31 जनवरी 2017

गांधी जी का इस्लाम के बारे में नजरिया

ca-pub-6689247369064277


‘‘ इस्लाम अपने अति विशाल युग में भी अनुदार नही था, बल्कि सारा संसार उसकी प्रशंसा कर रहा था। उस समय, जबकि पश्चिमी दुनिया अन्धकारमय थी, पूर्व क्षितिज का एक उज्जवल सितारा चमका, जिससे विकल संसार को प्रकाश और शान्ति प्राप्त हु। इस्लाम झूठा मजहब नही हैं। हिन्दुओं को भी इसका उसी तरह अध्ययन करना चाहिए, जिस तरह मैने किया हैं। फिर वे भी मेरे ही समान इससे प्रेम करने लगेंगे। 

मै पैगम्बरे-इस्लाम की जीवनी का अध्ययन कर रहा था। जब मैने किताब का दूसरा भाग भी खत्म कर लिया, तो मुझे दुख हुआ कि  इस महान प्रतिभाशाली जीवन का अध्ययन करने के लिए अब मेरे पास कोई  और किताब बाकी नही। अब मुझे पहले से भी ज्यादा विश्वास हो गया हैं कि यह तलवार की शक्ति न थी, जिसने इस्लाम के लिए विश्व क्षेत्र में विजय प्राप्त की, बल्कि यह इस्लाम के पैगम्बर का अत्यन्त सादा जीवन, आपकी नि:स्वार्थता, प्रतिज्ञा-पालन और निर्भयता थी। यह आपका अपने मित्रों और अनुयायियों से प्रेम करना और श्वर पर भरोसा रखना था। यह तलवार की शक्ति नही थी, बल्कि वे विशेषताए और गुण थें, जिनसे सारी बाधाए दूर हो ग और आप (सल्ल0) ने समस्त कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर ली।

मुझसे किसी ने कहा था कि दक्षिणी अफरीका में जो यूरोपियन आबाद हैं, इस्लाम के प्रचार से कॉप रहे हैं, उसी इस्लाम से जिसने मराकों में रौशनी फैलाई और संसार वासियों को भा-भा बन जाने का सुखद-संवाद सुनाया, निस्संदेह दक्षिणी अफरीकी के यूरोपियन इस्लाम से नहीं डरते हैं, बल्कि वास्तव में वे इस बात से डरते है कि अगर अफरीका के आदिवासियों ने इस्लाम कबूल कर लिया तो वे श्वेत जातियों से बराबरी का अधिकार मॉगने लगेंगे। आप उनको डरने दीजिए। अगर भा-भा बनना पाप हैं, तो यह पाप होने दीजिए। अगर वे इस बात से परेशान हैं कि उनका नस्ली बड़प्पन, कायम न रह सकेगा तो उनका डरना उचित हैं, क्योकि मैने देखा हैं अगर एक जूलों सा हो जाता है तो वह फिर भी सफेद रंग के साइयों के बराबर नही हो सकता। किन्तु जैसे ही वह इस्लाम ग्रहण करता हैं, बिल्कुल उसी वक्त वह उसी प्याले में पानी पीता हैं और उसी प्लेट में खाना खाता हैं, जिसमे को और मुसलमान पानी पीता और खाना खाता हैं। तो वास्तविक बात यह है जिससे यूरोपियन कॉप रहे हैं। 

30 जनवरी 2017

मोटा आदमी

ca-pub-6689247369064277


यदि कोई पलता आदमी केले के छिलके पर फिसलकर गिर पड़े तो सब आदमी बड़ी सहानुभूति दिखाएँगे और सहारा देकर उठाएँगे। लेकिन यदि कोई मोटा आदमी गिर पड़े तो सहानुभूति दिखाना तो दूर रहा लोग हँसते-हँसते लोटपोट हो जाएँगे। इससे यह नहीं समझना चाहिए कि मोटे आदमियों का दुनिया में निभाव नहीं। मोटे आदमी बहुधा हँसमुख होते हैं और कई खेलकूद में तेज होते हैं तो कई बुद्धि में। 1921 में आस्ट्रेलियन टीम का कप्तान आर्मस्ट्रांग मोटा था। इंग्लैण्ड जाते समय उसने अपने को पतला करने के लिए जहाज में प्रतिदिन एक से दो घंटे तक कोयला झोंका, मगर जब वह इंग्लैंड आकर पहुँचा तो और मोटा हो गया था। इसी प्रकार लंदन में एक मिस्टर लौंग्ले रहते थे। उनका वजन 40 स्टोन से अधिक था और वे मुक्केबाजी में बड़ी रुचि रखते थे। याल्डन शहर में एडविन ब्राइट नाम का सब्जी बेचने वाला रहता था जिसके मशीन पर चढ़ते ही सुई 44 स्टोन पर चढ़ती थी, जबकि उसकी लम्बाई केवल 5’ 9’’ थी। उसका सीना 66’’, तोंद 83’’, जाँघ 33’’ और डौले 26’ थे। उसे घुड़सवारी का बड़ा शौक था (भगवान घोड़े को बचाए !) उसका कोट इतना बड़ा था कि 7 आदमी बड़ी आसानी से उसमें बन्द किये जा सकते थे।
मोटे बुद्धिमानों की भी कमी नहीं। टॉमस एक्विनास इतना गोल था कि मेज में से एक अर्धवृत्ताकार टुकड़ा काट दिया गया था जिससे वह खाना आराम से खा सके। जी.के. चेस्टरटन पर एक दृष्टि डालते ही पता पड़ा जाता था कि वह कितना मस्तमौला है। नेपोलियन की तोंद गोल हो गई थी और मेराबो भी खूब मोटा था। बाल्जक और ड्यूमा गोश्त के पहाड़ थे। विक्टर ह्यूगो भी गोल और भली-भाँति पेटभरा दीखता था। रोजिनी को पतलून में हिप्पोपोटैमस कहा जाता था। डॉक्टर जान्सन तो हर प्रकार से पहाड़ का पहाड़ था। 


29 जनवरी 2017

युवा को चाहिए बेहतर नेता

ca-pub-6689247369064277

जोश और जुनून से भरे हिन्दुस्तानी नौजवान ने पिछले सत्तर सालों में हर क्षेत्र में निश्चित ही अपनी महत्त्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज करवायी है। दुनिया के विकसित देशों के सामने अपने बुद्धि-कौशल का लोहा मनवाया है। दुनिया के ताकतवर देश हिन्दुस्तानी युवाओं की मेधा को नकारने की स्थिति में नहीं है— उद्योग, व्यापार, ज्ञान, तकनीक, कौशल, खेल और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कई शानदार उपलब्धियां भारत के युवाओं के नाम दर्ज हैं तथा हो रही हैं।
दूसरी तरफ लोकसभा और विधानसभा में हमारे माननीय नेताओं का आचरण दिन-प्रतिदिन शर्मसार कर रहा है। सांसद चाहे वे सरकार का समर्थन करने वाले हैं या विरोध में है, बैनर लहराने या पर्चियां फाडऩे और नारेबाजी करने को लोकतांत्रिक प्रक्रिया का जरूरी हिस्सा मान बैठे हैं। विपक्ष को यह क्यों लगता है कि वह सदन की कार्यवाही जब तक बाधित नहीं करेगा उसकी बात सुनी नहीं जाएगी? सत्तापक्ष का अहंकारपूर्ण रवैया और विपक्ष का अडिय़ल रुख, दोनों ही संसदीय गरिमा को ठेस पहुंचाने वाले हैं। संसद का पिछला सत्र इसी तरह बीत गया।
अधिकांश सांसदों का यही मकसद रह गया कि सदन में कुछ ऐसा किया जाए जो अगले दिन अखबारों की सुर्खियां बने। आप न्यूज में हैं तो जिंदा हैं और नहीं हैं तो कार्यकाल व्यर्थ।
अच्छा भाषण, महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा और बहस तथा मसलों पर स्वाध्यायी सांसदों के तर्क ही कभी खबर बनते थे लेकिन अब मीडिया का ध्यान पूरी तरह से अराजकता और तमाशों पर है। गंभीर चर्चा की न्यूज वैल्यू होनी बन्द हो गई, तमाशे ही चैनलों की टीआरपी बढ़ाते हैं। संसद में विद्वान, स्वाध्यायी और मुद्दों पर राजनीति करने वाले सांसदों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। अकूत धन सम्पदा और ऐश्वर्य के मालिक धनबल के दम पर सदनों में प्रवेश पा जाने में सफल हो रहे हैं। दूसरे, बाहुबली अपराधी और तीसरे वोट बैंकीय जाति समीकरणों के बूते विजय पाए लोग सदन में कोलाहल और कर्कशता पैदा करते रहते हैं।

