्या मिलता है ? हमने कत्ल किया तो 7000 मिलेगा और अगर इसको जिंदा रखे तो कितना मिलेगा ? तो उसका कैलकुलेशन  ये है !!
  • एक गाय एक दिन मे 10 किलो *गोबर* देती है और ढाई से 3 लीटर मूत्र देती है । गाय के एक किलो गोबर से 33 किलो Fertilizer (खाद ) बनती है ।जिसे organic खाद कहते हैं तो कोर्ट के जज ने कहा how it is possible ?? राजीव भाई द्वारा कहा गया कि आप हमें समय और स्थान दीजिये हम आपको यही सिद्ध करके बताते हैं । कोर्ट ने आज्ञा दी तो राजीव भाई ने उनको पूरा करके दिखाया और कोर्ट से कहा कि आई. आर. सी. के वैज्ञानिक को बुला लो और टेस्ट करा लो । जब गाय का गोबर कोर्ट ने भेजा टेस्ट करने के लिए तो वैज्ञानिकों ने कहा कि इसमें 18 micro nutrients (पोषक तत्व ) हैं। जो सभी खेत की मिट्टी को चाहिए जैसे मैगनीज है ! फोस्फोरस है ! पोटाशियम है, कैल्शियम,आयरन, कोबाल्ट, सिलिकोन ,आदि आदि । रासायनिक खाद में मुश्किल से तीन होते हैं । तो गाय का खाद रासायनिक खाद से 10 गुना ज्यादा ताकतवर है । ये बात कोर्ट को माननी पड़ी !

