30 सितंबर 2016

आतंक का काल हैं अजीत डोभाल

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पाकिस्तान ने नापाक हरकत करके उरी के सैनिक ठिकाने पर पाल पोश कर तयार किये आतंकवादियों से सोते हुए भारतीय सैनिकों के ऊपर आधी रात मे हमला करवाया। उरी हमले के बाद पूरे भारत में गुस्सा फ़ैल गया । पाकिस्तान के इस कायराना हमले को लेकर पूरे देश ने मोदी सरकार को आवाज लगाई  कि वे पाकिस्तान की नापाक हरकत का बदला ले और देश का मान बचाए । इसी के तहत सरकार ने पाकिस्तान को करारा जबाब दिया । भारत ने अपनी आज़ादी के 72 सालों बाद दूसरी बार सर्जिकल स्ट्राइक करके पाक के कब्जे वाले कश्मीर में घुसकर 50 आतंकियों को मार गिराया और 8 आतंकी कैम्प तबाह कर दिये। ज्ञात हो डेढ़ साल पहले भारतीय सेना ने प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल मे म्यांमार मे पहली बार सर्जिकल स्ट्राइक की थी। जिससे भारत की छवि एक ताक़तवर मुल्क के रूप मे दुनिया के सामने आयी थी। आज भी पी ओ के जो भारत का हिस्सा है, पर नियंत्रण पाकिस्तान के पास है, मे आतंकी कैंपो की तबाही और बड़ी संख्या मे मारे गए आतंकवादियों के कारण  देश में एक  उत्साह का माहौल है और  इस कार्यवाही के बाद निश्चित रूप से सेना का भी हौसला बढ़ा है l आपको यह जानकर खुशी होगी कि ये पूरा ऑपरेशन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की निगरानी में चला। आखिर ये अजीत डोभाल हैं कौन ? क्यूँ इतनी चर्चा और सुर्खियों में रहते हैं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल? 

जनवरी 2005 में खुफिया ब्यूरो के प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त डोभाल वर्ष  1968 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे हैं। मूलत: उत्‍तराखंड के पौडी गढ़वाल से आने वाले अजीत डोभाल ने अजमेर मिलिट्री स्‍कूल से पढ़ाई की है। उन्होंने आगरा विवि से अर्थशास्‍त्र में एमएम किया है।  कुछ साल वर्दी में बिताने के बाद, डोभाल ने 33 वर्ष से अधिक समय खुफिया अधिकारी के तौर पर बिताए और इस दौरान वह पूर्वोत्तर, जम्मू कश्मीर और पंजाब में तैनात रहे।
प्रधानमंत्री मोदी जी ने इन्हें पाकिस्तान और आतंकवादियों को सबक सिखाने की जिम्मेदारी सौंपी ।डोभाल के बारे में कहा जाता है कि देशद्रोहियों और भारत के गद्दारों के लिए इस बंदे में दया नाम का पुर्जा लगा ही नही है । प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें महज 6 साल के करियर के बाद ही इंडियन पुलिस मेडल से सम्मानित किया था । भारतीय प्रसासनिक सेवा के नियम और परंपरा के अनुसार  यह पुरस्कार कम से कम 17 साल की निर्बाध और निष्कलंक नौकरी के बाद ही मिलता है। यही नहीं जब राष्ट्रपति वेंकटरमन ने अजीत डोभाल को 1988 में कीर्तिचक्र से सम्मानित किया तो यह भी एक नई मिसाल बन गई थी।
अजीत डोभाल पहले ऐसे शख्स थे जिन्हें सेना में कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया था। अजीत डोभाल की कामयाबियों की लिस्ट में स्वर्ण मंदिर मे आतंक से जूझ रहे पंजाब और कश्मीर में शांतिपूर्वक  चुनाव कराना भी शामिल है। एक खुफिया व्यक्ति के रूप मे  उन्होंने 6 साल पाकिस्तान में भी गुजारे , और चीन व बांग्लादेश की सीमा के उस पार मौजूद आतंकी संगठनों और घुसपैठियों की नाक में नकेल भी डाली। अजीत डोभाल की पहचान सुरक्षा एजेंसियों के कामकाज पर उनकी पैनी नजर की वजह से बनी। ऐसी ही साफ समझ की बदौलत अजीत डोभाल ने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को संकट से उबारा था। 24 दिसंबर 1999 को एयर इंडिया की फ्लाइट आईसी 814 को आतंकवादियों ने हाईजैक कर लिया था और उसे कांधार ले गए थे। इस कारण भारत सरकार एक बड़े संकट में फंस गई थी कि विमान मे सवार नागरिको को आतंकियों से  कैसे बचाया जाए। ऐसे में संकटमोचक बनकर उभरे थे अजीत डोभाल।
उस वक्त डोभाल वाजपेयी सरकार में एमएसी के मुखिया थे। आतंकवादियों और सरकार के बीच बातचीत में उन्होंने अहम भूमिका निभाई और 176 यात्रियों की सकुशल वापसी का सेहरा उनके सिर बंध गया ।  अजीत डोभाल ने सीमापार पलने वाले आतंकवाद को करीब से देखा है और आज भी आतंकवाद के खिलाफ उनका रुख बेहद सख्त माना जाता है ।  डोभाल मे निर्णय लेने की क्षमता और उनकी दूरदृष्टि और अनुभव को लेकर दो राय नही हो सकती। उनके बारे मे कहा जाता है कि वे -- 
1. एक ऐसे राष्ट्रवादी भारतीय है जो खुलेआम पाकिस्तान को  भारत के खिलाफ आतंक जारी रखने पर बलूचिस्तान छीन लेने की चेतावनी देने से गुरेज़  नही करते।
2. वे भारत के एक ऐसे  जासूस है , जो पाकिस्तान के लाहौर में सात सालो  तक मुसलमान बनकर अपने देश की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध रहे। 
3. वे भारत के ऐसे एक मात्र नागरिक हैं, जिन्हें शांतिकाल में दिया जाने वाले दूसरे सबसे बड़े पुरस्कार कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया। डाभोल कई ऐसे खतरनाक कारनामों को अंजाम दे चुके हैं, जिन्हें सुनकर जेम्स बांड के किस्से भी फीके लगते हैं।  वर्तमान में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पद पर आसीन अजीत डाभोल से बड़े-बड़े मंत्री भी राष्ट्र विरोधी कार्य करने से डरते  हैं।
4. एक कुशल प्रसासनिक अधिकारी के रूप मे डोभाल ने पाकिस्तान और ब्रिटेन में राजनयिक जिम्मेदारियां भी बखूबी संभालीं हैं। और करीब एक दशक तक खुफिया ब्यूरो की ऑपरेशन शाखा को लीड किया है । रिटायर होने के बाद वे दिल्ली स्थित एनजीओ विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन चला रहे है, जो वार्ता और विवाद निबटारे के लिए जनता को एक साझा मंच उपलब्ध कराता है।
5. भारतीय सेना के एक महत्वपूर्ण ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार के दौरान उन्होंने एक गुप्तचर की भूमिका निभाई और भारतीय सुरक्षा बलों के लिए महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी उपलब्ध कराई, जिसकी मदद से सैन्य ऑपरेशन सफल हो सका। इस दौरान उनकी भूमिका एक ऐसे पाकिस्तानी जासूस की रही जिसने खालिस्तानियों का विश्वास जीत लिया। और तत्कालीन सरकार को उनकी तैयारियों की जानकारी मुहैया करवाई ।

