30 नवंबर 2016

ईश्वर रहमत से जन्म लेती हैं बेटियां

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मेरा भारत महान
संयुक्त राष्ट्र के विश्व जन्संख्या कोष की रिपोर्ट बताती है कि हमारे देश मे पिछले बीस सालों मे लगभग 10 करोड़ लड़कियों को गर्भ में ही मार दिया गया। वो लड़की जिसके प्रति हर युग मे समाज के एक बड़े हिस्सें की मानसिकता नाकारात्मक रही है। इस मानसिकता के पीछे कई कारण हैं। जिनमें से एक बड़ा कारण है समय के साथ जनसंखया से भी तेज गति से बढ़ने वाली मंहगाई। और इस मंहगाई मे लड़की के लालन पालन, शिक्षा से लेकर उसकी शादी तक होने वाला खर्चा। 
                       

इन सारी मानसिकताओं से दूर बिहार राज्य के जिला सीतामढ़ी के पुपरी प्रखंड मे 20 साल की एक महिला ऐसी भी है जो मां के रुप मे अपनी बेटी को खुद के लिए बोझ नही बल्कि अल्लाह का दिया हुआ सबसे खूबसूरत तोहफा मानती है। इस महिला का नाम है “नजराना”।  नजराना ने कहा “जब अल्लाह बेटी देते हुए नही घबराया तो मैं पालते हुए क्यों घबराउँ। नजराना के इस वाक्य से ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि लड़कियों के प्रति नजराना का नजरिया किस तरह का है।
इस बेहतर सोंच के पीछे क्या कारण है? इस बारे मे और अधिक जानने के लिए जब नजराना के जीवन के बारे पूछा गया तो नजराना ने बताया “मेरे परिवार मे कुल 10 स्दस्य हैं अम्मी, अब्बू के साथ दो भाई और छ बहन। मैं सभी भाई बहन में सबसे छोटी थी। दोनो भाई मैट्रिक करने के बाद अब्बू के साथ फल के कारोबार में लग गए। बहनों में से सिर्फ मैंनें और बड़ी बहन ने पांचवी तक पढ़ाई की उसके बाद पढ़ने को दिल नही करता था इसलिए बीच मे ही पढ़ाई छोड़ दी। फिर धीरे धीरे सबकी शादी हो गई। लेकिन सभी बच्चों की परवरिश से लेकर खाने-पीने और पहनने- ओढ़ने मे कभी अम्मी- अब्बू ने किसी तरह का कोई फर्क हममें और भाईयों के बीच नही रखा।
बेटी के हिसाब से न कभी हमें कोई चीज कम दी, न बेटा सोंच कर कोई चीज मेरे भाईयों को ज्यादा। शायद इसलिए शुरु से हम बहनों की सोंच ऐसी बन गई कि बेटा या बेटी अल्लाह जो भी दे दे हमे खुशी खुशी कबूल कर लेना चाहिए और बस उनकी अच्छी परवरिश पर ध्यान देना चाहिए। हां अच्छी परवरिश के लिए जरुरी है अच्छी शिक्षा और अच्छी शिक्षा के लिए जरुरी है कि बच्चें कम हो।“
बच्चें कम हो से क्या मतलब ? ये पूछने पर नजराना कहती हैं” अब बेटा हो या बेटी पढ़ाना तो दोनो को ही है। बेटे को इंजिनियर बनाना है तो बेटी को भी तो डॉक्टर बनाना होता है न। खर्चा तो दोनो के उपर है। इसलिए बच्चे कम होंगे तो बेटा और बेटी दोनो को अच्छी शिक्षा और अच्छी परवरिश दे सकतें हैं। ज्यादा बच्चें होने से न तो कोई ठिक ढंग से पढ़ पाता है और न ही सबको सही से खाना पिना मिल पाता है, जिसकी वजह से बच्चें सेहतमंद नही रह पाते ।
तो आप कुल कितने बच्चे चाहती हैं? जब ये सवाल नजराना से किया गया तो उन्होनें कहा “सिर्फ दो”। अच्छा तो अब आपको एक बेटा चाहिए,क्योंकि बेटी तो पहले से ही है। ये वाक्य सुनते ही नजराना ने कहा “ नही अगली संतान सिर्फ जिंदा बच्चा चाहिए बेटा हो या बेटी मुझे फर्क नही पड़ता। और कमरे के अंदर फर्श पर खेलती हुए अपनी बेटी को देखते हुए नजराना कहती हैं “खैर फिलहात तो यही एक बेटी है “आलिया” मेरी लाडली, मेरी गुड़िया। माशाअल्लाह तेज बहुत है और नीडर भी। इसलिए मेरा इरादा इसे पुलीस बनाने का है। लेकिन सुना है इसमे खर्चा बहुत आता है। पति किराए की दुकान में बक्सा बनाने का काम करते हैं। ठिक-ठाक कमा लेते हैं, लेकिन फिर भी बेटी को पुलीस बनाने मे जितना खर्चा आएगा सोंचती हुँ कि मैं सिलाई सीख लूँ ताकि आस-पास के कपड़े सिल कर कुछ पैसे इक्टठा हो जाएगें तो आलिया की पढ़ाई मे काम आंएंगे और इनके पैसो से घर तो चल ही रहा है।
आपके पति भी चाहते हैं कि आलिया पुलीस बने? पूछने पर नजराना कहती है “हां मेरे पति अपनी बेटी से बहुत प्यार करते हैं। वो तो यहां तक कहते हैं कि अब कोई बच्चा न हो तो भी कोई दिक्कत नही। हम आलिया को ही पढ़ा लिखा कर बड़ा आदमी बनाएंगे और अगर पुलीस बन जाए तब तो और अच्छा है। वो कहते हैं कि आजकल लड़कियों को अपनी रक्षा करना आना चाहिए। हर जगह कोई साथ तो होता नही और अगर आलिया पुलीस बन गई तो बाद मे गांव की लड़कियों को भी अपनी सुरक्षा करने के लिए बता सकती है। आने वाले समय मे जमाना और बुरा होने वाला है इसलिए जरुरी है कि लड़कियां मर्दो से लड़ने की हिम्मत रख सकें”।
आपको बतातें चलें की कन्या भूर्ण हत्या पर लगाम कसने के इरादे से सरकार ने 1994 में ही भूर्ण परीक्षण पर रोक लगा दी थी। इसके बावजूद चोरी छुप्पे ये सिलसिला आज भी जारी है। सबूत है 2001 की जनगणना रिपोर्ट जिसके अनुसार 1000 पुरुषों पर 927 महिलाएं जबकि 2011 की जनगणना के अनुसार प्रति 1000 पुरुषों पर 919 महिलाएं ही बची हैं।
ऐसी स्थिति में लड़कियों के प्रति नजराना और उनके पति की सोंच समाज के उन तमाम लोगों के लिए किसी शिक्षा से कम नही जो शिक्षित होने के बाद भी लड़के- लड़कियों मे भेदभाव की मानसिकता के साथ अपने बच्चों का पालन पोषण करते हैं।

29 नवंबर 2016

बेकरी उत्पाद खाने से कैंसर क्यों ?

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मेरा भारत महान
ब्रांडेड कंपनियों के बेकरी उत्पाद में जो खतरनाक केमिकल मिले हैं उनमें से एक है पोटैशियम ब्रोमाइड। दरअसल इस केमिकल का इस्तेमाल आटे को ठीक से गूंथने और उसे बेकिंग के समय ज्यादा फूलने के लिए मिलाया जाता है। इसका इस्तेमाल अगर सही आंच पर और सही समय तक किया जाए तो यह खाद्य उत्पाद से पूरा खत्म हो जाता है ये हवा के साथ गर्मी ज्यादा होने पर क्रिया करता है।अगर उत्पाद जल्दी जल्दी में कम पकाया गया तो उसमें इस केमिकल के छूट जाने का खतरा रहता है। अगर ये केमिकल इन्हीं खाद्य पदार्थों के साथ शरीर में चला जाए तो कैंसर जैसे खतरनाक बीमारी का जनित भी साबित हो सकता है।

इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (IARC) ने इस केमिकल के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। इसके अलावा यूरोपीय यूनियन के देशों, अर्जेंटीना, ब्राजील, कनाडा, नाइजीरिया, दक्षिण कोरिया, पेरू समेत कई अन्य देशों में इस केमिकल के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा हुआ है। श्रीलंका ने इस पर 2001 में प्रतिबंध लगा दिया था जबकि चीन ने भी 2005 में प्रतिबंध लगाया हुआ है। अमेरिका में इस पर प्रतिबंध नहीं है लेकिन बेकरी कंपनियों को उनकी इच्छा पर इसके इस्तेमाल को रोकने को कहा गया है। जबकि कैलिफोर्निया में अगर इस केमिकल का इस्तेमाल हुआ है तो उत्पाद की पैकिंग पर लिखना अनिवार्य होता है। जापानी कंपनियों ने भी इसका इस्तेमाल स्वेच्छा से रोक दिया है।