संकीर्णताओं पर सवार होकर चुनावों में विजय पाए लोगों से विद्वत्ता की अपेक्षा करना ही गलत हो गया है। ऐसों का भारत सिर्फ यहीं तक सीमित है जहां तक इनका वोट बैंक है। क्या इनसे समग्र भारत के मुद्दों पर उद्वेलित होने की उम्मीद की जा सकती है। पंजाब, कश्मीर, मणिपुर और केरल पर उतने ही उद्वेलित होना जितना वह अपने चुनाव क्षेत्र से जुड़े मुद्दे पर होते हैं, ऐसी अपेक्षाएं क्या अनुचित हैं।
संसद में चर्चा-बहसें और मंथन धीरे-धीरे नगण्य होते जा रहे हैं। बहसों का स्थान शोर-शराबों ने ले लिया है। भारत की प्रतिष्ठा पर आंच आएगी तो इसकी तपिश निश्चित ही सबको झुलसाएगी।
यहां चिंता करने वाली बात यह भी है कि इस लोकसभा में हर तीसरा सांसद आपराधिक पृष्ठभूमि वाला है। इस आशय का खुलासा सांसदों द्वारा भरे गए शपथ-पत्रों से होता है। नेशनल इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स ने शपथ-पत्र के विश्लेषण के आधार पर बताया है कि 186 (34 फीसदी) सांसदों के खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास, सांप्रदायिक सौहार्द बिगाडऩे, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे गंभीर मामले दर्ज हैं वहीं 82 फीसदी सांसद करोड़पती हैं।
आपराधिक मुकदमें और धनबल उनकी बुद्धिमत्ता पर सवाल भले ही नहीं उठाता हो, परन्तु यह प्रश्न तो उठता है कि इस देश के नीति-निर्धारकों ने आजादी के लिए लडऩे वालों और लोकतांत्रिक भारत का सपना देखने वालों ने जिस गणतंत्र की कल्पना की थी उस पर हम कितने खरे उतर रहे हैं। संसदीय गरिमा का हनन करने वाले नेताओं और राजनीतिक दलों को यह नहीं भूलना चाहिए कि देश का युवा आपको निरंतर वॉच कर रहा है और आवश्यकता पडऩे पर वह बदलाव की लड़ाई में कूद सकता है।
2012 में जब वयोवद्ध गांधीवादी नेता अन्ना हजारे ने आह्वान किया तो देशभर में नौजवान तिरंगा लेकर भारत की जय बोलता हुआ भ्रष्टाचार के खिलाफ सड़कों पर उतर आया था। जाति, वर्ग, धर्म का भेद किये बिना देशभर के युवकों ने बदलाव के लिए कमर कस ली थी। इससे पहले पिछली सदी के आठवें दशक में भी संपूर्ण क्रांति आंदोलन के दौरान जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर युवा उसी तरह उद्वेलित हुए जिस तरह गांधी, सुभाष और भगतसिंह के आह्वान पर कभी होते थे।
राजनीतिक दलों को यह बात समझने की आवश्यकता है कि वे इक्कीसवीं सदी के भारतीय युवा के सपनों को साकार करने वाला नेतृत्व दें। दल ये भी ध्यान रखें कि मौके-बेमौके देश के युवाओं ने उनके द्वारा दिए गए सीमित विकल्पों के चयन को भी नकारा है। समय का तकाजा है कि सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार के चयन का अवसर मतदाता को दिया जाना चाहिए।
याद रखें, भगतसिंह ने अपने लेख में युवाओं का आह्वान किया कि वे पढे, जरूर पढे पर राजनीति का ज्ञान हासिल करें और जब जरूरत दिखे तो मैदान में कूद पड़ें, अपना जीवन इसी काम में लगा दें।

28 जनवरी 2017

अति-घातक षड़यंत्र!

ca-pub-6689247369064277

अभी कुछ समय पूर्व तक जिन्हें करोड़ों हिन्दू छूने से कतराते थे और उन्हें घर के अन्दर भी आने की मनाही थी, वो असल में चंवरवंश के क्षत्रीय हैं।  यह खुलासा डॉक्टर विजय सोनकर की पुस्तक – हिन्दू चर्ममारी जाति:एक स्वर्णिम गौरवशाली राजवंशीय इतिहास में हुआ है।  इस किताब में उन्होंने लिखा है कि विदेशी विद्वान् कर्नल टॉड ने अपनी पुस्तक राजस्थान का इतिहास में चंवरवंश के बारे में बहुत विस्तार में लिखा है।  इतना ही नहीं महाभारत के अनुशासन पर्व में भी इस वंश का उल्लेख है। वर्ण व्यवस्था को क्रूर और भेद-भाव बनाने वाले हिन्दू हैं, विदेशी आक्रमणकारी थे! उम्मीद है, धीरे धीरे पूरा सच सामने आएगा लेकिन, अभी के लिए हम आपको बताने जा रहे हैं की चमार शब्द आखिर हिन्दू समाज में आया कैसे?
जब भारत पर तुर्कियों का राज था, उस सदी में इस वंश का शासन भारत के पश्चिमी भाग में था।  और उस समय उनके प्रतापी राजा थे चंवर सेन।  इस राज परिवार के वैवाहिक सम्बन्ध बप्पा रावल के वंश के साथ थे। राना सांगा और उनकी पत्नी झाली रानी ने संत रैदासजी जो की चंवरवंश के थे, को मेवाड़ का राजगुरु बनाया था।  यह चित्तोड़ के किले में बाकायदा प्रार्थना करते थे। आज के समाज में जिन्हें चमार बुलाया जाता है, उनका इतिहास में कहीं भी उल्लेख नहीं है।
डॉक्टर विजय सोनकर के अनुसार प्राचीनकाल में ना तो यह शब्द पाया जाता है, ना हीं इस नाम की कोई जाति है।  ऋग्वेद में बुनकरों का उल्लेख तो है, पर वहाँ भी उन्हें चमार नहीं बल्कि तुतुवाय के नाम से सम्भोदित किया गया है।  सोनकर कहते हैं कि चमार शब्द का उपयोग पहली बार सिकंदर लोदी ने किया था।  मुस्लिम अक्रान्ताओं के धार्मिक उत्पीड़न का अहिंसक तरीके से सर्वप्रथम जवाब देने की कोशिश संत रैदास ने की थी।  उन्हें दबाने के लिए सिकंदर लोदी ने बलपूर्वक उन्हें चरम कर्म में धकेल दिया था।  और उन्हें अपमानित करने के लिए पहली बार “ चमार “ शब्द का उपयोग किया था।
सोनकर आगे बताते हैं कि संत रैदास ने सारी दुनिया के सामने मुल्ला सदना फ़क़ीर को शास्त्रार्थ में हरा दिया था।  मुल्ला फ़क़ीर ने तो अपनी हार मान ली और वह हिन्दू बन गए, परन्तु सिकंदर लोदी आग बबूला हो गए।  उन्होंने संत को कारागार में डाल दिया, पर जल्द ही चंवरवंश के वीरों ने दिल्ली को घेर लिया और लोदी को संत को छोड़ना ही पड़ा।
इस वर्तमान पीढ़ी की विडंबना देखिये की हम महान संत के बलिदान से अनभिज्ञ हैं।  कमाल की बात तो यह है कि  इतने ज़ुल्म सहने के बाद भी इस वंश के वीर हिंदु ही बने रहे और उन्होंने इस्लाम को नहीं अपनाया।  गलती हमारे समाज में है।  हम हिन्दुओं को अपने से ज्यादा भरोसा वामपंथियों और अंग्रेजों के लेखन पर है।  उनके कहे झूठ के चलते हमने अपने भाइयों को अछूत बना लिया।
आज हमारा हिन्दू समाज अगर कायम है, तो उसमें बहुत बड़ा बलिदान इस वंश के वीरों का है।  जिन्होंने नीचे काम करना स्वीकार किया, पर इस्लाम नहीं अपनाया।  उस समय या तो आप इस्लाम को अपना सकते थे, या मौत को गले लगा सकते था, अपने जनपद/प्रदेश से भाग सकते थे, या फिर आप वो काम करने को हामी भर सकते थे जो अन्य लोग नहीं करना चाहते थे।  यह पढने के बाद अब तो आपको विश्वास हो जाना चाहिए की हमारे बीच कोई भी चमार  अथवा अछूत नहीं है।

