18 सितंबर 2016

खजुराहो की कामुक मूर्तियों के पीछे की कहानी ?

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'खजुराहो' भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त में, छत्तरपुर ज़िले में स्थित एक प्रमुख शहर है, जो अपने प्राचीन एवं मध्यकालीन मंदिरों के लिये विश्वविख्यात है। यह क्षेत्र प्राचीन काल में वत्स के नाम से, मध्य काल में जैजाक्भुक्ति नाम से तथा चौदहवीं सदी के बाद बुन्देलखन्ड के नाम से जाना गया। खजुराहो के चन्देल वंश का उत्थान दसवीं सदी के शुरू से माना जाता है। इनकी राजधानी प्रासादों, तालाबों तथा मंदिरों से परिपूर्ण थी। स्थानीय धारणाऑं के अनुसार तक़रीबन एक हज़ार साल पहले यहां के दरियादिल व कला पारखी चंदेल राजाओं ने क़रीब 84 बेजोड़ व लाजवाब मंदिरों की तामीर करवाई थी, लेकिन उनमें से अभी तक सिर्फ़ 22 मंदिरों की ही खोज हो पाई है, यद्यपि दूसरे पुरावशेषों के प्रमाण प्राचीन टीलों तथा बिखरे वास्तुखंडों के रूप में आज भी खजुराहो तथा इसके आसपास देखे जा सकते हैं। 

पंद्रहवीं सदी के बाद इस इलाक़े की अहमियत ख़त्म होती गई। खजुराहो का प्राचीन नाम 'खर्जुरवाहक' है। 900 से 1150 ई. के बीच यह चन्देल राजपूतों के राजघरानों के संरक्षण में राजधानी और नगर था, जो एक विस्तृत क्षेत्र 'जेजाकभुक्ति' (अब मध्य प्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र) के शासक थे। चन्देलों के राज्य की नींव आठवीं शती ई. में महोबा के चन्देल नरेश चंद्रवर्मा ने डाली थी। तब से लगभग पाँच शतियों तक चन्देलों की राज्यसत्ता जुझौति में स्थापित रही। इनका मुख्य दुर्ग कालिंजर तथा मुख्य अधिष्ठान महोबा में था। 11वीं शती के उत्तरार्द्ध में चन्देलों ने पहाड़ी क़िलों को अपनी गतिविधियों का केन्द्र बना लिया। लेकिन खजुराहो का धार्मिक महत्त्व 14वीं शताब्दी तक बना रहा। इसी काल में अरबी यात्री इब्न बतूता यहाँ पर योगियों से मिलने आया था। खजुराहो धीरे-धीरे नगर से गाँव में परिवर्तित हो गया और फिर यह लगभग विस्मृति में खो गया।

खजुराहो में 1 और 2 सितंबर को ब्रिक्स सम्मेलन का आयोजन हुआ जिसमें ब्राजील, चीन, रूस, साउथ अफ्रीका जैसे देश शामिल हुए.. खजुराहो मंदिर की मूर्तियों के बारे में भारतीय जनमानस में हमेशा से एक अलग ही विचार रहा है. लेकिन सच्चाई उससे कहीं अलग है जो वामपंथी इतिहासकारों के कारण सामने नहीं आई है पाश्चात्य प्रभाव के कारण हमेशा से आधुनिक भारत में सेक्स को निकृष्ट दृष्टि से देखा जाता है और आधुनिक लोग पश्चिम जीवन दर्शन को स्वच्छन्द मानते है 

मोर्य वंश के महान सम्राट चन्द्रगुप्त के पौत्र महान अशोक ने कलिंग युद्ध के पश्चात् बौद्ध धर्म अपना लिया। अशोक ने एक बौद्ध सम्राट के रूप में लगभग २० वर्ष तक शासन किया। आचार्य चाणक्य ने जिस अखंड भारत के निर्माण हेतु आजीवन संघर्ष किया उसका लाभ सनातन धर्म को मिल पाया, आचार्य चाणक्य के स्वर्गवास के बाद चन्द्रगुप्त ने जैन धर्म अपना लिया और जैन सम्प्रदाय के प्रचार प्रसार में ही जीवन व्यतीत किया, 