28 नवंबर 2016

धर्म

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मेरा भारत महान

धर्म जीवन पद्धति और ईस्वर प्राप्ती के संशाधन बताता है। इन दोनों के समावेश से सच्चे धर्म का निर्माण होता है। अच्छा आचरण, विचार और सद्चरित्र ही धर्म है जो व्यक्त्ति नैतिक है, जिसका आचरण पवित्र है, जो अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से निर्वहन करता है तथा जो अपने कर्मों के प्रति निष्ठावान है वही व्यक्ति धार्मिक है। पूजा पाठ किये बगैर भी कोई व्यक्ति धार्मिक हो सकता है। संत रविदास मंदिरों मै बैठकर पूजा पाठ करने के बजाय जूते सिलकर अपने धर्म का पालन करते थे। कवीर शाहिब कभी किशी मंदिर मे नही गए, कोई तिलक या माला धारण नही की लेकिन इन लोगों से बड़ा धार्मिक मनुष्य खोजना बड़ा मुश्किल काम है। इनका चरित्र ही धार्मिक था। ये सम्पूर्ण रूप से धार्मिक थे। 

मूल रूप से धर्म का मतलब होता है जो धारण किया जाये, जो धारण करने योग्य हो। जो विचार, चरित्र और नैतिकता हम जीवन मे धारण करते है वही जीवन पद्धति धर्म है। धर्म का मतलब है कर्तव्य। इसलिए प्रायः लोग कहते भी हैं क़ि पुत्र धर्म,छात्र धर्म,पत्नी धर्म, राष्ट्र धर्म, सामाजिक धर्म इत्यादि। मूल रूप से धर्म वही है जिस पर महापुरुष लोग चलते हैं। जो लोग आगे चलकर लोगों के लिए प्रेरणाश्रोत बन जाते हैं। समाज भी उनको ईस्वर रूप मे स्वीकार कर लेता है। अपनी जीवन पद्धति को और ईस्वर मार्ग मे चलने के लिए अनेक लोगों ने उनके बताये मार्ग का अनुसरण किया। अलग अलग मार्गों का अनुसरण करने के कारण उनके नाम भी अलग अलग पड़ गए परन्तु सबकी मंज़िल एक ही थी। भगवत गीता मै कहा गया है कि अपने कर्तव्य के मार्ग के निर्वहन मै यदि मृत्यु भी हो जाये तो कोई बात नही लेकिन दूसरों के कर्तव्य निर्वहन मे बाधा डालना उचित नही। धर्म का पालन ही अपने नैतिक कर्तव्यों का निर्वहन है। 

27 नवंबर 2016

पारस पत्थर

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मेरा भारत महान
आप सभी ने पारस पत्थर से जुड़ी हुई कहानियां ज़रूर सुनी होगी। पौराणिक कहानियों की मानें तो पारस पत्थर वो चमत्कारी पत्थर होता है, जिससे किसी भी चीज़ को छुआ जाए तो वो सोने की हो जाती है। लेकिन क्या ये पारस पत्थर असल में मौजूद है, या सिर्फ क़िस्से कहानियों का हिस्साभर है? भोपाल से करीब 50 किलोमीटर दूर एक ऐसा किला है, जहां के लिए माना जाता है कि वहां पारस पत्थर मौजूद है। सिर्फ इतना ही नहीं, ये बात भी इलाके में काफी मशहूर है कि इस कीमती पत्थर की रखवाली कोई और नहीं बल्कि जिन्न करते हैं। इस किले का नाम है रायसेन किला।



रायसेन किला पहाड़ी की चोटी पर बना हुआ है। 1200 ईस्वी में बनाए गए इस किले में बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। इस किले की ख़ास बात ये भी है कि माना जाता है कि इसमें दुनिया का सबसे पुराना वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम है। मान्यता है कि इस किले के राजा के पास एक पारस का पत्थर था। इस पारस के पत्थर के लिए कई युद्ध हुए। ऐसे ही एक युद्ध में महाराजा रायसेन हार गए तो उन्होंने इसे एक तालाब में फेंक दिया। ये तालाब किले के अंदर ही है।कहा जाता है कि इस युद्ध में राजा की मौत हो गई थी। मरने से पहले उन्होंने ये किसी को नहीं बताया था कि उन्होंने पारस पत्थर कहां छिपाया है। उनकी मौत के बाद किला तो वीरान हो गया लेकिन पारस पत्थर को ढूंढने कई लोग किले जाने लगे। पर जो भी किले में जाता, उसका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता। मान्यता है कि ऐसा इसलिए होने लगा क्योंकि उस पारस पत्थर की रखवाली जिन्न कर रहे हैं।हालांकि ऐसा नहीं है कि अब पारस पत्थर की खोज होनी बंद हो गई हो। पारस पत्थर और किले के खज़ाने को ढूंढने के लिए अब गुनियां जो कि एक तरह के तांत्रिक ही होते हैं, उनकी मदद ली जा रही है। यहां दिन में घूमने वाले लोग आते हैं, और रात में ये लोग खुदाई करते हैं। इस खोज का प्रमाण वहां मौजूद गड्ढे हैं। बहरहाल, पारस के पत्थर और जिन्न को लेकर अब तक कोई ऐसा सबूत हाथ नहीं लगा है कि पुरातत्व विभाग इसपर कोई कदम उठाए। केवल मान्यताओं और सुनी-सुनाई बातों के आधार पर ये खोज चली आ रही है। लेकिन सोचकर देखिये, क्या हो अगर पारस पत्थर वाकई रायसेन के इस किले में मौजूद हो?

26 नवंबर 2016

झील या मौत

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साउथ अफ्रीका के लिंपोपो प्रांत की फुन्दूज़ी झील। इस झील की सबसे बड़ी खासियत यह है की आजतक इस झील का पानी पीने वाला कोई भी मनुष्य जीवित नहीं बचा। आश्चर्य तो  यह है कि मुटाली नामक जिस नदी का प्रवाह इसमें आता है, उसका पानी एकदम स्वच्छ और पीने लायक है। सवाल यह उठता है कि फिर इसमें कौन सा ऐसा तत्व मौजूद है, जो इसके पानी को  प्राणघातक बना देता है? । यह जानने के लिए समय-समय पर कई प्रयास हुए हैं, पर किसी को भी सफलता हासिल नही हो पायी । रहस्य को जानने की हर कोशिश के साथ कोई न कोई दुर्घटना घट जाती है। आरंभ में इसे मात्र संयोग कहकर टाल दिया जाता था ,किंतु जब प्रत्येक अन्वेषक के साथ इस प्रकार के प्रसंग सामने आने लगे, तो जाँचकर्त्ता सतर्क हो गए और झील के साथ किसी भी तरह की छेड़खानी करने से कतराने लगे।

अंतिम घटना सन् 1946 की है,जब एंडी लेविन नामक एक  रसायनवेत्ता के मस्तिष्क में यह सनक सवार हो गई कि वह उसके जल का रासायनिक विश्लेषण जरुर करेगा।इस बात की भनक जब उसके मित्रों और संबंधियों को मालूम हुई तो उन्होंने लेविन को ऐसा रिस्क न लेने के लिए समझाया, पर वह न माना। एक दिन वह अपने एक सहयोगी को साथ लेकर झील की तरफ चल पड़ा। इस कार्य में सहायता लेने के उद्देश्य से उसने स्थानीय कबीले के लोगों से संपर्क साधा, किंतु पैंडुजी झील का नाम सुनते ही उन्होंने किसी भी प्रकार की मदद करने से इनकार कर दिया। यहाँ तक कि झील तक के मार्ग का  मार्गदर्शन करने के लिए भी वे तैयार न हुए।  तब लेविन और उसके मित्र अकेले ही उस ओर बढ़ गए। कबीले के वयोवृद्ध मुखिया ने ऐसा करने से मना किया, पर उन पर इसका कोई प्रभाव न पड़ा। जब वे वहाँ पहुँच पाते तब तक रात हो चुकी थी। दोनों ने मिलकर वहीं एक पेड़ के नीचे रात गुज़ारी। प्रातः होते ही वे दिनों उठे और अपने साथ लाई बोतलों में परीक्षण के लिए जल भरने लगे। उहोंने पाया कि झील का पानी कुछ गहरे मटमैले रंग का था। लेविन ने झील के पानी की एक बूँद जीभ पर डाली, तो उसका स्वाद साधारण पीने योग्य प्छ यानी से कुछ विचित्र जान पड़ा। पानी का नमूना इकट्ठा कर लेने के बाद उन्होंने झील के आसपास के कुछ पौधों और झाड़ियों को भी एकत्र किया और उन्हें साथ ले जाने के लिए सुरक्षित रख लिया।
वापस लौटते समय उनके साथ अजीबोगरीब घटनाएँ घटती रहीं। उन्हें उत्तर से पूरब की ओर वाले उस मार्ग पर बढ़ना था, जिससे वे आए थे, पर वे चल पड़े पश्चिम के रास्ते पर। आधे से अधिक रास्ता पार कर लेने के उपराँत उन्हें महसूस हुआ कि वे गलत दिशा में बढ़ रहे हैं। लौटकर पुनः झील तक आए और वहाँ से पूरब की ओर बढ़े।अब तक रात घिर आई थी, अतः वे एक स्थान पर रुक गए। सवेरा हुआ, तो पुनः प्रस्थान किया। कुछ दूर आगे जाने पर फिर लगने लगा कि वे गलत मार्ग पर जा रहे हैं । एक बार पुनः दोनों वापस लौटे। इस बार अधिक सतर्कता बरतते हुए सावधानीपूर्वक पूरब के मार्ग पर बढ़े, किंतु नतीजा वही निकला, जिसका डर था । वे फिर भटक गए। अबकी बार खतरा मोल नहीं लेना चाहते थे। पानी से भरी बोतलें झील में डाली, पौधों को वहीं फेंका और सजग रहते हुए बढ़ चले । इस बार वे सफल हुए और सुरक्षित घर पहुँच गए। अब तक लेविन की तबियत काफी बिगड़ चुकी थी। अस्पताल में एक सप्ताह बाद उसकी मृत्यु हो गई। उसका मित्र एक कार दुर्घटना में मारा गया। झील से संबंधित यह तेरहवीं घटना थी। इसी तरह अन्यों में भी सकुशल कोई नहीं बचा।फिलहाल झील के पानी के रासायनिक विश्लेषण होना अभी लंबित ही है।

