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पिछले कुछ वर्षों में तकनीक के कारण आए बदलाव की गति इतनी तेज रही है कि इसकी वजह से होने वाले परिणामों का विश्लेषण करना मुश्किल हो रहा है। ऑन लाइन व्यवसाय भी तेजी से फला-फूला है जिसने व्यवसाय की प्रक्रिया और नियमों को उलट-पुलट दिया है। नजर रखने वाले लोग पीछे हैं। यह खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है। कई बड़ी कंपनियों (गूगल, अमेज़न, एप्पल, फेसबुक) का व्यवसाय पूरी दुनिया में फैल गया है। हर देश में इन्होंने प्रवेश कर लिया है। प्रत्येक देश के अपने नियम हैं। टैक्स को लेकर अपने कानून हैं। वर्षों पूर्व बने कानून और नियमों के बीच संकरी गलियां हैं जिनका लाभ ये कंपनियां बखूबी उठा रही हैं। हर देश अपने स्तर पर नियमों में परिवर्तन कर रहा है, लेकिन ये काम मंथर गति से हो रहे हैं। इन कंपनियों का इतना बड़ा नाम और धाक है कि इनसे सीधे भिड़ने में कई देश की सरकार हिचकती हैं। अरबों की संख्या में इनके ग्राहक हैं जिन्हें इन्होंने कई सुविधाएं मुफ्त में मुहैया करवा रखी है और इस कारण इनका कुछ बिगाड़ पाना बहुत ही मुश्किल है। ये कंपनियां व्यवसाय के खेल में अपने नियमों से व्यापार कर रही हैं। वर्षों बाद समझ में आया कि ये किस तरह सरकारों को टैक्स के नाम पर चूना लगा रही हैं, अपना एकाधिकार जमाने के लिए कानून की अवहेलना कर रही हैं। कुछ देशों की सरकार इनके दांवपेंच जान गई हैं और इन पर शिकंजा कसने की शुरुआत हो चुकी है।
कानून की अवहेलना
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ये बड़ी कंपनियां उन देशों में अपना ठिकाना बनाती हैं जहां टैक्स नहीं के बराबर लगता है। ये बहुत ही छोटे देश होते हैं या फिर वहां की सरकार इनकी मुठ्ठी में होती है। यहां से ये पूरे विश्व में व्यवसाय करती हैं। कई देशों में नियम बहुत ही शिथिल हैं जिसका ये कंपनियां पूरा फायदा लेती हैं। मिसाल के तौर पर हमारे देश में ऑन लाइन शॉपिंग का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। कहीं पर भी बैठे-बैठे आप अपनी पसंदीदा चीज घर पर मंगवा सकते हैं। प्रदेश सरकार स्थानीय व्यापारियों से कई प्रकार के टैक्स लेती है, लेकिन ऑन लाइन शॉपिंग सर्विस प्रोवाइडर से कोई टैक्स नहीं वसूला जाता था। गूगल करोड़ों रुपये विज्ञापन के जरिये कमाता है। सर्च इंजन में खबरों, आलेखों और जानकारियों को आपके सामने एकत्रित कर लाता है। इन जानकारियों को बनाने में उसने रत्ती भर मेहनत भी नहीं की है। लेकिन सबसे ज्यादा फायदा उसी का होता है। धीरे-धीरे उसने ऑनलाइन विज्ञापनों में भी उसने अपनी घुसपैठ बना ली। प्रिंट, टीवी और रेडियो पर जारी विज्ञापनों के लिए कई तरह के नियम और कानून हैं, लेकिन ऑनलाइन विज्ञापन को लेकर कोई ठोस नीति सरकार के पास नहीं थी। निश्चित रूप से अपनी तकनीक का भरपूर लाभ गूगल को हुआ। अमेज़न पर आरोप लगा कि उसने कुछ पुस्तक प्रकाशकों पर दबाव डाला कि वो अमेज़न को दूसरे प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में कम कीमतों में पुस्तक दें ताकि अमेज़ॉन का दबदबा कायम रह सके। फेसबुक डाटा प्राइवेसी को लेकर हमेशा से संदेह के घेरे में रही है। फेसबुक पर करोड़ों यूजर्स आलेख, संदेश, फोटो और वीडियो डालते हैं। सिर्फ प्लेटफॉर्म मुहैया करा कर लोगों के डाटा के जरिये यह कंपनी खूब धन कमाती है। इस कंपनी के पास यूजर्स की कई निजी जानकारियां भी होती हैं और कहा जाता है कि यह डाटा उन लोगों को उपलब्ध कराया जाता है जिन्हें जरूरत होती है।