राजीव भाई  ने कहा अगर आपके र्पोटोकोल के खिलाफ न जाता हो तो आप चलिये हमारे साथ और देखे कहाँ कहाँ हम 1 किलो गोबर से 33 किलो खाद बना रहे हैं राजीव भाई ने कहा मेरे अपने गाँव में मैं बनाता हूँ ! मेरे माता पिता दोनों किसान हैं पिछले 15 साल से हम गाय के गोबर से ही खेती करते हैं ! 1 किलो गोबर है तो 33 किलो खाद बनता है और 1 किलो खाद का जो अंतर्राष्ट्रीय  बाजार में भाव है वो 6 रुपए है ! तो रोज 10 किलो गोबर से 330 किलो खाद बनेगी ! जिसे 6 रुपए किलो के हिसाब से बेचें तो 1800 से 2000 रुपए रोज का गाय के गोबर से मिलता है ! और गाय के गोबर देने मे कोई सन्डे नहीं होता Weekly Off नहीं होता, हर दिन मिलता है । 
साल में कितना ? 1800 x 365 = 657000 रुपए साल का ! और गाय की सामान्य उम्र 20 साल है और वो जीवन के अंतिम दिन तक गोबर देती है । तो 1800 गुना 365 गुना 20 कर लो आप !! 1 करोड़ से ऊपर तो मिल जाएगा केवल गोबर से !
अब बात करते हैं गौ मूत्र की । रोज का 2 - सवा दो लीटर देती है,  इसमें सुवर्ण क्षार होता है जो वैज्ञानिकों ने भी सिद्ध करके दिखाया है और इससे औषधियां बनती है Diabetes Arthritis, Bronchitis, Bronchial Asthma, Tuberculosis, Osteomyelitis ऐसे करके 48 रोगो की औषधियां बनती हैं और गाय के एक लीटर मूत्र का बाजार में दवा के रूप मे कीमत 500 रुपए है । वो भी भारत के बाजार में, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तो इससे भी ज्यादा है ।
अमेरिका में गौ मूत्र Patent हैं और अमरीकी सरकार हर साल भारत से गाय का मूत्र Import करती है और उससे कैंसर की Medicine बनाते हैं। diabetes की दवा बनाते हैं और अमेरिका मे गौ मूत्र पर एक दो नहीं तीन patent है । अमेरिकन market के हिसाब से calculate करें तो 1200 से 1300 रुपए लीटर बैठता है एक लीटर मूत्र, तो गाय के मूत्र से लगभग रोज की 3000 की आमदनी और एक साल का 3000 x 365 =1095000  और 20 साल का 300 x 365 x 20 = 21900000  इतना तो गाय के गोबर और मूत्र से हो गया एक साल का । और इसी गाय के गोबर से एक गैस निकलती है जिसे मैथेन कहते हैं और मैथेन वही गैस है जिससे आप अपने रसोई घर का सिलंडर चला सकते हैं और जरूरत पड़ने पर गाड़ी भी चला सकते हैं । जैसे LPG गैस से गाड़ी चलती है वैसे मैथेन गैस से भी गाड़ी चलती है तो न्यायधीश को विश्वास नहीं हुआ तो राजीव भाई ने कहा आप अगर आज्ञा दो तो आपकी कार में मेथेन गैस का सिलंडर लगवा देते हैं ।आप चला के देख लो उन्होने आज्ञा दी और राजीव भाई ने लगवा दिया और जज साहब ने 3 महीने गाड़ी चलाई और उन्होने कहा Its Excellent. क्यूंकि इसका खर्चा आता है मात्र 50 से 60 पैसे किलोमीटर और डीजल से आता है 4 रुपए किलो मीटर ।
मेथेन गैस से गाड़ी चले तो धुआँ बिलकुल नहीं निकलता । डीजल गैस से चले तो धुआँ ही धुआँ । मेथेन से चलने वाली गाड़ी में शोर बिलकुल नहीं होता और डीजल से चले तो इतना शोर होता है कि कान के पर्दे फट जाएँ तो ये सब जज साहब की समझ में आया । तो फिर हम (राजीव भाई ने कहा ) अगर रोज का 10 किलो गोबर इकट्ठा करें तो एक साल में कितनी मेथेन गैस मिलती है? 20 साल में कितनी मिलेगी और भारत मे 17 करोड़ गाय हैं सबका गोबर एक साथ इकठ्ठा करें और उसका ही इस्तेमाल करे तो 1 लाख 32 हजार करोड़ की बचत इस देश को होती है ।बिना डीजल ,बिना पट्रोल के हम पूरा ट्रांसपोटेशन इससे चला सकते हैं । अरब देशो से भीख मांगने की जरूरत नहीं और पट्रोल डीजल के लिए अमेरिका से डालर खरीदने की जरूरत नहीं । अपना रुपया भी मजबूत । तो इतने सारे Calculation जब राजीव भाई ने दिए सुप्रीम कोर्ट में तो जज ने मान लिया कि गाय की हत्या करने से ज्यादा उसको बचाना आर्थिक रूप से लाभकारी है ।
जब कोर्ट की Opinion आई तो ये मुस्लिम कसाई लोग भड़क गए उनको लगा कि अब केस उनके हाथ से गया क्योंकि उन्होने कहा था कि गाय का कत्ल करो तो 7000 हजार की इन्कम और इधर राजीव भाई ने सिद्ध कर दिया कत्ल ना करो तो लाखो करोड़ो की इन्कम । और फिर उन्होने ने अपना Trump Card खेला । उन्होंने कहा कि गाय का कत्ल करना हमारा धार्मिक अधिकार है (this is our religious right ) तो राजीव भाई ने कोर्ट में कहा कि अगर ये इनका धार्मिक अधिकार है तो इतिहास में पता करो कि किस  किस मुस्लिम राजा ने अपने इस धार्मिक अधिकार का प्रयोग किया? तो कोर्ट ने कहा ठीक है एक कमीशन बैठाओ. हिस्टोरीयन को बुलाओ और जितने मुस्लिम राजा भारत में हुए, सबकी History निकालो दस्तावेज़ निकालो और किस किस राजा ने अपने इस धार्मिक अधिकार का पालन किया ?
कोर्ट के आदेश अनुसार पुराने दस्तावेज जब निकाले गए तो उससे पता चला कि भारत में जितने भी मुस्लिम राजा हुए एक ने भी गाय का कत्ल नहीं किया । इसके उल्टा कुछ राजाओ ने गायों के कत्ल के खिलाफ कानून बनाए । उनमे से एक का नाम था बाबर । बाबर ने अपनी पुस्तक बाबर नामा में लिखवाया है कि मेरे मरने के बाद भी गाय के कत्ल का कानून जारी रहना चाहिए ।  हुमायु, औरंगजेब ने भी उसका पालन किया और उसके बाद जितने मुगल राजा हुए सबने इस कानून का पालन किया
फिर दक्षिण भारत में एक राजा था हेदर आली टीपू सुल्तान का बाप । उसने एक कानून बनवाया था कि अगर कोई गाय की हत्या करेगा तो हैदर उसकी गर्दन काट देगा और हैदर अली ने ऐसे सैकंडो कसाइयों की गर्दन काटी थी जिन्होंने गाय को काटा था फिर हैदर अली का बेटा आया टीपू सुलतान तो उसने इस कानून को थोड़ा हल्का कर दिया तो उसने कानून बना दिया की हाथ काट देना । तो टीपू सुलतान के समय में कोई भी अगर गाय काटता था तो उसका हाथ काट दिया जाता था |
 ये जब दस्तावेज जब कोर्ट के सामने आए तो राजीव भाई ने जज साहब से कहा कि आप जरा बताइये अगर इस्लाम में गाय को कत्ल करना धार्मिक अधिकार होता तो बाबर तो कट्टर इस्लामी था 5 वक्त की नमाज पढ़ता था हिमायु और औरंगजेब तो सबसे ज्यादा कट्टर थे तो इन्होंने क्यों नहीं गाय का कत्ल करवाया ?? क्यों गाय का कत्ल रोकने के लिए कानून बनवाए ?? क्यों हेदर अली ने कहा कि वो गाय का कत्ल करने वाले का गर्दन काट देगा ??
राजीव भाई ने कोर्ट से कहा कि आप हमे आज्ञा दें तो हम ये कुरान शरीफ, हदीस,आदि जितनी भी पुस्तकें हैं हम ये कोर्ट मे पेश करते हैं और कहाँ लिखा है गाय का कत्ल करो ये जानना चाहतें है । इस्लाम की कोई भी धार्मिक पुस्तक में नहीं लिखा है कि गाय का कत्ल करो । हदीस में तो लिखा हुआ है कि गाय की रक्षा करो क्यूंकि वो तुम्हारी रक्षा करती है । पैंगबर मुहमद साहब का Statement है कि गाय अबोल जानवर है इसलिए उस पर दया करो और एक जगह लिखा है गाय का कत्ल करोगे तो नरक में भी जमीन नहीं मिलेगी।
राजीव भाई ने कोर्ट से कहा अगर कुरान ये कहती है मुहम्मद साहब ये कहते हैं हदीस ये कहती है तो फिर ये गाय का कत्ल करना धार्मिक अधिकार कब से हुआ??  पूछो इन कसाईयो से ?? तो कसाई बोखला गए और राजीव भाई ने कहा अगर मक्का मदीना में भी कोई किताब हो तो ले आओ उठा के ।
अंत में कोर्ट ने उनको 1 महीने का पर्मिशन दिया कि जाओ और दस्तावेज ढूंढ के लाओ जिसमें लिखा हो गाय का कत्ल करना इस्लाम का मूल अधिकार है । हम मान लेंगे । और एक महीने तक भी कोई दस्तावेज नहीं मिला । कोर्ट ने कहा अब हम ज्यादा समय नहीं दे सकते और अंत 26 अक्तूबर 2005 Judgement आ गया और आप चाहें तो Judgement की copy www. supremecourtcaselaw . com पर जाकर Download कर सकते हैं । यह 66 पन्ने का Judgement  है सुप्रीम कोर्ट ने एक इतिहास बना दिया और उन्होंने कहा कि गाय को काटना संवैधानिक पाप है धार्मिक पाप है और सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गौ रक्षा करना,सर्वंधन करना देश के प्रत्येक नागरिक का संवैधानिक कर्त्तव्य है । सरकार का तो है ही नागरिकों का भी कर्तव्य है ।
अब तक जो संवैधानिक कर्तव्य थे जैसे , संविधान का पालन करना, राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करना, क्रांतिकारियो का सम्मान करना, देश की एकता, अखंडता को बनाए रखना आदि आदि अब इसमें गौ की रक्षा करना भी जुड़ गया है ।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत के सभी राज्यों की सरकार की जिम्मेदारी है कि वो गाय का कत्ल अपने अपने राज्य में बंद कराये और किसी राज्य में गाय का कत्ल होता है तो उस राज्य के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी है राज्यपाल की जवाबदारी, चीफ सेकेट्री की जिम्मेदारी है, वो अपना काम पूरा नहीं कर रहे है तो ये राज्यों के लिए *संवैधानिक* जवाबदारी है और नागरिको के लिए संवैधानिक कर्त्तव्य है ।