25 नवंबर 2016

जल्दी उठने के फायदे

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मेरा भारत महान

रात भर देर तक जागना फिर सुबह देर तक सोना,ज्यादातर लोगों की ये ज़िन्दगी आम हो गयी हैं । हर कोई इस दिनचर्या को अपनाने पर मजबूर है। व्ययस्तता की जीवन शैली मे थकान का होना लाज़मी हैं ।परन्तु अगर देखा जाए तो हम अपनी ये दिनचर्या से खुद के शरीर का ही नुकसान कर रहें होते हैं । सेहत इंसान के ज़िन्दगी मे सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण रोल अदा करती हैं। अगर कोई मनुष्य स्वस्थ नहीं तो बहुत कुछ करने की चाहत के बाद भी वह कभी कुछ नहीं कर पायेगा।  बहुत से लोग अपनई सेहत के प्रति बहुत सजग रहते हैं। सेहतमंद इंसान अपने दिन की शुरुआत सुबह-सुबह किये गए कामो से करता हैं। इसमें सबसे बड़ा और कठिन काम हैं सुबह जल्द उठना। सुबह जल्दी उठाना जितना महत्वपूर्ण हैं उतना कोई काम नहीं। सुबह जल्दी उठने के कई फायदे हैं जो आज हम आपको बता रहें हैं।
  • सुबह जल्दी उठने से आप अतिरिक्त उर्जा पा सकते हैं, जिस्से आप दिनभर उर्जावान और चुस्त रह सकते हैं। आपका व्यवहार खुशनुमा रहेगा, चिडचिडा सा मन नहीं रहेगा हर किसी से अच्छे से बात कर पायेंगे। एक सकारात्मक सोच आपके चमकते चेहरे से जाहिर होगी।
  • सुबह जल्दी उठने से आपको दिनभर के लिए बहुत सा समय भी मिल जायेगा, जिसमे आप कई छोटे मोटे कामों का क्रियान्वित भी कर सकते हैं खुद और परिवार दोनों के लिए आप समय निकाल सकते हैं। आपकी अपने और अपनों से ही कई शिकायते दूर होने लगेगी । आपका पारिवारिक जीवन खुशहाल हो जाएगा।
  • जल्दी उठने से दिमाग की सेहत भी बनी रहती हैं। मन एकाग्र बना रहता हैं। हमारे दिमाक के लिए जिस सुद्ध ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ती है वह प्राण वायु सुबह को ही ताज़ा मिल पाती है जो उत्तर दिशा से दक्षिण दिशा को बहती है।  इसलिए सूरज निकलने से पहले दक्षिण दिशा की तरफ जायें और सूर्योदय के समय उत्तर दिशा की तरफ वापस होते हुए अपने घर लौट चलें।इससे आपके ध्यान मे एकाग्रता आएगी और आप हर काम को सावधानी पूर्वक करेंगे और सफल भी होंगे।
  • सुबह जल्दी उठकर आप व्यायाम और योग भी कर सकते है। योग भी एक तरह का प्राणायाम है।यानि प्राणों का आयाम। प्राण है तो जीवन है। वायु ही प्राण है जिसका सुद्ध रहना जरूरी है।सुबह उठकर आप पूरे दिन मानसिक रूप से तंदरूस्त रह सकते हैं।
  • अगर आप सुबह जल्दी उठेंगे तो सूरज की पहली किरण आपके आँखों के लिए फायदेमंद साबित होगी। इससे आपको भरपूर विटामिन डी मिल जायेगा। इसके साथ सुबह की ताज़ा धुप आपके शरीर को मज़बूत करेगी ,जो की आपके जोड़ो और हड्डियों के लिए फायदेमंद साबित होगी। सुबह की हवा एक दम स्वच्छ होती हैं ।जो सीधे सांस के माध्यम से शरीर के अन्दर ऑक्सीजन पहुचाने का काम करेगी।अतः घूमते वक्त गहरी साँसें लेनी चाहिए।

24 नवंबर 2016

धन और समाज

ca-pub-6689247369064277                                  मेरा भारत महान                                                         
                                              आजकल हमारे देश मे नोटों को लेकर काफी उथल पुथल मची हुई है।जेब मे पैसे हैं, जिनकी कोई कीमत नही।कागज के नोट हों,चाहे सोना  चाँदी हो या जमीन जायदाद, हमें इनको इकट्ठा करने का बड़ा सौक है। लोग ऐसी से प्रसंन्न होते हैं कि हमारे पास इतनी दौलत है। इसका उपयोग करने का ख्याल उनको नही आता। लेकिन दुनिया के कई देशों मे आप जायें तो वहां दौलत को जमा करने का इतना पागलपन नही दिखाई देता। आखिर धन के बारे मे हमारा रवैया इतना असैंर्गिक क्यों है?  एक तरफ आध्यात्मिकता की ऊंचाई और धन की इतनी पकड़।                                                                  हमारे धर्मो ने हमको समझाया कि धन व्यर्थं है, मिट्टी के समान हे। इससे धन की आकांसा तो नही छूटी, बल्कि उसके प्रति एक गलत रवैया पैदा हो गया। पूरा देश धन के लिए बीमार हो गया।जिसके पास दौलत नही है, वो दौलत न होने से दुखी है और जिनके पास धन है वो दौलत होने से दुखी है। जिस समाज मे दौलत को इकट्ठा करने वाले लोग पैदा हो जाते है,उस समाज की जिंदगी रुग्ण हो जाती है। दौलत को भोगने वाले लोग समाज मे होने चाहिए, जो दौलत को खर्च भी करते है और दौलत को फैलाते भी हैं। परंतु अपने वहां आदमी दौलत को इसलिए कमाता है, कि उसे तिजोरी मे बन्द करे। जितना धन तिजोरी मे बन्द होता है, उतना धन समाज के लिए व्यर्थ हो जाता है। धन समाज की रगों मे दौड़ता हुआ खून है यह जितनी तेजी से दौड़ेगा, उतना ही उस समाज आदमी जवान होगा। जहां जहाँ खून रुकेगा, वही वहीं बुढापा सुरु ही जायेगा।यही हालत भारतीय समाज की हो गयी है।               पैसे को लेकर एक असुरक्षा बोध है। हमारे लोगों के मन मे है कि पता नही कल क्या होगा, इसलिए धन को जमा करो और आज खर्च मत करो।जबकि पैसा एक ऊर्जा है, और इस ऊर्जा को बदलते रहना चाहिए। इसी मे ही देश और समाज की भलाई है। 

23 नवंबर 2016

ढाक के तीन पात

ca-pub-6689247369064277                                  मेरा भारत महान                                                           विपत्ति मे कहा जाता है कि मनुष्य को भगवान अवश्य याद आते है। यही नही यह भी कहा जाता है कि मनुष्य मे सदबुद्धि का उदय होता है और पिछले किये गए कुकर्मों के लिए पछतावा भी होता है। मगर ब्रिटैन इसका अपवाद दीखता है।ब्रिटिश साम्राज्य वर्तमान मे घोर संकट से गुजर रहा है।जब वायसराय ने पूर्वीय साम्राज्य परिषद का उदघाटन करते हुए अंत मे कहा था कि वे आसा करते हैं कि अन्य पुराने साम्राज्यों की तरह ब्रिटैन का सूर्य अस्त नही होगा, तब उनका गला भर आया था और उनकी आंखें भर आयी थी। इस घटना से वहां उपस्थित लोगों को साम्राज्य पर आये संकट का कुछ आभास मिल गया था। यह होते हुए भी ब्रिटैन ने अपना मार्ग नही बदला और न ही अपनी नीति मे ही कोई परिवर्तन किया। न ही उनके बोलने मे कोई बदलाव आया और न ही उनके व्यवहार मे कोई फर्क पडा। कारण कुछ भी हो, तथ्य ये है कि साम्राज्य पर घोर संकट की काली घटा आने पर भी ब्रिटैन ने अपना मार्ग नही बदला है।और न ही पिछले कुकृत्यों के लिए खेद प्रकट किया है। विपत्ति मे भी अपने निश्चित पथ को न छोड़ना सचमुझ वीरता और साहस का कार्य है। मगर यह वीरता और साहस उसी समय सोभा देते हैं, जब न्याय के पथ पर हों, अन्यथा पथ पर द्रढ रहना वीरता नही दुराग्रह है।

22 नवंबर 2016

मच्छर को मारने के लिए बन्दूक का इस्तेमाल।

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मेरा भारत महान

पाकिस्तान के कारण भारत पर परमाणु बम के इस्तेमाल का खतरा बढ़ गया प्रतीत होता है। लगता है पाकिस्तान द्वारा विकसित किये छोटे परमाणु हथियार के इस्तेमाल की जिम्मेदारी निचले क्रम के सेना अधिकारियों को सोपी जा सकने की पूरी सम्भावना है ताकि वे भारत के खिलाफ युद्ध क्षत्र मे इनका इस्तेमाल कर सकें। ऐसी स्तिथि आयी तो परमाणु युद्ध की आसंका बढ़ जाती है। क्योंकि भारत इसका जबाब व्यापक रूप से देगा।
पहले के मुकाबले भारत की  सहनसीलता अब जबाब देने लगी है। भारत को अब लगने लगा है कि लातों के भूत बातों से मानने वाले नही है। पाकिस्तान के किसी आतंकवादी हमले का जबाब परमाणु हथियारों से देना, किसी मच्छर को मारने के लिए बन्दूक का इस्तेमाल करने जैसा हो सकता है।

21 नवंबर 2016

हैंग टिल डेथ।

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मेरा भारत महान

आज़ादी से पहले भारत कई रियासतों मे बंटा हुआ था। उस समय  रियासतों के प्रमुख को राजा नाम से जाना जाता था। 1947 की आज़ादी से पहले 1861 मे आगरा मे जन्मे तथा इलाहाबाद के मशहूर वकील मोती लाल नेहरू हुआ करते थे। उनके पिता का नाम गंगाधर था। मोती लाल नेहरू की काबलियत के कारण ही अंग्रेजों के ब्रिटिश क़ानून मे एक बहुत बड़ा बदलाव हुआ था। वह फांसी को लेकर था। हुआ यह कि पंजाब के महाराजा गुलाब सिंह ,जो 7200 वर्ग किलोमीटर की कश्मीर घाटी की रियासत के प्रमुख थे, अंग्रेज़ो के क़ानून के कारण दण्डित किये जाने थे। जिसमें उनको मृतयु दंड भी मिल सकता था। उनकी रियासत कश्मीर घाटी जिसको धरती का स्वर्ग भी कहा जाता है, मे अंग्रेज़ो की नजर थी। इसलिए  महाराजा को अपने शिकंजे मे कसने के लिए अंग्रेजों ने उनके ऊपर हत्या के आरोप के ऊपर मूकदमा दर्ज किया था। मुक़दमे की सुनवाई लंदन की अदालत मे चल रही थी। महाराजा बहुत सेठ थे, रूपये पैसे, हीरे जवाहरात, बेशकीमती जमीन के राजा थे।परंतु इतना होते हुए भी वह फांसी की सज़ा हो जाने से चिंतित थे । अब उनको एक ऐसे वकील की जरूरत थी जो अंग्रेजों की अदालत मे उनका मुकादमा लड़ सके और उनको मृतुदंड से बचा सके। उनको आखिर सूत्रों से मोती लाल नेहरू के बारे मे जानकारी मिल गयी कि वे इलाहाबाद के ही नही भारत के सबसे मशहूर वकील है। इलाहाबाद आकार महाराजा ने उनसे संपर्क किया और अपनी व्यथा सुनाई। काफी ज्यादा धन संपत्ति के लालच मे मोती लाल नेहरू उनका मुकदमा लड़ने को तैयार हो गए और महाराजा गुलाब सिंह को ये आस्वासन दिया कि वह उनको मृत्यु दंड से बचा सकते है जिसके लिए उनको बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। अंग्रेज़ो की ही अदालत और अंग्रेजों के ही कानून से पार पाना बड़ा मुश्किल काम है। फिर भी वे अपनी तरफ से पूरी जिरह करेंगे। मुकुदमे की कई तारीकेँ लग चुकी थी,परंतु मोती लाल  महाराजा के बचाव मे कुछ भी जिरह नही के रहे थे। ऐसा देख महाराजा बहुत चिंतित थे। अंग्रेजों ने मोती लाल से पूछा कि यदि आपको गुलाब सिंह के मृत्यु दंड के बारे मे कोई सफाई देनी है तो अदालत को बताइये, अन्यथा अदालत इस निर्णय पर पहुची है कि कल सवेरे 5 बजे महाराजा गुलाब सिंह को फाँसी के तख्ते पर लेजाकर फांसी दे दी जायेगी। मोती लाल  ने इतना ही कहा कि अदालत इनकी फांसी की सज़ा को माफ़ कर दे क्योंकि इनके ऊपर पहले कोई आपराधिक मामला दर्ज नही हुआ है। लिहाजा फांसी की सज़ा को न देकर कालापानी की सज़ा  देकर इनके मुकुदमे को जारी रखा जाए। अंग्रेजों के मोती लाल की एक न सुनी। महाराजा की फांसी तय समय थी। अगले दिन सुबह 5 बजे महाराजा को फाँसी पर लटका दिया गया। मोती लाल भी वहां मौजूद थे।अंग्रेजी कानून मे फांसी को एक निश्चित टाइम के लिए ही लटकाया जाता था और मान लिया जाता था कि इतने अंतराल मे मनुष्य की मौत निश्चित है। फांसी का निश्चित समय खत्म हुआ तो महाराजा गुलाब सिंह धरती पर पड़े थे। तभी मोती लाल महाराजा के पास गए और उनके सीने को जोर जोर से दबाने लगे और मुँह से सांस भी देने लगे। थोडी देर बाद महाराजा की सांस वापस आ गयी। और वे फिर से खड़े हो गए। अँगरेज़ यह देखकर भौंचक्के रह गए की फांसी के बाद भी महाराजा की मौत नही हुई। इसलिए उन्होंने जल्लाद से कहा कि इसको दुबारा फांसी पर चढ़ाया जाए। परंतु मोती लाल ने इस पर आपत्ति जताई कि आप कानून के मुताबिक महाराजा को दुबारा फांसी नही दे सकते। इस पर अँगरेज़ स्तब्ध और मौन थे। क्योंकि उनके क़ानून मे केवल एक ही बार फाँसी देने का प्राविधान था। आखिर कार महाराजा को मोती लाल ने बचा ही लिया। इस वाकये के कारण अंग्रेजों को अपने क़ानून मे बदलाव करना पड़ा। तभी से "हैंग टिल डेथ " का नया क़ानून लागू किया गया। मोती लाल को इस केश को लड़ने के बाद अंग्रेजों ने पंडित की उपाधि से सम्भोदित किया। तभी से उनको पंडित मोती लाल नेहरू के नाम से जाना जाता है। 

20 नवंबर 2016

ग्रह नक्षत्र गोल या अंडाकार।

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मेरा भारत महान



आपने बचपन से सुना होगा, पृथ्वी गोल है,चंदा गोल है, ग्रह नक्षत्र भी गोल है , लेकिंन थोड़ा पढ़ लिख लेने के बाद हमको पता चलता है कि  न तो पृथ्वी गोल है न चंदा गोल है और न सूरज गोल है।आज वैज्ञानिक यह दावा करते है कि इस ब्रह्माण्ड मे कोई भी चीज गोल नही हो सकती,  परंतु ये बात आज से 500 वर्ष पहले भारत मे जन्मे एक महान संत कवीरदास ने दुनिया के सामने वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बतायी थी। उन्होंने ग्रहो के आकार, उनकी चाल, उनका रंग और तो और वे जिस मिश्रण के बने है उसका स्वाद भी बता दिया था। उनका कहना था कि ब्रह्माण्ड मे जितने भी ग्रह नक्षत्र और तारे है, वे गोल न होकर अंडाकार है। इतना ही नही इन ग्रहों की कक्षाओं का आकार भी अंडाकार है। ये इसलिए होता है कि इन पर दो तरह के बलों का प्रभाव होता है, जो गुरुत्वाकर्षण बल के कारण होता है। 

19 नवंबर 2016

जो जिससे घिरा हो वो वही बाँटता है।

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मेरा भारत महान

एक कार ड्राइवर बड़े आराम से कार चलाते हुए रेलवे स्टेशन जा रहा था। तभी रोड की पार्किंग से एक ट्रक रोड मे आ गया। कार वाले ने बहुत जोर से ब्रेक लगाकर कार को ट्रक से टकराने से बचा लिया। ट्रक चालक कार वाले को भला बुरा कहने लगा, जबकि गलती ट्रक वाले की थी। कार वाले ने ट्रक ड्राइवर की बात को अनसुना करते हुए क्षमा मांगी और आगे बढ़ गया। कार मे बैठे व्यक्ति को ट्रक चालक की बातों पर गुस्सा आ रहा था। उसने कार वाले ड्राइवर से कहा कि तुमने ट्रक ड्राइवर को ऐसे कैसे जाने दिया और गलती उसकी होते हुए भी माफ़ी क्यों मांगी? वो तो हमारी किस्मत अच्छी थी, वरना हम अभी हॉस्पिटल मे होते। कार वाले ने ट्रक ड्राइवर से कहा, सर! कुछ लोग कूड़े के ट्रक के समान होते है। क्योंकि उनके दिमाग मे बहुत सारा कूड़ा भरा होता है।जिसकी जीवन मे कोई आवश्यकता नही होती। ऐसे लोग गुस्से,घृणा,चिंता और निराशा को बड़ी मेहनत से जोड़ते रहते हैं।जब उनके दिमाग का कूड़ा भर जाता है तो वो अपने को हल्का करने के लिए अनाप सनाप बोलकर अपने को हल्का करने के लिए अपने दिमाग का कूड़ा दूसरों पर फेंक देते है। इसलिए मे ऐसे लोगों से दूरी बनाकर रहता हूँ और दूर से ही मुस्कराकर उनको अलविदा कर देता हूँ। अब यदि मेने उनके कूड़े को स्वीकार कर लिया तो मेरा दिमाग भी कूड़े का भण्डार बन जायेगा और फिर मुझे भी इसको हल्का करने के लिए इसको दूसरों पर फैंकना ही पड़ेगा। मे सोचता हूँ कि छोटी सी ज़िन्दगी मे लोगों से अच्छा व्यवहार किया जाए, प्रेम बांटा जाए, मिल जुलकर रहा जाए, पूरा दिन मुस्कुराकर जीवन के ज्यादा से ज्यादा समय कट जाए। हमको याद रखना चाहिए कि मानसिक रोगी की जगह अस्पताल होती है परंतु कुछ लोग रोड मे भी घूमते मिल जाते है जैसे आपने इस ट्रक ड्राइवर को अभी अभी देखा। प्रकृति के कुछ नियम होते है। जैसे यदि आप खेत मे बीज न डालें तो कुदरत उसे घासपूष से भर देती है। इसी प्रकार यदि दिमाग मे सकारात्मक विचार न डाले जायें तो दिमाग मे नकारात्मक विचार अपनी जगह बना लेते है। दूसरा नियम है कि जिसके पास जो होता है वो वही बाँटता है। जो सुखी होगा वो सुख बांटेगा और जो दुखी होगा वो दुःख बॉटने के अलावा और क्या बाँट सकता है ? 

