ca-pub-6689247369064277
1 त्रुति = सैकन्ड का 300वाँ भाग
2 त्रुति = 1 लव
1 लव = 1 क्षण
30 क्षण = 1 विपल
60 विपल = 1 पल
60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट )
2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा)
24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार)
7 दिवस = 1 सप्ताह
4 सप्ताह = 1 माह
2 माह = 1 ऋतु
6 ऋतु = 1 वर्ष
100 वर्ष = 1 शताब्दी
10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी
432 सहस्राब्दी = 1 युग
2 युग = 1 द्वापर युग
3 युग = 1 त्रेता युग
4 युग = सतयुग
1 महायुग = सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग
76 महायुग = मनवन्तर
1000 महायुग = 1 कल्प
1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ)
1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प (देवों का अन्त और जन्म)
1 महाकाल = 730 कल्प (ब्रह्म का अन्त और जन्म)
अब आप खुद ही समझ सकते है कि हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है। ये इस देश का दुर्भाग्य ही है कि हमारी परम्पराओं को समझने के लिए जिस विज्ञान की आवश्यकता है , वो हमें पढ़ाया नहीं जाता । विज्ञान के नाम पर जो हमें पढ़ाया जाता रहा है उससे हम अपनी परम्पराओं को समझ नहीं सकते । विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यही है। जो हमारे पूर्वजों की अनमोल धरोहर है।
सनातन वैदिक विज्ञान की गहराई की आज के युग के विज्ञान के सामने भी अपनी श्रेष्ठता की छाप बरकरार है। इसकी पुष्टि विश्व मे बिज्ञान की सबसे उन्नत अमेरिकी एजेंसी नासा द्वारा भी समय समय पर की गयी है। इसकी गहराइयों का कोई अंत नही। ऐसी ही सर्वोत्तम, विराट तथा बारीक़ से बारीक़ काल गणना हमारे सनातन शास्त्रों के अतिरिक्त कहीं किसी संस्कृति मे मौज़ूद नहीं है । आइये एक नजर इसमे डाली जाए :-
क्रति = सैकन्ड का 34000वाँ भाग1 त्रुति = सैकन्ड का 300वाँ भाग
2 त्रुति = 1 लव
1 लव = 1 क्षण
30 क्षण = 1 विपल
60 विपल = 1 पल
60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट )
2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा)
24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार)
7 दिवस = 1 सप्ताह
4 सप्ताह = 1 माह
2 माह = 1 ऋतु
6 ऋतु = 1 वर्ष
100 वर्ष = 1 शताब्दी
10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी
432 सहस्राब्दी = 1 युग
2 युग = 1 द्वापर युग
3 युग = 1 त्रेता युग
4 युग = सतयुग
1 महायुग = सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग
76 महायुग = मनवन्तर
1000 महायुग = 1 कल्प
1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ)
1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प (देवों का अन्त और जन्म)
1 महाकाल = 730 कल्प (ब्रह्म का अन्त और जन्म)
अब आप खुद ही समझ सकते है कि हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है। ये इस देश का दुर्भाग्य ही है कि हमारी परम्पराओं को समझने के लिए जिस विज्ञान की आवश्यकता है , वो हमें पढ़ाया नहीं जाता । विज्ञान के नाम पर जो हमें पढ़ाया जाता रहा है उससे हम अपनी परम्पराओं को समझ नहीं सकते । विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यही है। जो हमारे पूर्वजों की अनमोल धरोहर है।
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