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सनातन वैदिक धर्म मे ईस्वर को मनाने के लिए अस्टांग योग के अलावा मूर्ति पूजन का भी अपना महत्व है। दोनों मे ही विघ्न विनासक श्री गणेश का विशिस्ट स्थान है। किशी भी सुभ कार्य को करने से पहले गुरु की अर्चना करने के बाद श्री गणेश की अर्चना की जाती है। पुराणों के अनुसार श्री गणेश का जन्म स्थान उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के संगमचट्टी (जहां अलखनन्दा और भागीरथी ) नदी का संगम है वहां से करीब 123 किलोमीटर दूर अगोडा , मांझी होते हुएकरीब 22 किलोमीटर का पैदल और खतरनाक सफर करते हुए डोडीताल पहुँच
कर किया जा सकता है। यह अत्यंत दुर्गम स्थान पर स्थित है, जहां ऊँचे ऊँचे पहाड़ों के बीच एक सुंदर झील है। इस झील का पानी प्राकृतिक रूप से स्वच्छ, शांत और निर्मल है। कहा जाता है कि यदि पेड़ की कोई पत्ती या कोई भी अन्य चीज इस झील के पानी मे गिरती है तो वहां रहने वाली चिड़िया इसे उठाकर बाहर कर देती है। आप इस शांत झील को देखकर ही समझ सकते है कि जिस झील मे माता पार्वती स्नान करती थी वह झील हज़ारों वर्षों बाद भी कितनी साफ़ स्वच्छ और निर्मल है।
जब भगवान् शिव कैलाश पर्वत पर ध्यानमग्न हो जाया करते थे तो पार्वती इस स्थान मे रहा करती थी। जहां उन्होंने एक दिन अपने उबटन से एक मूर्ति का निर्माण किया और उसमे शक्ति प्रकाश डाला। जिससे श्री गणेश का जन्म हुआ। श्री गणेश को माता ने अपना द्वारपाल नियुक्त कर लिया। ताकि वस्त्र धारण के समय कोई उस स्थान पर आ न सके। एक दिन शंकर जी पार्वती के पास आये तो श्री गणेश ने उनका रास्ता रोक लिया और शंकर जी को पार्वती के कक्ष मे नही जाने दिया। इस बात को लेकर दोनों मे भीषण युद्ध हुआ। शंकर जी ने क्रोधवस उसका मस्तक काट दिया, इस बात पर पार्वती को क्रोध आ गया और कहा कि यदि इस बालक के सिर को यदि अभी नही जोड़ा गया तो मे अभी अभी पूरी सृष्टि का विनाश कर दूंगी । यह बालक उनको बहुत प्रिय है। पार्वती के क्रोध को जानकर सारे देवता शंकर जी से बालक को जीवित करने की प्रार्थना करने लगे। तब शकर जी ने कहा कि जाओ जंगलों मे जो भी प्रथम जीव मिले उसका मस्तक ले आओ ।इस प्रकार शंकर ने गणेश के सर की स्थान और हाथी का सर जोड़ दिया। यह देखकर पार्वती बहोत नाराज हुई कहा शरीर मे आपने जानवर का सर जोड़कर मेरे बालक को कुरूप बना दिया। तब शंकर जी ने कहा कि इस बालक की पूजा अन्य सभी देवताओं से पहले होगी और बगैर श्री गणेश की पूजा के कोई भी सुभ कार्य का मनोरथ किसी को भी प्राप्त नही होगा। तब जाकर पार्वती का क्रोध शांत हुआ।इसलिए डोडीयाल के मंदिर मे केवल माता पार्वती और श्री गणेश की मूर्तियाँ की मूर्ति विराजमान है। शंकर जी को इस मंदिर से दूर रखा गया है।
इस क्षेत्र के लोगों के नाम भी गणेश के नामों पर आधारित है। सभी लोग श्री गणेश को अपना आराध्य मानते है। कहा जाता है कि जिसकी कोई संतान उत्पन्न न हो तो यहां आकर मन्नत मांगने पर उसकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
कर किया जा सकता है। यह अत्यंत दुर्गम स्थान पर स्थित है, जहां ऊँचे ऊँचे पहाड़ों के बीच एक सुंदर झील है। इस झील का पानी प्राकृतिक रूप से स्वच्छ, शांत और निर्मल है। कहा जाता है कि यदि पेड़ की कोई पत्ती या कोई भी अन्य चीज इस झील के पानी मे गिरती है तो वहां रहने वाली चिड़िया इसे उठाकर बाहर कर देती है। आप इस शांत झील को देखकर ही समझ सकते है कि जिस झील मे माता पार्वती स्नान करती थी वह झील हज़ारों वर्षों बाद भी कितनी साफ़ स्वच्छ और निर्मल है।
जब भगवान् शिव कैलाश पर्वत पर ध्यानमग्न हो जाया करते थे तो पार्वती इस स्थान मे रहा करती थी। जहां उन्होंने एक दिन अपने उबटन से एक मूर्ति का निर्माण किया और उसमे शक्ति प्रकाश डाला। जिससे श्री गणेश का जन्म हुआ। श्री गणेश को माता ने अपना द्वारपाल नियुक्त कर लिया। ताकि वस्त्र धारण के समय कोई उस स्थान पर आ न सके। एक दिन शंकर जी पार्वती के पास आये तो श्री गणेश ने उनका रास्ता रोक लिया और शंकर जी को पार्वती के कक्ष मे नही जाने दिया। इस बात को लेकर दोनों मे भीषण युद्ध हुआ। शंकर जी ने क्रोधवस उसका मस्तक काट दिया, इस बात पर पार्वती को क्रोध आ गया और कहा कि यदि इस बालक के सिर को यदि अभी नही जोड़ा गया तो मे अभी अभी पूरी सृष्टि का विनाश कर दूंगी । यह बालक उनको बहुत प्रिय है। पार्वती के क्रोध को जानकर सारे देवता शंकर जी से बालक को जीवित करने की प्रार्थना करने लगे। तब शकर जी ने कहा कि जाओ जंगलों मे जो भी प्रथम जीव मिले उसका मस्तक ले आओ ।इस प्रकार शंकर ने गणेश के सर की स्थान और हाथी का सर जोड़ दिया। यह देखकर पार्वती बहोत नाराज हुई कहा शरीर मे आपने जानवर का सर जोड़कर मेरे बालक को कुरूप बना दिया। तब शंकर जी ने कहा कि इस बालक की पूजा अन्य सभी देवताओं से पहले होगी और बगैर श्री गणेश की पूजा के कोई भी सुभ कार्य का मनोरथ किसी को भी प्राप्त नही होगा। तब जाकर पार्वती का क्रोध शांत हुआ।इसलिए डोडीयाल के मंदिर मे केवल माता पार्वती और श्री गणेश की मूर्तियाँ की मूर्ति विराजमान है। शंकर जी को इस मंदिर से दूर रखा गया है।
इस क्षेत्र के लोगों के नाम भी गणेश के नामों पर आधारित है। सभी लोग श्री गणेश को अपना आराध्य मानते है। कहा जाता है कि जिसकी कोई संतान उत्पन्न न हो तो यहां आकर मन्नत मांगने पर उसकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
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