5 अक्टूबर 2016

क्या आजादी के मायने बदल गये

ca-pub-6689247369064277


जब हम भारतवर्ष की बात करते हैं, तो आजादी शब्द जहन मे आ ही जाता है। हमारा देश 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों की और मुगलों के शिकंजे से आजाद हुआ। अंग्रेजों द्वारा कितने ही अत्याचार हमारी पीढ़ियों के लोगों ने सहे हैं,  जिनकों हमने केवल किस्से कहानियों में देखा और सुना है। उनके हौंसले और आजादी के किस्से कहानियाँ हमारे अंदर आज भी एक जोश पैदा करते हैं। उनका त्याग और बलिदान हमारे लिये प्रेरणा का स्रोत हैं। देश को आजाद हुए आज आधी शताब्दी से भी अधिक समय हो गया है , और देश कहाँ से कहाँ पहुँच गया है। आधुनिक से अत्याधुनिकता के इस दौर में ऐसा लगता है मानों बहुत सारी बातें शायद पीछे रह गयी है। आधुनिक मानव की जो विचारधारा में परिवर्तन हुआ है, वह वास्तव में हमारे लिए सोचने की बात है। आज लोगों की सोच में आजादी के मायने ही शायद बदल गये है। जो जहाँ पद पर बैठा हैं वह अपने को बडा ताकतवर समझने लगा है। नियम कानून बदलनें में देर नहीं लगाता है और अपने हित के लिए तथा पैसा कमाने के लिए कुछ भी करने कराने के लिए तैयार रहता है।
                                 


आजादी शब्द सुनते ही मानव मस्तिष्क में एक ताजगी सी भर जाती है। आजादी शब्द ही अपने आप में एक  व्यापक और शक्ति भरा हुआ शब्द है। आजादी सभी को प्यारी है चाहे मानव हो या कोई जीव-जन्तु अर्थात् पशु-पक्षी। आजादी स्वयं कुछ  करने की और बिना किसी रोकटोक के जीवन जीने का नाम है।एक कहानी है कि एक राजा ने बोलते तोते को  सोने के पिंजरे में बंद कर दिया और उसे खानें में अच्छे-अच्छे व्यंजन दिए। लेकिन कुछ दिन बाद तोता मर गया। मंत्री ने राजा को तोते की  मृत्यु का कारण उसकी आजादी छीन लेना बताया। राजा को अपने किए पर पछतावा हुआ। उस घटना के बाद राजा का हृदय परिवर्तन हुआ  और वह रोजाना सुबह-सुबह जंगल में जाता तथा पक्षियों को दाना-पानी देता, उनको चहचाहते हुए सुनता, पहले पक्षी उससे दूर रहते थे।  लेकिन धीरे-धीरे पक्षी राजा के समीप बैठने लगे और कुछ दिन बाद तो पक्षी कभी राजा के सिर पर बैठ जाते तो कभी उनके कंधे और  भुजाओं पर। राजा को अब लगने लगा कि यह है आत्मिक सुख और किसी के साथ रहकर उनके विचारों को जानने तथा समझने का सही  तरीका। वास्तव में आजादी स्वयं में जीने की कला है।
                                  

हमारे स्वतंत्रता सैनानियों ने आजाद देश में देश के विकास की सोची थी। लेकिन वर्तमान तक आते-आते ये लोग अति महत्वकांशी हो गए । देश हित बाद में पहले अपना हित होना चाहिए। एक तरफ तो देश को आजाद कराने वाले वो लोग थे, जो दिन-रात सोते नहीं थे, खाना तक ठीक से खाते नहीं थे, घर-परिवार से कितने ही दूर, हर समय अपने ठिकाने बदलते रहते थे, कब पकडे जाये और जेल हो जाये या गोली लग जाये कुछ पता नहीं था। लेकिन एक लगन थी देश आजाद होना चाहिए।
                            


आज परिस्थितियाँ इसके विपरित दिखाई देती है। हम अपने ही राजनेताओं की हाथ की कठपुतलियाँ बन चुके हैं। धर्म, जाति, लिंग, वर्ग, भाषा, स्थान आदि के नाम पर लड रहे हैं। देश के विकास का पैसा जो संसद से पास होता है। जाकर विदेशी बैंकों में जमा हो जाता है। भूखी मरती जनता और असुविधाओं से भरा देश अपंग सा खडा दिखाई देता है। रोज नए राजनैतिक दल बन रहे हैं। करोडों अरबों के घोटाले राजनेताओं के लिए एक साधारण सी बात लगने लगी है। विकास के नाम पर केवल लोगों को ठगा जा रहा है। हम अपने ही लोगों के साथ अत्याचार और उनके हिस्से का खा रहे हैं। समाज में उथल-पूथल मची हुई है। हत्या, बलात्कार, चोरी, लूट आदि की घटानयें साधारण सी लगने लगी है। समाचारपत्र और टेलीविजन खून से लथपथ दिखाई देते हैं। कहीं सूखा तो कहीं बाढ से लोग मर रहे हैं। कहीं विद्यालय नहीं है तो कहीं उनमें सुविधाओं की कमियाँ है, शिक्षक नही है। कहीं चिकित्साल्यों की कमी, चिकित्सालय है तो डॉक्टर और दवायें नही,  कहीं नदियों के किनारे  सुरक्षा दीवारें नहीं है, बरसातों मे गांव के गांव भ जा रहे हैं। कहीं उन पर पुल नहीं बने हुए हैं। केवल देश चल रहा है। आजादी के इतने वर्षो बाद भी समझें में नहीं आता कि देश में सत्ता परिवर्तन और व्यवस्था परिवर्तन को लेकर आंदोलन क्यों हो रहे हैं। क्या लोगों में देशभक्ति या देशसेवा का भाव मिट चुका है। क्या सभी अपने लिए ही जीने की सोच रहे हैं। यदि यही सभी कुछ होना था तो फिर शहादत देने की क्या जरुरत थी। कम से कम हम ये तो कह देते हम अभी आजाद नहीं है। आने वाले स्वतंत्रता दिवस के दिन हमें यह कसम लेनी होगी कि हम वो हर काम जिससे अपने देश की तरक्की होती हो, उसे पूरी निष्ठा और ईमानदारी से  देश हित  मे  करेगैं।

कोई टिप्पणी नहीं: