30 सितंबर 2016

आतंक का काल हैं अजीत डोभाल

ca-pub-6689247369064277



पाकिस्तान ने नापाक हरकत करके उरी के सैनिक ठिकाने पर पाल पोश कर तयार किये आतंकवादियों से सोते हुए भारतीय सैनिकों के ऊपर आधी रात मे हमला करवाया। उरी हमले के बाद पूरे भारत में गुस्सा फ़ैल गया । पाकिस्तान के इस कायराना हमले को लेकर पूरे देश ने मोदी सरकार को आवाज लगाई  कि वे पाकिस्तान की नापाक हरकत का बदला ले और देश का मान बचाए । इसी के तहत सरकार ने पाकिस्तान को करारा जबाब दिया । भारत ने अपनी आज़ादी के 72 सालों बाद दूसरी बार सर्जिकल स्ट्राइक करके पाक के कब्जे वाले कश्मीर में घुसकर 50 आतंकियों को मार गिराया और 8 आतंकी कैम्प तबाह कर दिये। ज्ञात हो डेढ़ साल पहले भारतीय सेना ने प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल मे म्यांमार मे पहली बार सर्जिकल स्ट्राइक की थी। जिससे भारत की छवि एक ताक़तवर मुल्क के रूप मे दुनिया के सामने आयी थी। आज भी पी ओ के जो भारत का हिस्सा है, पर नियंत्रण पाकिस्तान के पास है, मे आतंकी कैंपो की तबाही और बड़ी संख्या मे मारे गए आतंकवादियों के कारण  देश में एक  उत्साह का माहौल है और  इस कार्यवाही के बाद निश्चित रूप से सेना का भी हौसला बढ़ा है l आपको यह जानकर खुशी होगी कि ये पूरा ऑपरेशन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की निगरानी में चला। आखिर ये अजीत डोभाल हैं कौन ? क्यूँ इतनी चर्चा और सुर्खियों में रहते हैं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल? 

जनवरी 2005 में खुफिया ब्यूरो के प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त डोभाल वर्ष  1968 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे हैं। मूलत: उत्‍तराखंड के पौडी गढ़वाल से आने वाले अजीत डोभाल ने अजमेर मिलिट्री स्‍कूल से पढ़ाई की है। उन्होंने आगरा विवि से अर्थशास्‍त्र में एमएम किया है।  कुछ साल वर्दी में बिताने के बाद, डोभाल ने 33 वर्ष से अधिक समय खुफिया अधिकारी के तौर पर बिताए और इस दौरान वह पूर्वोत्तर, जम्मू कश्मीर और पंजाब में तैनात रहे।
प्रधानमंत्री मोदी जी ने इन्हें पाकिस्तान और आतंकवादियों को सबक सिखाने की जिम्मेदारी सौंपी ।डोभाल के बारे में कहा जाता है कि देशद्रोहियों और भारत के गद्दारों के लिए इस बंदे में दया नाम का पुर्जा लगा ही नही है । प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें महज 6 साल के करियर के बाद ही इंडियन पुलिस मेडल से सम्मानित किया था । भारतीय प्रसासनिक सेवा के नियम और परंपरा के अनुसार  यह पुरस्कार कम से कम 17 साल की निर्बाध और निष्कलंक नौकरी के बाद ही मिलता है। यही नहीं जब राष्ट्रपति वेंकटरमन ने अजीत डोभाल को 1988 में कीर्तिचक्र से सम्मानित किया तो यह भी एक नई मिसाल बन गई थी।
अजीत डोभाल पहले ऐसे शख्स थे जिन्हें सेना में कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया था। अजीत डोभाल की कामयाबियों की लिस्ट में स्वर्ण मंदिर मे आतंक से जूझ रहे पंजाब और कश्मीर में शांतिपूर्वक  चुनाव कराना भी शामिल है। एक खुफिया व्यक्ति के रूप मे  उन्होंने 6 साल पाकिस्तान में भी गुजारे , और चीन व बांग्लादेश की सीमा के उस पार मौजूद आतंकी संगठनों और घुसपैठियों की नाक में नकेल भी डाली। अजीत डोभाल की पहचान सुरक्षा एजेंसियों के कामकाज पर उनकी पैनी नजर की वजह से बनी। ऐसी ही साफ समझ की बदौलत अजीत डोभाल ने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को संकट से उबारा था। 24 दिसंबर 1999 को एयर इंडिया की फ्लाइट आईसी 814 को आतंकवादियों ने हाईजैक कर लिया था और उसे कांधार ले गए थे। इस कारण भारत सरकार एक बड़े संकट में फंस गई थी कि विमान मे सवार नागरिको को आतंकियों से  कैसे बचाया जाए। ऐसे में संकटमोचक बनकर उभरे थे अजीत डोभाल।
उस वक्त डोभाल वाजपेयी सरकार में एमएसी के मुखिया थे। आतंकवादियों और सरकार के बीच बातचीत में उन्होंने अहम भूमिका निभाई और 176 यात्रियों की सकुशल वापसी का सेहरा उनके सिर बंध गया ।  अजीत डोभाल ने सीमापार पलने वाले आतंकवाद को करीब से देखा है और आज भी आतंकवाद के खिलाफ उनका रुख बेहद सख्त माना जाता है ।  डोभाल मे निर्णय लेने की क्षमता और उनकी दूरदृष्टि और अनुभव को लेकर दो राय नही हो सकती। उनके बारे मे कहा जाता है कि वे -- 
1. एक ऐसे राष्ट्रवादी भारतीय है जो खुलेआम पाकिस्तान को  भारत के खिलाफ आतंक जारी रखने पर बलूचिस्तान छीन लेने की चेतावनी देने से गुरेज़  नही करते।
2. वे भारत के एक ऐसे  जासूस है , जो पाकिस्तान के लाहौर में सात सालो  तक मुसलमान बनकर अपने देश की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध रहे। 
3. वे भारत के ऐसे एक मात्र नागरिक हैं, जिन्हें शांतिकाल में दिया जाने वाले दूसरे सबसे बड़े पुरस्कार कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया। डाभोल कई ऐसे खतरनाक कारनामों को अंजाम दे चुके हैं, जिन्हें सुनकर जेम्स बांड के किस्से भी फीके लगते हैं।  वर्तमान में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पद पर आसीन अजीत डाभोल से बड़े-बड़े मंत्री भी राष्ट्र विरोधी कार्य करने से डरते  हैं।
4. एक कुशल प्रसासनिक अधिकारी के रूप मे डोभाल ने पाकिस्तान और ब्रिटेन में राजनयिक जिम्मेदारियां भी बखूबी संभालीं हैं। और करीब एक दशक तक खुफिया ब्यूरो की ऑपरेशन शाखा को लीड किया है । रिटायर होने के बाद वे दिल्ली स्थित एनजीओ विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन चला रहे है, जो वार्ता और विवाद निबटारे के लिए जनता को एक साझा मंच उपलब्ध कराता है।
5. भारतीय सेना के एक महत्वपूर्ण ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार के दौरान उन्होंने एक गुप्तचर की भूमिका निभाई और भारतीय सुरक्षा बलों के लिए महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी उपलब्ध कराई, जिसकी मदद से सैन्य ऑपरेशन सफल हो सका। इस दौरान उनकी भूमिका एक ऐसे पाकिस्तानी जासूस की रही जिसने खालिस्तानियों का विश्वास जीत लिया। और तत्कालीन सरकार को उनकी तैयारियों की जानकारी मुहैया करवाई ।

