वहाब अल्लाह के नामो में से एक नाम है। इसके साथ किसी भी प्रकार का गठजोड़ करना अल्लाह का अपमान करने जैसा है, इसलिए इस शब्द को स्लैंग की तरह बोलते में परहेज करिये,
यह शब्द आया कहा से??
17 शताब्दी में आज के सऊदी अरब में एक इस्लामिक स्कॉलर जन्मे जिनका नाम मोहम्मद था और उनके पिता का नाम अब्दुल वहाब यानी वहाब का बन्दा। शेख मोहम्मद ने अपनी शिक्षा दीक्षा मक्का और मदीना में ली और यह सातवी शताब्दी के एक इस्लामी स्कॉलर इमाम इब्न तैमिया से प्रभावित थे। उस समय बहुत सारी डायनेस्टी थी जो आज के सऊदी अरब पर अपनी अपनी सत्ता के लिये लड़ रही थी। उनमे से एक डायनेस्टी थी सऊद खानदान जिसके शासक, शेख मोहम्मद से प्रभावित थे और वो अपना राज काफी हद तक जंग में गवा चुके थे।
इन दोनों ने एक गठबंधन किया कि हम दोनों मिलकर सऊदी अरब का यह हिस्सा जीतेंगे तो सऊद खानदान के वंशज इसके शासक होंगे और राजनीती देखेंगे और मोहम्मद साहब के वंशज देश में इस्लामिक कानून देखेंगे। इन दोनों ने दूसरी डायनेस्टी से युद्ध लड़े और सऊदी अरब पर इन्होंने अपना कब्ज़ा कर लिया।
उम्मते मुस्लिम जो एकता के लिए कभी मानी जाती थी उसका मक्का में यह हाल था की बैतुल्लाह यानी काबा में एक नमाज़ के लिए 4 इमाम 4 अलग अलग समय प्र पढ़ाते थे, मुस्लिम उम्मत 4 भाग में बंट गयी थी, हनफ़ी शाफ़ई,हम्बली, और मालिकी चार ग्रुप थे जो एक नमाज़ 4 अलग अलग समय पर पढ़ते थे।पाखंड का पूरा कारोबार था, हर कब्र पर इमारते बनी हुई थी यहाँ तक कि लोग काबा के तवाफ़(परिक्रमा) से पहले कब्रो का तवाफ़ करते थे।
सऊद डायनेस्टी ने मोहम्मद सल अलाह अलैहि वसल्लम की हदीस अनुसार, जो उन्होंने हज़रत अली को फरमान दिया था कि हर पक्की कब्र को ज़मीन से एक बालिश तक मिटा दो, वहा सभी कब्रो पर बनी इमारतों को गिरवा दिया।
इनिह मोहम्मद बिन अब्दुल वहाब की विचारधारा को जो अरबी मानते गए उनेह लोगो ने वहाबी कहना शुरू कर दिया
आज भी वहाबी की कोई ख़ास परिभाषा नहीं है
भारत में बरेलवी मुस्लिम समाज देवबंदी मुस्लिम समाज को वहाबी कहता है
देवबंदी मुस्लिम समाज भारत के अहले हदीस मुस्लिम समाज को वहाबी कहता है
तकरीबन 115 साल पहले अहले हदीस मुस्लिम समाज के मौला इमरान देहलवी ने विक्टोरिया को ख़त लिखा कि सऊदी के वहाबी लोगो से हमारा क्या सम्बन्ध जो आप भारत के सलफी मुस्लिम को वहाबी कहकर प्रताड़ित कर रहे हो, और इसी के साथ उन्होंने खुद को वहाबी की जगह अहले हदीस समाज के नाम से रजिस्टर करवा लिया
यह तो है भारत का हाल कि सब एक दुसरे को वहाबी कहते है पर खुद को वहाबी कोई नहीं मानता , रेस्ट ऑफ़ द वर्ल्ड में वहाबी अरबियो को ख़ास तौर से सउदियो को कहा जाता है।
तर्क के हिसाब से भी इसकी कोई पहचान नहीं बनती क्योकि जो सऊद के साथ मिले थे उनका नाम मोहम्मद था। उनकी विचार धारा से प्रभावित इंसान को यदि उनके नाम से जोड़ा जाए तब भी उसे मोहम्मदी कहा जायेगा क्योकि अब्दुल वहाब तो उनके पिताजी का नाम था जो हम्बल विचारधारा से आते है
-वहाबी शुरू में उन लोगो को कहा गया जो मोहम्मद साहब के साथ सत्ता हासिल करना चाहते थे
-आज इसकी कोई खास परिभाषा नहीं है क्योंकि शियाओ के लिए आधे सुन्नी वहाबी है और सुन्नियो में सभी एक दुसरे के लिए वहाबी है और जो मोहम्मद बिन अब्दुल वहाब की विचारधारा के कुछ करीब थे उन्होंने 115 साल पहले ही इससे पल्ला झाड़ लिया
-आपको सऊदी डायनेस्टी से 56 इख़्तेलाफ हो सकते है पर उसमे अल्लाह के नाम को बीच में न लाइए
-यदि आप किसी व्यक्ति की विचारधारा से प्रभावित् व्यक्ति को उसके नाम से जोड़ते है जैसे मिर्ज़ा गुलाम अहमद के अनुयायी को अहमदी या इमाम मालिक के अनुयायी को मलिकी तो मोहम्मद बिन अब्दुल वहाब के अनुयायी को मोहम्मदी कहे
क्यों हराम है सुअर का गोश्त?
