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यदि कोई पलता आदमी केले के छिलके पर फिसलकर गिर पड़े तो सब आदमी बड़ी सहानुभूति दिखाएँगे और सहारा देकर उठाएँगे। लेकिन यदि कोई मोटा आदमी गिर पड़े तो सहानुभूति दिखाना तो दूर रहा लोग हँसते-हँसते लोटपोट हो जाएँगे। इससे यह नहीं समझना चाहिए कि मोटे आदमियों का दुनिया में निभाव नहीं। मोटे आदमी बहुधा हँसमुख होते हैं और कई खेलकूद में तेज होते हैं तो कई बुद्धि में। 1921 में आस्ट्रेलियन टीम का कप्तान आर्मस्ट्रांग मोटा था। इंग्लैण्ड जाते समय उसने अपने को पतला करने के लिए जहाज में प्रतिदिन एक से दो घंटे तक कोयला झोंका, मगर जब वह इंग्लैंड आकर पहुँचा तो और मोटा हो गया था। इसी प्रकार लंदन में एक मिस्टर लौंग्ले रहते थे। उनका वजन 40 स्टोन से अधिक था और वे मुक्केबाजी में बड़ी रुचि रखते थे। याल्डन शहर में एडविन ब्राइट नाम का सब्जी बेचने वाला रहता था जिसके मशीन पर चढ़ते ही सुई 44 स्टोन पर चढ़ती थी, जबकि उसकी लम्बाई केवल 5’ 9’’ थी। उसका सीना 66’’, तोंद 83’’, जाँघ 33’’ और डौले 26’ थे। उसे घुड़सवारी का बड़ा शौक था (भगवान घोड़े को बचाए !) उसका कोट इतना बड़ा था कि 7 आदमी बड़ी आसानी से उसमें बन्द किये जा सकते थे।
मोटे बुद्धिमानों की भी कमी नहीं। टॉमस एक्विनास इतना गोल था कि मेज में से एक अर्धवृत्ताकार टुकड़ा काट दिया गया था जिससे वह खाना आराम से खा सके। जी.के. चेस्टरटन पर एक दृष्टि डालते ही पता पड़ा जाता था कि वह कितना मस्तमौला है। नेपोलियन की तोंद गोल हो गई थी और मेराबो भी खूब मोटा था। बाल्जक और ड्यूमा गोश्त के पहाड़ थे। विक्टर ह्यूगो भी गोल और भली-भाँति पेटभरा दीखता था। रोजिनी को पतलून में हिप्पोपोटैमस कहा जाता था। डॉक्टर जान्सन तो हर प्रकार से पहाड़ का पहाड़ था।
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