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मेरा भारत महान
वैदिक धर्म सबसे पुराना होने के साथ-साथ सबसे ज़्यादा व्यवहारिक सिद्धांतों वाली सनातन संस्कृति है। इस संस्कृति को आध्यात्म के साथ-साथ प्रकृति के काफ़ी नजदीक माना जाता है । वेदों से ही सनातन संस्कृति को कैसे रहना है, क्या करना है, कब क्या बोना है, कब काटना है, मौसम क्या होते है, खगोल क्या है इत्यादि का ज्ञान मिलता है। ब्रह्म को जगटी का संचालन कर्ता मानने बाली इस संस्कृति में दायित्वों और काल क्रम के अनुसार 33 करोड़ देवी-देवता हैं। इन देवी-देवताओं को अनेक परिवर्तनों का प्रतीक माना गया है। इन सभी देवी-देवताओं को आध्यात्मिक और व्यवहारिक कारणों के साथ-साथ वैज्ञानिक कारणों से हमारे ऋषि-मुनियों ने वाहनों के रूप में पशु-पक्षियों द्वारा स्थापित किया है। इस प्रकार प्रकृति और उसके जीवों की रक्षा का मौलिक अधिकार भी समाज में प्रेषित किया गया है। पशु-पक्षियों को किसी न किसी भगवान के प्रतिनिधि से जोड़ने के पीछे वैज्ञानिक कारण छुपे है।
1. विष्णु का वाहन गरुड़
भगवान विष्णु के इस वाहन को पक्षियों की बुद्धिमान प्रजातियों में से एक माना जाता है। प्राचीन काल में गरुड़ का प्रयोग संदेशों के आदान-प्रदान में भी किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार प्रजापति कश्यप की धर्मपत्नी विनता के दो पुत्र हुए थे जिनमें एक का नाम गरुड़ और दूसरे का नाम अरुण था। अरुण आगे चल कर सूर्य भगवान के सारथी बने और गरुड़ भगवान विष्णु की सेवा के लिए उनके पास चले गये। गरुड़ों में सबसे ख्याति प्राप्त हुए जटायु। जटायु अरुण के पुत्र थे। छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य में जटायु और रावण के बीच युद्ध हुआ था, उसकी याद मे दंडकारण्य मे आज भी उनका मंदिर स्थापित है।
2. लक्ष्मी का वाहन उल्लू
कुछ लोग जिन्हें पता न हो,वो ये सोचते होंगे कि उल्लू से तात्पर्य तो मूर्ख से होता है। फिर इसे मां लक्ष्मी से कैसे जोड़ा जाता है ? उल्लू निशाचरी प्राणियों में सबसे ज़्यादा बुद्धिमान होता है। उल्लू की ख़ासियत होती है कि इसे आने वाले भविष्य के बारे में पूर्वानुमान लगा लेता है। सनातन संस्कृति मे उल्लू को धन सम्पदा के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। तांत्रिक क्रियाओं में इस पक्षी का काफ़ी ज़्यादा प्रयोग होने से काफ़ी लोग इससे डरते है। उल्लू जब उड़ता है, तो इसके पंखों से कोई आवाज़ नहीं निकलती है। इसकी नज़रें काफ़ी तेज़ होती है। जिनसे रात को इंफ्रारेड रोशनी निकलती है, जिससे यह रात मे भी देखने की क्षमता रखता है। उल्लू अपनी गर्दन को लगभग 170 डिग्री तक घुमा लेता है।
3. सरस्वती का वाहन हंस
सरस्वती को ज्ञान को देवी कहा जाता है। केवल ज्ञान से प्राणी के जीवन में पवित्रता, प्रेम और नैतिकता का आगमन होता है। ज्ञान मतलब जानना, और अज्ञान मतलब नही जानना। इन सभी गुणों को का मिश्रण हंस में भी देखने को मिलता है। हंस को काफ़ी समझदार और जिज्ञासु प्रवृत्ति का माना जाता है। इसकी सबसे बड़ी ख़ासियत है कि यह जीवनपर्यन्त एक ही हंसिनी के साथ रहता है। इसके ज्ञानी होने की वजह से शास्त्रों में कहा भी गया है, जो ज्ञानी है वो हंस आत्मा हैं और जो कैवल्य को प्राप्त कर लेते हैं, वो परमहंस कहलाते हैं.