सम्राट बिन्दुसार और सम्राट अशोक धर्म के बड़े अनुयायी थे l यह वह कालखंड था जब शासन से बौद्ध धर्म के अनुयायियों को सारी सुविधाओं दी जा रही थी और शस्त्र और सुविधाओ के बल पर 90% लोग बौद्ध धर्मं अपना चुके थे .बौद्ध प्रभाव के चलते यौन भावनाओं  न सिर्फ संकोच होने लगा बल्कि इसे पाप पुन्य से जोड़ कर देखा जाने लगा l अब यहाँ पुरुष तो बौद्ध के सिधान्तों पर चलने लगे, परन्तु  स्त्रियों के मन में अभी भी प्रेम भावना से संबंध बनाने की भावनाएं रहती थी l इसी काल में जब यवनों का भारत पर आक्रमण हुआ, तब यहाँ बौद्ध मठ विलासिता का केंद्र बनने लगे थे.. यवनों ने बौद्ध स्त्रियों के साथ शारीरिक संबंध कायम किये जिससे भारत  सीमाएं असुरक्षित होने लगी. जब बौध धर्म के अनुयायी वृहद्रथ के सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने भारत को यवनों के द्वारा लुटते देखा तो पुष्यमित्र शुंग ने वृहद्रथ की हत्या करके शासन को अपने हाँथ में लिए और पुनः वैदिक धर्म की स्थपाना की लेकिन चूँकि भारत में उस काल में लोग गृहस्थ आश्रम त्याग चुके थे  इसलिए उनकी काम भावना ख़त्म हो चुकी थी  अब वंश आगे कैसे बढे इसके लिए लोगों की काम भावना जागृत करना आवश्यक हो गया  इसी वजह से भारत में अजंता अल्लोरा की गुफाओं और खजुराहो जैसे मंदिरों का निर्माण हुआ होगा ताकि वापस यहाँ के लोगों में यौन भावना को जगाया जाए और वे वापस इस तरफ आकर्षित हो अपना वंश कायम कर सकें l

मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो मंदिर में ऐसी मूर्तियाँ हैं जिसमे स्त्री और पुरुषों के यौन संबंध बनाते हुए झलक देखने मिलती है। किसी समय यह स्थान खजूर के जंगल के लिए जाना जाता था। इसी वजह से इसका नाम खजुराहो पडा है। पर अब यह खजूरों के लिए नहीं बल्कि इन मूर्तियों के लिए फेमस है  इन काम क्रिया करती मूर्तियाँ श्रद्घालुओं और दर्शनार्थियों के लिए आश्चर्य  बन जाती हैं, कि काम-इच्छा और मुक्ति का ऐसा मेल आखिर क्यूँ है  इस विषय में कई सारी कथाएँ हैं जो यह भेद खोलती हैं कि मंदिर की दीवारों पर कामुक मूर्तियां क्यों बनाई गयी हैं 
इस मंदिर के बारे में एक कहानी और बताई जाती है कि जिसमे हेमावती नाम की एक ब्राह्मण कन्या का ज़िक्र आता हैl वह वन में स्थित सरोवर में स्नान कर रही थी तभी चंद्रमा ने उसे देख लिया और और उसे देखते ही मुग्ध हो गया l फिर चंद्रमा ने हेमावती को वशीभूत कर लिया और उसके साथ संबंध बना लिए l पर जब हेमावती ने इसी से एक बालक को जन्म दिया तब समाज ने उसे और उसके बालक को अपनाने से इंकार कर दिया l इस कारण उसे बच्चे का पालन पोषण भी वन में रह कर ही करना पड़ा l बालक का नाम चन्द्रवर्मन रखा गया जिसने बड़े होने के बाद उसी बालक चन्द्रवर्मन ने अपना राज्य कायम किया। तब उसकी माँ हेमावती ने चन्द्रवर्मन को ऐसा एक मंदिर तैयार करने के लिए प्रेरित किया जिससे सभी लोगों के अंतर में दबी हुई कामनाओं का खोखलापन दिखाई दे ताकि जब इसी मंदिर में प्रवेश करें तो बुराइयों को द्वार पर ही छोड़ आये l
उस ज़माने में यौन ऐसी चीज़ नहीं थी जिसमे बहुत से प्रतिबन्ध लगाये जाएँ l  हरिवंश पुराण अध्याय के अनुसार, मनु ने अपनी पुत्री इला, वशिस्ठ ने अपनी पुत्री सतरूपा, और सूर्य ने ऊषा से विवाह किया। अच्छी संतानोत्पत्ति के लिए आर्य लोग देव वर्ग के किसी भी पुरुष के साथ अपनी स्त्रियों को सम्भोग की अनुमति देते थे जिसे अवदान कहा गया है। यहाँ तक भी बात थी कि पशुओं के साथ भी काम क्रिया आर्यों में पशुओं के साथ यौनाचार करना भी प्रचलित था! ऋषि किन्दम द्वारा हिरनी के साथ मैथुन किये जाने की कहानी के बारे में काफी लोग जानते हैं । 

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