”तुम्हारे लिए (खाना) हराम (निषेध) किया गया मुर्दार, खून, सूअर का मांस और वह जानवर जिस पर अल्लाह के अलावा किसी और का नाम लिया गया हो।ÓÓ (कुरआन, 5:3)
सूअर का मांस बहुत से रोगों का कारण है ईसाइयों के अलावा जो अन्य गैर-मुस्लिम या नास्तिक लोग हैं वे सूअर के मांस के हराम होने के संबंध में बुद्धि, तर्क और विज्ञान के हवालों ही से संतुष्ट हो सकते हैं। सूअर के मंास से कम से कम सत्तर विभिन्न रोग जन्म लेते हैं। किसी व्यक्ति के शरीर में विभिन्न प्रकार के कीड़े (Helminthes) हो सकते हैं, जैसे गोलाकार कीड़े, नुकीले कीड़े, फीता कृमि आदि। सबसे ज्य़ादा घातक कीड़ा Taenia Solium है जिसे आम लोग Tapworm (फीताकार कीड़े) कहते हैं। यह कीड़ा बहुत लंबा होता है और आँतों में रहता है। इसके अंडे खून में जाकर शरीर के लगभग सभी अंगों में पहँुच जाते हैं। अगर यह कीड़ा दिमाग में चला जाता है तो इंसान की स्मरणशक्ति समाप्त हो जाती है। अगर वह दिल में चला जाता है तो हृदय गति रुक जाने का कारण बनता है। अगर यह कीड़ा आँखों में पहँुच जाता है तो इंसान की देखने की क्षमता समाप्त कर देता है।
अगर वह जिगर में चला जाता है तो उसे भारी क्षति पहँुचाता है। इस प्रकार यह कीड़ा शरीर के अंगों को क्षति पहुँचाने की क्षमता रखता है।
एक दूसरा घातक कीड़ा Trichura Tichurasis है। सूअर के मांस के बारे में एक भ्रम यह है कि अगर उसे अच्छी तरह पका लिया जाए तो उसके भीतर पनप रहे उपरोक्त कीड़ों के अंडे नष्ट हो जाते हैंं। अमेरिका में किए गए एक चिकित्सीय शोध में यह बात सामने आई है कि चौबीस व्यक्तियों में से जो लोग Trichura Tichurasis के शिकार थे, उनमें से बाइस लोगों ने सूअर के मांस को अच्छी तरह पकाया था। इससे मालूम हुआ कि सामान्य तापमान में सूअर का मांस पकाने से ये घातक अंडे नष्ट नहीं हो पाते।
सूअर के मांस में मोटापा पैदा करने वाले तत्व पाए जाते हैं सूअर के मांस में पुट्ठों को मज़बूत करने वाले तत्व बहुत कम पाए जाते हैं, इसके विपरीत उसमें मोटापा पैदा करने वाले तत्व अधिक मौजूद होते हैं। मोटापा पैदा करने वाले ये तत्व $खून की नाडिय़ों में दािखल हो जाते हैं और हाई ब्लड् प्रेशर (उच्च रक्तचाप) और हार्ट अटैक (दिल के दौरे) का कारण बनते हैं। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि पचास प्रतिशत से अधिक अमेरिकी लोग हाइपरटेंशन (अत्यन्त मानसिक तनाव) के शिकार हैं। इसका कारण यह है कि ये लोग सूअर का मांस प्रयोग करते हैं।