4. शिव का वाहन बैल
बैल शिव की सवारी है जो महादेव के सभी गणों में उन्हें सबसे ज़्यादा प्रिय है। जिस तरह शास्त्रों में कामधेनु को श्रेष्ठ माना जाता है, उसी तरह नंदी को शांत और सोम्य का प्रतीक माना जाता है उसी प्रकार बैल को भी ताक़त का प्रतीक माना गया है। बैल स्वभाव से काफ़ी शान्त होता है, लेकिन जब इसे क्रोध आता है, तो यह शेर से भी भीड़ जाता है। महादेव का स्वभाव भी कुछ इसी तरह है। जब तक शांत है तो शांति, क्रोधित हुए तो तीन लोक भस्म।
5. दुर्गा की सवारी शेर
शेर साहस , फुर्ती और शौर्य का प्रतीक है। दुर्गा एक बार जंगल में तपस्या करने गई, तभी एक भूखा शेर उन्हें खाने के लिए आया, लेकिन दुर्गा के तेज़ को देख कर वो भी उनके पास बैठ गया। सालों बाद जब दुर्गा अपनी तपस्या पूर्ण करके उठी तो उन्हें इस बात का पता चला। शेर की इस श्रद्धा और धैर्य से ख़ुश होकर उन्होंने इसे अपना वाहन चुन लिया।
6. गणेश का वाहन चूहा (मूसक )
मूषक शब्द संस्कृत भाषा के मूष से बना है। जिसका मतलब है चुराना या लूटना। यह लक्षण स्वार्थी होने का परिचायक है। भगवान गणेश का मूषक पर बैठना यह दर्शाता है कि उन्होंने स्वार्थ और लालच पर विजय हासिल कर ली है. इसके पश्चात उन्होंने मानव कल्याण और परोपकार का रास्ता चुना।
7. शिव पुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर
शिव पुत्र होने के कारण कार्तिकेय को दक्षिण भारत में बहुत माना जाता है। मयूर चंचल प्रकृति का प्राणी है। मोर काली घटायें देखकर ही वर्षा की कामना करता है और खुसी मे नाचता है। इसकी चाहत मतलबी नही है। इसका प्यार सच्चा है। इसकी छवि एक साधक की तरह है। तभी कृष्ण ने इसे अपने मस्तक पर भी स्थान दिया है।
8. इंद्र का वाहन ऐरावत हाथी
इंद्र यानी स्वर्ग लोक के राजा। देवताओं और राक्षसों ने जब समुद्र मंथन किया था, तो अमृत कलश के साथ 14 तरह के रत्न भी निकले थे। उन्हीं में ऐरावत भी निकले, ऐरावत हाथी को चौपाया जानवरों मे स्वभाव से शान्त, बलसाली और बुद्धिमान माना जाता है। इन्हीं विशेषताओं को देख कर राजा इंद्र ने इसे अपना वाहन चुना।
9. यमराज का वाहन भैंसा
भैंसें का रूप देखने में काफ़ी भयानक लगता है। उसी तरह यमराज को भी काफ़ी भयानक समझा जाता है। भैंसें को एकता का प्रतीक भी माना जाता है। यह मुसीबत में पड़ने पर अकेले या झुण्ड मे किसी पर भी हमला करता है। इसी विशेष्ता के कारण यमराज ने इसको अपना वाहन बनाया है।
10. शनि का वाहन कौवा
वैसे तो शनिदेव की 9 सवारियां है, लेकिन उनमें से उन्हें सबसे ज़्यादा कौवा ही पसन्द है. कौए स्वभाव से काफ़ी बुद्धिमान होते है। कौए को भविष्य में घटने वाली चीजों का पहले से ही पता चल जाता है।।इसे पित्रों का आश्रय स्थल भी कहा जाता है।और लोग पितरों के श्राद्ध मे कौबे को भोजन खिलाते है।
सनातन संस्कृति लोगों को मिल जुलकर रहना, प्रेम करना, हिंसा न करना सिखाती है। इस प्रकार जानवरों को भगवान का प्रतीक मानना वाकई में एक अजीब लेकिन सभी प्राणियों को जगत मे जीने का अधिकार प्रदान करता है।