ये तो केवल गाय के गोबर और गौ मूत्र की बात की गई । अगर उसके दूध की बात करे तो कितने करोड़ का आंकड़ा पहुँच जायेगा । अब कई तथाकथित मीडिया वाले या सेकुलर बोलेंगे कि हम गाय की बात नही करते है हम भैंस आदि पशु की बात करते हैं तो भैस के गोबर और मूत्र को खेत में डालने से अधिक धान, सब्जी आदि पैदा किये जाते हैं तो उससे गोबर और मूत्र से भी पैसा कमा सकते हैं और उसके दूध आदि से भी करोड़ो रूपये कमा सकते हैं और एक भैंस की कीमत 70,000 से 80,000 गिने तो भी उसके मीट, खून, हड्डियां, चमड़ा आदि बेचने से कई अधिक पैसा होता है । मीट खाने से कई बीमारिया भी होती है और उसका दूध पीने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है अतः कत्लखाने बन्द करना ही उचित होगा ।

9 मार्च 2017

समझदार को इसारा काफी

https://www.santkabir.org                        *समझदार को इशारा काफी है*

*एक समझदार मुस्लिम ने समझाया, मियां ज्यादा शरिया शरिया न करो,मोदी भड़क गया न तो पूरा शरिया लगा देगा*

*कुछ मुस्लिम बंधु एक जगह पर बैठकर विचार विमर्श कर रहे थे। इनमे से एक थे अजमेरी चचा, करीम मीटवाला, फारुख टेलर और सलीम मोची पंचरवाला । ये लोग बैठे बैठे अपना टाइम पास करते हुए मोदी जी को कोसते हुए बोल रहे थे | ये मोदी हमे बताने वाला कौन होता है हम मुसलमान तो शरिया से ही चलेंगे । भाई सही बात है मोदी जी कौन होते हैं बताने वाले बेशक वो देश के PM हैं लेकिन कुछ लोगों के लिए उनकी कोई वैल्यू नहीं है ।*

*तभी वहां हामिद नामक होशियार और समझदार व्यक्ति आया और बोला-अरे मियां जरा आराम से बोलो, ज्यादा शरिया शरिया न करो, ये मोदी तो बहुत सुलझा हुआ इन्सान है,सबका साथ सबका विकास ही सही रहेगा। अगर मोदी भड़क गया न तो पूरा शरिया लगा देगा मुसलमानों के लिए, कहीं फिर फिर लिंग,हाथ काटने जैसी सजाए ना शुरू हो जाएँ जो शरिया में होती हैं। सभी लोग अचानक उसकी तरफ देखने लगे और बोले-अरे क्या बोल रहा  है तू ? हामिद बोला ” मैं अभी चाय की दूकान मे बैठा था, वहां भी यही चर्चा हो रही थी, मे अभी अभी उनके ही मुँह से सुनके आ रहा हूँ वो ऐसे बोल रहे थे।

*भारतीय मुस्लिमो को तीन तलाक के मामले में शरिया कानून के पालन की अनुमति दी जानी चाहिए परन्तु उनसे लिखित रूप में यह ले लेना चाहिए कि वह अब से भारतीय कानून की बजाए शरिया कानून का पूरी तरह से पालन करेंगे |*

*फिर 1 जनवरी 2018 से शरिया कोर्ट बेठेगा जिसमे केंद्र की तरफ से मौलाना मौलवी नियुक्त किये जायेंगे ।*

*इसके पश्चात जैसे कि शरिया के क़ानून में होता है ठीक वैसे ही चोरी के आरोप लगे हुए मुस्लिमो के हाथ काट दिए जाएगे, बलात्कार के आरोपी मुस्लिमो को एक गड्ढे में आधा गाढ़कर पत्थर मारे जाएगे और हत्या के आरोपी मुस्लिमो को चौराहे पर फांसी दी जाएगी  । यानि कि शरिया के सारे कानूनों का पालन किया जायेगा । और सभी शरिया मानने वालों के साथ वैसा ही किया जाएगा जैसा सऊदी अरब और लीबिया में किसी अपराध पर किया जाता है ।सारे क्रिमिनल अपने क़ानून से ही मारे जायेगे शरिया से । वो तो बचेंगे ही नही इस देश में  ।*