27 जनवरी 2017

भगत सिंह

ca-pub-6689247369064277
भगत सिंह  भारत के पानी ,जोश , हिम्मत और नौजवानी के प्रतीक हैं और भारत का  हर नौजवान उनकी तरह होना चाहेगा । लेकिन वैसा बहादुर होना क्या आसान है ? उसके लिए अपने को शरीर नही बल्कि एक देशप्रेम से ओत प्रोत आत्मा मानना पड़ता है । वैसे तो अंग्रेज़ी हुकूमत में राजद्रोह का आरोप कई लोगों पर लगा था   जैसे गांधी, तिलक, एनी बेसेंट, पर भगत सिंह आपने आप मे बेजोड़ थे। उनको झुकाना आसमान को झुकाने के सामान था। 

आज के दौर के सेकुलरिज्म नेता  ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों  के सामने कन्हैया की तुलना भगत सिंह से करके अपनी बुद्धि का परिचय दे ही दिया। उनके द्वारा भगत सिंह के नाम पर हंसी की लहर दौडाई गई । कॉंग्रेस ने तथाकथित नेता ने भी इसका मज़ा लिया और कहा, 'हां! भगत सिंह उस दौर के कन्हैया ही थे. जो भी राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानेगा उसको बुरा जरूर लगेगा। भारतीय जनता पार्टी को यह तुलना नागवार गुजरी उन्होंने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी कि कहां भगत सिंह, कहां कन्हैया । पर सेकुलरिज्म का चोला ओढ़कर अपनी राजनीती चमकाने वाले चुप रहे। तथाकथित नेता ने भगत सिंह की तुलना करके भगत सिंह का अपमान किया गया । क्रांतिकारी और राष्ट्रप्रेमी भगत सिंह ने देश पर सब कुछ न्योछावर करके और ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाते हुए फांसी का फंदा चूम लिया था। कन्हैया तो जनता के टैक्स के पैसे पर जेएनयू में मौज कर रहा है और देश की पहली राष्ट्रवादी सरकार पर हमले कर रहा है! ( हालांकि भगत सिंह के आख़िरी पलों के ब्योरे में जिस नारे का जिक्र है, वह है : इन्कलाब जिंदाबाद! साम्राज्यवाद का नाश हो! लेकिन राष्ट्रवादियों को कुछ भी कह देने की अनुमति है, उनके लिए तथ्यों को काँट छाँट करने की क्या ज़रूरत ?  अक्सर लोग पिछली पीढ़ी के किशी आदर्श पुरुष को सम्भोदित करते हुए कहते सुने गए है कि अगर वो होते तो  क्या करते ?  क्या वे इस दमनकारी राज्य का विरोध करते या चुप्पी मारकर बैठे रहते ? क्योंकि आज हम आठों पहर भारत माता की जय का नारा लगाते हुए  भी यह सब देख रहे हैं कि भारत माता को गाली दो , देश के खिलाफ जहर उगलो, इसको लूटने की नियत रखो और चर्चित नेता बन जाओ। जवाब हमें खोजना होगा. तभी हम भगत सिंह की किसी से तुलना और उसकी उपयुक्तता पर भी बात कर पाएंगे.

26 जनवरी 2017

भारतीय धर्म संस्कृति

ca-pub-6689247369064277

सांस्कृतिक दृष्टि से प्राचीन भारत की सीमाएं विश्व में दूर-दूर तक फैली हुई थीं। भारत ने राजनीतिक आक्रमण तो कहीं नहीं किए, परंतु सांस्कृतिक दिग्विजय अभियान के लिए भारतीय मनीषी विश्वभर में गए। शायद इसीलिए भारतीय संस्कृति और सभ्यता के चिन्ह विश्व के अधिकतर देशों में मिलते हैं। आज हम आपको बता रहे हैं कि हमारा प्राचीन सांस्कृतिक भारत कहां तक था और जिन धर्मों का जन्म भारत में हुआ वे विश्व में कहां-कहां पहुंचे

ईरान में आर्य संस्कृति का उद्भव 2000 ई. पू. उस वक्त हुआ जब ब्लूचिस्तान के मार्ग से आर्य ईरान पहुंचे और अपनी सभ्यता व संस्कृति का प्रचार वहां किया। उन्हीं के नाम पर इस देश का नाम आर्याना पड़ा। 644 ई. में अरबों ने ईरान पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। प्रथम शताब्दी में कौंडिन्य नामक एक ब्राह्मण ने हिन्दचीन में आर्य संस्कृति की स्थापना की।

वियतनाम का पुराना नाम चम्पा था। दूसरी शताब्दी में स्थापित चम्पा भारतीय संस्कृति का प्रमुख केंद्र था। यहां के चम लोगों ने भारतीय धर्म, भाषा, सभ्यता ग्रहण की थी।

प्रथम शताब्दी में साहसी भारतीयों ने मलयेशिया पहुंचकर वहां के निवासियों को भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति से परिचित करवाया। कालान्तर में मलेशिया में शैव, वैष्णव तथा बौद्ध धर्म का प्रचलन हो गया। 1948 में अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हो यह सम्प्रभुता सम्पन्न राज्य बना।

इंडोनेशिया किसी समय में भारत का एक सम्पन्न राज्य था। आज इंडोनेशिया मुस्लिम बाहुल्य होने के बावजूद यहां के लोग हिन्दू देवी-देवताओं से परंपराओं के माध्यम से जुड़ा है।

अफगानिस्तान 350 ई.पू. तक भारत का एक अंग था। सातवीं शताब्दी में इस्लाम के आगमन के बाद अफगानिस्तान धीरे-धीरे राजनीतिक और बाद में सांस्कृतिक रूप से भारत से अलग हो गया।

कुछ समय पहले तक नेपाल विश्व का एकमात्र हिन्दू राष्ट्र हुआ करता था। इसका एकीकरण गोरखा राजा ने 1769 ई. में किया था। पूर्व में यह प्राय: भारत राष्ट्र का ही अंग रहा है।

प्राचीन काल में भूटान भद्र देश के नाम से जाना जाता था। 8 अगस्त 1949 में भारत-भूटान संधि हुई जिससे स्वतंत्र प्रभुता सम्पन्न भूटान की पहचान बनी।

तिब्बत का उल्लेख हमारे ग्रन्थों में त्रिविष्टप के नाम से आता है। यहां बौद्ध धर्म का प्रचार चौथी शताब्दी में शुरू हुआ। तिब्बत प्राचीन भारत के सांस्कृतिक प्रभाव क्षेत्र में था।

श्रीलंका का प्राचीन नाम ताम्रपर्णी था। श्रीलंका भारत का प्रमुख अंग था। 1505 में पुर्तगाली, 1606 में डच और 1795 में अंग्रेजों ने लंका पर अधिकार किया। 1935 ई. में अंग्रेजों ने लंका को भारत से अलग कर दिया।

अराकान की अनुश्रुतियों के अनुसार यहां का प्रथम राजा वाराणसी का एक राजकुमार था। 1852 में अंग्रेजों का बर्मा पर अधिकार हो गया। 1937 में भारत से इसे अलग कर दिया गया।

15 अगस्त 1947 के पहले पाकिस्तान, भारत का एक अंग था।

बांग्लादेश भी 15 अगस्त 1947 के पहले भारत का अंग था। देश विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान के रूप में यह भारत से अलग हो गया। 1971 में यह पाकिस्तान से भी अलग हो गया और स्वतंत्र देश बना।

इनके अलावा चीन, जापान, मंगोलिया, लाओस, हॉन्गकॉन्ग, ताइवान, मकाउ, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया एवं उत्तर कोरिया विश्व के अनेकों देशों में बौद्ध धर्म का बड़ा प्रभाव है। खास बात यह है कि आज बौद्ध धर्म विश्व का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है और इस धर्म का जन्म ई.पू. छठी शताब्दी में भारत में हुआ था।

सनातन धर्म ऐसा धर्म है जिसमें किसी को यह कहने की आवश्यकता नहीं पड़ती की हमारा धर्म सर्वश्रेष्ठ है जो हमारे धर्म को नहीं मानेगा उसका सिर कलम कर देंगे।