सूअर दुनिया का सबसे गंदा और घिनौना जानवर है सूअर ज़मीन पर पाया जाने वाला सबसे गंदा और घिनौना जानवर है। वह इंसान और जानवरों के बदन से निकलने वाली गंदगी को सेवन करके जीता और पलता-बढ़ता है। इस जानवर को खुदा ने धरती पर गंदगियों को साफ करने के उद्देश्य से पैदा किया है। गाँव और देहातों में जहाँ लोगोंं के लिए आधुनिक शौचालय नहीं हैं और लोग इस कारणवश खुले वातावरण (खेत, जंगल आदि) में शौच आदि करते हैं, अधिकतर यह जानवर सूअर ही इन गंदगियों को सा$फ करता है। कुछ लोग यह तर्क प्रस्तुत करते हैं कि कुछ देशों जैसे आस्ट्रेलिया में सूअर का पालन-पोषण अत्यंत सा$फ-सुथरे ढ़ंग से और स्वास्थ्य सुरक्षा का ध्यान रखते हुए अनुकूल माहौल में किया जाता है। यह बात ठीक है कि स्वास्थ्य सुरक्षा को दृष्टि में रखते हुए अनुकूल और स्वच्छ वातावरण में सूअरों को एक साथ उनके बाड़े में रखा जाता है। आप चाहे उन्हें स्वच्छ रखने की कितनी भी कोशिश करें लेकिन वास्तविकता यह है कि प्राकृतिक रूप से उनके अंदर गंदगी पसंदी मौजूद रहती है। इसीलिए वे अपने शरीर और अन्य सूअरों के शरीर से निकली गंदगी का सेवन करने से नहीं चुकते।
सूअर सबसे बेशर्म (निर्लज्ज) जानवर है इस धरती पर सूअर सबसे बेशर्म जानवर है। केवल यही एक ऐसा जानवर है जो अपने साथियों को बुलाता है कि वे आएँ और उसकी मादा के साथ यौन इच्छा पूरी करें। अमेरिका में प्राय: लोग सूअर का मांस खाते हैं परिणामस्वरूप कई बार ऐसा होता है कि ये लोग डांस पार्टी के बाद आपस में अपनी बीवियों की अदला-बदली करते हैं अर्थात् एक व्यक्ति दूसरे से कहता है कि मेरी पत्नी के साथ तुम रात गुज़ारो और तुम्हारी पत्नी के साथ में रात गुज़ारूँगा (और फिर वे व्यावहारिक रूप से ऐसा करते हैं) अगर आप सूअर का मांस खाएँगे तो सूअर की-सी आदतें आपके अंदर पैदा होंगी। हम भारतवासी अमेरिकियों को बहुत विकसित और साफ-सुथरा समझते हैं। वे जो कुछ करते हैं हम भारतवासी भी कुछ वर्षों के बाद उसे करने लगते हैं। Island पत्रिका में प्रकाशित एक लेख के अनुसार पत्नियों की अदला-बदली की यह प्रथा मुम्बई के उच्च और सम्पन्न वर्गों के लोगों में आम हो चुकी है।
अप्रैल फूल मनाना इस्लाम में जायज नहीं,
पश्चिमी सभ्यता का तहे दिल से स्वागत करने वाले यंगस्टर्स अप्रैल फूल मनाने की तैयारियों में पूरी शिद्दत से मशगूल हैं। युवाओं के दिमाग का सारा जोर इसी ओर है कि कैसे लोगों को बेवकूफ बना कर यह दिन मनाया जाए। इस मसले पर टाइम्स ऑफ मुस्लिम ने उलेमाओं से राब्ता किया और अप्रैल फूल से संबंधित तमाम पहलुओं पर चर्चा की। उलेमाओं ने अप्रैल फूल जैसे दिन को न मनाने की नसीहत दी और सुन्नतों पर अमल कर सादगी से जिंदगी जीने की अपील की। इसी में दुनिया व आखिरत की कामयाबी है।
