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आज समूची दुनिया बरूद के ढेर पर बैठी है लेकिन यह भी सच्चाई है कि सभी देश एक-दूसरे से युध्द करने से बचते है। संभावनाएं इस बात की अधिक हैं कि भविष्य में युध्द नहीं होगे और यदि होंगे तो नतीजे बहुत खतरनाक होंगे। विश्व के कई देश अनचाहे युध्दों का परिणाम भली-भांति जानते है। भगवान राम और कृष्ण को भी युध्द करना पड़ा लेकिन ऐसा नहीं कि वे किसी भी प्रकार के युध्द के पक्ष में थे। आज की ज्वलंत समस्या कट्टरवाद है, जिसका परिणाम आतंकवाद के रूप मे हम सबके सामने है। कट्टरवाद दिशाहीन परिस्थितियों का परिणाम है। आतकवाद के बढ़ने के कई कारण हैं। आतंकवाद को अकेले हथियारों के बल पर समाप्त नहीं किया जा सकता। आतंकवाद को खत्म करने के लिए इस दिशा में संलिप्त लोगों के जहन को बदलने की जरूरत है और यह कार्य करने के लिए विभिन्न प्रकार की संस्थाएं जो सुधार के कार्य में दिन-रात जुटी हैं वे लोगों की नब्ज समझकर बेहतर कार्य कर सकती हैं । समाज में ऐसे कई उदाहरण हैं जिनके दृष्टिगत बड़े-बड़े अपराधी भी मुख्यधारा मे लौटे हैं।और उन्होंने समाजसेवा का व्रत धारण करते हुए अनुकरणीय कार्य किए हैं। आज कट्टरवाद को हिंसामुक्त समाज की स्थापना करना होना चाहिए ,न कि दूसरे निर्दोष लोगों की हत्या। कोई भी धर्म लोगों को सामाजिक व्यवस्था पर आधारित मर्यादाएं और वर्जनाएं तोड़ने की बात नहीं कहता । लेकिन राह से भटके लोगों को सही रास्ते पर लाने के लिए अध्यात्मिक सहजता का दामन हमेशा कारगर रहता है। उन्होंने कहा कि जो लोग समझाने से नहीं समझते उनके लिए सजा का प्रावधान भी सही है। स्वभाव में काम, क्रोध, लोभ, मोह, अंहकार जैसे विकार जब मनुष्य की बुध्दि पर भारी पड़ते है तो कहीं न कहीं नुकसान की स्थिति न केवल सम्बंधित के लिए बल्कि समूचे समाज के लिए आ खड़ी होती है । जिसका निराकरण अध्यात्मवाद में आसानी से खोजा जा सकता है। बदलते परिवेश में यह कार्य सबको मिलकर करने की जरुरत है। गीता युध्द की प्रेरक नही बल्कि गीता युध्द में शांति की प्रेरक है। इसके श्लोकों में समाहित संदेश को अंगीकृत करके समाज के हर धर्म को रचनात्मक और सृजनात्मक दिशा लेने की जरुरत है। हिंसा युध्द में ही नहीं होती बल्कि विचाराें,आचरण, व्यवहार और शाद्विक बाणों में भी जब हिंसा झलकती है तो बड़ी-बड़ी घाटनाएं और युध्द के रूप मे सामने आती है। समाज के समुचित संवर्धन और राष्ट्र के विकास के लिए समाज के हर व्यक्ति को अपने स्वभाव में बदलाव लाकर आपसी समन्वय, सांमजस्य के समायोजन के साथ वृहत पैमाने पर काम करने की जरुरत है।
आज समूची दुनिया बरूद के ढेर पर बैठी है लेकिन यह भी सच्चाई है कि सभी देश एक-दूसरे से युध्द करने से बचते है। संभावनाएं इस बात की अधिक हैं कि भविष्य में युध्द नहीं होगे और यदि होंगे तो नतीजे बहुत खतरनाक होंगे। विश्व के कई देश अनचाहे युध्दों का परिणाम भली-भांति जानते है। भगवान राम और कृष्ण को भी युध्द करना पड़ा लेकिन ऐसा नहीं कि वे किसी भी प्रकार के युध्द के पक्ष में थे। आज की ज्वलंत समस्या कट्टरवाद है, जिसका परिणाम आतंकवाद के रूप मे हम सबके सामने है। कट्टरवाद दिशाहीन परिस्थितियों का परिणाम है। आतकवाद के बढ़ने के कई कारण हैं। आतंकवाद को अकेले हथियारों के बल पर समाप्त नहीं किया जा सकता। आतंकवाद को खत्म करने के लिए इस दिशा में संलिप्त लोगों के जहन को बदलने की जरूरत है और यह कार्य करने के लिए विभिन्न प्रकार की संस्थाएं जो सुधार के कार्य में दिन-रात जुटी हैं वे लोगों की नब्ज समझकर बेहतर कार्य कर सकती हैं । समाज में ऐसे कई उदाहरण हैं जिनके दृष्टिगत बड़े-बड़े अपराधी भी मुख्यधारा मे लौटे हैं।और उन्होंने समाजसेवा का व्रत धारण करते हुए अनुकरणीय कार्य किए हैं। आज कट्टरवाद को हिंसामुक्त समाज की स्थापना करना होना चाहिए ,न कि दूसरे निर्दोष लोगों की हत्या। कोई भी धर्म लोगों को सामाजिक व्यवस्था पर आधारित मर्यादाएं और वर्जनाएं तोड़ने की बात नहीं कहता । लेकिन राह से भटके लोगों को सही रास्ते पर लाने के लिए अध्यात्मिक सहजता का दामन हमेशा कारगर रहता है। उन्होंने कहा कि जो लोग समझाने से नहीं समझते उनके लिए सजा का प्रावधान भी सही है। स्वभाव में काम, क्रोध, लोभ, मोह, अंहकार जैसे विकार जब मनुष्य की बुध्दि पर भारी पड़ते है तो कहीं न कहीं नुकसान की स्थिति न केवल सम्बंधित के लिए बल्कि समूचे समाज के लिए आ खड़ी होती है । जिसका निराकरण अध्यात्मवाद में आसानी से खोजा जा सकता है। बदलते परिवेश में यह कार्य सबको मिलकर करने की जरुरत है। गीता युध्द की प्रेरक नही बल्कि गीता युध्द में शांति की प्रेरक है। इसके श्लोकों में समाहित संदेश को अंगीकृत करके समाज के हर धर्म को रचनात्मक और सृजनात्मक दिशा लेने की जरुरत है। हिंसा युध्द में ही नहीं होती बल्कि विचाराें,आचरण, व्यवहार और शाद्विक बाणों में भी जब हिंसा झलकती है तो बड़ी-बड़ी घाटनाएं और युध्द के रूप मे सामने आती है। समाज के समुचित संवर्धन और राष्ट्र के विकास के लिए समाज के हर व्यक्ति को अपने स्वभाव में बदलाव लाकर आपसी समन्वय, सांमजस्य के समायोजन के साथ वृहत पैमाने पर काम करने की जरुरत है।
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