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लोगों को यही पता हैं कि रावण सिर्फ श्रीराम से ही हारा था, लेकिन ये सच नहीं है। रावण श्रीराम के अलावा शिवजी, राजा बलि, बालि और सहस्त्रबाहु से भी पराजित हो चुका था। यहां जानिए इन चारों से रावण कब और कैसे हारा ?
1. एक बार रावण बाली से युद्ध करने के लिए पहुंच गया था। बाली उस समय पूजा कर रहा था। रावण बार-बार बाली को ललकार रहा था, जिससे उसकी पूजा में व्यवधान उत्पन्न हो रहां था। वह रावण को बीच मे थोडा रुक जाने का इसारा भी कर रहे थे। जब रावण नहीं माना तो बाली ने उसे अपनी बाजू में दबा कर चार समुद्रों की परिक्रमा करवाई। बालि बहुत शक्तिशाली था और इतनी तेज गति से चलता था कि रोज सुबह-सुबह ही चारों समुद्रों की परिक्रमा कर लेता था। इस प्रकार परिक्रमा करने के बाद सूर्य को अर्घ्य अर्पित करता था। जब तक बालि ने सूर्य को अर्घ्य अर्पित नही किया, तब तक रावण को अपने बाजू में दबाकर ही रखा । रावण ने बहुत प्रयास किया, लेकिन वह बालि की गिरफ्त से आजाद नहीं हो पाया। पूजा के बाद बालि ने रावण को छोड़ दिया।
2. सहस्त्रबाहु अर्जुन के एक हजार हाथ थे और इसी वजह से उसका नाम सहस्त्रबाहु पड़ा था। जब रावण सहस्त्रबाहु से युद्ध करने पहुंचा तो सहस्त्रबाहु ने अपने हजार हाथों से नर्मदा नदी के बहाव को रोक दिया। सहस्त्रबाहु ने नर्मदा का पानी इकट्ठा किया और पानी छोड़ दिया, जिससे रावण पूरी सेना के साथ ही नर्मदा में बह गया। इस पराजय के बाद एक बार फिर रावण सहस्त्रबाहु से युद्ध करने पहुंच गया। इस बार सहस्त्रबाहु ने उसे बंदी बनाकर जेल में डाल दिया ।
3. राजा बलि पाताल लोक के राजा थे। एक बार रावण राजा बलि से युद्ध करने के लिए पाताल लोक में उनके महल तक पहुंच गया । उसका मक़सद संसार मे सर्वश्रेस्ठ और शक्तिसाली बनना था। वहां पहुंचकर रावण ने बलि को युद्ध के लिए ललकारा।सास्त्रों मे उल्लेख मिलता है कि उस समय बलि के महल में खेल रहे बच्चों ने ही रावण को पकड़कर घोड़ों के साथ अस्तबल में बांध दिया था। इस प्रकार राजा बलि के महल में रावण की हार हुई।
4. रावण बहुत शक्तिशाली था और उसे अपनी शक्ति पर बहुत ही घमंड भी था। रावण इस घमंड के नशे में शिवजी को हराने के लिए कैलाश पर्वत पर पहुंच गया था। रावण ने शिवजी को युद्ध के लिए ललकारा, लेकिन महादेव तो ध्यान में लीन थे। रावण कैलाश पर्वत को उठाने लगा। तब शिवजी ने पैर के अंगूठे से ही कैलाश का भार बढ़ा दिया, इस भार को रावण उठा नहीं सका और उसका हाथ पर्वत के नीचे दब गया। बहुत प्रयत्न के बाद भी रावण अपना हाथ वहां से नहीं निकाल सका। तब रावण ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए उसी समय शिव तांडव स्रोत रच दिया। शिवजी इस स्रोत से बहुत प्रसन्न हो गए और उसने रावण को मुक्त कर दिया। मुक्त होने के पश्चात रावण ने शिवजी को अपना गुरु बना लिया।
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