13 दिसंबर 2016

एक तीर से तबाह पूरा शहर

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आजकल भारतीय सिनेमा में एक नया ट्रेंड चल रहा है। निर्माता-निर्देशक इतिहास के पन्नों को खंगाल कर कुछ ऐसे किस्से निकालने की कोशिश में लगे रहते हैं जिनसे एक परफेक्ट फिल्म बनाकर दर्शकों के सामने परोसी जाए। आज की यंग जेनरेशन वैसे भी किताबों को पढ़कर इतिहास की गहराई में जाने की इतनी शौकीन  नहीं है, तो ऐसे में ये फिल्में उन्हें इतिहास जानने का शॉर्ट कट लगती हैं। और इसका फायदा होता भी होता है क्योंकि किताब पढ़ने से बेहतर चलचित्र देखना ज्यादा रुचिकर होता है।  भारतीय इतिहास को मद्देनजर रखते हुए आज तक कई फिल्में बनी हैं, जिनमें से कुछ ही समय पहले बनी’ बाजीराव-मस्तानी’ काफी प्रसिद्ध हुई।  बाजीराव मस्तानी की तरह ही अब एक और ऐतिहासिक फिल्म ‘मोहनजोदड़ो’ बनी है ।

ऋतिक रोशन पर फिल्मायी गई इस फिल्म में हड़प्पा सभ्यता के एक नगर को दिखाया गया है । मोहनजोदड़ो आज भी इतिहासकारों के लिए एक पहेली बना हुई है। लेकिन यह नगर कब बसा? हड़प्पा सभ्यता से इसका क्या संबंध है? यह इतिहासकारों में आज भी चर्चा का विषय क्यों है? इस नगर का हिन्दू धर्म से क्या संबंध है? और आखिरकार यहां के लोग कहां गए? इन सभी सवालों का जवाब आज भी भविष्य के गर्त मे ही है। मोहनजोदड़ो का इतिहास जानने के बाद आप सच में भारतीय इतिहास पर गर्व करने लगेंगे। यह तोहफा भी भारत की और से दुनिया को मिला है। 

मोहनजोदड़ो एक ऐसा नगर है जो शायद इतना पुराना है कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते। तब भारत को आर्यवर्त खा जाता था। आज का भारत और तब का भारत, कोन उन्नत रहा, संस्कृति के लिहाज से यह निर्णय करना विवाद का विषय है।इतिहास के अनुसार यह नगर 4000 से भी अधिक सालों पहले बसा होगा । लेकिन यहां की कला और यहां के लोग जिन चीजों का इस्तेमाल करते थे, व्हह काफी रोचक है। पकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित ‘माण्टगोमरी जिले’ में रावी नदी के बाएं तट पर हड़प्पा नामक पुरास्थल है। जबकि पाकिस्तान के सिन्ध प्रांत के ‘लरकाना जिले’ में सिन्धु नदी के दाहिने किनारे पर मोहनजोदड़ो नामक नगर करीब 5 किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है। इतिहासकारों ने विभिन्न शोध करने के बाद यह सिद्ध किया है कि मोहनजोदड़ो और कुछ नहीं बल्कि हड़प्पा सभ्यता का ही एक नगर था। यहां इसी सभ्यता के लोग रहा करते थे। हड़प्पा सभ्यता जो कि भारत की प्राचीनतम सभ्यता मानी गई है, यह भारत से बाहर भी कई दिशाओं में फैली हुई थी।

19वीं सदी से लेकर अब तक इस सभ्यता के कम से कम 1,000 स्थानों का पता लगाया गया है। इन्हीं में से एक है मोहनजोदड़ो, जिसकी खोज वैज्ञानिकों के लिए किसी युद्ध को जीतने से कम नहीं थी। क्योंकि वहां उन्हें हड़प्पा सभ्यता के है जो अवशेष हासिल हुए थे, वह किसी मूल्यवान वस्तु से कम नहीं थे। हासिल किए गए तथ्यों के अनुसार पहली बार चार्ल्स मेसन ने वर्ष 1842 में हड़प्पा सभ्यता को खोजा था। इसके बाद दया राम साहनी ने 1921 में हड़प्पा की आधिकारिक खोज की थी ,तथा इसमें एक अन्य पुरातत्वविद माधो स्वरूप वत्स ने उनका सहयोग किया था।लेकिन अपनी इस खोज के दौरान वे मोहनजोदड़ो नामक नगर के बेहद समीप होकर भी उसे खोज नहीं पाए थे। किंतु कुछ वर्षों के पश्चात राखालदास बनर्जी ने ऐसे ऐसे नगर को खोज निकाला, जिसका दृश्य देखकर वे स्वयं चकित रह गए। यह था मोहनजोदड़ो नगर, जो उनके अनुसार तकरीबन 200 हेक्टयर क्षेत्र में फैला था।

इस नगर को खोज निकालने के बाद उन्होंने काफी बारीकी से इस पर काम किया और कुछ ऐसे तथ्य सामने रखे, जो बेहद चौंकाने वाले हैं। ऐसा बताया गया कि मोहनजोदड़ो हड़प्पा सभ्यता का सबसे प्रसिद्ध और प्राचीन पुरास्थल हो सकता है। यह कोई सामान्य नगर नहीं था, यहां के रहने वाले लोग शायद इतने बुद्धिमान थे कि उन्होंने हूबहू आज के नगरों जैसा पैमाना अपनाया हुआ था। इस नगर में बड़े बड़े घर, चौड़ी सड़कें और बहुत सारे कुएं होने के प्रमाण मिलते हैं। इतना ही नहीं, आपको अचंभा तो तब होगा जब आप यह जानेंगे कि नगर में खोज के दौरान जल और मल निकासी के होने के प्रमाण भी पाए गए। इससे पता चलता है कि यह नगर वर्तमान के नगरों जैसे ही विकसित और भव्य थे। मोहनजोदड़ो नगर पर शोध करते हुए वैज्ञानिकों को जो चीजें प्राप्त हुईं, वह इस नगर के लोगों को हिन्दू धर्म से जोड़ती हैं। यहां से प्राप्त हुई मूर्तियां, दीवारों पर लिखी गई लिपि एवं तस्वीरें, ये सभी कहीं ना कहीं मोहनजोदड़ो में रह रहे हड़प्पा सभ्यता के लोगों को हिन्दू संस्कृति के अनुयायी बताती हैं। मोहनजोदड़ो की खुदाई में इस नगर की इमारतें, स्नानघर, मुद्रा, मुहर, बर्तन, मूर्तियां, फूलदान आदि अनेक वस्तुएं मिली हैं। इसके अलावा कपड़ों के टुकड़े के अवशेष, चांदी के एक फूलदान के ढक्कन तथा कुछ अन्य तांबें और लोहे की वस्तुएं मिली है।शिव जी का एक विशाल शिवलिंग भी प्राप्त हुआ जो वैज्ञानिकों के अनुसार तकरीबन 5000 वर्ष पुराना है। माना जा रहा है कि यहां के लोग इस शिवलिंग की पूजा किया करते थे। इसके अलावा असंख्य देवियों की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। ये मूर्तियां मातृदेवी या प्रकृति देवी की हैं। इसका अर्थ है कि यहां के लोग मूर्ति पूजा में विश्वास करते थे, और प्राचीनकाल से हिन्दू धर्म में चली आ रही मातृ या प्रकृति की पूजा के रिवाज को भी निभाते थे।  

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