9 जनवरी 2017

बेचारा समाज

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भारत, जो की 1947 में आजाद हुआ और धर्म के आधार पर विभाजन के बावजूद हिन्दुओं का देश नही बन पाया। बल्कि उस वक़्त की सरकार द्वारा सेक्युलर देश घोसित कर दिया गया। बहुत से भारतीय लोगों के मन में आज भी ये सवाल है कि जब इस देश के लोगों को हिन्दू और मुसलमानो को सबको एक साथ ही रहना था तो आखिर क्यों कांग्रेस ने अंग्रेज़ों के साथ मिलकर इस देश का विभाजन स्वीकार कर लिया । इस सवाल का जवाब ढूंढ पाना इतना आसान नही है और ना ही ये इस लेख का उदेशय है इस बारे में विस्तार से कभी और लिखूंगा ।

हालांकि आज़ादी मिलने के बाद गांधी जी ने कांग्रेस गठन के मकसद को पूरा मानते हुए इसको खत्म करने की इच्छा की, पर फिर भी विभाजन के तुरंत बाद कांग्रेस पार्टी सत्ता में आई और आजाद भारत के इतिहास में आज तक भी 90 % से ज्यादा समय कांग्रेस का ही शासन रहा है।  हमारे हिन्दू वेद शास्त्रों में एक बात बड़े स्पस्ट रूप से लिखी गयी है “संघे शक्ति कलियुगे ” यानि की कलयुग में संगठन में ही शक्ति होगी । जो लोग एक साथ होंगे संघटित होंगे, वो अधिक शक्तिशाली होंगे।  बात तो हिन्दू धर्म ग्रंथों की थी, पर मुसलमानो ने इस पर बहुत अच्छी तरह से अमल किया। 
चाहे भारत के बंटवारे की बात हो या उसके बाद की बात हो, उन्होंने इस्लाम के आधार पर खुद को संघटित रखा।  लोकतंत्र में वोट की संख्या का बड़ा महत्व होता है । इस्लाम के मानने वालों ने यहाँ भी अपनी बुद्धिमता का परिचय दिया और खुद को एक साथ और इक्कठे वोट बैंक के रूप में स्थापित कर लिया। हालांकि इसका आम मुसलमान को आज तक कोई ज्यादा फायदा नही हुआ।  पर फिर भी उनमे से ज्यादातर लोगों ने फायदे नुक्सान की बात को दरकिनार कर संघटन में अपनी पूरी श्रद्धा और विशवास रखा।  और उसकी वजह से देश में उनका एक मजबूत और बड़ा वोट बैंक भारत में बन गया । इसको यूँ कहें कि ये हिन्दुओं की भूल रही या जातिवाद का राक्षस, पर हिन्दू खुद को कभी हिंदुत्व के नाम पर बड़ा वोट बैंक नही  पाये।  इसलिए देश में वोट बैंक आधारित भेदभाव की राजनीती की बड़े स्तर पर शुरुवात हुई।  ऐसा नही कि मुस्लिम तुस्टीकरण आजादी से पहले नही था (उसकी ही वजह से तो देश के टुकड़े हुए थे ), पर भारत की आजादी के चुनी सरकारों ने समाज के लिए स्थापित की जाने वाली समान नीतियों में सीधा फर्क डालना शुरू कर दिया। जिस प्रकार गुलाम भारत मे अंग्रेज़ आपस मे लड़ा कर समाज की ताकत को कमज़ोर करने की चाल चला करते थे। समाज तब भी बेचारा था, और आज भी बेचारा ही है। 

























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