कानपुर के काज़ी वसीह अहमद एडवोकेट ने कहा कि कुरआन पाक में साफ लिखा है कि झूठ बोलने वालों पर अल्लाह की लानत है। 1 अप्रैल को जानबूझकर झूठ बोला जाएगा और झूठ बोलकर खुशी मनाई जाएगी। यानि मुसलमान अब अल्लाह की लापत पर भी खुशी मनाएंगे। इसलिए हर मुसलमान एक अप्रैल के रोज़ और दीगर रोज़ भी झूठ से बचें।
मुरादाबाद के मौलाना अब्दुल गफ्फार (खादिम, मस्जिद उम्मे आयशा) ने कहा कि आज हमारे मुआशरे में बुराइयां हद से ज्यादा बढ़ती जा रही हैं। नबी-ए-करीम की सुन्नतों का जनाजा निकाला जा रहा है। कई तरह की खुराफात हमारे नौजवान बच्चे अपनी जिन्दगी में शामिल कर रहे हैं, जिनका हमारे मजहब से कोई वास्ता नहीं।
दीन में किसी नई बात को शामिल करना या किसी खुराफात को दीन समझकर करना बिदअत है और बिदअत का ठिकाना जहन्नुम है। एक अप्रैल को अप्रैल फूल मनाया जाता है। इस दिन बेहूदगी जाहिर करके बिना मतलब झूठ व धोखे से दूसरों को परेशान किया जाता है। जबकि यह सभी जानते हैं कि ‘झूठ’ बोलना गुनाह-ए-कबीरा में सबसे बड़ा गुनाह है और झूठ बोलने की इजाजत कोई मजहब नहीं देता। हर मजहब में झूठ बोलना पाप समझा जाता है। अहल-ए-इमान खासतौर से ध्यान रखें कि ऐसी कोई हरकत ना करें जिससे दूसरों को परेशानी, दुख हो। इस्लाम में एक सुन्नत जिन्दा करने में सौ शहीदों के बराबर सवाब मिलता है। लिहाजा अहल-ए-इमान समझलें कि सुन्नतों को छोड़ कर कोई भी अमल काबिले कबूल नहीं होगा।
खतना इन्सान को कई बड़ी बीमारियों से बचाता है
दुनियाभर में हुए शोधों ने यह साबित किया है कि खतना इंसान की कई बड़ी बीमारियों से हिफाजत करता है।
इस समय खतना (सुन्नत) यूरोपीय देशों में बहस का विषय बना हुआ है। खतने को लेकर पूरी दुनिया में एक जबरदस्त बहस छिड़ी हुई है। इस पर विवाद तब शुरू हुआ जब जर्मनी के कोलोन शहर की जिला अदालत ने अपने एक फैसले में कहा कि शिशुओं का खतना करना उनके शरीर को कष्टकारी नुकसान पहुंचाने के बराबर है। फैसले का जबर्दस्त विरोध हुआ। इस मुद्दे का अहम पहलू हाल ही आया अमरीका के शिकागो स्थित बालरोग पर शोध करने वाली संस्था ‘द अमरीकन एकेडेमी ऑफ पीडीऐट्रिक्स’ का ताजा बयान। में कहा है कि नवजात बच्चों में किए जाने वाले खतना या सुन्नत के सेहत के लिहाज से बड़े फायदे हैं। सच भी है कि समय-समय पर दुनियाभर में हुए शोधों ने यह साबित किया है कि खतना इंसान की कई बड़ी बीमारियों से हिफाजत करता है।
खतना एक शारीरिक शल्यक्रिया है जिसमें आमतौर पर मुसलमान नवजात बच्चों के लिंग के ऊपर की चमड़ी काटकर अलग की जाती है।
!! वैज्ञानिकों ने दिए सबूत !!
