रामचन्द्र गुहा और इरफ़ान हबीब रोमिला थापर, विपिन चन्द्र, जैसे मशहूर कांग्रेसी और वामपंथी इतिहासकारों के अनुसार मध्यकालीन भारत के इतिहास का बेहतरीन समय “मुग़ल काल” रहा है। इन भ्रष्ट इतिहासकारों ने मुग़ल शासकों के समय को ऐसे प्रस्तुत किया है मानो विकास के एक नए युग का जन्म मुग़ल वंश ने ही दिया हो। लेकिन आसान से विश्लेषण के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है मुग़ल वास्तव में कितने गिरे हुए थे और सामजिक कल्याण के लिए उन्होंने ना के बराबर कार्य किया था। मुग़ल शासन का इतिहास मुग़ल शासकों और उनके बच्चों द्वारा सत्ता पाने के लिए हुए खूनी संघर्ष से भरा पड़ा है । जब एक शासक सत्ता के लिए अपने ही भाईयों के साथ खूनी खेल में लगा हो तब वह जनता का भला कहाँ से कर सकता है । इस लेख में मुग़ल साम्राज्य के खूनी खेल के कुछ उदाहरण दिए हुए हैं ।
बाबर से लेकर बहादुर शाह तक, सभी ने साजिश के तहत अपने भाईयों और रिश्तेदारों का क़त्ल किया और फिर भी वे महान कहलाए। बाबर ने अपने साम्राज्य को अपने चार बच्चों कामरान, असकारी, हिंडाल और हुमायूं के बीच बराबर बाँट दिया था। शेर शाह सूरी के हांथों मिली कन्नौज के युद्ध में हार के बाद हुमायूँ भागते हुए लाहौर पहुंचा था जहाँ उसके भाई कामरान और असकारी राज करते थे। इन दोनों ने हुमायूँ की सहायता करने के बजाय हुमायूँ के दुश्मन शेर शाह की मदद करना सही समझा था।
भाईयों के हांथों मिले इस धोखे से आहत होकर हुमायूँ ने कामरान से बदला लेने की ठान ली और पर्शिया के सुल्तान इस्लाम शाह से कामरान के बदले कांधार देने की पेशकश कर डाली। इस्लाम शाह द्वारा कामरान को पकड़ कर सौंपे जाने पर हुमायूँ ने उसे अपने हांथों से सलाख डालकर अंधा किया और बाद में उन्हीं घावों पर नमक मिर्च रगड़ने का आदेश दिया। कामरान को हाजी में कैद रखा गया जहाँ बाद में उसकी मौत हो गयी | हुमायूँ के कामरान की बेटी की शादी अपने बेटे जलाल, जिसके अकबर के नाम से जाना जाता है, से कर दी |इतिहासकार विन्सेंट स्मिथ ने अपनी किताब “Akbar : The great Moghul” में लिखा है, जब अकबर को कामरान के बारे में पता चला तो उसने मारे जाने के डर से कामरान के बेटे और अपने चचेरे भाई की सन् 1565 में ग्वालियर में हत्या कर दी थी। यही नहीं, अपने शासन के अंतिम दौर में डेक्कन की लड़ाई के दौरान जब अकबर को अपने बेटे जहांगीर द्वारा सत्ता हासिल करने के मकसद से आगरा पर हमले के बारे में पता चला तब उसने मारे जाने के डर से कामरान के बेटे और अपने चचेरे भाई की सन् 1565 में ग्वालियर में हत्या कर दी थी ।यही नहीं, अपने शासन के अंतिम दौर में डेक्कन की लड़ाई के दौरान जब अकबर को अपने बेटे जहांगीर द्वारा सत्ता हासिल करने के मकसद से आगरा पर हमले के बारे में पता चला तब उसने डेक्कन का युद्ध छोड़कर आगरा जाना सही समझा और ऐन मौके पर पहुँच भी गया ।
अकबर के प्रतिकार के डर से जहांगीर भागकर एलाहाबाद के किले में जा पंहुचा और मदिरा और अफीम के नशे में डूब गया । जहांगीर के भाइयों दनियाल और मुराद की अपनी जवानी में ही अफीम के नशे की वजह से मौत हो चुकी थी जहांगीर के नशे की आदत से तंग आकर अकबर ने मुग़ल साम्राज्य जहांगीर के बजाय उसके बेटे खुसरो को सौंपने का निर्णय कर लिया ।जहांगीर ने जब इसका विरोध किया तो खुसरो ने पंजाब जाकर सिख गुरु अर्जुन देव से सहायता मांगी ।गुस्साए जहांगीर ने ना सिर्फ अर्जुन देव को मार डाला बल्कि खुसरो को पकड़ कर उसे अंधा कर दिया और गृह कारागार में डाल दिया।खुसरो ने एक बार फिर जहांगीर को मारने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो पाया। कुछ समय के लिए जहांगीर सत्ता को लेकर बेपरवाह हो गया और जहांगीर के दूसरे बेटे शाहजहां ने सन् १६२२ में मौका पाकर खुसरो की हत्या करा दी ।
शाहजहाँ इतने पर ही नहीं रुका और जहांगीर की मौत के बाद, भाईयों की हत्या के इस खेल में खुसरो के बेटे दवार को अपना मोहरा बनाया । जहांगीर का एक और बेटा शहरियार, शाहजहाँ के प्रतिद्वंदी के तौर पर उभरा था जिसके खिलाफ साजिश करने के मकसद से शाहजहाँ ने द्वार को मुग़ल साम्राज्य का वारिस घोषित कर दिया। शहरियार को रास्ते से हटाने के बाद शाहजहाँ ने दवार और अपने चाचा दनियाल के बच्चों को भी मौत के घात उतार दिया इन सब मुगलों में सबसे नीच शासक औरंगजेब बनकर उभरा जिसने सत्ता पाने के लिए जो क़त्ल ए आम मचाया था उसे समझने के लिए काफी समय चाहिए। हैरानी की बात यह है, उसी औरंगजेब के नाम पर कांग्रेस ने एक महत्वपूर्ण सड़क का नाम रखा और जब उसके नाम को हटाकर विख्यात वैज्ञानिक डॉ अब्दुल कलाम को रखने का सुझाव दिया गया तो कांग्रेस समेत सभी विरोधी पार्टियों ने काफी हो हल्ला मचाया था | तीन सदियों से भी अधिक समय तक भारतियों को गुलाम बनाकर रखने वाले इन मुगलों का नाम, आने वाले समय में इतिहास से हटाया नहीं जाना चाहिए बल्कि धोखे, हत्या और संकीर्ण विचारों के उदहारण के रूप में काले अक्षरों में लिखा जाना चाहिए ।
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