24 जनवरी 2017

आतंकवाद बनाम अध्यात्मवाद

ca-pub-6689247369064277
                               
आज समूची दुनिया बरूद के ढेर पर बैठी है लेकिन यह भी सच्चाई है कि सभी देश एक-दूसरे से युध्द करने से बचते है। संभावनाएं इस बात की अधिक हैं कि भविष्य में युध्द नहीं होगे और यदि होंगे तो नतीजे बहुत खतरनाक होंगे। विश्व के कई देश अनचाहे युध्दों का परिणाम भली-भांति जानते है। भगवान  राम और कृष्ण को भी युध्द करना पड़ा लेकिन ऐसा नहीं कि वे किसी भी प्रकार के युध्द के पक्ष में थे। आज की ज्वलंत समस्या कट्टरवाद है, जिसका परिणाम आतंकवाद के रूप मे हम सबके सामने है। कट्टरवाद दिशाहीन परिस्थितियों का परिणाम है। आतकवाद के बढ़ने के कई कारण हैं। आतंकवाद को अकेले हथियारों के बल पर समाप्त नहीं किया जा सकता। आतंकवाद को खत्म करने के लिए इस दिशा में संलिप्त लोगों के जहन को बदलने की जरूरत है और यह कार्य करने के लिए विभिन्न प्रकार की संस्थाएं जो सुधार के कार्य में दिन-रात जुटी हैं वे लोगों की नब्ज समझकर बेहतर कार्य कर सकती हैं ।  समाज में ऐसे कई उदाहरण हैं जिनके दृष्टिगत बड़े-बड़े अपराधी भी मुख्यधारा मे लौटे  हैं।और उन्होंने समाजसेवा का व्रत धारण करते हुए अनुकरणीय कार्य किए हैं। आज कट्टरवाद को हिंसामुक्त समाज की स्थापना करना होना चाहिए ,न कि दूसरे निर्दोष लोगों की हत्या। कोई भी धर्म लोगों को सामाजिक व्यवस्था पर आधारित मर्यादाएं और वर्जनाएं तोड़ने की बात नहीं कहता । लेकिन राह से भटके लोगों को सही रास्ते पर लाने के लिए अध्यात्मिक सहजता का दामन हमेशा कारगर रहता है।  उन्होंने कहा कि जो लोग समझाने से नहीं समझते उनके लिए सजा का प्रावधान भी सही है। स्वभाव में काम, क्रोध, लोभ, मोह, अंहकार जैसे विकार जब मनुष्य की बुध्दि पर भारी पड़ते है  तो कहीं न कहीं नुकसान की स्थिति न केवल सम्बंधित के लिए बल्कि समूचे समाज के लिए आ खड़ी होती है । जिसका निराकरण अध्यात्मवाद में आसानी से खोजा जा सकता है। बदलते परिवेश में यह कार्य सबको मिलकर करने की जरुरत है। गीता युध्द की प्रेरक नही बल्कि गीता युध्द में शांति की प्रेरक है। इसके श्लोकों में समाहित संदेश को अंगीकृत करके समाज के हर धर्म को रचनात्मक और सृजनात्मक दिशा लेने की जरुरत है।  हिंसा युध्द में ही नहीं होती बल्कि विचाराें,आचरण, व्यवहार और शाद्विक बाणों में भी जब हिंसा झलकती है तो बड़ी-बड़ी घाटनाएं और युध्द के रूप मे सामने आती है।  समाज के समुचित संवर्धन और राष्ट्र के विकास के लिए समाज के हर व्यक्ति को अपने स्वभाव में बदलाव लाकर आपसी समन्वय, सांमजस्य के समायोजन के साथ वृहत पैमाने पर काम करने की जरुरत है। 

22 जनवरी 2017

भेदभाव

ca-pub-6689247369064277
भेदभाव में अक्सर किसी व्यक्ति को केवल उसके वर्ग के आधार पर अवसरों, स्थानों, अधिकारों और अन्य चीज़ों से वंछित कर दिया जाता है। भेदभावी परम्पराएँ, नीतियाँ, विचार, क़ानून और रीतियाँ बहुत से समाजों, देशों और संस्थाओं में हैं और अक्सर यह वहाँ भी मिलती हैं जहाँ औपचारिक रूप से भेदभाव को न्यायिक रूप से वर्जित या अनौचित्य समझा जाता है।
हिंदुस्तान में कहा जाता है कि सभी के लिए कानून एक समान है, किसी से भेदभाव नहीं किया जाता. लेकिन क्या ये सिर्फ एक झूठा डायलाग बनकर रह गया है। भारत में बकरीद पर बैन लगाया नहीं जाता जिसमें खुलेआम करोड़ों जीवों को मार दिया जाता है। बकरीद पर खून की नदियाँ बहा दी जाती है. कई बार कई लोग बकरीद पर जानवरों के कत्लेआम को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुकें लेकिन आजतक इन याचिकायों पर कोई कार्यवाई नहीं की गईं है । सलमान खान जैसों के केस सालों साल चलते हैं लेकिन उनको ज़मानत साथ साथ मिल जाती है । याकूब मेनन जैसों के लिए कोर्ट आधी रात खुल सकती हैं पर साध्वी प्रज्ञा के लिए इंसाफ़ कहा है ? कौन करेगा इंसाफ़ ?

जल्लीकटूट को बंद करने के लिए सुप्रीमकोर्ट में याचिका दायर की गईं तो उसपर तुरंत सुनवाई हुई और सुप्रीमकोर्ट ने जल्लीकटूट पर रोक लगा दी. ये है देश का कानून ? बकरीद जैसे हिंसात्मक त्यौहार पर बैन लगाया नहीं जाता और जल्लीकटूट जैसे अहिंसात्मक त्यौहार पर बैन में लगाने में एक सेकंड नहीं लगाते। अगर जल्लीकटूट जीव के प्रति अत्याचार है तो बकरीद क्या भाईचारे और शांति का प्रतीक है?  भारत में जल्लीकटूट बैन, दही हांडी बैन, होली पर पानी बहाना बैन, कावड़ में डीजे बैन, दिवाली पर पटाखे जलाने पर बैन और ना जाने भारत के मुख्य त्योहारों पर क्या क्या बैन कर दिया जाता है । लेकिन  बकरीद जैसे हिंसात्मक त्यौहार पर बैन नहीं लगाया जाता जिसमे करोड़ों बेजुबान जानवरो की बलि चढ़ा दी जाती है. ये कैसा कानून है ?  क्या ये  न्याय है ?



























21 जनवरी 2017

Graceful to God

ca-pub-6689247369064277.                                 In this life,we are enjoying many comforts. Most of us are fortunate in having all our basic needs duly fulfilled. for example, we have got a house to live in, clothes to wear, water to drink,family to share our joy and sorrows,neighbours to fulfil our social needs, a job for earning livelihood and keep us busy and good health to carry out our activity fr 70 to 80 years. But have we ever pondered as to by whose grace are we enjoying all these?  Was it within our power or for that matter, within the power of any of the human beings on the earth to provide such large life sustaining insfracture for us? Certainly not. All this miraculous setup for our comfortable living can only be created  and sustained by the  Almighty God. So then, is it not our sacred duty to thank and be graceful to God while availing his Grace?              In fact, it is a sin to enjoy and benefit without ever bothering as to who is the source of these enjoyments. Just going on enjoying comforts of life without ever stopping to think of the merciful God is highly selfish on our part as a human being. One should cinstantly be graceful to God for the slightest comfort and luxary one is enjoying or availibg in his life. Going one step further,one should also be thankful to the person who has becone God's Nimmit or agent in providing help to you or fullfiling your need. The very face that he has agreed to become God's Nimmit is enough to think him.