जाग उठी सरकार इन कंपनियों की दादागिरी, टैक्स के अंतर को लेकर जमावट और कार्य करने की नीतियां अब कई देशों को समझ आ रही है। यूरोप में कई देश अब इन कंपनियों के खिलाफ आवाज उठाने लगे हैं और अपने नियमों को कड़े कर रहे हैं। कई देशों ने निम्नलिखित कदम उठाए हैं।
यूरोप में गूगल, अमेज़न, फेसबुक और एप्पल पर अब टैक्स वसूली के नियम कड़े किए जा रहे हैं। हाल ही में यूरोपीयन एंटीट्रस्ट रेग्यूलेटर्स ने आयरलैंड को कहा है कि एप्पल ने टैक्स भरने में जो टालमटोल किया है उसे वह वसूले। यह रकम अरबों रुपये में है। टैक्सेशन को लेकर अमेरिकन तकनीकी कंपनियों की राह में रोड़े अटकाने शुरू कर दिए हैं। हाल ही के वर्षों में गूगल, फेसबुक और एप्पल को आर्थिक और प्राइवेसी मेटर को लेकर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
भारत में ऑनलाइन शॉपिंग पर टैक्स लगाने की शुरुआत की गई है हालांकि यह कुछ प्रदेशों तक सीमित है। भारत से इन कंपनियों ने करोड़ों रुपये कमाए, लेकिन सरकार को ऊंट में मुंह में जीरा समान रकम दी। मात्र दो महीने पहले वित्त मंत्रालय ने भारतीन ऑन लाइन विज्ञापनदाताओं के लिए एक नया टैक्स लगाया जिसके मुताबिक विदेशी कंपनियों को ऑनलाइन विज्ञापन देने पर इक्वलाइजेशन लेवी वसूली जाएगी। गूगल और अन्य आईटी कंपनियां यूरोप में निशाने पर है। फ्रांस, ब्रिटेन सहित कई देशों की शिकायत है कि यह कंपनियां उनके देश से भारी कमाई करती हैं, लेकिन टैक्स के भुगतान का आधार दूसरे देशों के नियमों अनुसार होता है जहां टैक्स दर बहुत कम होती हैं। टैक्स की चोरी के साथ-साथ इन कंपनियों ने कुछ दूसरे नियम भी भंग किए हैं।
यूरोपीयन एंटीट्रस्ट ऑथोरिटीज़ ने गूगल पर प्रतिद्वंद्विता नियम को भंग करने का आरोप लगाया। इसके तहत गूगल ने कुछ कंपनी के विज्ञापन को इस तरह पेश किया जिससे ग्राहकों को ज्यादा विकल्प नहीं मिले। हालांकि गूगल ने इसका खंडन किया। यूरोपियन ऑफिशियल्स ने ईयू-यूएस नामक एक नया एंग्रीमेंट बनाया है जिसके तहत वे जान सकते हैं कि अमेरिकन कंपनियां लोगों के निजी डाटा, सोशल मीडिया पोस्ट्स, सर्च का उपयोग किस तरह करती हैं।
नकेल कसना नहीं आसान इन कंपनियों के दबदबे को चुनौती देना आसान नहीं है क्योंकि आम लोगों में इनकी घुसपैठ है। ये व्यवसाय के चतुर खिलाड़ी हैं और कानून से निपटना बखूबी जानते हैं। सक्षम यूरोपीय देश इनसे पार नहीं पा रहे हैं तो दूसरे देशों की क्या बिसात। कई देशों की अदालत इन पर नकेल नहीं कस पाई। फ्रांस और ब्रिटेन सहित कई देशों में इन्होंने टैक्स की हेराफेरी की। अरबों रुपये नहीं चुकाए, लेकिन इनका कुछ ज्यादा बिगड़ा नहीं। हां, ये बात जरूर है कि आने वाले दिनों में इन कंपनियों को इस तरह खुल कर खेलने का अवसर नहीं मिलेगा।
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