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महाभारत के युद्ध को दुनिया का पहला विश्वयुद्ध माना जाता है। रहस्यों में से एक रहस्य यह है कि आखिर क्यों महाभारत का युद्ध अन्य सभी युद्ध स्थलों को छोड़कर केवल कुरुक्षेत्र में ही लड़ा गया था ? इस युद्ध में कौरवों और पाण्डवों के साथ ना केवल सभी हिन्दुस्तानी राजाओं ने हिस्सा लिया था बल्कि सम्पूर्ण विश्व के सभी देशों जैसे यमन, मिस्र इत्यादि देशों के राजाओं ने भी अपना अपना पक्ष चुनते हुए महाभारत के इस ऐतिहासिक युद्ध म हिस्सा लिया था। इस युद्ध को कई कारणों से याद रखा जाता है क्योंकि महाभारत के युद्ध में कई गहरे राज छुपे हुए हैं, जिनका आज तक कोई खुलासा नहीं हो पाया है।
हम सबने महाभारत मे पढा है कि कौरव और पांडव ये दोनों पक्ष इस ऐतिहासिक युद्ध का हिस्सा थे । साथ ही दोनों एक ही वंश (कुरु वंश) का हिस्सा थे। दोनों पक्षों के लोग महाराजा कुरु के वंश के थे। बहुत साल पहले इसी वंश में ‘कुरु’ नाम के प्रतापी राजा हुए थे जिनके नाम से ही इस वंश का नाम आगे बढ़ा । राजा कुरु की हमेशा से यही इच्छा थी कि वे अपने जीते जी एक ऐसे स्थान का निर्माण कराएं, जहाँ मृत्यु प्राप्त करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को स्वर्गलोक की प्राप्ति हो। इस काम के लिए उन्होंने एक बहुत ही बड़े भू-भाग को चुना और उसमें हल चलवाकर उसकी जुताई प्रारम्भ करवा दी । उनके इस कार्य को देखकर देवराज इंद्र के मन में उत्सुकता उठी कि राजा कुरु ऐसा किसलियेइ और क्यों कर रहे हैं।अतः उन्होंने स्वयं जाकर उनसे इस बात का कारण पूछा। तब राजा कुरु ने बताया कि मैं एक ऐसा क्षेत्र बनाना चाहता हूँ जहाँ मृत्यु प्राप्त करने वाले हर व्यक्ति को स्वर्ग धाम की प्राप्ति हो। यह सुनकर इंद्रदेव उनके ऊपर हँसने लगे और वापस अपने लोक में चले गए। इधर इंद्र के उपहास की परवाह किये बगैर राजा कुरु अपने काम में सच्चे मन से लगे रहे। वहीं स्वर्गलोक पर देवराज इंद्र सभी को यह बात बताते और हँसते परन्तु कुछ समय बाद भी जब राजा कुरु अपने काम में लगे रहे तो उन्हें लगा कि अब राजा कुरु को उनकी सच्ची मेहनत का फल अवश्य देना चाहिए ।
एक दिन राजा इंद्र ने कुरु को दर्शन दिये और कहा कि आपकी लगन, मेहनत और द्रढ इच्छासक्ति से प्रसन्न होकर मे आपको वचन देता हूँ कि कोई भी व्यक्ति, पशु,पक्षी या अन्य जीव इत्यादि इस स्थान पर बिना भोजन के अथवा युद्धभूमि में लड़ते हुए मृत्यु को प्राप्त करेगा तो वह मृत्यु के पश्चात स्वर्गलोक का भागीदार बनेगा। ऐसा कहकर वे अंतर्ध्यान हो गए। इसी कारण से इस भू-भाग का नाम कुरुक्षेत्र पड़ा। इस रहस्य के बारे में कृष्ण, द्रोणाचार्य और भीष्म जैसे महारथी जानते थे। इसी वजह से उन्होंने युद्ध करने के लिए कुरुक्षेत्र जैसे पवित्र स्थल को चुना कहा तो यह भी जाता है कि इस स्थान पर मृत्यु प्राप्त करने वाला कोई भी जीवित व्यक्ति या प्राणी इस मृत्युलोक में दुबारा जन्म नहीं लेता बल्कि सीधा मोक्ष को प्राप्त करता है। यहाँ तक कि इस भू-भाग की उड़ती हुई धूल को भी बहुत पवित्र माना जाता है । इसी वजह से महत्वपूर्ण ग्रन्थ श्रीमद्भगवद्गीता में इस पवित्र कुरुक्षेत्र की भूमि को धर्मक्षेत्र भी कहा जाता है।
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