18 नवंबर 2016

क्रांतिनायक नरेद्र मोदी

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मेरा भारत महान

इससे पहले कि मैं अपना लेख प्रारम्भ करू मैं एक कहानी जो मैंने बचपन मे पढी थी आपको सुनाना जरूरी समझता हूँ. एक चित्रकार थे उन्होने एक बहुत ही बडे चित्रकार से शिक्षा ली. समय के साथ वह प्रसिद्ध भी हो गये. एक दिन उनके मन मे विचार आया कि चलो जनता से ही सच्चाई जान ले कि वह कितने बडे चित्रकार हैं. इसके लिये उन्होने एक पेंटिंग बनायी और उसे शहर के चौराहे पर टांग दिया और साथ ही यह बोर्ड भी लगा दिया कि जिस किसी को भी इस चित्र मे कोई कमी किसी जहग पर नज़र आये तो वह उस पर निशान लगा दे. अगले दिन जब वह चित्रकार अपनी पेंटिंग देखने जाता है तो पाता है कि सारी ही पेंटिंग पर कमी होने के चिन्ह लगे हैं. इससे वह चित्रकार बहुत निराश हुआ, उसे लगा कि वह तो चित्रकारी जानता ही नही है. उसकी अब तक की सारी शिक्षा, मेहनत बेकार ही साबित हुई. उस निराश चित्रकार ने अपनी पेंटिंग उठाई और अपने गुरु के पास गया. गुरु ने चित्रकार से पूछा कि क्या बात है? तुम इतने निराश, हताश से क्योँ दिख रहे हो. तो चित्रकार ने अपनी पेंटिंग दिखाते हुए सारी घटना का विवरण गुरु जी को दिया. तब गुरु जी ने कहा कि तुम अव इससे बुरी पेंटिंग बनाओ और इस बार पट्टी लगाओ कि जिसे जो भी कमी इस चित्र मे नज़र आती है उसे सुधार दे. चित्रकार ने वैसा ही किया और जब अगले दिन वह उसी चोराहे पर अपनी पेंटिंग को देखने गया तो उसमे किसी ने कोई सुधार नही किया. अब चित्रकार को गुरु जी के कथन का अर्थ समझ मे आ गया.

अब बात करते हैं हमारे प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी जी की. उन्होने 8 नवम्बर की रात 8 बजे से 500 और 1000 के नोट का चलन बंद कर दिया है. अब इस पर विपक्ष गलतिया निकाल रहा है. कुछ लोग समय सीमा बढाने की मांग कर रहे हैं. पर इस तरह तो कालेधन की जिस समस्या से निपटने के लिये यह कदम उठाया गया है वह बेकार हो जायेगा, समय ही तो नही देना है कालाधन रखने वालो को. इतने कम समय देने के बाद भी जब कुछ लोग अपने - अपने जुगाड से कुछ न कुछ तो कालेधन को बदलने मे लगे हैं तो समय मिलने पर तो योजना का बंटाधार ही हो जाता. आमजनता की परेशानी के नाम पर यह राजनितिक दल अपनी अपनी राजनितिक रोटियाँ सेकने मे लगे हैं. अधिकतर आम जनता तो यही कह रही है कि हम यह परेशानी झेलने के लिये तैयार हैं.

लाइने कम क्योँ नही हो रही? मैं टी वी पर लम्बी - लम्बी कतारेँ देख रहा था जो दिल्ली की थी. हमारे छोटे शहर मे तो 50 से 100 लोगोँ तक की ही लाइन दिख रही थी. मैं शनिवार को ही चेक से 10,000 रुपये निकाल कर लाया. कुल 15 मिनट के करीब लगे पैसे लेने मे. मेरे आगे एक अधेड महिला खडी थी और एक बुजुर्ग थे मैंने उन दोनो से निवेदन किया कि आप कुर्सी पर बैठ जाँय, जब उनका नम्बर आयेगा तब ही काउंटर पर आये. मेरे से आगे सिर्फ 10-12 लोग थे. दोनो ही बहुत खुश हुए. इस बीच एक परेशान सेना के व्यक्ति भी आये उन्हे बहुत जरूरत थी और समय उनके पास नही था उन्हे मैंने अपने से पहले आने दिया. यह सेना के प्रति मेरा सम्मान था. अन्य किसी ने भी एतराज नही किया. ज्यादा लाइन ए टी एम पर और 4000 रुपये बदलवाने वालो की थी. बाद मे पता किया तो कारण समझ मे आया. कुछ व्यापारियो, विजनेस करने वालोँ ने अपने कर्मचारियो को चार - चार हजार की 3-4 गड्डियाँ थमा रखी थी. जो अपने एकाउंट मे अपनी - अपनी आई डी के साथ जमा कराने के लिये दे रखे थे. अब यह लोग एक बर पैसे जमा करा कर फिर से लाइन मे लग रहे थे इसलिये लाइन कम नही हो रही हैं. कल ही मेरे एक पत्रकार मित्र ने एक जानकारी दी कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत के आफिस के बाहर असाधारण भीड़ देखी गयी. जासूसी करने पर पता चला कि उन्होने भी अपने कर्मचारियोँ, अजीजो, यहाँ तक कि अपने सुरक्षा कर्मी पुलिस वालोँ को भी नोट बदलने के लिये दिये. अब ऐसा ही अन्य दलोँ के नेता भी कर रहे होंगे इसमे संदेह नही हो सकता. यही कारण है कि भीड़ कम नही हो रही है. मैंने तो 5000 रुपये अन्य जरूरत मंद रिश्तेदारोँ को दे दिये. ऐसे समय पर दूसरोँ के काम आना ही मानवता है. बाकी पांच हजार से तो मेरा पूरा महीना चल जायेगा. मुझे 100 के नोट की गड्डी दी थी बैंक ने. तो इस तरह मैंने एक व्यक्ति ने तीन लोगोँ की सहायता कर दी. ऐसा ही सब करेँ तो दिक्कत नही होगी.
अब याद करते हैं वह समय जब मोरारजी देसाई ने 1000, 5.000 और 10,000 के नोट बंद किये थे 1978 मे. उस वक्त आम जनता को कोई परेशानी नही हुई थी. क्योंकि आम जनता के पास अधिकतम 100 रुपये का नोट होना भी बडी बात थी. मेरे पिताजी का वेतन मात्र 400 रुपये था. ऐसे कम ही लोग रहे होंगे जिनका वेतन 3 - 4 हजार से उपर रहा होगा. तो इससे पहले तो सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस की सरकार थी तो यह 1000, 5000, और 10,000 के नोट कांग्रेस सरकार क्योँ लायी थी. हमने तो यह नोट देखे भी नही थे. यह कालाधन रखने वालोँ की सुविधा के लिये ही लाये गये थे. इसमे किसी को कोइ संदेह नही होना चाहिये. कांग्रेस ने ही इस देश मे कालेधन की समस्या पैदा की है. कांग्रेस ने ही इस देश को वह रास्ता दिखाया कि कैसे कालाधन बनाया और छुपाया जा सकता है. आज परेशानी इसलिये हो रही है क्योंकि आम लोग भी 500 और 1000 का नोट रखते हैं. इसकी जरूरत सभी को है. पर हम भी सन्यम से काम नही लेते. एक अफवाह क्या उडी की सभी नमक पर टूट पड़ते हैं, नमक की बोरी तक खरीदने के लिये लोगोँ के पास पैसे थे तो क्या घर खर्च चलाने के लिये नही थे. जब नमक के लिये यह हाल था तो फिर यह तो नोट का मामला है. आप ध्यान देँ कि बिजली, पानी, स्कूल फीस आदि जमा कराने के लिये हम अंतिम तारीख का इंतजार करते हैं. अंतिम दिन ही भीड होती है. पर अब सभी को सबसे पहले नोट निकालने हैँ अब कुछ दिन का इंतजार नही कर सकते जब भीड कम हो जायेगी. अब जिसे जरूरी है उसी को पहले नोट निकालने देँ तो कोई समस्या नही रहेगी.
अब बात करते है इस आरोप की कि सरकार ने पहले ही ए टी एम मे जरूरी फेरबदल क्योँ नही किये ताकि जनता को परेशानी न हो. क्योंकि अब तो वित्त मंत्री और आर बी आइ ने भी कह दिया है कि ए टी एम के सोफ्टवेयर मे बदलाव की जरूरत है और यह वह पहले से ही जानते थे पर कर नही सकते थे क्योँकि इससे गोपनीयता भंग होती. बैंक वालो को तो पता चलता ही और उससे आगे भी बात सारे देश मे और पाकिस्तान मे वैठे नोट छापने वालो और देश के अंदर कालाधन रखने वालो को भी पता लग जाता. फिर भी इतने दिन क्यो लग रहे है? इसका उत्तर जानने के लिये मैंने एक बैंक मेंनेजर से बात की तो उन्होने बताया कि ए टी एम मे जो सोफ्टवेयर हैं वह दो विदेशी कम्पनियोँ के है. हर क्षेत्र मे सिर्फ एक ही इंजीनियर होता है जो इसका जानकार होता है. क्योंकि उन्हे भी इसमे गोपनीयता बनाये रखनी होती है. इसलिये इसमे समय लगेगा. इससे समझ मे आया क्योँ मोदी ने 50 दिन मांगे हैँ.
अब एक और आरोप आ रहा है कि किसी ने तो 6 तारीख को ही फेस बुक पर 2000 के नोट की तस्वीर डाल दी थी. इसका उत्तर भी जेटली ने दे दिया है. कि नोट तो पहले से ही छापे जा रहे थे और 6 तारीख को वह दस विभिन्न केंद्रोँ मे गोपनीयता के साथ ही पहुंचाये गये और वहाँ से बैंक मे जाने थे. इसी समय किसी कर्मचारी ने 2000 के नोट की फोटो खींची और फेसबुक पर डाल दी. मेरे विचार मे अब इस व्यक्ति पर कठोर कार्यवाही की जानी चाहिये जिसने इस गोपनीयता को भंग किया. अब सवाल यहाँ पर यह है कि मात्र 10 स्थानो पर नोट ले जाने पर गोपनीयता भंग हो गयी तो अगर सारे देश मे सारे बैंको मे और सारे ए टी एम मे एक साथ नोट पहुंचाने की कोशिश पहले से की गयी होती तो कितने दिन पहले यह काम शुरु करना पडता और कितने पहले ही यह गोपनीयता भंग हो जाती? कितनी भी कोशिश कर लो सभी बैंको तक और ए टी एम तक एक दो दिन मे यह काम हो ही नही सकता था. फिर क्योंकि फेस बुक पर लोग फोटोशोप करके अनाप - शनाप फोटो और अफवाह फैलाते रहते है. इसलिये इस पर किसी ने ध्यान नही दिया. और यह अच्छा ही हुआ. इस फोटो की खबर केजरीवाल को भी 11 तारीख को लगी तो बाकी को क्या लगती. जनता को भडकाने के लिये अब राजनीतिक दल भी मैदान मे आ चुके है. आप टी वी पर दिखायी जाने वाली भीड़ पर गौर कीजिये इसमे भीड़ बढाने के लिये लोग बिठाये गये है. कल तो मोदी मुर्दाबाद के नारे लगवाये जा रहे थे और नारे लगाने वाले कुछ तो बच्चे थे और कुछ भाडे के. एन डी टी वी पर जब ए टी एम के आगे की भीड़ मे खड़े युवक से परेशानी पूछी तो उसने बता दी पर जब वह कहने लगा कि मोदी ने अच्छा .... तो माइक उसके आगे से हट गया. शाम को एन डी टी वी की बहस मे खास जे एन यु से प्रोफेसर बुलाये गये पर अच्छा था कि पूर्व आर बी आइ गवर्नर भी थे जिन्होने इस कदम पर मोदी का समर्थन किया, दोनो प्रोफेसरो ने क्या कहा  कहने की जरूरत नही है क्योंकि जे एन यु से थे. पर अफसोस इस बात का था कि वह तर्क नही कुतर्क कर रहे थे.
कश्मीर मे 8 तारीख के बाद से ही पत्थरबाजी बंद है. जो काम पेलेट गन से न हो पाया मोदी के इस एक फैसले ने कर दिया. अब गनी लोन आदि के पास तो पाकिस्तान से आये 500 और 1000 के नोट ही हैँ जो अब चल नही रहे है तो पत्थरबाज बेकार हो गये. देश ही नही विदेशोँ मे भी मोदी के इस सराहनीय कदम की तारीफ हो रही है. पाकिस्तान मे भी मांग हो रही है कि मोदी जैसा फैसला यहाँ की सरकार क्योँ नही लेती. भ्रष्टाचार और कालाधन तो वहाँ भी है. जनता तो वहाँ की भी परेशान है. हमारे शहर मे कुछ बिल्डर, व्यापारी, डाक्टर को दिल का दौरा पड़ चुका है. देश के युवराज लाइन मे लग गये है. जो जनता आज लाइन मे लगी है कष्ट मे है कल उन्हे ही महसूस होगा कि अब देश भी जो पटरी से उतर चुका था वह भी लाइन पर आ गया है.
यह भारत की आर्थिक आज़ादी है और इसके नायक है नरेद्र दामोदरदास मोदी.
भारत माता की जय! वंदे मातरम! 