*बता दे कि मुस्लिम बहुल क्षेत्रो में शराब और सिगरेट व् संगीत समारोह की अनुमति नही दी जाएगी और ना ही कोई भी मुस्लिम बैंक से अपने पैसे का ब्याज ले सकेगा क्यूँ ब्याज लेना भी शरिया के हिसाब से हराम होता है।  मुस्लिम लोगों में दहेज प्रथा पूरी तरह बंद कर दी जाएगी क्यूँकि दहेज लेना और देना दोनो ही शरिया के हिसाब से ग़लत हैं। मतलब ये कि शरिया का पालन पूरी तरह से किया जाएगा ।*

*जबकि हिन्दुओ के लिए ऐसा कोई कानून नही होगा क्यूकि हिन्दू तो भारत के सविधान के अनुसार चलने के लिए अनुमति दे चुके है लेकिन मुस्लिम लोग भारत के संविधान का विरोध कर रहें हैं तो  मुसलमानों के लिए पूरा शरिया ही लागु कर दिया जाएगा ।*

*ये बात सुनकर सभी लोग बुरी तरह से भड़क गये और हामिद को कोसते हुए कहने लगे कि  ये कैसी बात कर रहे  हो हामिद मियां ,ऐसा नही चलेगा यहाँ कोई तालिबानी कानून है क्या…? ऐसे कैसे हो जाएगा

7 मार्च 2017

पूर्व में समस्त दुनियां में सनातन धर्म

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स्वस्तिक अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल-प्रतीक माना जाता रहा है। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वस्तिक चिह्व अंकित करके उसका पूजन किया जाता है। स्वस्तिक शब्द सु+अस+क से बना है। ‘सु’ का अर्थ अच्छा, ‘अस’ का अर्थ ‘सत्ता’ या ‘अस्तित्व’ और ‘क’ का अर्थ ‘कर्त्ता’ या करने वाले से है। इस प्रकार ‘स्वस्तिक’ शब्द का अर्थ हुआ ‘अच्छा’ या ‘मंगल’ करने वाला।
स्वस्तिक में एक दूसरे को काटती हुई दो सीधी रेखाएँ होती हैं, जो आगे चलकर मुड़ जाती हैं। इसके बाद भी ये रेखाएँ अपने सिरों पर थोड़ी और आगे की तरफ मुड़ी होती हैं।
स्वस्तिक की यह आकृति दो प्रकार की हो सकती है। प्रथम स्वस्तिक, जिसमें रेखाएँ आगे की ओर इंगित करती हुई हमारे दायीं ओर मुड़ती हैं। इसे ‘स्वस्तिक’ (卐) कहते हैं। दूसरी आकृति में रेखाएँ पीछे की ओर संकेत करती हुई हमारे बायीं ओर मुड़ती हैं। इसे ‘वामावर्त स्वस्तिक’ (卍) कहते हैं। जर्मनी के हिटलर के ध्वज में यही ‘वामावर्त स्वस्तिक’ अंकित था।
लेकिन यही स्वास्तिक, यदि हम कहें कि बुल्गारिया में 7000 वर्ष पहले इस्तेमाल होता था, तो आपको आश्चर्य होगा| लेकिन यह सत्य है| उत्तर-पश्चिमी बुल्गारिया के व्त्सार के संग्रहालय मे चल रही एक प्रदर्शनी मे 7000 वर्ष प्राचीन कुछ मिट्टी की कलाकृतियां रखी हई हैं जिसपर स्वास्तिक (卍) का चिन्ह बना है| व्हरात्सा र के ही निकट अल्टीमीर नामक गाँव के एक धार्मिक यज्ञ कुण्ड के खुदाई के समय ये कलाकृतियाँ मिली थी |यह सिद्ध करता है कि पूर्व में समस्त दुनियां में सनातन धर्म ही था |

5 मार्च 2017

हडप्पा सभ्यता से पहले के अवशेष

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सरस्वती नदी के पुनरद्धार के लिए किये जा रहे उत्खन्न कार्य के दौरान जिले में हडप्पाकाल से पूर्व की सभ्यता के अवशेष मिले हैं जो 6000 साल से अधिक पुराने माने जा रहे हैं। नदी के आसपास उत्खन्न कार्य के दौरान मिले अवशेष सर्वाधिक पुराने हो सकते हैं क्योंकि हडप्पा सभ्यता करीब 3500 साल पुरानी है और हडप्पा पूर्व की सभ्यता करीब 5000 से 6000 साल पुरानी है। खुदाई के दौरान जेवर, मनके और हड्डियां मिले हैं तथा पुरातत्व और संग्रहालय विभाग इन्हें एक संग्रहालय में रखेगा।

2 मार्च 2017

भगत सिहं की आखरी इच्छा

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जब अंग्रेज भारत को लूटने के मक़सद से हमारे देश मे आये तो उस समय यानि वर्ष 1857 से पहले उनकी पुलिस नहीं बल्कि  सेना हुआ करती थी ।10 मई 1857 को भारत में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति हो गई । उस समय  नाना साहब, तात्याँ टोपे, मंगल पांडे भारत के महान क्रांतिकारी थे जो अपने देश के खिलाफ बोलने वाले या किशी भी प्रकार का सडयंत्र रचने वाले को बख्स्ते नही थे।इन् क्रांतिकारियों ने अपने जैसे वीर और निडर देश की खातिर कुर्बान हिने वाले 7 लाख 32 हजार युवको की फ़ौज बनाई थी और 10 मई 1857 को क्रांति करने का दिन चुना था। आपको आस्चर्य होगा आजकल के जैसे स्वचालित हथियार न होने के बाबजूद भी उन्होंने एक ही दिन में 2 लाख 50 हजार अंग्रेजो को काट डाला था ।इतनी बड़ी संख्या मे अपनों को कटता देख बचेखुचे अंग्रेज भाग खड़े हुए ।भारत के क्रांतिवीरों से लड़ाई मे हारने के  लगभग 1 साल बाद अंग्रेजो ने भारत के कुछ गद्दार राजाओ के साथ मिलकर दुबारा भारत मे घुसने की योजना बनाई । उन गद्दारों के वंसज आज भी भारत मे मौज़ूद हैं।जिनमे पटियाला के नवाब भी थे,जिनके वंसज आज कांग्रेस से चुनाव लड़ते है ,  के साथ मिल कर 1857 के भारत के महान क्रांतिकारियों का क़त्ल करवाया और दुबारा भारत में अंग्रेजों को घुसाया और उनको संरक्षण भी प्रदान किया।

