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मेरा भारत महान
मेरा भारत महान
भारत वसुधैव कुटुम्बकम वाला देश है। फिर भी बीते कई महीनों से भारत में सहिष्णुता पर कुछ ज़्यादा ही चर्चा हो रही है। सोशल मीडिया में भी यह मुद्दा बना ही रहता है। नेता से लेकर अभिनेताओं ने भी इस मुद्दे पर अपनी राय रखते रहे है। सहिष्णुता-असहिष्णुता को लेकर विवाद होना आजकल आम हो गया है । पर जिन लोगों ने भारतीय लोगों को करीब से देखा और जाना है, उनका मानना है कि भारतीय समाज में ज्यादातर लोगों के अंदर सहिष्णुता (एक वर्ग विशेष को छोड़कर) कूट कूट कर भरी हुई है। भारत में सहिष्णुता साबित करने की जरूरत नहीं। भारतीय इतिहास इससे पटा पड़ा है। आज हम आपके सामने एक ऐसे राजा के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके बारे में जानकर आपको भारतीय सभ्यता पर गर्व होगा।
1942 में द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया था। सबसे खराब हालात पोलैंड के थे। क्योकि पोलैंड पर रूस अमेरिका ,ब्रिटेन,जर्मनी और जापान आदि देशों की सेनाओं ने हमला बोल दिया था। उनका एजेंडा पोलैंड की भूमि पर कब्जा करना था। खतरे को भांपते हुए ,पोलैंड के सैनिको ने अपने परिवार की 500 महिलाओ और करीब 200 बच्चों को एक पानी के जहाज में बैठाकर समुद्र में छोड़ दिया और कैप्टन से कहा की इन्हें किसी भी देश में ले जाओ जहां ये शांति से रह सकें,जहाँ इन्हें सुरक्षित शरण भी मिल सके। अगर जिन्दगी रही तो हम दुबारा मिलेंगे । सबसे पहले पांच सौ पोलिस महिलाओं और दो सौ बच्चों से भरा वो शरणार्थी जहाज ईरान के इस्फहान बंदरगाह पहुंचा, वहां किसी को उतरने की अनुमति तक नही मिली, फिर सेशेल्स और इसके बाद अदन में भी अनुमति नही मिली।
अंत में समुद्र में भटकता भटकता वो जहाज गुजरात के जामनगर के तट पर आ पहुचा। जामनगर के तत्कालीन महाराजा जाम साहब दिग्विजय सिंह ने न सिर्फ पांच सौ महिलाओ बच्चो के लिए अपना एक राजमहल जिसे हवामहल कहते है, रहने के लिए दिया, बल्कि अपनी रियासत में बालाचढ़ी में सैनिक स्कुल में उनके बच्चों की पढाई लिखाई की व्यवस्ता भी कराई। ये शरणार्थी जामनगर में कुल नौ साल रहे। उन्हीं शरणार्थी बच्चों में से एक बच्चा भारत मे पढ़ लिखकर बाद में पोलैंड का प्रधानमंत्री भी बना। आज भी हर साल उन शरणार्थीयों के वंशज जामनगर आते हैं और अपने पूर्वजो को याद करते हैं। और भारत और भारत के लोगों की बहुत तारीफ़ भी करते है।
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