17 नवंबर 2016

किस तरह हो सकता है पृथ्वी का अंत

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पृथ्वी हमारा घर है और हम इस ग्रह पर आदिकाल से रहते आये हैं, सौर मंडल के इस तीसरे ग्रह पर ही अभी तक जीवन पाया गया है। वैज्ञानिक मानते हैं कि पृथ्वी का जन्म आज से करीब 450 करोड़ वर्ष पहले हुए था। इस ग्रह पर जानवर मनुष्य और करोडो प्रजातियां रहती हैं और अपना जवन-यापन करती हैं। वैज्ञानिक आज भी हमारे इस अद्भुत ग्रह के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि इसकी संरचना आज से करीब 450 करोड वर्ष पहले आरंभ हुई थी, विज्ञान पृथ्वी के जीवन के बारे में ज्यादा नहीं जानता है। इस प्रकार पृथ्वी रहस्य ही है जबसे हम मानवों ने विज्ञान की दृष्टि विकसित की है तबसे हमें एक सवाल हमेशा से ही आस्चर्य में डालता है कि आखिर पृथ्वी का अंत होगा कैसे किन कारणों से पृथ्वी पर मानव और अन्य प्रजातियां नष्ट हो जायेंगी।वैज्ञानिक द्रष्टीकोण से इस केमिस्ट्री को देखा जाए कि कैसे तत्व ही तत्व का नास करता है ? पृथ्वी तत्व को जल तत्व अपने आप मे घोलित कर लेता है, पृथ्वी तत्व रहता ही नही।  जल तत्व को अग्नी तत्व सुखा देती है, जल रहता ही नही। अग्नी तत्व को वायू तत्व बुझा देती है, अग्नी रहती ही नही। वायू तत्व को आकाश तत्व विलोम कर देता है।वायू तत्व रहता नही। सब तत्वों के समाप्त होने के बाद भी अंतिम तत्व बचा रह जाता है, उसको समाप्त करने की ताकत केवल वह एक मे है जो है वह अंतिम ,सर्वशक्तिमान, सबका पिता, सबका मालिक । वह जब तक चाहे सृस्टि को बनाये रखे, यह उसकी अपनी इच्छानुसार तय है , यह कार्य उसके अलावा अन्य कोई नही कर सकता। 

16 नवंबर 2016

चाँदी का नामकरण ।

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मेरा भारत महान

बचपन से हम सभी भारतीय मुद्रा के नाम से  रुपये को जानते है। परंतु कुछ ही लोगों को पता होगा कि इसका नाम कहाँ से आया और रुपया नाम पड़ा। वैसे तो भारत के पड़ोसी देश जैसे नेपाल,पाकिस्तान, श्री लंका, मालदीप और इंडोनेशिया की मुद्रा भी रूपये है।परंतु भारत से ही ये नाम वहां पहुचा है।

 


प्राचीन समय मे रोम मे चाँदी के सिक्के को दिनारियस कहा जाता था, जिस कारण उसके पडोसी देशों द्वारा दीनार शब्द को अपना लिया। आज दिनारियस को इराक़, कुवैत, लीबिया, अल्जीरिया, जोर्डन, सर्बीया और ट्यूनेशिया मे  दीनार कहा जाता है।



यूरोपीय देशों अमेरिका, न्यूज़ीलैंड,ताइवान,सिंगापुर, ब्रुनेई, हांगकांग,वैलीज़,जमैका, सूरीनाम और ऑस्ट्रेलिया मे इस्तेमाल की जाने वाली मुद्रा डॉलर भी चाँदी नाम से ही आयी है। यूरोपीय देशों मे चाँदी को पहले थोलर कहा जाता था। इसलिए यह थोलर से डॉलर हो गया। इस प्रकार जिन देशों मे भी उनकी मुद्राओं के नाम चाहे जो भी हों, वे सब चाँदी से ही आयी है।

15 नवंबर 2016

अब जाके घटा स्विस बैंक मे काला धन।

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आपको यह जानकर खुसी होगी कि स्विस बैंक के रिकॉर्ड के अनुसार  विगत 2 वर्षों मे धन रखने वाली सूची मे भारत 75 वें स्थान से खिसककर 37 वे स्थान पर आ गया है। स्विस बैंक मे रखा कुल 98 लाख करोड़ मे से 24 प्रतिशत यानि 23.5 लाख करोड़ तो केवल ब्रिटैन का ही है। इसके बाद अमेरिका का नम्बर आता है जिसका प्रतिशत 14 यानि करीब 14 लाख करोड़ है।अन्य देशों का हिस्सा 10 प्रतिशत के आसपास है। 


काला धन रखने वालों की सूची मे वेस्टइंडीज़, जर्मनी,बहामास,फ्रांस,गर्नसी, लुग्जम्बुर्ग,होंगकोग,और पनामा शीर्ष मे आते है। ब्राजील,रूस,भारत, चीन,अफ्रीका 17वे स्थान मे है जबकि भारत का पड़ोसी पाकिस्तान 69 वे स्थान पर है। भारतवासियों मे मोदी के आने के बाद कालाधन रखने वाले सफेदपोश डरे और सहमे है, जिससे देश की अर्थव्यस्था मे सुधार होने के संकेत मिलना सुरु हो गए हैं।

14 नवंबर 2016

बगैर नोट के वोट मिलेगा?

