23 नवंबर 2016

ढाक के तीन पात

ca-pub-6689247369064277                                  मेरा भारत महान                                                           विपत्ति मे कहा जाता है कि मनुष्य को भगवान अवश्य याद आते है। यही नही यह भी कहा जाता है कि मनुष्य मे सदबुद्धि का उदय होता है और पिछले किये गए कुकर्मों के लिए पछतावा भी होता है। मगर ब्रिटैन इसका अपवाद दीखता है।ब्रिटिश साम्राज्य वर्तमान मे घोर संकट से गुजर रहा है।जब वायसराय ने पूर्वीय साम्राज्य परिषद का उदघाटन करते हुए अंत मे कहा था कि वे आसा करते हैं कि अन्य पुराने साम्राज्यों की तरह ब्रिटैन का सूर्य अस्त नही होगा, तब उनका गला भर आया था और उनकी आंखें भर आयी थी। इस घटना से वहां उपस्थित लोगों को साम्राज्य पर आये संकट का कुछ आभास मिल गया था। यह होते हुए भी ब्रिटैन ने अपना मार्ग नही बदला और न ही अपनी नीति मे ही कोई परिवर्तन किया। न ही उनके बोलने मे कोई बदलाव आया और न ही उनके व्यवहार मे कोई फर्क पडा। कारण कुछ भी हो, तथ्य ये है कि साम्राज्य पर घोर संकट की काली घटा आने पर भी ब्रिटैन ने अपना मार्ग नही बदला है।और न ही पिछले कुकृत्यों के लिए खेद प्रकट किया है। विपत्ति मे भी अपने निश्चित पथ को न छोड़ना सचमुझ वीरता और साहस का कार्य है। मगर यह वीरता और साहस उसी समय सोभा देते हैं, जब न्याय के पथ पर हों, अन्यथा पथ पर द्रढ रहना वीरता नही दुराग्रह है।

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