6.1999 में इंडियन एयरलाइंस की उड़ान आई सी-814 को काठमांडू से हाईजैक कर लिया गया, तब उन्हें भारत की ओर से मुख्य वार्ताकार बनाया गया। बाद में इस फ्लाइट को कंधार ले जाया गया था और यात्रियों को बंधक बना लिया गया था. लगातार 110 घंटे आतंकवादियों से नेगोसियेट करने के बाद भारत मे बंदी सभी आतंकियों की रिहाई की मांग के बदले सिर्फ 3 आतंकवादियों को ही छोड़ा गया ।
7. कश्मीर में भी उन्होंने उल्लेखनीय काम किया और उग्रवादी संगठनों में घुसपैठ कर ली।  उन्होंने उग्रवादियों को शांति रक्षक बनाकर उग्रवाद की धारा को मोड़ दिया। उन्होंने अपनी कूटनीति से आतंकी प्रमुख भारत- विरोधी उग्रवादी "कूका पारे" को अपना सबसे बड़ा भेदिया बना लिया । 
8. अस्सी के दशक में वे उत्तर पूर्व में भी सक्रिय रहे। उस समय मिज़ो नेशनल फ्रंट ने लालडेंगा के नेतृत्व में हिंसा और अशांति फैला रखी थी. लेकिन तब डोवाल ने लालडेंगा के सात में छह कमांडरों का विश्वास जीत लिया, और इसका नतीजा यह हुआ था कि लालडेंगा को मजबूरी में भारत सरकार के साथ शांति विराम का विकल्प अपना पड़ा। 
9. डोभाल ने वर्ष 1991 में खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट द्वारा अपहरण किए गए रोमानियाई राजनयिक लिविउ राडू को बचाने की सफल योजना बनाई थी. कश्मीर में अपने कार्यकाल के दौरान, डोभाल आतंकवादी समूहों को तोड़ने में सफल रहे।
10. हाल ही में 4 जून को मणिपुर के चंदेल गांव में उग्रवादियों के हमले में 18 जवान शहीद हो गए थे। डोभाल ने पूर्वोत्तर भारत में सेना पर हुए हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक की योजना बनाई और भारतीय सेना ने सीमा पार म्यांमार में कार्रवाई कर उग्रवादियों को मार गिराया. भारतीय सेना ने म्यांमार की सेना और एनएससी एन खाप्लांग गुट के बागियों के सहयोग से ऑपरेशन चलाया, जिसमें करीब 30 उग्रवादी मारे गए . रणनीति को अंजाम देने के लिए डोभाल ने पीएम मोदी के साथ बांग्लादेश जाने का प्लान टाल दिया। हमको भारत मे जन्मे, एक मज़बूत राष्ट्रवादी के रूप मे कार्य करने वाले देशभक्त जाबांज निर्भीक सिपाही के योगदान को हमेसा सम्मान के नजरिये से देखना चाहिए। 

29 सितंबर 2016

ध्यान शक्ति से खोलें दिव्य दृष्टि।

ca-pub-6689247369064277  


बिन गुरु ज्ञान कहाँ से पाऊं, दीजो ध्यान हरी गुण गाऊँ। ध्यान की महीमा अपरम्पार है। तभी तो  दुनिया के सभी मत मतान्तर ध्यान, ध्यान, ध्यान कह रहे है, क्या है ये ध्यान? । आपने कभी गौर किया होगा, जब किसी क्लास का अध्यापक या किसी धर्म का धर्मगुरु अपने अनुयायियों को शिक्षा का ज्ञान दे रहा होता है, सभी जिज्ञासु लोग उनकी बातों को बड़े ध्यान से सुन रहे होते हैं, उनकी बातों को समझ रहे होते है और उनको अपनी आँखों के सामने देख भी रहे होते हैं। कभी आप एक बात का गौर करना, जब उस अवस्था मे आपका ध्यान एक पल के लिए हट जाए और कहीं और चला जाए, तो आप उनके सम्मुख होते हुए भी ना उनकी बातों को सुन पाएंगे, ना ही समझ पाएंगे और ना ही उस पल के लिए आप उनको देख पाएंगे। क्योंकि उस पल आप वहाँ थे तो सही, लेकिन थे कहीं और।

ध्यान बड़ी खास चीज है। इसका मतलब यह हुआ कि हमको सुनने, समझने और देखने की शक्ति हमारा ध्यान दे रहा था। यह कितना महत्वपूर्ण है, हमने कभी इस पर ध्यान नही दिया। कहीं न कहीं , किसी न किसी कोण से हम यह बात जानते भी है। हम अपने बच्चों से भी कहते है कि बच्चों ध्यान से पढ़ना, ध्यान से रोड क्रॉस करना, सेहत का भी ध्यान रखना इत्यादि। दुनिया के जितने भी मत और मतान्तर है, वे सभी ध्यान लगाने की तरफ मनुष्य को जागरूक कर रहे है। सभी लोग कह रहे है कि ध्यान एकाग्र करो। इस ध्यान को सुद्ध हिंदी मे सुरुति भी कहते हैं। यह ध्यान बहुत बड़ी ताक़त है। देखते है कि यह कहाँ है?  

ये अजीब है। यह संसार के प्रत्येक जीव के अंदर आत्मा रूप मे विराजमान है। हमें आत्मा तक पहुँचने के लिए ध्यान को इकट्ठा करना पड़ेगा। परमात्मा की प्राप्ति का यही एक मात्र उपक्रम है। उदाहरण के लिए जिस प्रकार हम अनाज पैदा करने के लिए खेत जोतते है, खाद डालते है, बीज बोते है, सिंचाई करते है। यह सब कृषि का एक उपक्रम है।  इसी प्रकार परमात्मा की प्राप्ति के लिए मनुष्य द्वारा कोई उपक्रम किया जा रहा है तो वह है ध्यान । जैसे पूर्ण अक्षर ज्ञान होने के लिए मनुष्य पहले बोलना सीखता है ,फिर लिखना। इसी प्रकार ध्यान की समझ को पाने के लिए उसको पूजा, पाठ, अरदास, नमाज, जप, तप, व्रत इत्यादि का सहारा लेना पड़ता है।यह विधि ध्यान को एकाग्र करने की प्रथम सीढ़ी है। प्रश्न  खड़ा होता है कि परमात्मा को प्राप्त करने के लिए ध्यान की जरूरत क्या है ? इसकी प्रासंगिकता क्या है?   क्या ध्यान के अलावा किसी अन्य चीज से परमात्मा को नही पाया जा सकता ?  इसका जबाब देने के लिए कोई तयार नही। इसका उत्तर आ भी नही सकता क्योंकि ध्यान जैसा अन्य कोई  असाधारण विकल्प हमारे पास उपलब्ध नहीँ है। 

ध्यान के अंदर आँखें भी हैं। केवल ध्यान की आँखें ही परमात्मा का दीदार कर सकती हैं। इसी ध्यान मे कान भी हैं, जो परमात्मा की आवाज को सुन सकते हैं। इसी ध्यांन के पैर भी है जो परमात्मा तक जा सकते है। इसी ध्यान के हाथ भी हैं जो परमात्मा के चरण स्पर्श कर सकते हैं। अगर आप गहराई से थोडा चिंतन करें तो यह आत्मा रुपी ध्यान  सभी प्राणियों मे दिखाई देगी। 