अंग्रेज बहुत चालाक थे उन्होंने भारत मे दुबारा घुसने से पहले ही कि हमारे घुसते ही  दुबारा क्रांति ना हो जाये, इससे अपने को सुरक्षित करने के लिए इंडियन पुलिस एक्ट (INDIAN POLICE ACT) और भारत के क्रांतिकारियों  पर अत्याचार करने के लिए 34,735 (चौंतीस हज़ार सात सो पेंतीस) कानून बनाये ।जिसमे की अंग्रेजों की अपनी पुलिस के हाथ में लाठी डंडे और हथियार सौंप दिए गए और वो सब अधिकार दे दिए गए कि वे चाहे तो क्रांतिकारियों  पर जितने चाहे मर्जी डंडे चला सकते है ।साथ ही यह क़ानून भी बना दिया कि यदि क्रांतिकारी ने पुलिश की लाठी पकड़्ने की कोशिश  की  तो उसपर  मुकदमा चलेगा ।
बात उस समय की है की जब इन कानूनों को बढ़ावा देने के लिए साइमन कमीसन भारत आ रहा था और उसका बहिष्कार करने के लिए क्रांतिकारी लाला लाजपत राय जी आन्दोलन कर रहे थे वो शांतिपूर्वक तरीके से आन्दोलन कर रहे थे तभी एक अंग्रेज अधिकारी जिसका नाम जे.पी. सॉन्डर्स था , उसने लाला जी पर लाठियां बरसानी शुरू कर दी और जानबूझकर उसने लाला जी के सर पे लाठियां मारी।  1 लाठी मारी 2 मारी 3 मारी 4 मारी 5, 10 ऐसे करते करते उस दुष्ट ने लाला जी के सिर पर 14 लाठियां मारी जिससे उनका सिर फट गया व खून बहने लगा और बाद में उनकी मृत्यु हो गई । आज की भांती ही देशभक्त अंदर ही अंदर सुलगते रहे पर गलत का विरोध करने की हिम्मत न जुटा सके।
अब कानून के हिसाब से सॉन्डर्स क़ो सज़ा मिलनी चाहिए थी इसलिये सरदार भगत सिहं ने पुलिस में शिकायत दर्ज की। मामला अदालत तक गया वहां भगत सिहं ने सफ़ाई दी कि आपके बनाये कानून के मुताबिक लाठिया कमर के नीचे तक मारी जा सकती  है लेकिन लाला जी के सर पर लाठियां क्यों मारी गयी? जिससे उनकी मौत हुई ।पुलिश भी अंग्रेज़ो की क़ानून भी अंग्रेजों के और जज भी अंग्रेजों के इसलिए अंग्रेजों की अदालत ने उनका तर्क नहीं माना और अदालत ने कहा सॉन्डर्स ने जो किया वो तो कानून में हैं ।उसने कोई कानून नहीं तोड़ा । इसलिये उसको बरी किया जाता है  और सॉन्डर्स बरी हो गया । सरदार तो पक्के देशभक्त थे भगत सिहं को गुस्सा आ गया और उन्होंने कहा कि जिस अंग्रेजी न्याय व्यवस्था ने लाला जी को इन्साफ़ नहीं दिया और सॉन्डर्स को छोड़ दिया, उसको सज़ा मैं दूंगा । मे सॉन्डर्स को वहीं पहुंचाउंगा जहाँ इसने लाला जी को पहुँचाया है । और कुछ दिन बाद भगत सिहं ने सॉन्डर्स को गोली से उड़ा दिया। भारत ऎसे वीरों को आज भी प्रणाम करता है।
जब भगत सिहं को फ़ासीं होने वाली थी तो उससे कुछ दिन पहले वो लाहौर की जेल में बंद थे। तब कुछ पत्रकार उनसे मिलने जाया करते थे। तब एक पत्रकार ने भगत सिहं से पुछा कि  आपका देश के युवको के नाम यदि कोई सन्देश देना हो तो बताईये ? तब भगत सिहं ने कहा की मैं तो फ़ासीं चढ़ रहा हूँ लेकिन देश के नोजवानो को कहना चाहता हूँ जिस इंडियन पुलिस एक्ट अंग्रेजों द्वारा बनाये गए कानून के कारण लाला जी हत्या हुई और जिसके कारण मैं फ़ासीं चढ़ रहा हूँ… देश नोजावानो को कहना चाहता हूँ कि आजादी मिलने से पहले-पहले किसी भी हालत में इस इंडियन पुलिस एक्ट को खत्म करवा देना। यही मेरी आखिरी इच्छा हैं, मेरे देश के प्रति मेरी भावना हैं।
आज़ादी के 67 साल हो गये। बीएस इतना फर्क आया कि गोरे चले गए और काले आ गए लेकिन आज तक किशी ने अंग्रेजों के बनाये कानूनों को बदलने की ज़हमत नही उठाई जिस वजह से आज भी वही कानून चलन मे  हैं देशभक्ति का ढोंग दिखाने वाले राजनीतिज्ञों के लिए इससे शर्म की बात क्या दूसरी हो सकती है ! आजादी के 67सालो  बाद भी इस इंडियन पुलिस एक्ट IPC Act  को खत्म नहीं किया गया है ? आज भी आप अकसर सुनंते हो पुलिस ने लाठी चार्ज किया। कभी अपनी जमीन की माँग कर रहे किशानो के ऊपर और कभी ग़रीब लोगो के उपर जो अपना हक़ मांग रहे हैं। सबसे ताजी घटना तो 4 जून 2011 की काली रात है जहाँ बड़े ही शांतिप्रिय तरीके से स्वामी रामदेव जी विदेशों में जमा काले धन को देश में वापस लाने के लिए और इस भ्रष्ट व्यवस्था में परिवर्तन लाने के लिए अपने सहयोगियों के साथ आन्दोलन कर रहे थे, देल्ही  पुलिस ने रात के लगभग 1 बजे सोते हुए मासूम लोगों पर बच्चों पर महिलाओं पर साधुसंतों पर लाठियां बरसानी शुरू कर दी ।पता नहीं कितने लोगो के हड्डियाँ टुटी और कितने घायल हो गये। इसी घटना में बहन राजबाला जी पुलिस की इस बर्बरता की शिकार हो गई और पुलिस ने उनपर जम कर लाठियां बरसाईं 26 सितम्बर 2011 सोमवार को उनका देहांत हो गया पुलिस की लाठियों का शिकार होकर बहन राजबाला वेंटिलेटर पर थी और उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए क्या यही है हमारा कानून क्या यही न्याय है ! क्यों ऐसा हुआ 04 जून को ये सब इसलिए हुआ की आज भी अंग्रेजों द्वारा बनाये गए कानून का इस्तेमाल ये काले अंग्रेज मासूम लोगों पर कर रहे हैं और आज भी इनके हाथों में लाठियां हैं क्योंकि आज भी 1860 में बनाया गया वह इंडियन पोलिश एक्ट आज वैसा का वैसा ही इस देश में चल रहा है और ये काले अंग्रेज हम पर अन्याय करते हुए न्याय दिखाकर राज कर रहे हैं 
यह क़ानून केवल एक कानून नहीं है ऐसे 34,735 चौंतीस हज़ार सात सो पेंतीस  कानून जो अंग्रेजो ने भारत को लूटने और  गुलाम बनाने की योजना से बनाये थे, दुर्भाग्यवस देश मे आज भी वैसा का वैसा ही चल रहा है। भगत सिहं की आखरी इच्छा आज तक पूरी नहीं हुई है ।पता नहीं हर साल हम किस मुँह से उसका जन्म दिवस मनाते हैं। पता नहीं किस मुँह से 23 मार्च को उनको श्रध्दाजलि अर्पित करते हैं। जिन क्रूर अंग्रेजों द्वारा बनाये गए कानून के कारण लाला जी की जान गयी, जिस कानून के कारण भगत सिहं जैसे देशभक्त  फांसी पर चढे, हम 67 साल बाद भी हम उस कानून को मिटा नहीं पाये।जय हिन्द जय भारत 

