विश्व के सभी धर्मो मे कुछ परम्परायें ऐसी भी है जिसपर कहीं न कहीं विज्ञान भी सहमत है। भारतीय परंपरा के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण ज़रूर होता है। अक्सर नए लोग या सास्त्रीय भाषा मे कहें पामर लोग इन परम्पराओं को अंधविश्वास समझ कर नकार देते है। पर ऐसा नहीं है कि परम्पराएं मात्र अन्धविश्वास पर बनी होती हैं।इन तथ्यों को जान कर आपको भी यकीन हो जायेगा कि परम्पराएं और मान्यताएं विज्ञान की कसोटी पर आधारित होती हैं। आज के मुकाबले पहले के लोगों के ज्यादा पढ़े-लिखे न होने के कारण उन्हें इनके वैज्ञानिक कारण समझना मुश्किल होता होगा, इसलिए धर्माचार्यों ने इन्हें धर्म से जोड़ दिया गया होगा ताकी एक परम्परा बन सके।
मंदिर जाना
मांस, मदिरा, प्याज़, लहसुन आदि से परहेज़।
दही खाना
ब्रह्म मुहूर्त में जगना
सोना-चांदी खरीदना
तिल और गुड़ के पकवान
होली में रंग खेलना
Biologists का मानना है कि आयुर्वेदिक सुद्ध पानी मिले रंग या सूखे रंग त्वचा के रोम-छिद्रों में जा कर शरीर के आयन को मज़बूत करता है और स्वास्थ्य व सुन्दरता को बढ़ाता है। होलिका दहन के पीछे भी वैज्ञानिक कारण है। सर्दियां ख़त्म होने पर वातावरण में और इंसान के शरीर में कीटाडुओं की संख्या बढ़ जाती है. जब होलिका दहन किया जाता है, तो तापमान 145 डिग्री फारेनहाइट तक चला जाता है. जब लोग आग की परिक्रमा करते हैं तो इस तापमान में कीटाडुं मर जाते हैं.
मांग भरना
सिन्दूर, हल्दी, चूना और मर्करी मिला कर बनाया जाता है. मर्करी रक्त-चाप नियंत्रित करता है, यह यौन इच्छा को भी बढ़ाता है। यही कारण है कि विधवाओं को सिन्दूर नहीं लगाने दिया जाता ह।. ये तनाव को कम करने में भी मदद करता है.
रमज़ान
फास्टिंग करने से शरीर का मेटाबोलिस्म ठीक रहता है। रमज़ान के दिनों में सूरज निकलने से पहले हल्का भोजन लिया जाता है और सूरज छिपने के बाद कुछ मीठा खाया जाता है। इससे रक्त-चाप और हृदय की खराबी का मुख्य कारक कैलेस्ट्रोल नियंत्रण में रहता है।
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