गीता मे वासुदेव कृष्ण ने अर्जुन से कहा , हे अर्जुन, इस आत्मा की आँखें नही है फिर भी यह सभी दिशाएँ एक साथ देख सकती है। हमारा शरीर सभी दिशासों मे एक साथ नही देख सकता। हम किसी भी क्रिया को अपनाकर अपने शारीरिक अंगों से एक साथ सभी दिशाओं मे काम नही कर सकते। यह गुप्त रहस्य है कि जिस आत्मा के अंगों की यहां बात की जा रही है, वे शरीर के अंगों का क्रियान्वयन कर रहे है। मतलब शरीर की आँखों के पीछे आत्मा की आँखें हमको दृश्य दिखा रही हैं।आत्मा के पैर, शरीर के पैरों को चला रहे हैं इत्यादि। जिस समय यह स्थूल शरीर काम कर रहा है, उस समय इसके पीछे आत्मा के अंग काम कर रहे हैं। जैसे ही आत्मदेव शरीर से निकला, शरीर के अंग मृत हो जाएंगे। सही होते हुए भी अक्रियासील रहेंगे। यह बड़ा जटिल विज्ञान है। जब भी हम खुद के प्रयासों से इस शरीर से आत्मा को एकत्रित करने का प्रयास करते है, कई रुकावटें खड़ी हो जाती हैं। यह रुकावटें मन की होती हैं,  जो हमारी आत्मा को एकाग्र नही होने देता। 

मन ने इस कदर इस आत्मा को बंधनो मे दाल दिया है, कि ध्यान ध्यान एकाग्र करते समय बाधायें खड़ी हो जा रही है।ध्यान एकाग्र हो ही नही पा रहा है। अब इसी आत्मा को छुड़ाने के लिए कोई डुबकियां लगा रहा है, कोई जड़ पदार्थों की भक्ति कर रहा है, कोई कहीं जा रहा है, कोई प्राणों का योग कर रहा है, कोई हठ योग कर रहा है। कोई सन्यासी बन रहा है, कोई जंगलों का रास्ता देख रहा है। लेकिन कोई भी मनुष्य इन शैतानी ताक़तों से अपने आप को नही छुड़ा पा रहा है, जिस ताक़त ने इस आत्मा को बांधा हुआ है। इस मन की ताक़त बड़ी शातिर और ताक़तवर है। इससे बचना बड़ा मुश्किल है।इसने मनुष्य को भ्रमित किया हुआ है। मनुष्य का इतना जोर नही कि वह इससे निकल पाये। 

हम सब वर्तमान की उपासना पद्धतियों को देख रहे है, जो क्रमशः सगुण और निर्गुण हैं। शास्त्रानुसार ये दोनों भक्तियां मोक्ष दायिनी है। इनको सब कर रहे हैं। लेकिन भक्ति का भेद जानना बड़ा मुश्किल काम है। यथार्थ भक्ति के तत्व को जाने बगैर , आत्मा का बंधन नही छूट पायेगा। आत्मा के बंधनो को छुड़ाने के लिए बड़े बड़े ऋषी मुनियों ने घोर तपस्याएँ की। उन्होंने अपने शरीर को गला दिया, अपने ऊपर दीमक चढ़वा ली, अन्न जल छोड़ दिया । वे घर छोड़ के सन्यासी भी हो गए। फिर भी बंधनो को नही छुड़ा पाये। इस ताक़त की रूकावट ने उनको भी आत्मा तक नही जाने दिया। इसका मतलब साफ़ है कि कुछ विरोधी शक्तियां हमारे शरीर मे निवास कर रही हैं, जिनका काम विशेष रूप से आत्मा को पिजड़े से बाहर नही निकलने देना है, बल्कि और बंधनो मे बाँधना है, जब तक कि पिजड़ा स्वतः ही समयानुसार क्षतिग्रस्त न हो जाए। इससे बचने का एक ही उपाय है वो है "सतगुरु"। 

सतगुरु को हमारे वैज्ञानिको ने तथ्यों के आधार पर स्थापित किया हुआ है। सतगुरु के पास एक ऐसी अलौकिक ताक़त है कि वे आत्मा के बंधनो को छुड़ा सकता है। सतगुरु के पास जो औसधी है , वो है "नाम"। इसलिए लोग सतगुरुवों के पास नाम लेने के लिए जाते हैं। यहां पर ये बात गौर करने की है कि यह नाम कोई साधारण नाम नही है। अगर यह नाम कोई वाणी होता, तो दो चार नाम तो कोई साधारण बालक भी बोल देगा। बच्चा भी दस पांच नाम जानता ही है। पवित्र रामायण मे गोस्वामी जी ने नाम की महिमा को बोला है। उन्होंने लिखा "कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर सब उतरो पारा" । पवित्र गुरुग्रंथ साहिब मे गुरु नानक देव ने भी लिखा " नानक नाम जहाज है, जो चढ़े सो उतरे पार"। यहां पर मनुष्य से एक भूल हो गयी। भूल ऐसी कि घर से चले थे मंजिल पाने की और पर रास्ता भटक गए। नाम की परतें खोलने पर पता चलता है कि इस नाम को ना तो कोई पढ़ सकता है, ना लिख सकता है, और न कोई देख सकता है।  पर सतगुरु के पास ऐसी ताक़त है कि वे इस नाम को आपतक पहुँचा देते है।  कोई साधारण नाम का प्रयोग आप अपनी इच्छा से नही कर सकते।

 जैसे खाने पीने मे आप समुन्दर के पानी का प्रयोग नही कर सकते।जहां जहां समुन्दर का पानी जाता है, वहां वहां मरुस्थल बन जाता है यानि रेत ही रेत। नमक की बहुत ज्यादा मात्रा होने के कारण यह जमीन को ऊसर बना देता है। इसको न पीया जा सकता है, और अ नहाया जा सकता है।आपने सूना भी होगा, लोग समुन्दर मे प्यासे मर जाते है। जिस प्रकार समुन्दर के पानी को बादल लेकर आते है और मीठा जल बरसाते है, चंदन का पेड़ अपनी खुसबू को लोक लोकान्तर तक पहुँचाने मे सक्षम नही होता। हवा उसकी खुसबू को दूर तक ले जा सकती है।इसी प्रकार सतगुरु भी परमात्मीय सत्ता को परिशोधित करके आप तक पहुँचा देते है। यह ताकत उनके पास होती है। जैसे बादलों की ताक़त, हवा की ताक़त वैसे ही सतगुरु की ताक़त है। परमात्मा रूपी ताक़त संतजन अपनी ध्यान की शक्ति से उठाकर लाते है। उसी को "नाम" कहा गया है। इस नाम को एकाग्रता की शक्ति से ही प्रदान किया जा सकता है। जिसमे मनुष्य को चेतन करने की क्षमता मौजूद होती है। कभी कभी हम गुरु महाराजों से कहते भी है कि महाराज हमारा ध्यान रखना। वो इसलिए कह रहे है कि उनका ध्यान हमेसा परमात्मा मे लगा रहता है। जिस प्रकार पारस पत्थर के संपर्क मे आकर लोहा स्वर्ण मे तब्दील हो जाता है, इसी प्रकार सतगुरु के ध्यान की ताक़त से हृदय मे प्रकाश प्रज्वलित हो जाता है। अन्यथा अन्य कोई भी बाहरी प्रकाश चाहे वह सूर्य का ही भले कईं न हो, आत्मा को प्रकाशित नहीँ कर सकता। जहां एक बार हृदय प्रकाशित हो गया तो दिव्य दृष्टि खुल जाती है और शरीर के अंदर बैठे और छुपे मत्सर जैसे काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार रुपी गुप्त शत्रु साफ़ साफ़ दिखाई देने लगते हैं जो आज तक आत्मा को परमात्मा की तरफ जाने मे सबसे बड़ी रुकावट बने हुए थे। यहीँ से परमात्मा रुपी आत्मा का इनके साथ संघर्ष सुरु हो जाता है। चूँकि आत्मा ईस्वर का अंश होने के कारण सर्वशक्तिमान है, इसलिए ये मत्सर रुपी शत्रु कुछ समय बाद हारकर समर्पण कर देते है, और आपका मन धीरे धीरे आपके नियंत्रण मे आ जाता है। आज तक मन आपके ऊपर सवार होकर आपसे न जाने कैसे कैसे पाप कर्म करवा रहा था, पर अब मन के ऊपर आप सवार हो गए। आओ खुद ही समझ सकते है कि जो मनुष्य मन रुपी घोड़े के ऊपर सवार हो , वह क्या नही कर सकता। क्योंकि "मन के जीते जीत है, मन के हारे हार" । 