28 फ़रवरी 2017

घुटन होना स्वाभाविक है

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हमारा देश महान
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नेता की तरफ जूते उछालने पे जेल हो जाती है
और सैनिको को पत्थर से मारने वाले मासूम बेकसूर
हद है दोगलेपन की
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पाकिस्तान की क्या औकात जो हिंदुस्तान का कुछ करे,
हमने तो ऐसे कई पाकिस्तान हिंदुस्तान के अंदर पाले है।।
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देशभक्ति जब उफान पर होती है ताे देशविरोधियाे को घुटन होना स्वाभाविक है,

खून मे अगर पाकिस्तानी कीडे है तो आजाद देश मे आजादी मांगना लाजमी है
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वाह रे हमारी 60 साल की सरकार

27 फ़रवरी 2017

परदे की तजबीज

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हिन्दुओं में घूंघट का महत्त्व समझाते हुए कहा कि मर्दों की गंदी और कामुक नज़र से बचने का स्त्रियों के पास यह आज़माया हुआ तरीक़ा है, इसीलिए हमारे धर्मगुरुओं ने जवानी की दहलीज़ पर कदम रखती औरतों के लिए परदे की तजबीज की है।
औरतों के परदे से बाहर आकर स्कर्ट, जींस और टॉप जैसे विदेशी परिधान अपनाने के बाद ही समाज में कामुकता, बेहयाई और बलात्कार बढ़े हैं। मैंने कहा कि अगर समस्या मर्दों से है, तो सदियों से इसकी सज़ा औरतों को क्यों दी जा रही है ? खुद अंडरवियर और गमछे पहनकर पूरा टोला-मोहल्ला घूमने वाले आप मर्द औरतों को शालीनता के साथ भी अपनी पसंद के कपड़े पहनने से रोकने वाले कौन होते हो?
औरतों को सामान की तरह सात पर्दों में लपेट कर रखने से बेहतर तो यह होता कि हमारे धर्मगुरु जवानी की दहलीज़ पर कदम रखते ही दुनिया के सभी मर्दों की आंखें फोड़ देने का फ़रमान ज़ारी कर देते। कम से कम दुनिया की आधी आबादी तो सुरक्षित हो जाती। न कहीं छेड़खानी होती, न बलात्कार, न अश्लील और ब्लू फ़िल्में बनती और देखी जातीं और न अय्याशों के आगे डांस बार या कैबरे में औरत को नंगी-अधनंगी होकर नाचने की ज़िल्लत उठानी पड़ती।
रही बात मर्दों के अंधे होने के बाद घर-परिवार, समाज, देश और दुनिया को चलाने की तो यह कोई मुश्क़िल बात नहीं। घर चलाने की ज़िम्मेदारी हम अंधे मर्दों पर। मर्द अगर घर में रहें तो दुनिया से अपराध भी ख़त्म हो जाएंगे, आतंकवाद भी और बेमतलब के युद्ध भी। घर के बाहर का ज़िम्मा स्त्रियों को। यक़ीन मानिए, वे समाज, देश और दुनिया को हम मर्दों से बहुत बेहतर चला लेंगी। 

