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bcpantblog.blogspot.in/ मेरा भारत महान
सिर्फ तर्क करने वाला दिमाग उस चाकू की तरह है जिसमें सिर्फ ब्लेड है,यह प्रयोग करने वाले व्यक्ति के हाथ से खून निकाल देता है । रविंद्रनाथ टैगोर
प्रसन्नता पहले से निर्मित कोई चीज नही है, ये आप ही के कर्मों से आती है। दलाई लामा
सफलता पहले से की गयी तैयारी पर निर्भर है,बिन तैयारी असफलता भी निश्चित है। कनफूसियस
व्यक्ति अकेले ही पैदा होता है और अकेले ही मरता है। अपने अच्छे बुरे कर्मों का फल खुद ही भुगतता है। आत्मा की आवाज से किये कर्म हमेसा अच्छे होते है। चाणक्य
उत्कृष्टता वो कला है जो प्रशिक्षण और आदत से आती है। हम इसलिए सही कार्य नही करते कि हमारे अंदर अच्छाई या उत्कृष्टता है, बल्कि वो हमारे अंदर इसलिए है क्योंकि हमने सही कार्य किया। जैसा हम सोचते है वैसे ही बन जाते है। अरस्तू
असली सवाल यह है कि तुम भीतर क्या हो। अगर भीतर की आत्मा दूषित है तो तुम जो भी करोगे, वो गलत ही होगा। जिसका पश्चाताप आपको करना ही होगा। यदि तुम्हारे भीतर की आत्मा पवित्र और निष्कलंक है, तो आप जो भी करोगे, वह सही फलित होगा। ओशो
जिसे धीरज है, जो संघर्ष और मेहनत से नही घबराता, कामयाबी और सफलता उसकी दासी है । स्वामी दयानंद सरस्वती
क्रोध को पाले रखना, गर्म कोयले को अपने हाथ मे पकड़े रहने जैसा है। इससे आओ स्वयं ही जलते है। भगवान गौतम बुद्ध
जब मे इस संसार मे बुराई खोजने चला, तो मुझसे बुरा कोई न मिला। जब मैंने अपने मन मे झाँका तो पाया कि सारी बुराई की जड़ मेरा मन था। संत कवीर
सिर्फ तर्क करने वाला दिमाग उस चाकू की तरह है जिसमें सिर्फ ब्लेड है,यह प्रयोग करने वाले व्यक्ति के हाथ से खून निकाल देता है । रविंद्रनाथ टैगोर
प्रसन्नता पहले से निर्मित कोई चीज नही है, ये आप ही के कर्मों से आती है। दलाई लामा
सफलता पहले से की गयी तैयारी पर निर्भर है,बिन तैयारी असफलता भी निश्चित है। कनफूसियस
व्यक्ति अकेले ही पैदा होता है और अकेले ही मरता है। अपने अच्छे बुरे कर्मों का फल खुद ही भुगतता है। आत्मा की आवाज से किये कर्म हमेसा अच्छे होते है। चाणक्य
असली सवाल यह है कि तुम भीतर क्या हो। अगर भीतर की आत्मा दूषित है तो तुम जो भी करोगे, वो गलत ही होगा। जिसका पश्चाताप आपको करना ही होगा। यदि तुम्हारे भीतर की आत्मा पवित्र और निष्कलंक है, तो आप जो भी करोगे, वह सही फलित होगा। ओशो
जिसे धीरज है, जो संघर्ष और मेहनत से नही घबराता, कामयाबी और सफलता उसकी दासी है । स्वामी दयानंद सरस्वती
क्रोध को पाले रखना, गर्म कोयले को अपने हाथ मे पकड़े रहने जैसा है। इससे आओ स्वयं ही जलते है। भगवान गौतम बुद्ध
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