20 जनवरी 2017

दोगलेपन की सजा

ca-pub-6689247369064277
वैसे भी किसी व्‍यक्ति के मरने के बाद चाहे वह अच्‍छा हो या बुरा, लोग उसे श्रद्धांजलि देने के लिए फूल ही चढ़ाते हैं, लेकिन उत्‍तरप्रदेश में एक ऐसा भी शख्‍स हुआ है जिसकी कब्र पर फूल नहीं चढ़ाए जाते। इस कब्र पर लोग जूते मारते हैं। ये कब्र भोलू सैय्यद की। यहां लोग फूल, अगरबत्‍ती से नहीं बल्कि जूतों से जियारत करते हैं और कब्र को जूतों से पीटकर मन्‍नत पूरी करते हैं।  यूपी में इटावा जिले से तकरीबन तीन किलोमीटर दूर इटावा-बरेली राजमार्ग पर है भोलू सैय्यद का यह 500 साल पुराना मकबरा। माना जाता है कि एक बार इटावा के बादशाह ने अटेरी के राजा के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। युद्ध के बाद में इटावा के बादशाह को पता चला कि इस युद्ध के लिए उसका दरबारी भोलू सैय्यद जिम्मेदार था। 

इससे नाराज बादशाह ने ऐलान किया कि सैय्यद को इस दगाबाजी के लिए तब तक जूतों से पीटा जाए जब तक कि उसकी मौत न हो जाए। सैय्यद की मौत के बाद से ही उसकी कब्र पर जूते मारने की परंपरा चली आ रही है। नीय लोगों की मान्यता है कि इटावा-बरेली मार्ग पर अपनी तथा परिवार की सुरक्षित यात्रा के लिए सैय्यद की कब्र पर कम से कम पांच जूते मारना जरूरी है। भोलू सैय्यद की कब्र पर जूते-चप्पल मारकर वहां से गुजरने वाले यात्री सुरक्षित यात्रा के लिए जियारत करते हैं।  

19 जनवरी 2017

दुनिया के सबसे छोटे देश

ca-pub-6689247369064277

GRENADA - 344 KM²

MALTA - 316 KM²

MALDIVES - 300 KM²

SAINT KITTS AND NEVIS - 261 KM²

LIECHTENSTEIN - 160 KM²


SAN MARINO - 61 KM²

TUVALU - 26 KM²

NAURU - 21 KM²

MONACO - 2 KM²









18 जनवरी 2017

नाथूराम गोडसे

ca-pub-6689247369064277
दोस्तो जब नाथूराम गोडसे ने यह बयान कोर्ट के सामने दिए थे तब वहां उपस्थित लोगों की आँखों मे पानी आ गया था ।कुछ लोग तो वहां रोने लगे थे।  वहां पर उपस्थित जज महोदय को कहना पड़ा कि वहां पर उपस्थित लोगों को यदि जूरी बना दिया जाता तो निःसंदेह फैसला नाथूराम गोडसे के ही पक्ष मे आता।

नाथूराम जी ने अपने बयान में कहा था – ” सम्मान ,कर्तव्य और अपने देश वासियों के प्रति प्यार कभी कभी हमें अहिंसा के सिद्धांत से हटने के लिए बाध्य कर देता है  । में कभी यह नहीं मान सकता की किसी आक्रामकता  का सशस्त्र  प्रतिरोध करना कभी गलत या अन्याय पूर्ण भी हो सकता है ।
प्रतिरोध करने और  शत्रु को बलपूर्वक वश में करनने को मैं एक धार्मिक और नैतिक कर्तव्य मानता हूँ . मुसलमान अपनी मनमानी कर रहे हों ।या तो कांग्रेस उनकी इच्छा के सामने आत्मसर्पण कर दे और उनकी सनक ,मनमानी और आदिम रवैये के स्वर में स्वर मिलाये या फिर उनके बिना काम चलाये।.महात्मा गांधी अकेले ही प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति के निर्णायक थे।
महात्मा गाँधी अपने लिए जूरी और जज दोनों थे .गाँधी जी ने मुस्लिमों को खुश करने के लिए हिंदी भाषा के सौंदर्य और सुन्दरता के साथ बलात्कार किया। गाँधी जी के सारे प्रयोग केवल और केवल हिन्दुओ
की कीमत पर किये जाते थे। जो कांग्रेस अपनी देश भक्ति और समाज वाद का दंभ भरा करती थी . उसी ने गुप्त रूप से बन्दुक की नोक पर पाकिस्तान को स्वीकार कर लिया और जिन्ना के सामने नीचता से
आत्मसमर्पण कर दिया।
मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के कारण भारत माता के टुकड़े कर दिए गए और 15 अगस्त 1947 के बाद देश का एक तिहाई भाग भारतीय हिन्दुओं के लिए ही विदेशी भूमि बन गया । नेहरु और उनके चाटुकार की स्वीकारोक्ति  से ही एक धर्म के आधार पर अलग राज्य बना दिया गया .इसी को वे बलिदानों द्वारा जीती गई स्वतंत्रता कहते है। और, किसका बलिदान ? 
जब कांग्रेस के शीर्ष नेताओ ने गाँधी जी के सहमती से इस देश को काट डाला ,जिसे हम पूजा की वस्तु मानते है और जिसको खंडित और लुटते हुए हमारे पूर्वज सदियों से ये तमाशा देख चुके थे आज हमको आर्यव्रत को फिर विभक्त होते देखना भुत कष्टकारी था। ये देखकर मेरा मस्तिष्क भयंकर क्रोध से भर गया .मैं निडर और देशप्रेम से ओतप्रोत होकर साहस पूर्वक कहता हूँ की गाँधी अपने कर्तव्य में असफल हो गए। उन्होंने स्वयं को पाकिस्तान का पिता होना सिद्ध किया।
मैं कहता हूँ की मेरी गोलियां एक ऐसे व्यक्ति पर चलाई गई थी ,जिसकी नीतियों और कार्यो से करोड़ों हिन्दुओं को केवल बर्बादी और विनाश ही मिला। ऐसी कोई क़ानूनी प्रक्रिया नहीं थी जिसके द्वारा उनको उस  अपराधी को सजा दिलाई जा सके, इसीलिए मैंने इस घातक रास्ते का अनुसरण किया।
मैं अपने लिए माफ़ी की गुजारिश नहीं करूँगा ,जो मैंने किया उस पर मुझे गर्व है . मुझे कोई संदेह नहीं है की इतिहास के इमानदार लेखक मेरे कार्य का वजन तोल कर भविष्य में किसी दिन इसका सही मूल्यांकन करेंगे। जय हिन्द

17 जनवरी 2017

अनोखा गाँव,सभी बोलते हैं संस्कृत

ca-pub-6689247369064277

कर्नाटक का मत्तूरु भारत का अनोखा गांव है। चाहे हिंदू हो या मुसलमान, इस गांव में रहने वाले सभी लोग संस्कृत में ही बातें करते हैं। यूं तो आसपास के गांवों में लोग कन्नड़ भाषा बोलते हैं, लेकिन यहां ऐसा नहीं है। तुंग नदी के किनारे बसा ये गांव बेंगलुरु से 300 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस गांव में संस्कृत प्राचीन काल से ही बोली जाती है। हालांकि, बाद में यहां के लोग भी कन्नड़ भाषा बोलने लगे थे, 1981-82 तक यहाँ कन्नड़ ही बोली जाती थी लेकिन 33 साल पहले पेजावर मठ के स्वामी ने इसे संस्कृत भाषी गांव बनाने का आह्वान किया था। और मात्र 10 दिनों तक 2 घंटे के अभ्यास से पूरा गाँव संस्कृत में बात करने लगा था। इसके बाद से सारे लोग आपस में संस्कृत में बातें करने लगे। मत्तूरु गांव में 500 से ज्यादा परिवार रहते हैं, जिनकी संख्या तकरीबन 3500 के आसपास है। वर्तमान में यहाँ के सभी निवासी संस्कृत समझते है और अधिकांश निवासी संस्कृत में ही बात करते है। इस गाँव में संस्कृत भाषा के क्रेज़ का अनुमान आप इसी बात से लगा सकते है की वर्तमान में स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों में से लगभग आधे प्रथम भाषा के रूप में संस्कृत पढ़ रहे है।

16 जनवरी 2017

भारतवर्ष

ca-pub-6689247369064277
पुराणों और वेदों के अनुसार धरती के सात द्वीप थे- जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौंच, शाक एवं पुष्कर। इसमें से जम्बू द्वीप सभी के बीचोबीच स्थित है। पहले संपूर्ण हिन्दू जाति जम्बू द्वीप पर शासन करती थी। फिर उसका शासन घटकर भारतवर्ष तक सीमित हो गया। जम्बू द्वीप के 9 खंड थे :- इलावृत, भद्राश्व, किंपुरुष, भरत, हरि, केतुमाल, रम्यक, कुरु और हिरण्यमय।
इसमें से भरत खंड को ही भारतवर्ष कहते हैं जिसका नाम पहले अजनाभ खंड था। इस भरत खंड के भी नौ खंड थे-  इन्द्रद्वीप, कसेरु, ताम्रपर्ण, गभस्तिमान, नागद्वीप, सौम्य, गंधर्व और वारुण तथा यह समुद्र से घिरा हुआ द्वीप उनमें नौवां है। इस संपूर्ण क्षेत्र को महान सम्राट भरत के पिता, पितामह और भरत के वंशों ने बसाया था।
यह भारत वर्ष अफगानिस्तान के हिन्दुकुश पर्वतमाला से अरुणाचल की पर्वत माला और कश्मीर की हिमाल की चोटियों से कन्याकुमारी तक फैला था। दूसरी और यह हिन्दूकुश से अरब सागर तक और अरुणाचल से बर्मा तक फैला था। इसके अंतर्गत वर्तमामान के अफगानिस्तान बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, बर्मा, श्रीलंका, थाईलैंड, इंडोनेशिया और मलेशिया आदि देश आते थे। इसके प्रमाण आज भी मौजूद हैं।
इस भरत खंड में कुरु, पांचाल, पुण्ड्र, कलिंग, मगध, दक्षिणात्य, अपरान्तदेशवासी, सौराष्ट्रगण, तहा शूर, आभीर, अर्बुदगण, कारूष, मालव, पारियात्र, सौवीर, सन्धव, हूण, शाल्व, कोशल, मद्र, आराम, अम्बष्ठ और पारसी गण आदि रहते हैं। इसके पूर्वी भाग में किरात और पश्चिमी भाग में यवन बसे हुए थे 
त्रेतायुग में अर्थात भगवान राम के काल के हजारों वर्ष पूर्व प्रथम मनु स्वायंभुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने इस भारतवर्ष को बसाया था, तब इसका नाम कुछ और था।
AdTech Ad
वायु पुराण के अनुसार महाराज प्रियव्रत का अपना कोई पुत्र नहीं था तो उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था जिसका लड़का नाभि था। नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम ऋषभ था। इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे तथा इन्हीं भरत के नाम पर इस देश का नाम ‘भारतवर्ष’ पड़ा। हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि राम के कुल में पूर्व में जो भरत हुए उनके नाम पर भारतवर्ष नाम पड़ा। यहां बता दें कि पुरुवंश के राजा दुष्यंत और शकुन्तला के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष नहीं पड़ा।
इस भूमि का चयन करने का कारण था कि प्राचीनकाल में जम्बू द्वीप ही एकमात्र ऐसा द्वीप था, जहां रहने के लिए उचित वातारवण था और उसमें भी भारतवर्ष की जलवायु सबसे उत्तम थी। यहीं विवस्ता नदी के पास स्वायंभुव मनु और उनकी पत्नी शतरूपा निवास करते थे।
राजा प्रियव्रत ने अपनी पुत्री के 10 पुत्रों में से 7 को संपूर्ण धरती के 7 महाद्वीपों का राजा बनाया दिया था और अग्नीन्ध्र को जम्बू द्वीप का राजा बना दिया था। इस प्रकार राजा भरत ने जो क्षेत्र अपने पुत्र सुमति को दिया वह भारतवर्ष कहलाया। भारतवर्ष अर्थात भरत राजा का क्षे‍त्र।
भरत एक प्रतापी राजा एवं महान भक्त थे। श्रीमद्भागवत के पञ्चम स्कंध एवं जैन ग्रंथों में उनके जीवन एवं अन्य जन्मों का वर्णन आता है। महाभारत के अनुसार भरत का साम्राज्य संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में व्याप्त था जिसमें वर्तमान भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिज्तान, तुर्कमेनिस्तान तथा फारस आदि क्षेत्र शामिल थे।

15 जनवरी 2017

रोज 30 रुपए बचाकर करोड़पति

ca-pub-6689247369064277

पैसे का शौक किसे नहीं होता। नौकरी शुरू करने के बाद पैसे खर्च करने से पहले पैसे बचाने के बारे में ज्यादातर युवा सोचते हैं। लेकिन बहुत सारे लोग पैसे को कैसे और कहां निवेश करें इसके बारे में नहीं पता होता है। ऐसे में आज हम आपको बता रहे हैं कैसे आप रोज 30 रुपये बचाकर करोड़पति बन सकते हैं।दरअसल लंबी अवधि के निवेश में कंपाडंउिंग यानी चक्रवृद्धि ब्‍याज आपके छोटे निवेश को बड़ा बना देता है।

कहां करना होगा निवेश

अगर आप 20 साल के हैं तो रोज 30 रुपए बचा कर आप महीने में 900 रुपए बचा सकते हैं। अब 900 रुपए हर माह सिस्‍टमैटिक इन्‍वेस्‍टमेंट प्‍लान (एसआईपी) के जरिए किसी भी डायवर्सिफाइड म्यूचुअल फंड में निवेश करें।
कुछ ऐसे समझिए इसे
– आप इस फॉर्मूले को उदाहरण के जरिये समझ सकते हैं।
– श्याम 20 वर्ष का युवा है वह रोज 30 रुपए बचाता है।
– माह के अंत में श्याम 900 रुपए डायवर्सिफाइड म्‍यूचुअल फंड में इन्‍वेस्‍ट करता है।


   म्‍यूचुअल फंड सालाना 12.5 फीसदी रिटर्न देता है।

– अगर श्याम यह प्रॉसेस 40 वर्ष तक जारी रखता है तो वह 60 वर्ष की उम्र में करोड़पति बन    जाएगा।
क्या है रिटर्न कैलकुलेट करने का तरीका
– शुरुआती निवेश राशि 900 रुपए
– मासिक निवेश 900 रुपए
– सालाना रिटर्न 12.5 फीसदी
– निवेश की अवधि 40 वर्ष
– कुल राशि 1,01,55,160 रुपए
   95 रुपए रोज बचा कर 30 साल में बन सकते हैं करोड़पति
– करोड़पति बनने का मौका अधिक उम्र के लोगों के लिए भी है।
– अगर आपकी उम्र 30 वर्ष है तो आपको रोज 95 रुपए बचाने होंगे।
– उम्र बढ़ने के साथ निवेश की अवधि कम हो जाती है तो सेविंग बढ़ाने की जरूरत होती है।
– समान निवेश पैटर्न और सालाना 12.5 फीसदी अनुमानित रिटर्न के साथ 60 वर्ष की उम्र में आप          करोड़पति बन जाएंगे।

