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मेरा भारत महान
मेरा भारत महान
आज़ादी से पहले भारत कई रियासतों मे बंटा हुआ था। उस समय रियासतों के प्रमुख को राजा नाम से जाना जाता था। 1947 की आज़ादी से पहले 1861 मे आगरा मे जन्मे तथा इलाहाबाद के मशहूर वकील मोती लाल नेहरू हुआ करते थे। उनके पिता का नाम गंगाधर था। मोती लाल नेहरू की काबलियत के कारण ही अंग्रेजों के ब्रिटिश क़ानून मे एक बहुत बड़ा बदलाव हुआ था। वह फांसी को लेकर था। हुआ यह कि पंजाब के महाराजा गुलाब सिंह ,जो 7200 वर्ग किलोमीटर की कश्मीर घाटी की रियासत के प्रमुख थे, अंग्रेज़ो के क़ानून के कारण दण्डित किये जाने थे। जिसमें उनको मृतयु दंड भी मिल सकता था। उनकी रियासत कश्मीर घाटी जिसको धरती का स्वर्ग भी कहा जाता है, मे अंग्रेज़ो की नजर थी। इसलिए महाराजा को अपने शिकंजे मे कसने के लिए अंग्रेजों ने उनके ऊपर हत्या के आरोप के ऊपर मूकदमा दर्ज किया था। मुक़दमे की सुनवाई लंदन की अदालत मे चल रही थी। महाराजा बहुत सेठ थे, रूपये पैसे, हीरे जवाहरात, बेशकीमती जमीन के राजा थे।परंतु इतना होते हुए भी वह फांसी की सज़ा हो जाने से चिंतित थे । अब उनको एक ऐसे वकील की जरूरत थी जो अंग्रेजों की अदालत मे उनका मुकादमा लड़ सके और उनको मृतुदंड से बचा सके। उनको आखिर सूत्रों से मोती लाल नेहरू के बारे मे जानकारी मिल गयी कि वे इलाहाबाद के ही नही भारत के सबसे मशहूर वकील है। इलाहाबाद आकार महाराजा ने उनसे संपर्क किया और अपनी व्यथा सुनाई। काफी ज्यादा धन संपत्ति के लालच मे मोती लाल नेहरू उनका मुकदमा लड़ने को तैयार हो गए और महाराजा गुलाब सिंह को ये आस्वासन दिया कि वह उनको मृत्यु दंड से बचा सकते है जिसके लिए उनको बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। अंग्रेज़ो की ही अदालत और अंग्रेजों के ही कानून से पार पाना बड़ा मुश्किल काम है। फिर भी वे अपनी तरफ से पूरी जिरह करेंगे। मुकुदमे की कई तारीकेँ लग चुकी थी,परंतु मोती लाल महाराजा के बचाव मे कुछ भी जिरह नही के रहे थे। ऐसा देख महाराजा बहुत चिंतित थे। अंग्रेजों ने मोती लाल से पूछा कि यदि आपको गुलाब सिंह के मृत्यु दंड के बारे मे कोई सफाई देनी है तो अदालत को बताइये, अन्यथा अदालत इस निर्णय पर पहुची है कि कल सवेरे 5 बजे महाराजा गुलाब सिंह को फाँसी के तख्ते पर लेजाकर फांसी दे दी जायेगी। मोती लाल ने इतना ही कहा कि अदालत इनकी फांसी की सज़ा को माफ़ कर दे क्योंकि इनके ऊपर पहले कोई आपराधिक मामला दर्ज नही हुआ है। लिहाजा फांसी की सज़ा को न देकर कालापानी की सज़ा देकर इनके मुकुदमे को जारी रखा जाए। अंग्रेजों के मोती लाल की एक न सुनी। महाराजा की फांसी तय समय थी। अगले दिन सुबह 5 बजे महाराजा को फाँसी पर लटका दिया गया। मोती लाल भी वहां मौजूद थे।अंग्रेजी कानून मे फांसी को एक निश्चित टाइम के लिए ही लटकाया जाता था और मान लिया जाता था कि इतने अंतराल मे मनुष्य की मौत निश्चित है। फांसी का निश्चित समय खत्म हुआ तो महाराजा गुलाब सिंह धरती पर पड़े थे। तभी मोती लाल महाराजा के पास गए और उनके सीने को जोर जोर से दबाने लगे और मुँह से सांस भी देने लगे। थोडी देर बाद महाराजा की सांस वापस आ गयी। और वे फिर से खड़े हो गए। अँगरेज़ यह देखकर भौंचक्के रह गए की फांसी के बाद भी महाराजा की मौत नही हुई। इसलिए उन्होंने जल्लाद से कहा कि इसको दुबारा फांसी पर चढ़ाया जाए। परंतु मोती लाल ने इस पर आपत्ति जताई कि आप कानून के मुताबिक महाराजा को दुबारा फांसी नही दे सकते। इस पर अँगरेज़ स्तब्ध और मौन थे। क्योंकि उनके क़ानून मे केवल एक ही बार फाँसी देने का प्राविधान था। आखिर कार महाराजा को मोती लाल ने बचा ही लिया। इस वाकये के कारण अंग्रेजों को अपने क़ानून मे बदलाव करना पड़ा। तभी से "हैंग टिल डेथ " का नया क़ानून लागू किया गया। मोती लाल को इस केश को लड़ने के बाद अंग्रेजों ने पंडित की उपाधि से सम्भोदित किया। तभी से उनको पंडित मोती लाल नेहरू के नाम से जाना जाता है।
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