24 फ़रवरी 2017

इतना बड़ा श्री यंत्र धरती पर कैसे

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दुनिया के समृद्ध और विकसित देश कहे जाने वाले अमेरिका में आज भी यह पहली अनसुलझी हैं कि आखिर यह हिन्दुओं का इतना बड़ा श्री यंत्र धरती पर कैसे बन गया ? और यदि इसको किशी ने बनाया तो ये कैसे बना … हुआ यह कि इडाहो एयर नेशनल गार्ड का पायलट बिल मिलर 10 अगस्त 1990 को विमान की  नियमित प्रशिक्षण उड़ान पर था तभी उसको ऊंचाई से ओरेगॉन प्रांत की एक सूखी हुई झील की रेत पर कोई विचित्र आकृति दिखाई दी। यह आकृति लगभग चौथाई मील लंबी-चौड़ी थी जबकी लगभग तीस मिनट पहले ही उसने इस मार्ग से उड़ान भरी थी तब उसका ध्यान इस और नही गया था। परंतु सबसे ज्यादा हैरान और परेसान करने वाली बात यह थी कि कई अन्य पायलट भी इसी मार्ग से लगातार उड़ान भरते थे, उन्होंने भी कभी इस विशाल आकृति को कभी नहीं देखा था जबकी आकृति का आकार इतना बड़ा था कि उसको आसमान से आसानी से देखा जा सकता था।
सेना में लेफ्टिनेंट पद पर कार्यरत बिल मिलर ने तत्काल इसकी रिपोर्ट अपने उच्चाधिकारियों को दी, कि ओरेगॉन प्रांत की सिटी ऑफ बर्न्स से सत्तर मील दूर सूखी हुई झील की चट्टानों पर कोई रहस्यमयी आकृति दिखाई दे रही है. मिलर ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि यह आकृति अपने आकार और लकीरों की बनावट से किसी मशीन की आकृति प्रतीत होती है. इस खबर को लगभग सुरक्षा कारणों से तीस दिनों तक आम जनता से छिपाकर रखा गया ताकि सुचना सार्वजानिक होने पर उसके वास्तविक बनावट मे परिवर्तन की सम्भावना से सुरक्षित रखा जाये। लेकिन फिर भी 12 सितम्बर 1990 को प्रेस को इसके बारे में पता चल ही गया।सबसे पहले बोईस टीवी स्टेशन ने यह ब्रेकिंग न्यूज़ दर्शकों को दिखाई ।जैसे ही लोगों ने उस आकृति को देखा तो तत्काल ही समझ गए कि यह हिन्दू धर्म का पवित्र चिन्ह “श्रीयंत्र” है. परन्तु किसी के पास इस बात का जवाब नहीं था कि हिन्दू आध्यात्मिक यन्त्र की विशाल आकृति ओरेगॉन के उस वीरान स्थल पर कैसे और क्यों आई?
14 सितम्बर को अमेरिका असोसिएटेड प्रेस तथा ओरेगॉन की बैण्ड बुलेटिन ने भी प्रमुखता से दिखाया जो आम व् खास लोगों मे चर्चा का विषय बना रहा। इसकी जानकारी एकत्रित करने के लिए वहां की सरकार ने  अपने देश के विख्यात वास्तुविदों एवं इंजीनियरों से संपर्क किया तो उन्होंने भी इस आकृति पर जबरदस्त आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि इतनी बड़ी आकृति को बनाने के लिए यदि जमीन का सिर्फ सर्वे भर किया जाए तब भी कम से कम एक लाख डॉलर का खर्च आएगा। श्रीयंत्र की बेहद जटिल संरचना और उसकी कठिन डिजाइन को देखते हुए जब इसे सादे कागज़ पर बनाना ही मुश्किल होता है तो सूखी झील में आधे मील की लम्बाई-चौड़ाई में जमीन पर इस डिजाइन को बनाना तो बेहद ही मुश्किल और लंबा काम है, यह विशाल आकृति रातोंरात नहीं बनाई जा सकती. इस व्यावहारिक निष्कर्ष से अंदाजा लगाया गया कि निश्चित ही यह मनुष्य की कृति नहीं है।  इस श्री यंत्र की रचना इतनी विशाल थी कि इसे जमीन पर खड़े रहकर बनाना संभव ही नहीं था साथ ही इसकी  आकृति को जमीन पर खड़े होकर भी पूरा नहीं देखा जा सकता था।इसको केवल सैकड़ों फुट की ऊँचाई से ही देखा जाना सम्भव था। अंततः तमाम विद्वान, प्रोफ़ेसर, आस्तिक-नास्तिक, अन्य धर्मों के प्रतिनिधि इस बात पर सहमत हुए कि निश्चित ही यह आकृति किसी रहस्यमयी घटना का नतीजा है. फिर भी वैज्ञानिकों की शंका दूर नहीं हुई तो UFO पर रिसर्च करने वाले दो वैज्ञानिक डोन न्यूमन और एलेन डेकर ने 15 सितम्बर को इस आकृति वाले स्थान का दौरा किया और अपनी रिपोर्ट में लिखा कि इस आकृति के आसपास उन्हें किसी मशीन अथवा टायरों के निशान आदि दिखाई नहीं दिए है।
ओरेगॉन विश्वविद्यालय के डॉक्टर जेम्स देदरोफ़ ने इस अदभुत घटना पर UFO तथा परावैज्ञानिक शक्तियों से सम्बन्धित एक रिसर्च पेपर भी लिखा जो “ए सिम्बल ऑन द ओरेगॉन डेज़र्ट” के नाम से 1991 में प्रकाशित हुआ। अपने रिसर्च पेपर में वे लिखते हैं कि अमेरिकी सरकार अंत तक अपने नागरिकों को इस दैवीय घटना के बारे कोई ठोस जानकारी नहीं दे सकी, क्योंकि किसी को नहीं पता था कि श्रीयंत्र की वह विशाल आकृति वहाँ बनी कैसे? कई नास्तिकतावादी इस कहानी को झूठा और श्रीयंत्र की आकृति को मानव द्वारा बनाया हुआ सिद्ध करने की कोशिश करने वहाँ जुटे रहे लेकिन अपने तमाम संसाधनों, ट्रैक्टर, हल, रस्सी, मीटर, नापने के लिए बड़े-बड़े स्केल आदि के बावजूद उस श्रीयंत्र की आकृति से आधी आकृति भी ठीक से और सीधी नहीं बना सके। आज के परिपेक्ष मे निश्चित ही यह घटना सनातन वैदिक सभ्यता के विज्ञान की ऊंचाई को दर्शाती है।