6.1999 में इंडियन एयरलाइंस की उड़ान आई सी-814 को काठमांडू से हाईजैक कर लिया गया, तब उन्हें भारत की ओर से मुख्य वार्ताकार बनाया गया। बाद में इस फ्लाइट को कंधार ले जाया गया था और यात्रियों को बंधक बना लिया गया था. लगातार 110 घंटे आतंकवादियों से नेगोसियेट करने के बाद भारत मे बंदी सभी आतंकियों की रिहाई की मांग के बदले सिर्फ 3 आतंकवादियों को ही छोड़ा गया ।
7. कश्मीर में भी उन्होंने उल्लेखनीय काम किया और उग्रवादी संगठनों में घुसपैठ कर ली।  उन्होंने उग्रवादियों को शांति रक्षक बनाकर उग्रवाद की धारा को मोड़ दिया। उन्होंने अपनी कूटनीति से आतंकी प्रमुख भारत- विरोधी उग्रवादी "कूका पारे" को अपना सबसे बड़ा भेदिया बना लिया । 
8. अस्सी के दशक में वे उत्तर पूर्व में भी सक्रिय रहे। उस समय मिज़ो नेशनल फ्रंट ने लालडेंगा के नेतृत्व में हिंसा और अशांति फैला रखी थी. लेकिन तब डोवाल ने लालडेंगा के सात में छह कमांडरों का विश्वास जीत लिया, और इसका नतीजा यह हुआ था कि लालडेंगा को मजबूरी में भारत सरकार के साथ शांति विराम का विकल्प अपना पड़ा। 
9. डोभाल ने वर्ष 1991 में खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट द्वारा अपहरण किए गए रोमानियाई राजनयिक लिविउ राडू को बचाने की सफल योजना बनाई थी. कश्मीर में अपने कार्यकाल के दौरान, डोभाल आतंकवादी समूहों को तोड़ने में सफल रहे।
10. हाल ही में 4 जून को मणिपुर के चंदेल गांव में उग्रवादियों के हमले में 18 जवान शहीद हो गए थे। डोभाल ने पूर्वोत्तर भारत में सेना पर हुए हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक की योजना बनाई और भारतीय सेना ने सीमा पार म्यांमार में कार्रवाई कर उग्रवादियों को मार गिराया. भारतीय सेना ने म्यांमार की सेना और एनएससी एन खाप्लांग गुट के बागियों के सहयोग से ऑपरेशन चलाया, जिसमें करीब 30 उग्रवादी मारे गए . रणनीति को अंजाम देने के लिए डोभाल ने पीएम मोदी के साथ बांग्लादेश जाने का प्लान टाल दिया। हमको भारत मे जन्मे, एक मज़बूत राष्ट्रवादी के रूप मे कार्य करने वाले देशभक्त जाबांज निर्भीक सिपाही के योगदान को हमेसा सम्मान के नजरिये से देखना चाहिए। 

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