शिकागो स्थित बालरोग चिकित्सकों के इस बयान का आधार वैज्ञानिक सबूत हैं जिनके आधार पर यह साफतौर पर कहा जा सकता है कि जो बच्चे खतने करवाते हैं, उनमें कई तरह की बीमारियां होने की आशंका कम हो जाती है। इनमें खासतौर पर छोटे बच्चों के यूरिनरी ट्रैक्ट में होने वाले इंफेक्शन, पुरुषों के गुप्तांग संबंधी कैंसर, यौन संबंधों के कारण होने वाली बीमारियां, एचआईवी और सर्वाइकल कैंसर का कारक ह्युमन पैपिलोमा वायरस यानि एचपीवी शामिल हंै।
एकेडेमी उन अभिभावकों का समर्थन करता है जो अपने बच्चे का खतना करवाते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि खतना किए गए पुरुषों में संक्रमण का जोखिम कम होता है क्योंकि लिंग की आगे की चमड़ी के बिना कीटाणुओं के पनपने के लिए नमी का वातावरण नहीं मिलता है.
!! एड्स और गर्भाशय कैंसर से हिफाजत !!
महिलाओं में गर्भाशय कैंसर का कारण ह्युमन पैपिलोमा वायरस होता है। यह वायरस लिंग की उसी चमड़ी के इर्द-गिर्द पनपता है जो संभोग के दौरान महिलाओं में प्रेषित हो जाता है। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में अप्रेल 2002 में प्रकाशित एक आर्टिकल का सुझाव था कि खतने से महिला गर्भाशय कैंसर को बीस फीसदी तक कम
किया जा सकता है। खतने से एचआईवी और एड्स से हिफाजत होती है। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल के ही मई 2000 के एक आर्टिकल में उल्लेख था कि खतना किए हुए पुरुष में एचआईवी संक्रमण का खतरा आठ गुना कम होता है। हजार में से एक पुरुष लिंग कैंसर का शिकार हो जाता है लेकिन खतना इंसान की इस बीमारी से पूरी तरह हिफाजत करता है।
नवंबर 2000 में बीबीसी टेलीविजन ने यूगांडा की दो जनजातीय कबीलों पर आधारित एक रिपोर्ट प्रसारित की। इसके मुताबिक उस कबीले के लोगों में एड्स नगण्य पाया गया जो खतना करवाते थे, जबकि दूसरे कबीले के लोग जो खतना नहीं करवाते थे, उनमें एड्स के मामले ज्यादा पाए गए। इस कार्यक्रम में बताया गया कि कैसे लिंग के ऊपर चमड़ी जो खतने में हटाई जाती है, उसमें संक्रमण फैलने और महिलाओं में प्रेषित होने की काफी आशंका रहती है। आम है
!! अमरीका में नवजात बच्चों का खतना !!
अमरीकी समाज का एक बड़ा वर्ग बेहतर स्वास्थ्य के लिए इस प्रथा को मानने लगा है। नेशनल हैल्थ एण्ड न्यूट्रिशन एक्जामिनेशन सर्वेज की ओर से अमरीका में 1999 से 2004 तक कराए गए सर्वे में 79 फीसदी पुरुषों ने अपना खतना करवाया जाना स्वीकार किया। नेशनल हॉस्पीटल डिस्चार्ज सर्वे के अनुसार अमरीका में 1999 में 65 फीसदी नवजात बच्चों का खतना किया गया। अमरीका के आर्थिक और सामाजिक रूप से सम्पन्न परिवारों में जन्में नवजात बच्चों में खतना ज्यादा पाया गया।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि दुनिया भर में करीब 30 फीसदी पुरुषों का खतना हुआ है। सांसदों ने करवाया संसद में खतना यही नहीं एचआईवी की रोकथाम के लिए अफ्रीका के कई देशों में पुरुषों में खतना करवाने को बढ़ावा दिया जा रहा है।
!! जिम्बाब्वे में एचआईवी संक्रमण रोकने के लिए खतना शिविर !!