28 सितंबर 2016

दो सौ साल बाद सूर्य दर्शन।

ca-pub-6689247369064277


उड़ीसा राज्य के पवित्र शहर पुरी के पास यह कोणार्क का सूर्य मंदिर है। यह भव्य मंदिर सूर्य देवता को समर्पित भारत का प्रसिद्घ तीर्थ स्थल है। सूर्य देवता के रथ के आकार में बनाया गया यह मंदिर भारत की मध्यकालीन वास्तुकला का अनोखा उदाहरण है। सूर्य मंदिर पत्थरों पर की गई अद्भुत नक्काशी के लिए जाना जाता है।

इस सूर्य मंदिर का निर्माण राजा नरसिंहदेव ने 13वीं शताब्दी में करवाया था। यह मंदिर अपने विशिष्ट आकार और शिल्पकला के लिए दुनिया भर में प्रसिद्द है। हिन्दू मान्यता के अनुसार सूर्य देवता के रथ में बारह जोड़ी पहिए हैं, और रथ को खींचने के लिए उसमें 7 घोड़े जुते हुए है जिसमें सुंदर नक्काशी की गई है। मुगलों के आक्रमणकारियों से बचाने के लिए यहां की सूर्य प्रतिमा पुरी के जगन्नाथ मंदिर में सुरक्षित रखी गई है इसलिए अब यहां कोई भी देव मूर्ति नहीं है।

मान्यता है कि सूर्य मंदिर समय की गति को भी दर्शाता है, जिसे सूर्य देवता नियंत्रित करते हैं। पूर्व दिशा की ओर जुते हुए मंदिर के 7 घोड़े सप्ताह के सातों दिनों के प्रतीक हैं। 12 जोडी पहियों मे लगी 8 ताड़ियां दिन के आठों प्रहर की प्रतीक स्वरूप है। पूरे मंदिर में पत्थरों पर कई विषयों और दृश्यों पर मूर्तियां बनाई गई हैं।

मुस्लिम आक्रमणकारियों पर सैन्यबल की सफलता का जश्न मनाने के लिए राजा ने कोणार्क में सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था। स्थानीय लोगों का मानना है कि यहां के टावर में स्थित दो शक्तिशाली चुंबक मंदिर के प्रभावशाली आभामंडल के शक्तिपुंज हैं।

15वीं शताब्दी में मुगलों की सेना ने यहां लूटपाट मचा दी थी, तब सूर्य मंदिर के पुजारियों ने यहां स्थपित सूर्य देवता की मूर्ति को पुरी में ले जाकर सुरक्षित रख दिया, लेकिन पूरा मंदिर काफी क्षतिग्रस्त हो गया था। इसके बाद धीरे-धीरे मंदिर पर रेत जमा होने लगी और यह पूरी तरह रेत से ढंक गया था। 20वीं सदी में ब्रिटिश शासन के दौरान सूर्य मंदिर को फिर खोजा गया, अंग्रेजों का शक था कि मंदिर के नीचे स्वर्ण भण्डार हो सकता है क्योंकि उनका मक़सद भी मुगलों की भांति भारत की अकूत सम्पदा का दोहन करना मात्र था। लोगों को लगा कि अंग्रेज़ मंदिर को संरक्षित करने के लिए इसकी सफाई कर रहे है।पर ऐसा था नही।


पुराने समय में समुद्र तट से गुजरने वाले योरपीय नाविक मंदिर के टावर की सहायता से दिसाओं की जानकारी करते थे, लेकिन चट्टानों से टकराकर कई जहाज नष्ट होने लगे, इसीलिए इन नाविकों ने सूर्य मंदिर को ‘ब्लैक पगोड़ा’ नाम दे दिया। जहाजों की इन दुर्घटनाओं का कारण भी मंदिर के शक्तिशाली चुंबकों को माना जाता है। यहां के पत्थरों मे लोह तत्व प्रचुर मात्रा मे पाया गया है। दो सौ सालों मे सिर्फ एक बार कोणार्क के सूर्य मंदिर मे सूर्योदय का विहंगम दृश्य देखने को मिलता है। जिसको देखने के लिये यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है।

27 सितंबर 2016

चाणक्य की मौत का कारण

ca-pub-6689247369064277


चाणक्य को इतिहास मे विष्णु और कौटिल्य नाम से भी जाना जाता है। उनका मूल नाम विष्णुगुप्त था। वह एक ऐसे विचारक थे जिन्होंने राज्य का संविधान राज्य की जनता की मांग पर बनाने की बात सोची थी । आज से 2500 वर्ष पहले संविधान बनाने का यह पहला विचार था। अब उनकी मुख्य तलाश थी राज्य और राजा। जो उनको चन्द्रगुप्त मौर्य के रूप मे मिली। 


चाणक्य की चंद्रगुप्त से पहली भेंट तब हुई जब वह अपने साथियों के साथ राजा और प्रज  का एक खेल खेल रहा था। चाणक्य अर्थशास्त्र के साथ-साथ अपने शिष्यों को राजनीति और कूटनीति की शिक्षा भी दिया करते थे l उन्होंने नीति शास्त्र की रचना भी की थी,  जिसमें जीवन को  सुखी कैसे बनाया जाये , इसका उल्लेख किया गया था। चन्द्रगुप्त को सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य बनाने में भी चाणक्य का बड़ा हाथ था । उन्होंने चन्द्रगुप्त को कूटनीति और नीति सास्त्र का खूब ज्ञान दिया। वह चन्द्रगुप्त को भोजन मे बहुत कम मात्रा मे जहर भी खिला देते थे । उनका मक़सद उसको मारना नही था, बल्कि इस लायक बनाना था कि यदि कोई गुय शत्रु जहर भी खिला दे तो चन्द्रगुप्त उस आघात का सामना कर सके। जब चाणक्य का जन्म हुआ था तब उनके मुह में केवल एक ही दांत था। उनके पैदा होने के कुछ दिनों बाद उनके घर एक जैन मुनि आये , उन्होंने जब चाणक्य के मुह में वो एक दांत देखा, तभी उनके माता-पिता को बताया की ये लड़का राजा बनेगा। चाणक्य के माता पिता चाहते थे की उनका पुत्र आचार्य या जैन मुनि बने । तब मुनि बोले कि चाणक्य का दांत निकाल दीजिये तो ये राजा का निर्माता बनेगा। 


चाणक्य की पढाई पाटलीपुत्र से दूर तक्षशिला विश्वविद्यालय मे हुई थी जो तब अफगानिस्तान मे था।  चाणक्य की नीतियों के कारण ही सिकंदर को भारत से वापस लौटना पड़ा था। चाणक्य की मौत के दो कारण बताये जाते है । पहला यह कि उन्होंने भोजन पानी त्यागकर अपना शरीर खुद छोड़ा था और दुसरा यह कि वे किसी सडयंत्र का शिकार हो गए थे जिससे उनकी मौत हुए थी। कारण जो भी हो भारत के लिए यह एक बड़ी क्षति थी।

26 सितंबर 2016

अजंता गुफाओं से जुड़ी 10 दिलचस्प बातें

ca-pub-6689247369064277



महाराष्ट्र की प्राकृतिक गोद में बसे अजंता की गुफाएं भारत के सबसे अच्छे गुफ़ा स्मारकों में से एक है। अजंता की गुफाएं बौद्ध धर्म द्वारा प्रेरित और उनकी करुणामय भावनाओं से भरी हुई शिल्‍पकला और चित्रकला से ओतप्रोत हैं, जो मानवीय इतिहास में कला के उत्‍कृष्‍ट ज्ञान और अनमोल समय को दर्शाती हैं।प्राचीन भारतीय कला के जीवित उदाहरणों में से एक, इन गुफाओं के बारे में कुछ ऐसे दिलचस्प तथ्य हैं जिनको जानना आपके लिए लाभदायक होगा।

अजंता गुफाओं की खोज, सन् 1819 ईसवीं में ब्रिटिश आर्मी के मद्रास रेजिमेंट में कार्यरत एक आर्मी ऑफिसर द्वारा की गई थी

ऐसा माना जाता है कि अजंता की गुफाएं, ईसाई युग के पहले से ही अस्तित्व में है। यहाँ की सबसे पुरानी गुफ़ा सीधे आपको दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के काल में ले जाएगी।




अजंता की गुफ़ाएं 30 पत्थरों को काट कर बनाये गए गुफाओं का समूह है जो पूर्व बौद्धिक वास्तुकला, मूर्तियां व गुफ़ा चित्रों का बखूबी प्रतिनिधित्व करते हैं।





यहाँ की गई नक्काशियों के मुख्य विषय गौतम बुद्ध के जीवन चरित्र से जुड़े हुए हैं। ये बौद्ध दर्शन व बुद्ध की शिक्षाओं को भी दर्शाते हैं।


अजंता की गुफ़ाएं पूरी दुनिया में अपने प्रभावशाली भित्तिचित्रों व अन्य कई चित्रों के लिए सबसे ज़्यादा प्रसिद्द है, जिन्होंने विश्व कला में अपना भरपूर सहयोग दिया है और इन्हें प्राचीन भारतीय कला के खज़ाने के रूप में भी माना जाता है।










25 सितंबर 2016

फलों की जगह इस पेड पर उगते हैं पैसे

ca-pub-6689247369064277


कहते है पैसे पेड़ मे नही लगते। परन्तु ब्रिटेन के  स्कॉटिश हाईलैंड के पीक डिस्ट्रिक्ट फ़ोरेस्ट में एक ऐसा ही पेड़ है जिसपर सिक्के लगे हैं । इस पेड़ के तनों, टहनियों  में अगल अगल देशों के सिक्के लगे हैं। ब्रिटेन मे होने की वजह से इन सिक्कों मे सबसे ज्यादा तादात ब्रिटेन के सिक्को की ही है। पैसों से लदा ये पेड़ 1700 साल पुराना है। पेड़ की कोई भी जगह ऐसी नहीं बची, जहां सिक्के न गुदे हो। इस पेड़ को लेकर लोग तरह-तरह की कहानियां बताते है। कई लोगों का कहना है कि सालों पुराने इस पेड़ पर भूतों का बसेरा है, तो कोई कहता है कि यहां कुबेर देवता निवास करते हैं। लोगों का मानना है कि इस पेड़ पर सिक्के लगाने से उनकी मुराद पूरी हो जाती है।

मान्यता है कि अगर कोई प्रेमी जोड़ा यहां आकर सिक्के लगाए तो उसका रिश्ता मधुर और सालों-साल तक चलता है। इस पेड़ की प्रसिद्धी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां भारी संख्या में विदेशी पर्यटक आते हैं। वो भी इस पेड़ पर सिक्के लगाकर जाते है, जिसकी वजह से इस पेड़ पर ब्रिटेन के सिक्कों के अलावा और भी देशों की करेंसी लगी हुई है। देखने मे यह पेड़ ऐसा लगता है मानो यह पेड़ नोटों का ही है। 





24 सितंबर 2016

वैज्ञानिक का खुलासा ! प्राचीन भारत के आविष्कार से बढ़ गया तीसरे विश्व युद्ध का खतरा

ca-pub-6689247369064277


परमाणु बम विश्व्य युद्ध से 5000 साल पहले हमारे भारत में ही इस्तेमाल किया गया था। परमाणु बम का आविष्कार अब तक का सबसे भयंकर आविष्कार है। द्वितीय विश्व युद्ध में नागासाकी और हिरोशिमा का जो हाल हुआ था वो इसी बम के कारण था और जिसे आज तक भी भुलाया नहीं जा सका है । और भी डरा देने वाली बात ये है कि लगबग हर देश के पास अब यह विनाशकारी हथियार है । जिनमे से कुछ देश तो ऐसे भी है जो इन प्रलयकारी हथियारों  को चलाने की अक्सर धमकी देते रहते हैं। अगर सच में कभी तीसरा विश्व युद्ध आ खड़ा हुआ और उस दौरान ऐसा परमाणु बम छोड़ दिया गया तो पृथ्वी का अंत निश्चित है। 


महाभारत युद्ध में महाप्रलय लाने की क्षमता रखने वाले अस्त्र शस्त्रों और विमान रथों के उल्लेख के साथ साथ एटामिक तरह के युद्ध का परिचय भी मिलता है । इस युद्ध के एटामिक वृतान्त से ऐसी जानकारी प्राप्त होती है जिसे सुनकर आप दंग रह जायेंगे । उस वक़्त संहारक शस्त्रों का प्रयोग ही नहीं बल्कि इन्द्र के वज्र अपने चक्रदार रिफलेक्टर के माध्यम से संहारक रूप में प्रगट होता है। यही अस्त्र जब दागा गया तो एक विशालकाय अग्नि पुंज के समान उभर अपने लक्ष्य को निगल लिया था।


अत्यन्त शक्तिशाली विमान से एक शक्ति  युक्त अस्त्र प्रक्षेपित किया गया । धुएँ के साथ अत्यन्त चमकदार ज्वाला, कहा जाता है कि इसकी चमक दस हजार सूर्यों के चमक के बराबर थी, का आकाश मे अत्यन्त भव्य स्तम्भ उठा। वह वज्र के समान अज्ञात अस्त्र साक्षात् मृत्यु का भीमकाय दूत था । जिसने वृष्ण और अंधक के समस्त वंश को भस्म करके राख बना दिया ,उनके शव इस प्रकार से जल गए थे कि पहचानने योग्य नहीं थे. उनके बाल और नाखून अलग होकर गिर गए थे।  बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के बर्तन टूट गए थे और पक्षी सफेद पड़ चुके थे । कुछ ही घण्टों में समस्त खाद्य पदार्थ संक्रमित होकर विषैले हो गए । उस अग्नि की ज्वाला से बचने के लिए योद्धाओं ने स्वयं को अपने अस्त्र-शस्त्रों सहित जलधाराओं में डुबा लिया था। परंतु वे भी उसके रेडिएशन से नही पच पाये। दुनिया को चाहिए कि परमाणु हथियारों के निर्माण, अनुसन्धान को तत्काल रूप से बन्द किया जाए ताकि पृथ्वी को बचाया जा सके।

23 सितंबर 2016

श्राद्ध महिमा

ca-pub-6689247369064277




जीवात्मा का अगला जीवन पिछले संस्कारो से बनाता है | अत: श्राद्ध करके यह भावना की जताई है कि उनका अगला जीवन अच्छा हो |श्रद्धा और मंत्र के मेल से पितरो की तृप्ति के निमित्त जो विधि होती है उसे श्राद्ध कहते है | इसमें पिंडदानादि श्रद्धा से दिये जाते है | जिन पितरों के प्रति हम कृतज्ञतापूर्वक श्रद्धा व्यक्त करते है, वे हमारे जीवन की अडचनों को दूर करने में हमारी सहायता करते है |

 'वराह पुराण' में श्रद्धा की विधि का वर्णन करते हुए मार्कन्ड़ेयजी गौरमुख ब्राम्हणसे कहते है :'विप्रवर ! छहों वेदांगों को जाननेवाले, यज्ञानुष्ठान में तत्पर, भानजे, दौहित्र, श्वसुर, जामाता, मामा, तपस्वी ब्राम्हण, पंचाग्नि में तपनेवाले, शिष्य,संबंधी तथा अपने माता-पिता के प्रेमी ब्राम्हणों को श्राद्धकर्म के लिए नियुक्त करना चाहिए |' विचारशील पुरुष को चाहिए कि जिस दिन श्राद्ध करना हो उससे एक दिन पूर्व ही संयमी, श्रेष्ट ब्राह्मणों को निमंत्रण दे दे | श्राद्धकर्ता पुरुष को घर आये हुए ब्राह्मणों के चरण धोने चाहिए | फिर अपने हाथ धोकर उन्हें आचमन कराना चाहिए | तत्पश्चात उन्हें आसन पर बिठाकर भोजन कराना चाहिए | पितरों के निमित्त अयुग्म अर्थात एक, तीन, पाँच, सात इत्यादि की संख्या में ब्राह्मणों को भोजन कराने की व्यवस्था करनी चाहिए |


यज्ञेश्वरो यज्ञंसमस्तनेता भोक्ता व्ययात्मा हरीरिश्वरोत्र | तत्संनिधानाद्पयान्तु सद्यो रक्षांस्यशेशान्यसुराश्च्य सर्वे || विष्णु पुराण (३.१६.१६ ) में आता है : 'श्रद्धायुक्त व्यक्तियों द्वारा नाम और गोत्र का उच्चारण करके दिया हुआ अन्न, पित्रुगण को वे जैसे आहार के योग्य होते है वैसा ही होकर मिलता है |'

भोजन के लिए बना अन्न अत्यंत मधुर, भोजनकर्ता की इच्छा होना चाहिए | पात्रों में भोजन रखकर श्राद्धकर्ता को अत्यंत सुन्दर एवं मधुर वाणी से कहना चाहिए कि' हे महानुभावो ! अब आप लोग अपनी इच्छा के अनुसार भोजन करे |' श्राद्ध की विधि पूर्ण कराने के बाद ब्राम्हण मौन होकर भोजन आरंभ करे | यदि उस समय कोई ब्राम्हण हँसता या बात करता है तो वह हविष्य राक्षसों का भाग हो जाता है | जब ब्राम्हण लोग भोजन करते हो तो उस समय श्राद्धकर्ता पुरुष श्रद्धापूर्वक भगवान् नारायण का स्मरण करे |जब निमंत्रित ब्राम्हण भोजन से तृप्त हो जाये तो भूमि पर थोडा-सा अन्न डाल देना चाहिए | आचमन के लिए उन्हें एक-एक बार शुद्ध जल देना आवश्यक है | तदनंतर भलीभांति तृप्त हुए ब्राम्हणों से आज्ञा लेकर भूमि पर उपस्थित सभी प्रकार के अन्न से पिंडदान करने का विधान है | श्राद्ध के अंत में बलिवैस्वदेव का भी विधान है | श्राद्ध के अंत में दान देते समय हाथ में काले तिल, जौ और कुशा के साथ पानी लेकर ब्राम्हण को दान देना चाहिए ताकि उसका शुभ फल पितरों तक पहुँच सके नहीं तो असुर लोग हिस्सा ले जाते है | ब्राम्हण के हाथ में अक्षत (चावल) देकर यह मंत्र बुलवाया-बोला जाता है : अक्षतं वास्तु में पुण्यं शान्ति पुष्टिधृतिश्च में | यदिच्छेयस कर्मलोके तदस्तु सदा मम || ‘मेरा पुण्य अक्षय हो, मुझे शांति, पुष्टि और घृति प्राप्त हो, लोक में जो कल्याणकारी वस्तुएँ हे वे सदा मुझे मिलती रहे |’ उपरोक्त अर्थ की प्रार्थना भी की जा सकती है |

 मारे जो सबंधी देव हो गये है, जिनको दूसरा शरीर नही मिला है वे पितृलोक में अथवा इधर-उधर विचरण करते है, उनके लिए पिण्डदान किया जाता है | जो शरीर में नहीं रहे है, पिण्ड में है,उनका नौ तत्वों का पिण्ड रहता है “चार अन्त:करण और पाँच ज्ञानेद्रियाँ | उनका स्थूल पिण्ड नहीं रहता है वरन वायुमय पिण्ड रहता है | वे अपनी आकृति दिखा सकते है किन्तु आप उन्हें छू नहीं सकते | दूर से ही वे आपकी दी हुई चीज को भावनात्मक रूप से ग्रहण करते है | दूर से ही वे आपको प्रेरणा आदि देते है अथवा कोई-कोई स्वप्न में भी मार्गदर्शन देते है |


नित्य श्राद्ध : यह श्राद्ध जल द्वारा, अन्न द्वारा प्रतिदिन होता है | काम्य श्राद्ध : जो श्राद्ध कामना रखकर किया जाता है, उसे काम्य
श्राद्ध कहते है | वृद्ध श्राद्ध : विवाह, उत्सव आदि अवसर पर वृद्धों के आशीर्वाद लेने हेतु किया जानेवाला श्राद्ध वृद्ध श्राद्ध कहलता है | पार्व श्राद्ध : मंत्रो से पर्वो पर किया जानेवाला श्राद्ध पार्व श्राद्ध है | गोष्ठ श्राद्ध : गौशाला में किया जानेवाला श्रद्धा गोष्ठ श्राद्ध कहलाता है | शुद्धि श्राद्ध : पापनाश करके अपने को शुद्ध करने के लिए जो श्राद्ध किया जाता है | दैविक श्राद्ध : देवताओं की प्रसन्नता के उद्देश्य से दैविक श्राद्ध किया जाता है | कर्मांग श्राद्ध : गर्भाधान, सोमयाग, सीमन्तोन्नयन आदि से आनेवाली संतति के लिय किया जाता है | तुष्टि श्राद्ध : देशान्तर में जानेवाले की तुष्टि के लिये जो शुभकामना की जाती है, | क्षया: यां सांत्वश्रिक श्राद्ध : बारह महीने होने पर श्राद्ध के दिनों में जो विधि की जाती है, उसे क्षया: यां सांत्वश्रिक श्राद्ध कहते है  जो पूर्णमासी के दिन श्राद्धादि करता है उसकी बुद्धि, पुष्टि, स्मरणशक्ति, धारणाशक्ति, पुत्र-पौत्रादि एवं ऐश्वर्य की वृद्धि होती। वह पर्व का पूर्ण फल भोगता है। इसी प्रकार प्रतिपदा धन-सम्पत्ति के लिए होती है एवं श्राद्ध करनेवाले की प्राप्त वस्तु नष्ट नहीं होती। द्वितिया को श्राद्ध करने वाला व्यक्ति राजा होता है। उत्तम अर्थ की प्राप्ति के अभिलाषी को तृतिया विहित है। यही तृतिया शत्रुओं का नाश करने वाली और पाप नाशिनी है। जो चतुर्थी को श्राद्ध करता है वह शत्रुओं का छिद्र देखता है अर्थात उसे शत्रुओं की समस्त कूटचालों का ज्ञान हो जाता है। पंचमी तिथि को श्राद्ध करने वाला उत्तम लक्ष्मी की प्राप्ति करता है। जो षष्ठी तिथि को श्राद्धकर्म संपन्न करता है उसकी पूजा देवता लोग करते हैं। जो सप्तमी को श्राद्धादि करता है उसको महान यज्ञों के पुण्यफल प्राप्त होते हैं और वह गणों का स्वामी होता है। बृहस्पति कहते हैं- "श्राद्धविषयक चर्चा एवं उसकी विधियों को सुनकर जो मनुष्य दोषदृष्टि से देखकर उनमें अश्रद्धा करता है वह नास्तिक चारों ओर अंधकार से घिरकर घोर नरक में गिरता है। योग से जो द्वेष करने वाले हैं वे समुद्र में ढोला बनकर तब तक निवास करते हैं जब तक इस पृथ्वी की अवस्थिति रहती है। 

 
जो मनुष्य इस श्राद्ध के माहात्म्य को नित्य श्रद्धाभाव से, क्रोध को वश में रख, लोभ आदि से रहित होकर श्रवण करता है वह अनंत कालपर्यंत स्वर्ग भोगता है। समस्त तीर्थों एवं दानों को फलों को वह प्राप्त करता है

श्राद्धं काल में शरीर द्रव्य, स्री, भूमि, मन, मंत्र और ब्राम्हण ये सात चीजे विशेष शुद्ध होनी चाहिए | श्राद्ध में तिन बातों को ध्यान में रखना चाहिए |शुद्धि, अक्रोध और अत्वरा (जल्दबाजी नहीं करना) | श्राद्ध में कृषि और वाणिज्य का धन उत्तम, उपकार के बदले दिया गया धन मध्यम और व्याज, सूद एवं छल-कपट से कमाया गया धन अधम माना जाता है | उत्तम धन से देवता और पितरों की तृप्ति होती है, वे प्रसन्न होते है | मध्यम धन से मध्यम प्रसन्नता होती है और अधम धन से छोटी योनि (चांडाल योनि) में जो अपने पितर है उनको तृप्ति मिलती है | श्राद्ध में जो अन्न इधर-उधर छोड़ा जाता है उससे पशु योनि एवं इतर योनि में भटकते हुए हमारे कुल के लोगों को तृप्ति मिलती है |

22 सितंबर 2016

इस्लामाबाद में हाई अलर्ट. आम जन की किसी को फ़िक्र नही

ca-pub-6689247369064277



भारतीय सेना ने LOC के पार जाकर जो करवाई की है उससे पाकिस्तान में हडकंप मच गया है और पाकिस्तान ने भी अपनी सेना को हाई अलर्ट कर दिया है | कई मुख्य हाईवे को खाली करवाने और उन पर चलने वाले वाहनों का रास्ता बदलने के आदेश जारी किये गये हैं | मिली रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान ये मान बैठा है कि देर सवेर हमला तो होगा ही क्यूंकि उन्हें भी ये खबरें मिल रही हैं कि मोदी , दोवल और मनोहर पारिकर खुद देर रात तक वार रूम में बैठते हैं और रणनीतियां बनाने में व्यस्त हैं |

पाकिस्तान के सूत्र बताते हैं कि पाकिस्तान के बड़े नेता और खुद पाकिस्तानी PM नवाज शरीफ के परिवार ने इस्लामाबाद छोड़ दिया है या जल्द ही छोड़ने की तैयारी में लगे हैं | बड़े नेता ये चाहते हैं कि युद्ध की स्थिति में उनके परिवार सुरक्षित रहें | हालाँकि आम जन की किसी को फ़िक्र नही है |पाकिस्तानी अधिकारियों ने बताया कि पेशावर, लाहौर और कराची में अमेरिकी वाणिज्य दूतावासों के आसपास भी सुरक्षा बढ़ा दी गई है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, शरीफ ने सेना प्रमुख को किसी भी कार्रवाई का पूरे बल के साथ मुकाबला करने का आदेश दिया है। एयरफोर्स को अलर्ट पर रखने को कहा है। इसके बाद बुधवार को इस्लामाबाद से पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की उड़ानें रद्द कर दी गयीं। इसका कोई कारण नहीं बताया गया, लेकिन अधिकारियों का मानना है कि पाकिस्तानी जंगी विमान निगरानी के लिए आसमान में हो सकते हैं। कुछ सड़कों को भी खाली करा लिया गया है, ताकि आपात स्थिति में वायुसेना के जेट इन पर उतर सकें।
पाकिस्तान जानता है कि भारत के जांबाज़ सैनिक 1965 की लडाई में लाहोर तक घुस आये थे तो भारत के लिए इस्लामाबाद पर कब्ज़ा करना कोई बहुत बड़ी बात नही होगी | पाकिस्तानी मिलट्री का बड़ा बेस कैंप इस्लामाबाद में है | पाकिस्तान ने अपनी वायु सेना और थल सेना दोनों को स्टैंड बाय मोड में बने रहने के आदेश जारी कर दिए हैं | यहाँ इस बात की सम्भावना से भी इनकार नही किया जा सकता कि बोखलाहट में पाकिस्तान अपने पाले हुए आतंकियों के जरिये भारत में कुछ बड़ी आत्मघाती वारदात करने की कोशिस करे इसलिए आपसे अनुरोध है शांत रहें , अफवाहों को बढ़ावा ना दें और किसी भी संधिग्ध घटना या व्यक्ति के दिखने पर पुलिस को तुरंत सूचित करें | आज वीरवार को मुंबई में कुछ संधिग्धों के देखें जाने के बाद हाई अलर्ट जारी किया गया है |

21 सितंबर 2016

परमाणु बम बनाने से तुम क्या रोकोगे ? पाकिस्तान ने अब अमेरिका को भी दिखाई आंख

ca-pub-6689247369064277



विनाशकाले विपरीत बुद्धी । इसको चरितार्थ करते हुए पाकिस्तान ने अब अमेरिका को भी आंख दिखाई है। पाकिस्‍तान की दूत मलीहा लोधी ने आज अमेरिका को दो टूक कहा कि उनका देश अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित नहीं करेगा।उसे संयुक्त राष्ट्र की सन्धि की परवाह नही, जब आप दक्षिण कोरिया को नही रोक पा रहे हैं तो पाकिस्तान मे दबाब की नीति वाजिब नही है। इससे एक दिन पूर्व अमेरिका ने पाकिस्तान से अपनी परमाणु गतिविधियों में कटौती करने का आग्रह किया था। लोधी ने यहां संवाददाताओं से कहा कि परमाणु नियंत्रण के ऐसे प्रस्तावों पर अमेरिका को पाकिस्तान से पहले भारत को अमल कराना चाहिए। लोधी ने पाकिस्तान के विदेश सचिव अजीज चौधरी के साथ एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा, “पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम सीमित नहीं हो सकता।” अगर सीमित ही कराना है तो पहले भारत की परमाणु गतिविधियों को बंद कराना चाहिए।
अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी द्वारा प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से पाकिस्तान के अणु कार्यक्रम में कटौती के आग्रह के एक दिन बाद यह टिप्पणी आई है। अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने मंगलवार को कहा कि केरी और शरीफ ने हमारी ‘लंबी, दीर्घकालिक द्विपक्षीय साझेदारी पर और अमेरिका-पाकिस्तान रणनीतिक वार्ता पर चर्चा की। किर्बी ने कहा, “केरी ने अणु हथियार कार्यक्रमों में कटौती करने की जरूरत पर भी बल दिया। मंत्री ने 40 साल से ज्यादा समय तक अफगान शरणार्थियों को शरण देने के लिए पाकिस्तान की प्रशंसा की और मानवतावादी सिद्धांतों के लिए लगातार सम्मान के महत्व को भी रेखांकित किया।

20 सितंबर 2016

मानव दिमाग की अद्भुत उपज हैं भारत के ये 4 अनोखे हवाई अड्डे ।

ca-pub-6689247369064277


मनुष्य ईस्वर की ऐसी रचना है जिसकी कल्पना शक्ति बहुत विस्तृत है जिस कारण वह जीवों मे श्रेष्ठ है। अपनी कल्पना शक्ति के द्वारा वह किसी भी अद्भुत रचना की खोज कर सकता है, उसे असतित्व में भी लाता है। कई ऐतिहासिक से लेकर आधुनिक रचनाएँ ऐसी हैं, जो अपने आप में अनोखी हैं। देखने मे अविश्वसनीय सी लगती है कि उनको मनुष्य ने निर्मित किया है । इन्हीं अद्भुत रचनाओं में से एक है हवाई जहाज़। यातयात को सरल और सुविधाजनक बनाने के लिए कई वाहन की खोज की गयी, जिनमें सबसे उन्नत खोज है वायुयान, हवाई जहाज़। कुछ ही पलों में दूर-दूर का सफर पल में तय हो जाता है। चलिए आज इन हवाई जहाजों से जुड़े भारत के 4 ऐसे अनोखे हवाई अड्डों, जो हवाई जहाज़ों के निर्माण के बाद सबसे ज़रूरी निर्माण स्थल थे।  ताकि हवाई जहाज़ों के रुकने और उड़ान भरने के लिये उपयुक्त  अड्डे निर्मित हो सके।

1.अगत्ती हवाई अड्डा, लक्षद्वीप हिन्द महासागर के बीचों बीच बसे द्वीप, अगत्ती में स्थापित यह हवाई अड्डा लगभग 4000 फ़ीट लंबा है। इस हवाई अड्डे में केवल एक ही यात्री टर्मिनल है। यहाँ सिर्फ दो एयरलाइन्स की सेवाएं उप्लब्ध हैं, पहला किंगफ़िशर और दूसरा इंडियन एयरलाइन्स। ये दोनों एयरलाइन्स सिर्फ अगत्ती और कोचीन के बीच उड़ानें संचालित करती हैं। पर किंगफ़िशर इसके साथ-साथ अगत्ती से बेंगलुरु के लिए भी उड़ाने संचालित करती है। अगत्ती सिर्फ 7 किलोमीटर ही लंबा द्वीप है जहाँ यह हवाई अड्डा स्थित है। 



2. कुशोक बकुला रिमपोचे हवाई अड्डा, लेह में स्थित यह हवाई अड्डा, दुनिया के सबसे ऊंचाई पर स्थापित हवाई अड्डों में से एक है। समुद्री तल से इसकी ऊंचाई लगभग 3256 मीटर(10682 फ़ीट) है। इस हवाई अड्डे का नाम भारतीय राजनेता व बौद्ध भिक्षु,19 वें कुशोक बकुला रिनपोचे के नाम पर पड़ा है।




3. लेंगपुई हवाई अड्डा, मिज़ोरम यह हवाई अड्डा वायु सेवा द्वारा कोलकाता और गुवाहाटी से और सप्ताह में तीन फ्लाइट द्वारा इम्फाल से जुड़ा हुआ है। मिज़ोरम की राजधानी आइज़ेल से यह 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। लेंगपुइ हवाई अड्डा भारत का प्रथम एवं सबसे बड़ा हवाई अड्डा है, जिसका निर्माण राज्य सरकार ने कराया था। इसके साथ ही यह पूर्वोत्तर भारत का दूसरा सबसे बड़ा हवाई अड्डा है। यह भारत के उन तीन हवाई अड्डों में से एक है जहाँ टेबल टॉप रनवे स्थित है, जो एक ऑप्टिकल इल्यूज़न पैदा करता है। 

4. जुब्बरहट्टी हवाई अड्डा, यह हवाई अड्डा हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से लगभग 22 किलोमीटर दूर, जब्बारहट्टी में स्थित है। इस हवाई अड्डे को पहाड़ के शीर्ष को काट कर बनाया गया है और इसके सिंगल रनवे को समतल क्षेत्र में परिवर्तित किया गया है। इसके एक छोटे एप्रन में दो छोटे विमानों को एक साथ पार्क करने की जगह है। इसका छोटा टर्मिनल उड़ान भरने के दौरान 50 व्यक्तियों को संभाल सकता है, पर उड़ान के प्रस्थान करने के दौरान सिर्फ 40 व्यक्तियों को संभाल सकता है । 

ऐसे ही कई अनोखे व अद्भुत मानव रचनाओं के साथ भारत विदेशी पर्यटकों के लिए पूरी दुनिया में एक महत्वपूर्ण व आकर्षक केंद्र है। हम दावा करते हैं कि, इन अद्भुत रचनाओं की सैर कर आपको अपने भारतीय होने पर  गर्व होगा।