18 अक्टूबर 2016

क्या भारत दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क बन पाएगा?

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ढाई हजार साल पहले दुनिया की पहली बड़ी शक्ति फारस जिसे आज के समय ईरान के नाम से जाना जाता है, के पास विश्व स्तर पर अपना प्रभावव् वर्चस्व  दर्शाने की क्षमता हुआ करती थी। अपनी विश्वस्तरीय क्षमताओं के कारण ही फारस के राजाओं ने कंधार से तुर्की तक फैले साम्राज्य पर राज किया। इतिहासकार हेरोडोटस लिखते हैं कि 479 ईसा पूर्व में हुई प्लाटिया की लड़ाई में फारसी राजा सरसे ने ग्रीस में एक ऐसी सेना का नेतृत्व किया, जिसमें भारतीय सैनिक भी शामिल थे, जो पंजाब के हुआ करते थे।
फारस दुनिया की पहली महाशक्ति था। वहां के मुख्य शहर पर्सपॉलिस जिसे तख़्त ए जमशेद के नाम से भी जाना जाता था, के मुख्य द्वार पर लगी घोड़े की प्रतिमा इसका प्रतीक चिन्ह हुआ करती थी। इतिहासकारों ने ग्रीक साहित्य में फारसी राजाओं को 'महान' कह कर संबोधित किया गया है। दुनिया की दूसरी महान शक्ति सिकंदर महान थे। इस मकदूनियाई योद्धा को उनकी उपलब्धियों की वजह से 'महान' नहीं कहा जाता।  उन्हें ऐसा संबोधन इसलिए दिया जाता है क्योंकि उन्होंने डेरियस महान को युद्ध में हराकर उनसे ये उपाधि हासिल कर ली थी। ये अलग बात है भारत के पुरू ने उनको रण क्षेत्र से भागने को मज़बूर कर दिया था
तीसरी महाशक्ति रोमन साम्राज्य था, जिसका विस्तार इटली, फ्रांस, स्पेन, लगभग पूरा यूरोप और पूर्व में फिलिस्तीन तक था। जूलियस सीजर, रोमन फौज को ब्रिटेन तक ले गया , लेकिन रोम के पास नौसैनिक ताकत नहीं थी। चौथी बड़ी वैश्विक शक्ति मुस्लिम हुए। मुस्लिम गठजोड़ मे  कई राष्ट्र शामिल हुए थे। अरबों ने उत्तरी अफ्रीका और स्पेन के कुछ हिस्सों पर विजय हासिल की। लेकिन यह मुस्लिम गठबंधन सेनायें असल में कोई अकेला देश न होकर तुर्क, फारसी, मध्य एशियाई और अफगानी थे।

इन मुस्लिम बादशाहतों के पास भी नौसेनिक शक्तियां नहीं थीं। उत्तर भारत पर जब औरंगजेब का प्रभाव था उस समय भी भारत मे यूरोपीय ताकतों का अच्छा खासा प्रभाव हुआ करता था। ऐसा इसलिए था क्योंकि एक तो भारत शांतिप्रिय देश था ,दूसरा राज घराने से जुड़े लोगों को हज के लिए समुद्र के रास्ते मक्का जाना होता था। और समुद्र पर यूरोपीयों का दबदबा था। 15वीं सदी ने औपनिवेशिक ताकतों का उत्कर्ष देखा जिनमें स्पेन, पुर्तगाल, इंग्लैंड, डच और फ़्रांसिसी शामिल थे। लेकिन उनमें क्या बातें सामान्य थीं? ये सभी ताकतें अटलांटिक महासागर से जुड़ी थीं, जो कि एक मुश्किल समुद्र है। इसमें नौवहन के लिए बड़े और मजबूत जहाजों की जरूरत थी । जिनमें अच्छी गुणवत्ता से बने कपड़ों वाली पाल लगी हो। प्रशांत महासागर से सटे राष्ट्रों ने ही ऐसे जहाज बनाने में महारत हासिल की थी। चूंकि उनके जहाज बड़े थे, इसलिए वो भारी और शक्तिशाली तोपें ले जाने में भी सक्षम थे। यही वजह थी कि ये देश समुद्र पार कर सके और अमरीका का उपनिवेशीकरण कर सके जबकि जर्मनी, रूस, इटली और दूसरे बड़े यूरोपीय देश जो अटलांटिक महासागर से जुड़े नहीं थे, वे बड़ी औपनिवेशिक ताकत नहीं बन सके। क्या भारत इससे कुछ शताब्दी पहले बड़ी शक्ति था? भारत के पास उस समय विश्व के कुल सकल घरेलू उत्पाद का करीब पांचवां हिस्सा था,हर हाथ मे काम था। लेकिन उसकी वजह ये थी कि उपमहाद्वीप में दुनिया की आबादी का पांचवां हिस्सा बसती थी। उस ऐतिहासिक काल में करीब-करीब सभी लोग खेती-किसानी करते थे। उत्पादन का बड़ा काम होता था, लेकिन वो मिट्टी के बर्तन बनाने और कपड़ा बनाने तक सीमित था। ज्यादातर आर्थिक उत्पादन मानव श्रम पर ही आधारित था। एक देश या क्षेत्र के पास जितने लोग होते थे वैश्विक जीडीपी में उसकी भागीदारी उतनी ही बड़ी होती थी। 15वीं सदी के बाद, खासतौर से यूरोप में वैज्ञानिक क्रांति के उपरांत जिसका नेतृत्व न्यूटन, हुक और बॉयल कर रहे थे, इस कारण भारत पिछड़ गया।

यूरोपीय देश आर्थिक रूप से आगे निकल गए और भारत वहीं रह गया। उसके बाद जो देश आर्थिक रूप से ताकतवर बने, वो विश्व को प्रभावित करने की स्थिति में आ गए । जिनमें संयुक्त राज्य अमरीका भी शामिल था। आज, बड़ी सेना रखने और यहां तक कि परमाणु हथियार रखने से भी किसी देश का महान शक्ति बनना तय नहीं हो जाता। ऐसा होता तो उत्तर कोरिया और पाकिस्तान महान शक्तिवाले देश होते। आधुनिक दौर में वही देश महान हैं जिनकी आबादी स्वस्थ और शिक्षित है और जो प्रभावकारी माने जाते हैं। जापान, कोरिया और हाल के वर्षों में चीन इन शर्तों को पूरा करने में सक्षम हो गया है। भारत में  पिछले 60 सालों से इन पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया। 2016 में भी भारत देश विरोधी नारों, पड़ोसी देश के साथ तनाव और संस्कृति व पहचान जैसी बातों से प्रभावित होता रहा है। स्वास्थ्य और शिक्षा पर अभी भी नीति निर्माताओं का अब जाकर थोडा बहुत ध्यान गया है। न्याय दिलाने और कानून को लागू करने की योग्यता भी उपस्थित सी लगती है। भारतीय सरकारें राज्य के प्रभाव की जो प्राथमिक शर्तें होती हैं, उनपर भी खरी  उतर सकी हैं, जैसेकि हिंसा पर एकाधिकार।भीड़ द्वारा हिंसा जैसी बातें यहां आम हैं चाहे किसी की भी सरकार सत्ता में हो। जब तक हम इन मूलभूत बातों को ठीक नहीं कर लेते, तब तक महान शक्ति बनने की हमारी कोशिश धीमी ही रहेगी।

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