11 नवंबर 2016

राजपूतों का गांव

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मेरा भारत महान
 ये हैं देश के सच्चे सपूत, असली राजपूत! देश में कभी भी विपदा आती है, तो सबसे पहले राजपूताना राइफल्स को याद किया जाता है. अगर आपको इनकी देशभक्ति का जज़्बा देखना हो तो उत्तर प्रदेश के मौधा गांव में ज़रूर आइए. इस गांव के हर घर में एक सैनिक रहता है, जो देश के लिए बलिदान देने को तैयार रहता है. आज़ादी के बाद से इस गांव में अब तक 44 जवान शहीद हो चुके हैं.

वीर सपूतों की धरती 'मौधा' पर उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश को नाज़ है. मौधा के शहीदों ने भारत माता के स्वाभिमान की रक्षा के लिए अपने को बलिदान कर दिया. मैं यहां के भाई-बहनों को अपना शीश झुका कर नमन करता हूं. प्रथम विश्व युद्ध हो या द्वितीय, हिटलर के नाजीवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई हो या फ़िर 1971 और कारगिल का युद्ध, यहां के सैनिकों ने भारत मां के सम्मान पर चोट नहीं पहुंचने दी.


मौधा क्षत्रियों का गांव है, जिसमें मुख्यत: राठौड़ क्षत्रिय निवास करते हैं. यहां के ग्रामीणों के लिए धर्म और कर्म राष्ट्र है. उत्साह और जोश यहां की पहचान है इस गांव के बारे में आप इस बात से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि जब देश की सीमा पर बेटे के शहीद होने की ख़बर आती है, तो मौधा में मातम नहीं मनाया जाता, बल्कि मां अपने दूसरे बेटे को भी उसी रास्ते पर चलने के लिए भेज देती है. इस छोटे से गांव में 800 वयस्क जवान हैं, जिनमें 350 से ज़्यादा जवान देश के कई रेजिमेंटों में रह कर देश की सीमाओं की रक्षा कर रहे हैं. 200 से ज़्यादा पूर्व सैनिक इस गांव में रह रहे हैं.आज़ादी की लड़ाई के दिनों से भारत माता की आन-बान-शान के लिए मौधा गांव के रहने वाले सैनिकों के शहीद होने का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह स्वतंत्रता के बाद आज तक कायम है. मानवता और राष्ट्रप्रेम से प्रेरित यह गांव अपने आप में एक 'देश' है. ऐसे गांव को हमारा सलाम!

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