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भारतीय लोकतंत्र मे आजकल नोट बन्द हो जाने के कारण भूचाल आया हुआ है। जब से प्रधानमंत्री ने इसका एलान किया है, कुछ पार्टियों के नेतागण उनके पीछे हाथ धो कर पड़ गए है कि 500 और 1000 के नोटों को बंद करना लोकतंत के हित मे नही क्योंकि इससे लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहां है। इन पार्टियों मे प्रमुखतया कांग्रेस, सपा, बसपा, लेफ्ट, आप और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख हैं। जानकार लोगों का मानना है कि इन पार्टियों के नेताओं को भारतीय जनता की चिंता से ज्यादा अपनी चिंता सता रही है कि बिना नोट के अब वोट कैसे मिलेगा? । कुछ नेताओं ने तो इस फैसले को तुरंत वापस लेने की बात तक कह दी है। परंतु कुछ नेता ऐसे भी है जो कह रहे है कि इन लोगों का रखा हुआ नोट अब रद्दी हो गया है। यह सब काला और हवाला का पैसा था जो चुनाओं के लिए तैयारी मे इन नेताओं ने जमा कर रखा था। वो सारे नोट अब एक कागज के समान हो गए है। और अब इन नेताओं को चिंता है कि वोट कैसे मिलेंगे? ।

13 नवंबर 2016

वक़्त की हर सह गुलाम।

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कभी हम शिकवा करते हैं, कभी शिकायतें करते हैं, कभी रूठ जाते हैं, कभी मान जाते हैं, कभी हंसते हैं, कभी रोते हैं और ना जाने अपनी जिंदगी में क्या क्या करते हैं।  फिर भी हम जिंदगी से खफा रहते हैं।  बहुत कुछ पाने की होड़ में जो कुछ हमारे पास होता है हम उसे भी खो बैठते हैं। हम खुद को तो संभाल नहीं सकते, तो फिर इतना कुछ कैसे संभालेंगे। भगवान ने भी  क्या सोच के इंसान को बनाया था। इंसान तो बन गए लेकिन इंसानियत क्या होती है, यह हम अभी सीखने मे ही हैं। हर पल कुछ ना कुछ बेकार में सोच के अपने आपको परेशान करते रहते हैं। चैन से बैठकर कभी आराम भी नहीं कर सकते। कितना भागेंगे हम? 


हम शिकायत क्यों करते हैं, क्योंकि हमें कुछ अच्छा नहीं लगता। हम शिकवा क्यों करते हैं, क्योंकि हमें कोई अच्छा लगता है। कोई हमें देखकर हमसे नज़र चुरा ले , तो हम पर कयामत टूट पड़ती है। आप इतना कुछ दुनिया के लिए करते है और दुनिया आपसे ऐसे बेरुखी से पेश आए तो दुःख तो आपको होगा ही। फिर मन को तसल्ली देने के लिए क्या-क्या सोचना पड़ता है ताकि मन शांत हो जाए। हम अपनी शक्सियत को तो बेहतर बना सकते हैं, लेकिन किसी और को कैसे बदल सकते हैं?  इंसान प्यार का भूखा होता है और अक्सर प्यार में ही धोखा खाता है। 

जब से दुनिया बनी है और जब तक यह दुनिया रहेगी, हम शिकवा और शिकायतें करते ही रहेंगे। इसके बिना हमारा गुजारा ही नहीं। अकेले रहकर भी हम सिर्फ दीवारों से ही लड़ सकते हैं। कोई हमारे साथ जुड़ा हुआ है तो हम उससे नोकझोंक कर सकते हैं और जिंदगी को सुरमई बना सकते हैं। कल किसने देखा है, आज को अपना साथी बनाए रखिए। 

12 नवंबर 2016

कौन होता है चक्रवर्ती सम्राट

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मेरा भारत महान
'चक्रवर्ती' शब्द का प्रचलन भारत में ही है। इस शब्द को उन सम्राटों के नाम के आगे लगाया जाता है जिन्होंने संपूर्ण धरती पर एकछत्र राज किया हो और जिनके पास एक दिव्य चक्र हो। 'चक्रवर्ती' शब्द संस्कृत के 'चक्र' अर्थात पहिया और 'वर्ती' अर्थात घूमता हुआ से उत्पन्न हुआ है। इस प्रकार 'चक्रवर्ती' एक ऐसे शासक को माना जाता है जिसके रथ का पहिया हर समय घूमता रहता हो और जिसके रथ को रोकने का कोई साहस न कर पाता है।  
                  
जिन राजाओं के पास चक्र नहीं होता था तो वे अपने पराक्रम के बल पर अश्वमेध या राजसूय यज्ञ करके यह घोषणा करते थे कि इस घोड़े को जो कोई भी रोकेगा उसे युद्ध करना होगा और जो नहीं रोकेगा उसका राज्य यज्ञकर्ता राजा के अधीन माना लिया जाएगा। जम्बूद्वीप और भारत खंड में ऐसे कई राजा हुए जिनके नाम के आगे 'चक्रवर्ती' लगाया जाता है,जैसे वैवस्वत मनु, मान्धाता, ययाति, प्रियव्रत, भरत, हरीशचन्द्र, सुदास, रावण, श्रीराम, राजा नहुष, युधिष्ठिर, महापद्म, विक्रमादित्य, सम्राट अशोक आदि। विश्व शासक को ही 'चक्रवर्ती' कहा जाता था लेकिन कालांतर में समस्त भारत को एक शासन सूत्र में बांधना ही चक्रवर्तियों का प्रमुख आदर्श बन गया था।स्वायंभुव मनु और उनके पुत्र राजा प्रियव्रत को विश्व सम्राट माना जाता है। उनके बाद प्रियव्रत के पुत्र राजा भरत को भारत का प्रथम चक्रवर्ती सम्राट माना गया है। चक्रवर्ती सम्राट भरत के पिता ऋषभदेव थे और उनके 100 भाइयों में से प्रमुख का नाम 'बाहुबली' था। सभी का अलग-अलग राज्य था। राजा भरत को अपनी आयुधशाला में से एक दिव्य चक्र प्राप्त हुआ।
   

चक्र रत्न मिलने के बाद उन्होंने अपना दिग्विजय अभियान शुरू किया। दिव्य चक्र आगे चलता था। उसके पीछे दंड चक्र, दंड के पीछे पदाति सेना, पदाति सेना के पीछे अश्व सेना,अश्व सेना के पीछे रथ सेना और हाथियों पर सवार सैनिक आदि चलते थे। जहां-जहां चक्र जाता था, वहां- वहां के राजा या अधिपति सम्राट भरत की अधीनता स्वीकार कर लेते थे। इस तरह पूर्व से दक्षिण, दक्षिण से उत्तर और उत्तर से पश्‍चिम की ओर उन्होंने यात्रा की और अंत में जब उनके पुन: अयोध्या पहुंचने की मुनादी हुई तो राज्य में हर्ष और उत्सव का माहौल होने लगा।लेकिन अयोध्या के बाहर ही चक्र स्वत: ही रुक गया, क्योंकि राजा भरत ने अपने भाइयों के राज्य को नहीं जीता था। बाहुबली को छोड़कर सभी भाइयों ने राजा भरत की अधीनता स्वीकार कर लीभरत का बाहुबली से मल्ल युद्ध हुआ जिसमें बाहुबली जीत गए। ऐसे में बाहुबली के मन में विरक्ति का भाव आ गया और उन्होंने सोचा कि मैंने राज्य के लिए अपने ही बड़े भाई को हराया। उन्होंने जीतने के बाद भी भारत को अपना राज्य दे दिया। इस तरह भरत चक्रवर्ती सम्राट बन गए और कालांतर में उनके नाम पर ही इस नाभि खंड और उससे पूर्व हिमखंड का नाम भारत हो गया।       

11 नवंबर 2016

राजपूतों का गांव

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मेरा भारत महान
 ये हैं देश के सच्चे सपूत, असली राजपूत! देश में कभी भी विपदा आती है, तो सबसे पहले राजपूताना राइफल्स को याद किया जाता है. अगर आपको इनकी देशभक्ति का जज़्बा देखना हो तो उत्तर प्रदेश के मौधा गांव में ज़रूर आइए. इस गांव के हर घर में एक सैनिक रहता है, जो देश के लिए बलिदान देने को तैयार रहता है. आज़ादी के बाद से इस गांव में अब तक 44 जवान शहीद हो चुके हैं.