14 जनवरी 2017

दर-दर की ठोकरों ने बना दिया एशिया का अमीर व्यक्ति

ca-pub-6689247369064277

दुनिया में ऐसे कई सारे लोग होंगें जो जिंदगी में नौकरी पाने की जदोजहद करते हैं। कुछ लोगों को वक़्त पर अच्छी नौकरी मिल जाती है तो कुछ लोग अच्छी नौकरी ढूंढने में अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण वक़्त खो देते हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते जो अपनी असफलताओं को ही अपना औजार बना खुद की कंपनी खोलने के बारे में सोचते हैं। आज की कहानी एक ऐसे ही शख्स के बारे में है जो काफी जुनूनी, मेहनती, काम करने के लिए एक हद तक पागल है, और आज उनकी कामयाबी की पूरी दुनिया दीवानी है।
आपको यह जानकार हैरानी होगा कि इस शख्स को एक वक़्त पर 30 से ज्यादा कंपनियों ने रिजेक्ट कर दिया था लेकिन आज ये एशिया के सबसे अमीर व्यक्ति हैं। अलीबाबा समूह के मालिक जैक मा की। जैक मा का जन्म चीन के ज़ेजिआंग प्रान्त के हन्हाजु गाँव में हुआ था। जैक मा के माता-पिता का पारम्परिक गाकर बजाकर कहानियां सुनाने का काम किया करते थे। जैक मा को बचपन से ही अंग्रेजी सीखने की इच्छा हो गयी थी ,इसलिए वो प्रतिदिन सुबह साइकिल से पास की होटल पर जाते थे जहा अक्सर विदेशी नागरिक ठहरते थे।परिवार की कमजोर आर्थिक हालत की वजह से, जैक मा को अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा। आप को यह जानकार हैरानी होगी कि इस प्रतिभाशाली शख्स को दो बार अपनी प्राथमिक विद्यालय परीक्षा और तीन बार मिडिल स्कूल में विफल होना पड़ा था।  लेकिन यह उनकी विफलताओं का अंत नहीं था। हाई स्कूल की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए आवेदन किया था लेकिन फिर से प्रवेश परीक्षा में विफल हो गए। 
हालांकि, वह सफलतापूर्वक अंग्रेजी में स्नातक की डिग्री हासिल की। 1988 में स्नातक स्तर की पढ़ाई के बाद उन्होंने 30 विभिन्न नौकरियों के लिए आवेदन किया है और उनमें से सभी ने खारिज कर दिया है। बहुत संघर्ष के बाद, वह अंत में एक स्थानीय विश्वविद्यालय में 800 प्रति महीने की मामूली तनख्वाह पर नौकरी कर ली। जैक मा का अंग्रेजी अनुवाद करने में अच्छी पकड़ थी और एक अनुवादक के रूप में साल 1995 में उन्हें अमेरिका की यात्रा करने का मौका मिला और वहां उनकी मुलाकात इंटरनेट नाम की एक अनोखी चीज़ से हुई। एक व्यापक अनुसंधान के बाद जैक मा को एहसास हुआ कि इंटरनेट के माध्यम से बहुत कुछ दुनिया के सामने पेश की जा सकती है अप्रैल 1995 में, उन्होंने अपनी पत्नी के साथ मिलकर अपनी पहली कंपनी शुरू की। छोटी कंपनियों के लिए वेबसाइट बनाने का काम उन्होंने 20,000 डॉलर में शुरू किया। सिर्फ तीन साल के भीतर, वह 800,000 डॉलर का लाभ कमाने में सफल रहे। यह उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। शुरुआती सफलता से प्रेरित होकर उन्होंने अन्य क्षेत्रों में कारोबार का विस्तार करने का निर्णय लिया और इस तरह अलीबाबा समूह का जन्म हुआ
अलीबाबा समूह चीन की पहली B2B कंपनी है जो दुनिया की सबसे बड़ी इ-कॉमर्स वेबसाइट है। आंकड़ें की सुनें तो प्रतिदिन 100 मिलियन से ज्यादा लोग यहाँ खरीददारी करते हैं। इतना ही नहीं यह कंपनी दुनिया भर के 190 कंपनियों से साथ भी जुड़ी हुई है। यही नहीं, चीन में ट्विटर जैसी सोशल मीडिया सिना वाइबो में भी इस कंपनी की बड़ी हिस्सेदारी है, इसके साथ ही यूट्यूब जैसी वीडियो शेयरिंग चीनी वेबसाइट में भी इसकी अहम हिस्सेदारी है. ये कंपनियां मार्केटिंग, क्लाउड कंप्यूटिंग और लोजिस्ट सेवाएं देती हैं। भारत में भी मशहूर मोबाइल ब्राउज़र यूसी भी अलीबाबा का ही उत्पाद है। टाइम मैगज़ीन द्वारा जैक मा को विश्व के “100 सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों” की सूची में रखा गया और वे एशिया के सबसे अमीर व्यक्ति हैं।
अलीबाबा कंपनी जिसकी शुरुआत महज़ 18 लोग काम शुरू कर किये थे और आज यह करीब 22 हजार से ज्यादा लोगों को रोजगार मुहैया करा रही।

13 जनवरी 2017

भोजन और व्यक्तित्व

ca-pub-6689247369064277

दुनिया में सबकी पसंद के हिसाब से सबके खाने की इच्छा भी अलग होती हैं। किसी को शाकाहारी खाना पसंद है, तो कोई माँसाहार खाना पसंद करता है। ये बताने की ज़रूरत नहीं कि सभी के परिवेश के हिसाब से उनकी खाने की पसंद-नापंसद तय होती है। लेकिन ऐसी क्या वजह है कि दुनिया में सभी शाकाहारी लोग, बाकि मांसाहारियों को 'अधार्मिक' और 'ग़लत' समझते हैं, सिर्फ़ इसलिए क्योंकि उनकी खाने की पसंद 'मांस' है? अपने देश में अधिकतर लोगों को ये लगता है कि माँसाहारी  'बुरे लोग होते हैं और शाकाहारी लोग अच्छे। लकिन दुनिया मे कुछ ऐसे भी विवादास्पद लोग रहे हैं जो माँसाहारी न होकर शाकाहारी थे। उनमें से कुछ नाम है - 
 हिटलर:- लाखों Jews का नरसंहार करने वाले हिटलर के समर्थक ये कभी नहीं मानते कि वो एक शाकाहारी था, लेकिन सच्चाई ये है कि हिटलर किसी वजह से शाकाहारी बना था.।वजह थी गेली रूबल । वो वैसे तो रिश्ते में उसकी दूर की बेटी लगती थी, पर दोनों के बीच में अफेयर शुरू हुआ था। सब तरफ़ ये चर्चे आम थे कि हिटलर का उसकी भांजी से ही रोमांस चल रहा है। दोनों दो साल तक साथ रहे, जब उनकी लाइफ़ में किसी लड़की ऐवा ब्रॉउन की एंट्री हुई. तब उसकी अपनी भांजी के बीच काफ़ी बहस हुई। कहते हैं कि हिटलर गेली के ऊपर खूब चिल्लाता था। एक दिन दोनों के बीच इस बात पर लड़ाई हुई कि गेली थोड़े टाइम के लिए अकेले वेनिस में बिताना चाहती है। लेकिन हिटलर ने साफ़ मना कर दिया। वो गुस्से में घर से ये बोलता हुआ निकला कि मे 'आखरी बार बोल रहां हूं कि तुमको नहीं' जाना है। उसके कुछ ही देर में मैं गेली ने गोली मार कर आत्महत्या कर ली। इस घटना के बाद से ही हिटलर ने मांस का त्याग कर दिया और तब से वो शाकाहारी बन गया था। क्योंकि उसको मीट गेली के शरीर का हिस्सा लगता था।

चंगेज़ खान:- दुनिया के सबसे बड़े खतरनाक हत्यारों मे से एक  चेंगेज़ खान ने छोटी उम्र में ही अपने 13 साल के भाई, बख्तर का क़त्ल कर दिया था।  माना जाता है कि उसने अपने बेटे जोची को भी मार डाला था। लेकिन वो शाकाहारी था, तो कई लोग उसे ग़लत नहीं मानेंगे. इतिहास में सबसे बड़े हत्यारे के रूप में कुख्यात, चेंगेज़ खान ने एक घंटे में सत्रह लाख अड़तालीस हज़ार लोगों को मरवा डाला था। शाकाहारी होने पर भी कोई उसको अच्छा नही कह सकता, हाँ इतना जरूर था वह जानवरों की हत्या को सही नही मानता था। शाकाहारी होने के बाद भी वो वो हत्यारा भी था और बलात्कारी भी। एशिया की कुल जनसख्या में से आठ प्रतिशत लोगों में उसके जीन्स बताये जाते है।

 पोल पॉट:- अपने जीवन में दो करोड़ लोगों को मारने वाला पोल पॉट एक शाकाहारी था। कंबोडिया के इस हत्यारे ने पैसे कमाने के लिए रबर प्लांट्स में कई लोगों को जबरन गुलाम बना कर काम करवाया। इन पैसों से उसने गुंडों की एक पार्टी भी बनायी। जिसने 1975 में वहां की राजधानी पर कब्ज़ा कर लिया। सरकार बनायी और कम्बोडिया का नाम बदलकर डेमोक्रेटिक कम्पुचेया कर दिया। कम्बोडिया की राजधानी में उस समय कई रिफ्यूजी रहते थे, लेकिन इसकी सरकार ने एक ही झटके ने इन सबको को बॉर्डर के बाहर निकाल दिया, बिना ये सोचे कि कितनी इंसानी जिंदगियां इसकी वजह से बर्बाद हो जाएंगी। उसने कई सरकारी अफ़सरों को मरवा  डाला। कंबोडिया की आठ करोड़ जनसंख्या में, उसने दो करोड़ लोगों को मरवा डाला। इसकी सरकार ने लोगों को जबरन घर से बाहर निकलवा कर उन्हीं से उनकी कब्र खुदवाई, फिर उन्हें डंडों से पीट कर मारा जाता था और उसी कब्र में डाला जाता. था । पोल पॉट के गुंडे कहते थे कि जब कब्र हैं, तो गोलियां क्यों बर्बाद करनी?