जिम्बाब्वे में एचआईवी संक्रमण रोकने के लिए चलाए गए एक अभियान के तहत जून 2012 में कई सांसदों ने संसद के भीतर खतना करवाया। इसके लिए संसद के भीतर एक अस्थायी चिकित्सा शिविर लगाया गया है।
समाचार एजेंसी एएफपी के अनुसार जिम्बाब्वे की दो मुख्य पार्टियों के कम-से-कम 60 सांसदों ने बारी-बारी से आकर चिकित्सकीय परामर्श लिया और फिर शिविर में जाकर परीक्षण करवाया।
अभियान की शुरुआत में बड़ी संख्या में सांसदों ने हिस्सा लेते हुए एचआईवी टेस्ट करवाते हुए इस खतरनाक बीमारी से बचने के लिए खतना करवाने का संकल्प लिया था।
क़ुरान से 24 घंटे के अंदर HIV-AIDS और इबोला का ईलाज संभव
शेख इमाम राशिद घाना का मानना है कि एचआईवी, एड्स और इबोला जैसी बीमारियों का इलाज कुरान में बताई गई दवाओं से हो सकता है। सलावातिया मुस्लिम मिशन के प्रमुख शेख राशिद का मानना है कि बड़ी-बड़ी प्रयोगशालाएं, अस्पताल, डॉक्टर्स और नर्सें सब बेकार हैं।
घाना के तमाले में रहने वाले इमाम ने यह दावे पिछले रविवार को किए जब उनसे अमेरिका स्थित एक इस्लामिक रेडियो स्टेशन किबला एफएम पर कुरान का विज्ञान और इसकी चिकित्सकीय शक्तियों के बारे में पूछा जा रहा था।
उनका कहना था कि मुस्लिमों की पवित्र पुस्तक कुरान में दुनिया की सभी समस्याओं का समाधान निहित है। इतना ही नहीं, उनका यहां तक दावा था कि ‘एचआईवी, एड्स और इबोला का इलाज मात्र 24 घंटों में संभव है।
कुरान में ऐसी सभी बीमारियों का इलाज है जो कि इस पृथ्वी पर पैदा होती हैं।
सलावात हेल्थ रेस्टोरेशन सेंटर के सीईओ, शेख राशिद का कहना है कि उन्होंने कुरान से मिली जानकारी के आधार पर एक कार को हवा से चलाया है।
786 के माने
कुरान और हदीस की दूरी के सबब आज मुसल्मान ना जाने कितनी ऐसी बुराई हैं जिसे वो अच्छाई समझ के कर रहा हैं और उसे अपने दीन का हिस्सा समझता हैं| इसी किस्म की एक बुराई 786 हैं जिसे आमतौर पर लोग किसी काम की शुरुआत (जैसे खत, दुकानो मे, गाड़ीयो में) मे लिख देते हैं और ये समझते है के ये हैं| जबकि ना तो कभी नबी सं ने इसे किसी काम कि शुरुआत मे लिखा ना कभी सहाबा ने इसे लिखा| गौर फ़िक्र की बात ये हैं के आखिर इन अरबी हर्फ़ के नम्बर का सिस्टम बनाया किसने ये भी लोग नही जानते|
आइये देखते हैं कि इन नम्बरो की सच्चाई क्या हैं-
ऊर्दू नम्बर सिस्टम
इन नम्बर सिस्टम के हिसाब से अगर
के अक्षरो को अलग करके जोड़ा जाये तो –
जोड़ 788 निकलता हैं गौर करने की बात ये हैं के जब
के अक्षरो को अलग किया जाता है तो
और
लिखने मे अलिफ़ अक्षर को नही जोड़ा जाता जिससे अक्षरो का जोड़ 786 आता हैं लेकिन अगर अलिफ़ को भी साथ मे लेकर जोड़ा जाये तो जोड़ 788 आता हैं| जबकि सही जानकारी के मुताबिक 786 नम्बर हिन्दू मज़हब के भगवान हरी कृष्णा (ﻩری کرشنا) का अक्षरो के नम्बरो को जोड़ कर आता हैं|
नीचे देखे-
फ़िक्र करने की बात ये हैं के जिस नम्बर सिस्टम को लोग मानते चले आ रहे हैं उसका नबी सं या उनके सहाबी से कोई ताल्लुक नही और जिस चीज़ का ताल्लुक नबी या सहाबा से नही तो हम आम इन्सानो को ये हक़ कैसे हासिल के हम किसी चीज़ को दीन का काम बिना समझे क्यो कर रहे हैं|
अगर इन नम्बर सिस्टम को माना जाये तो मुहम्मद के नम्बर 92 होते हैं तो इस नम्बर सिस्टम के मानने वाले मुसल्मानो को दरूद शरीफ़, जिसे वो दिन रात पढ़ते हैं उसमे जहा-जहा मुहम्मद आता हैं वहा-वहा 92 कहना चाहिए| ज़रा गौर करें क्या ये दीन हैं।
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