22 फ़रवरी 2017

करमचंद गाँधी के विवादास्पद कारनामे

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1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए। गान्धी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया।

2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गान्धी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं, किन्तु गान्धी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों को आतंकवादी कहा जाता है।

3. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।

4.मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में गान्धी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला में मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग 1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।

5.1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द जी की हत्या अब्दुल रशीद नामक एक मुस्लिम युवक ने कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।

6.गान्धी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।

7.गान्धी ने जहाँ एक ओर काश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को काश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।

8. यह गान्धी ही था जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।

9. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।

10. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहा था, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।

11. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।

12. 14-15 जून, 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।

13. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने अस्वीकार कर दिया।

14. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।

15. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गान्धी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।

16. 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने काश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।

17.गाँधी ने गौ हत्या पर पर्तिबंध लगाने का विरोध किया

18. द्वितीया विश्वा युध मे गाँधी ने भारतीय सैनिको को ब्रिटेन का लिए हथियार उठा कर लड़ने के लिए प्रेरित किया , जबकि वो हमेशा अहिंसा की पीपनी बजाते है

19. क्या 50000 हिंदू की जान से बढ़ कर थी मुसलमान की 5 टाइम की नमाज़ ????? विभाजन के बाद दिल्ली की जमा मस्जिद मे पानी और ठंड से बचने के लिए 5,000 हिंदू ने जामा मस्जिद मे पनाह ले रखी थी...मुसलमानो ने इसका विरोध किया पर हिंदू को 5 टाइम नमाज़ से ज़यादा कीमती अपनी जान लगी.. इसलिए उस ने माना कर दिया. .. उस समय गाँधी नाम का वो शैतान बरसते पानी मे बैठ गया धरने पर की जब तक हिंदू को मस्जिद से भगाया नही जाता तब तक गाँधी यहा से नही जाएगा....फिर पुलिस ने मजबूर हो कर उन हिंदू को मार मार कर बरसते पानी मे भगाया.... और वो हिंदू--- गाँधी मरता है तो मरने दो ---- के नारे लगा कर वाहा से भीगते हुए गये थे...,,, रिपोर्ट --- जस्टिस कपूर.. सुप्रीम कोर्ट..... फॉर गाँधी वध क्यो ?

20. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च 1931 को फांसी लगाई जानी थी, सुबह करीब 8 बजे। लेकिन 23 मार्च 1931 को ही इन तीनों को देर शाम करीब सात बजे फांसी लगा दी गई और शव रिश्तेदारों को न देकर रातोंरात ले जाकर ब्यास नदी के किनारे जला दिए गए। असल में मुकदमे की पूरी कार्यवाही के दौरान भगत सिंह ने जिस तरह अपने विचार सबके सामने रखे थे और अखबारों ने जिस तरह इन विचारों को तवज्जो दी थी, उससे ये तीनों, खासकर भगत सिंह हिंदुस्तानी अवाम के नायक बन गए थे। उनकी लोकप्रियता से राजनीतिक लोभियों को समस्या होने लगी थी।

उनकी लोकप्रियता महात्मा गांधी को मात देनी लगी थी। कांग्रेस तक में अंदरूनी दबाव था कि इनकी फांसी की सज़ा कम से कम कुछ दिन बाद होने वाले पार्टी के सम्मेलन तक टलवा दी जाए। लेकिन अड़ियल महात्मा ने ऐसा नहीं होने दिया। चंद दिनों के भीतर ही ऐतिहासिक गांधी-इरविन समझौता हुआ जिसमें ब्रिटिश सरकार सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करने पर राज़ी हो गई। सोचिए, अगर गांधी ने दबाव बनाया होता तो भगत सिंह भी रिहा हो सकते थे क्योंकि हिंदुस्तानी जनता सड़कों पर उतरकर उन्हें ज़रूर राजनीतिक कैदी मनवाने में कामयाब रहती। लेकिन गांधी दिल से ऐसा नहीं चाहते थे क्योंकि तब भगत सिंह के आगे इन्हें किनारे होना पड़ता ।