वीर सपूतों की धरती 'मौधा' पर उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश को नाज़ है. मौधा के शहीदों ने भारत माता के स्वाभिमान की रक्षा के लिए अपने को बलिदान कर दिया. मैं यहां के भाई-बहनों को अपना शीश झुका कर नमन करता हूं. प्रथम विश्व युद्ध हो या द्वितीय, हिटलर के नाजीवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई हो या फ़िर 1971 और कारगिल का युद्ध, यहां के सैनिकों ने भारत मां के सम्मान पर चोट नहीं पहुंचने दी.


मौधा क्षत्रियों का गांव है, जिसमें मुख्यत: राठौड़ क्षत्रिय निवास करते हैं. यहां के ग्रामीणों के लिए धर्म और कर्म राष्ट्र है. उत्साह और जोश यहां की पहचान है इस गांव के बारे में आप इस बात से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि जब देश की सीमा पर बेटे के शहीद होने की ख़बर आती है, तो मौधा में मातम नहीं मनाया जाता, बल्कि मां अपने दूसरे बेटे को भी उसी रास्ते पर चलने के लिए भेज देती है. इस छोटे से गांव में 800 वयस्क जवान हैं, जिनमें 350 से ज़्यादा जवान देश के कई रेजिमेंटों में रह कर देश की सीमाओं की रक्षा कर रहे हैं. 200 से ज़्यादा पूर्व सैनिक इस गांव में रह रहे हैं.आज़ादी की लड़ाई के दिनों से भारत माता की आन-बान-शान के लिए मौधा गांव के रहने वाले सैनिकों के शहीद होने का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह स्वतंत्रता के बाद आज तक कायम है. मानवता और राष्ट्रप्रेम से प्रेरित यह गांव अपने आप में एक 'देश' है. ऐसे गांव को हमारा सलाम!

10 नवंबर 2016

नोट में जी पी एस चिप

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मेरा भारत महान
प्रधानमंत्री मोदी जी ने 8 नवम्बर  रात 8 बजे  देश को संबोधित करते हुए कहा था कि अब से देश में 500 और 1000 के पुराने नोट हमेशा  के लिए लेन-देन के लिए बंद कर दिये जायेंगे और उनकी जगह नये नोट 500 और 2000 के प्लास्टिक कोटेड नोट देश में लाये जायेंगे। सरकार के इस कदम से आतंकवाद, भ्रस्टाचार, काले धन पे रोक लग जाएगी और भारत एक समृद्धसाली देश बनेगा। काला धन जमा करना भ्रस्टाचारी के लिए किसी चुनोंती से कम नही होगा। 


सरकार के इस फैसले का असर आगे आने वाले भारत के भविष्य के  दूरगामी परिणामों में देखने को मिल सकता है। मित्रों, सरकार द्वारा कहा गया है कि 500 का नोट बदला जायेगा और 2000 का नया नोट देश में लागू किया जायेगा। इस 2000 के नोट की खास बात यह बताई जा रही है कि इसमें एक खास प्रकार की चिप है जो इस नोट को हर समय ट्रेक करती है। माना जा रहा है कि इस 2000 के नये नोट में हमें नेनो GPS Chip देखने को मिल सकती है। इस चिप के माध्यम से नोट के भंडारण, और लेंन देन पर अंतरिक्ष से नजर रखी जा सकती है। 

9 नवंबर 2016

Real logic behind banning currency

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1. Why is this scheme?

The incidence of fake Indian currency notes in higher denomination has increased. For ordinary persons, the fake notes look similar to genuine notes, even though no security feature has been copied. The fake notes are used for antinational and illegal activities. High denomination notes have been misused by terrorists and for hoarding black money. India remains a cash based economy hence the circulation of Fake Indian Currency Notes continues to be a menace. In order to contain the rising incidence of fake notes and black money, the scheme to withdraw has been introduced.

2. What is this scheme?

The legal tender character of the notes in denominations of ₹ 500 and Rs1000 stands withdrawn. In consequence thereof withdrawn old high denomination (OHD) notes cannot be used for transacting business and/or store of value for future usage. The OHD notes can be exchanged for value at any of the 19 offices of the Reserve Bank of India or at any of the bank branches or at any Head Post Office or Sub-Post Office.

3. How much value will I get?

You will get value for the entire volume of notes tendered at the bank branches / RBI offices.

4. Can I get all in cash?

No. You will get upto ₹4000 per person in cash irrespective of the size of tender and anything over and above that will be receivable by way of credit to bank account.

5. Why I cannot get the entire amount in cash when I have surrendered everything in cash?

The Scheme of withdrawal of old high denomination(OHD) notes does not provide for it, given its objectives.

6. ₹4000 cash is insufficient for my need. What to do?

You can use balances in bank accounts to pay for other requirements by cheque or through electronic means of payments such as Internet banking, mobile wallets, IMPS, credit/debit cards etc.

7. What if I don’t have any bank account?

You can always open a bank account by approaching a bank branch with necessary documents required for fulfilling the KYC requirements.

8. What if, if I have only JDY account?

A JDY account holder can avail the exchange facility subject to the caps and other laid down limits in accord with norms and procedures.

9. Where can I go to exchange the notes?

The exchange facility is available at all Issue Offices of RBI and branches of commercial banks/RRBS/UCBs/State Co-op banks or at any Head Post Office or Sub-Post Office.

10. Need I go to my bank branch only?

For exchange upto 4000 in cash you may go to any bank branch with valid identity proof.

For exchange over 4000, which will be accorded through credit to Bank account only, you may go to the branch where you have an account or to any other branch of the same bank.

In case you want to go to a branch of any other bank where you are not maintaining an account, you will have to furnish valid identity proof and bank account details required for electronic fund transfer to your account.

11. Can I go to any branch of my bank?

Yes you can go to any branch of your bank.

12. Can I go to any branch of any other bank?

Yes, you can go to any branch of any other bank. In that case you have to furnish valid identity proof for exchange in cash; both valid identity proof and bank account details will be required for electronic fund transfer in case the amount to be exchanged exceeds ₹4000.

13. I have no account but my relative / friend has an account, can I get my notes exchanged into that account?

Yes, you can do that if the account holder relative/friend etc gives you permission in writing. While exchanging, you should provide to the bank, evidence of permission given by the account holder and your valid identity proof.

14. Should I go to bank personally or can I send the notes through my representative?

Personal visit to the branch is preferable. In case it is not possible for you to visit the branch you may send your representative with an express mandate i.e. a written authorisation. The representative should produce authority letter and his / her valid identity proof while tendering the notes.

15. Can I withdraw from ATM?

It may take a while for the banks to recalibrate their ATMs. Once the ATMs are functional, you can withdraw from ATMs upto a maximum of Rs.2,000/- per card per day upto 18th November, 2016. The limit will be raised to Rs.4000/- per day per card from 19th November 2016 onwards.

16. Can I withdraw cash against cheque?

Yes, you can withdraw cash against withdrawal slip or cheque subject to ceiling of Rs10,000/- in a day within an overall limit of Rs.20,000/- in a week (including withdrawals from ATMs) for the first fortnight i.e. upto 24th November 2016.

17. Can I deposit withdrawn notes through ATMs, Cash Deposit Machine or cash Recycler?

Yes, OHD notes can be deposited in Cash Deposits machines / Cash Recyclers.

18. Can I make use of electronic (NEFT/RTGS /IMPS/ Internet Banking / Mobile banking etc.) mode?

You can use NEFT/RTGS/IMPS/Internet Banking/Mobile Banking or any other electronic/ non-cash mode of payment.

19. How much time do I have to exchange the notes?

The scheme closes on 30th December 2016. The OHD banknotes can be exchanged at branches of commercial banks, Regional Rural Banks, Urban Cooperative banks, State Cooperative Banks and RBI till 30th December 2016.

For those who are unable to exchange their Old High Denomination Banknotes on or before December 30, 2016, an opportunity will be given to them to do so at specified offices of the RBI, along with necessary documentation as may be specified by the Reserve Bank of India.

20. I am right now not in India, what should I do?

If you have OHD banknotes in India, you may authorise in writing enabling another person in India to deposit the notes into your bank account. The person so authorised has to come to the bank branch with the OHD banknotes, the authority letter given by you and a valid identity proof (Valid Identity proof is any of the following: Aadhaar Card, Driving License, Voter ID Card, Pass Port, NREGA Card, PAN Card, Identity Card Issued by Government Department, Public Sector Unit to its Staff)

21. I am an NRI and hold NRO account, can the exchange value be deposited in my account?

Yes, you can deposit the OHD banknotes to your NRO account.

22. I am a foreign tourist, I have these notes. What should I do?

You can purchase foreign exchange equivalent to ₹5000 using these OHD notes at airport exchange counters within 72 hours after the notification, provided you present proof of purchasing the OHD notes.

23. I have emergency needs of cash (hospitalisation, travel, life saving medicines) then what I should do?

You can use the OHD notes for paying for your hospitalisation charges at government hospitals, for purchasing bus tickets at government bus stands for travel by state government or state PSU buses, train tickets at railway stations, and air tickets at airports, within 72 hours after the notification.

24. What is proof of identity?

Valid Identity proof is any of the following: Aadhaar Card, Driving License, Voter ID Card, Pass Port, NREGA Card, PAN Card, Identity Card Issued by Government Department, Public Sector Unit to its Staff.

25. Where can I get more information on this scheme?

Further information is available at website (www.rbi.org.in) and GoI website (www.rbi.org.in)

26. If I have a problem, whom should I approach?

You may approach the control room of RBI by email or on Telephone Nos 022 22602201/022 22602944