चार्ल्स मैनसन :- 1934 में एक ऐसे आदमी का जन्म हुआ, जिसका नाम था चार्ल्स मैनसन। ये आदमी ख़ुद को वीगन और एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट कहा करता था।  यह कहता था कि दुनिया एक दिन ख़त्म हो जाएगी और (इसाई मान्यताओं के अनुसार) जीसस क्राइस्ट फिर से वापस आएंगे। इस सोच से उसने उसने कई लोगों को अपना भक्त बना लिया था। लोग उसे भगवान मानते थे और उसके कहे अनुसार ख़ुद की ज़िन्दगी ख़ुशी-ख़ुशी ख़त्म कर लेते थे। चार्ल्स और उसके इस सनकी ग्रुप को द फॅमिली के नाम से बुलाया जाने लगा। बाद में इन लोगों ने प्रकृति और धरती को बचाने के नाम पर ऐसे क़त्ल किये कि पूरी दुनिया दहल गयी।


इन सभी लोगों की कहानी बताने का मकसद किसी ख़ास फ़ूड चॉइस को अपनाने वाले लोगों पर कमेंट करने का इरादा नहीं, बल्कि बस ये बताना था कि इंसान क्या खाता है, इससे आप उसके व्यक्तित्व का अंदाज़ा नहीं लगा सकते। किसी की पहचान करने का तरीका उसका व्यवहार होता है। 



11 जनवरी 2017

नेता

ca-pub-6689247369064277
नेतृत्व मुख्य रूप से कार्यों को करने या संभव बनाने का विज्ञान है। लेकिन मुझे लगता है कि हमारे देश में स्थिति उल्टी है। यहां अगर आप काम को होने से रोक सकते हैं तो आप नेता बन सकते हैं। अगर आप काम-काज ठप्प करा सकते हैं, शहर बंद कर सकते हैं, सडक़ रोको, रेल रोको जैसे आंदोलन सफल करा सकते हैं, तो इसका मतलब है कि आप नेता बन सकते हैं। दुर्भाग्य की बात है कि देश को रोकने की कला नेता बना रही है। आखिर नेता बनने का मतलब क्या है? कोई भी शख्स तब तक खुद को नेता नहीं कह सकता, जब तक कि उसके जीवन में कोई ऐसा लक्ष्य न हो जो उससे भी बड़ा हो। 

अपनी व्यक्तिगत जीवन-यापन की चिंताओं से परे जाकर वह जीवन को एक बड़े फ लक पर देख रहा होता है। नेता का मतलब है: एक ऐसा व्यक्ति जो उन चीजों को देख और कर सकता है, जो दूसरे लोग खुद के लिए नहीं कर सकते। ऐसा न हो तो आपको नेता की जरूरत ही नहीं है। अगर एक नेता भी वही चीजें कर रहा है, जो हर कोई कर रहा है तो आपको नेता की जरूरत ही नहीं है। अगर उसकी भी वही सोच है जो हर किसी की है तो आपको नेता की जरूरत ही नहीं है। तब तो नेताओं के बिना हम और बेहतर कर सकते हैं। नेता की उपस्थिति इसलिए जरूरी हो जाती है, क्योंकि लोग सामूहिक रूप से जहां पहुंचना चाहते हैं, वहां पहुंच नहीं पा रहे। वे पहुंचना तो चाह रहे हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता कि वहां तक पहुंचा कैसे जाए। इसीलिए एक नेता जरूरी हो जाता है।

10 जनवरी 2017

ताजमहल

ca-pub-6689247369064277
आपने प्यार की निशानी ताजमहल को तो देखा ही होगा और इसके पीछे की कहानी के बारे में भी जानते होंगे। आपको यह पता होगा कि शाहजहां ने इसे अपनी बेगम मुमताज की याद में बनवाया था लोग इस अजूबे को देखने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी यहां आते हैं लेकिन आज हम आपको बता रहे हैं ताजमहल के बारे में एक ऐसी बात जिसे जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे 

अगर हम आपसे कहें कि आगरा का ताजमहल तीन बार बिक चुका है तो शायद ही आपको यकीन होगा जी हां आगरा का ताजमहल तीन बार बेचा जा चुका है और ये कारनामा किया था पटना, बिहार के एक नटवरलाल ने उसने ताजमहल को तीन बार और लाल किले को दो बार बेच दिया था इस नटवरलाल का असली नाम मिथलेश कुमार श्रीवास्तव था, जो ठगी की दुनिया का किंग माना जाता था इसके खिलाफ ठगी के 100 से अधिक मामले दर्ज थे और आठ राज्यों की पुलिस इसके पीछे लगी थी अलग-अलग मामलों में उसे 100 साल से अधिक की सजा हुई थी भारत के सबसे बड़े ठग के रूप में चर्चित नटवरलाल को आखिरी बार 1996 में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर देखा गया था, तब वह तीन पुलिस वालों को चकमा देकर भागने में सफल हो गया था

9 जनवरी 2017

बेचारा समाज

ca-pub-6689247369064277

भारत, जो की 1947 में आजाद हुआ और धर्म के आधार पर विभाजन के बावजूद हिन्दुओं का देश नही बन पाया। बल्कि उस वक़्त की सरकार द्वारा सेक्युलर देश घोसित कर दिया गया। बहुत से भारतीय लोगों के मन में आज भी ये सवाल है कि जब इस देश के लोगों को हिन्दू और मुसलमानो को सबको एक साथ ही रहना था तो आखिर क्यों कांग्रेस ने अंग्रेज़ों के साथ मिलकर इस देश का विभाजन स्वीकार कर लिया । इस सवाल का जवाब ढूंढ पाना इतना आसान नही है और ना ही ये इस लेख का उदेशय है इस बारे में विस्तार से कभी और लिखूंगा ।

हालांकि आज़ादी मिलने के बाद गांधी जी ने कांग्रेस गठन के मकसद को पूरा मानते हुए इसको खत्म करने की इच्छा की, पर फिर भी विभाजन के तुरंत बाद कांग्रेस पार्टी सत्ता में आई और आजाद भारत के इतिहास में आज तक भी 90 % से ज्यादा समय कांग्रेस का ही शासन रहा है।  हमारे हिन्दू वेद शास्त्रों में एक बात बड़े स्पस्ट रूप से लिखी गयी है “संघे शक्ति कलियुगे ” यानि की कलयुग में संगठन में ही शक्ति होगी । जो लोग एक साथ होंगे संघटित होंगे, वो अधिक शक्तिशाली होंगे।  बात तो हिन्दू धर्म ग्रंथों की थी, पर मुसलमानो ने इस पर बहुत अच्छी तरह से अमल किया। 
चाहे भारत के बंटवारे की बात हो या उसके बाद की बात हो, उन्होंने इस्लाम के आधार पर खुद को संघटित रखा।  लोकतंत्र में वोट की संख्या का बड़ा महत्व होता है । इस्लाम के मानने वालों ने यहाँ भी अपनी बुद्धिमता का परिचय दिया और खुद को एक साथ और इक्कठे वोट बैंक के रूप में स्थापित कर लिया। हालांकि इसका आम मुसलमान को आज तक कोई ज्यादा फायदा नही हुआ।  पर फिर भी उनमे से ज्यादातर लोगों ने फायदे नुक्सान की बात को दरकिनार कर संघटन में अपनी पूरी श्रद्धा और विशवास रखा।  और उसकी वजह से देश में उनका एक मजबूत और बड़ा वोट बैंक भारत में बन गया । इसको यूँ कहें कि ये हिन्दुओं की भूल रही या जातिवाद का राक्षस, पर हिन्दू खुद को कभी हिंदुत्व के नाम पर बड़ा वोट बैंक नही  पाये।  इसलिए देश में वोट बैंक आधारित भेदभाव की राजनीती की बड़े स्तर पर शुरुवात हुई।  ऐसा नही कि मुस्लिम तुस्टीकरण आजादी से पहले नही था (उसकी ही वजह से तो देश के टुकड़े हुए थे ), पर भारत की आजादी के चुनी सरकारों ने समाज के लिए स्थापित की जाने वाली समान नीतियों में सीधा फर्क डालना शुरू कर दिया। जिस प्रकार गुलाम भारत मे अंग्रेज़ आपस मे लड़ा कर समाज की ताकत को कमज़ोर करने की चाल चला करते थे। समाज तब भी बेचारा था, और आज भी बेचारा ही है।