31 अगस्त 2016

आतंकी अब नहीं कर पाएंगे छुप कर वार

ca-pub-6689247369064277


कश्मीर के वर्तमान हालात को देखते हुए केंद्र ने एक बहुत बड़ी योजना बनाई है। आतंकियों के नापाक इरादों पर पूरी तरह रोक लगाने के लिए सरकार अब इज़रायल की राडार तकनीक वाली दीवार खड़ी करने जा रही है। भारत सरकार अब रात के अँधेरे में, खेतों और भीड़-भाड़ वाले इलाकों से घुसने और मूवमेंट करने वाले आतंकियों को धर दबोचने के लिए इजरायल से Foliage Penetrating Radar खरीदने जा रही है।अगस्त के अंतिम सप्ताह में ख़ुफ़िया विभाग और दूसरी जांच एजेंसियों के बड़े अधिकारियों की एक टीम इजरायल के लिए रवाना होगी। Foliage penetrating Radar के जरिए जंगल और दुर्गम घाटी में घुस चुके आतंकियों को ढूंढने में मदद मिलेगी।

अब तक, हमारे जवानों को खुद हर कोने में जाकर आतंकियों को ढूँढना पड़ता था! जाहिर है कि ऐसे में, हमारे जवानों को बहुत ही मुश्किल का सामना करना पढ़ता था क्योंकि कोई भी कायर आतंकी, छुप कर आसानी से वार कर कर सकता था! लेकिन, अब भविष्य में ऐसा नहीं होगा!भारत सरकार एक कंट्रोल रूम का निर्माण करेगी, जिसमें कि इजरायली तकनीक द्वारा कश्मीर घाटी और भारत-पाक सीमा में घुसपैठ कर चुके और जंगलों में छिपे आतंकियों का पता लगाने के लिए निगरानी रखी जाएगी।आतंकी घुसपैठ को रोकने के लिए सुरक्षा एजेंसिया पूरे तौर पर नकेल कसने की तैयारी में जुटी हुई है। NSA अजित डोभाल की देखरेख में जम्मू-कश्मीर की सीमा पर इस पूरी योजना को लागू करने का काम शुरू हो गया है।इजराइल और अमेरिका की सहायता से इलेक्ट्रोनिक surveillance की मजबूत और अभेद बनाने की योजना है!








30 अगस्त 2016

सफल होने के जीवन में 9 चाणक्य सूत्र

ca-pub-6689247369064277


चाणक्य का नाम स्मरण करते ही एक ऎसे शिखाधारी व्यक्ति का चेहरा मन में उभरता है जो कूटनीति का महान ज्ञाता  था। चाणक्य कूटनीति के जानकार होने के साथ ही जीवन दर्शन के भी मर्मज्ञ थे। उन्होंने अपने जीवन से प्राप्त अनुभवों का संकलन किया था जिसे दुनिया चाणक्य नीति के नाम से जानती है। चाणक्य नीति की ज्यादातर बातें सिर्फ आदर्श से प्रभावित नहीं हैं, उनमें यथार्थ की स्पष्ट झलक है। इस पोस्ट में जानिए चाणक्य नीति की ऎसी बातें जो जीवन की राह को अनुभव का प्रकाश दिखाती हैं-
1. जो समय बीत गया, उसे याद कर पछताना व्यर्थ है। अगर आपसे कोई त्रुटि हो गई तो उससे शिक्षा लेकर वर्तमान को श्रेष्ठ बनाने का प्रयास करना चाहिए, ताकि भविष्य को संवारा जा सके।

2. अगर किसी कार्य को प्रारंभ करो तो तीन बातों को सदैव ध्यान में रखो – यह कार्य मैं क्यों करना चाहता हूं? इस कार्य का क्या परिणाम होगा? … और क्या इसमें मुझे सफलता मिलेगी?
3. किसी के अधीन होना कष्टदायक है लेकिन उससे भी ज्यादा कष्टदायक है दूसरे के घर में रहना।
4. जैसे हजारों पशुओं के बीच भी बछड़ा अपनी माता के पास ही जाता है, उसी प्रकार हे मनुष्य, तुम्हारे किए हुए कर्मो के फल भी इस जगत में तुम्हें ढूंढ लेंगे
5. जो धन बहुत ज्यादा कष्टों के बाद मिले, जिसके लिए अपने धर्म का त्याग करना पड़े, जिसके लिए शत्रुओं की खुशामद करनी पड़े या उनकी सत्ता के अधीन होना पड़े, उस धन का कभी मोह नहीं करना चाहिए।
6. कोई सर्प विषैला नहीं है तो भी उसे फुफकारना नहीं छोड़ना चाहिए। क्योंकि अगर उसने स्वयं को विषहीन सिद्ध कर दिया तो उसके प्राण संकट में पड़ जाएंगे। इसी प्रकार कोई व्यक्ति शक्तिहीन है तो उसे अपनी कमजोरी का प्रदर्शन करने से बचना चाहिए।
7. किसी के अधीन होना कष्टदायक है लेकिन उससे भी ज्यादा कष्टदायक है दूसरे के घर में रहना
8. किसी भी कमजोर व्यक्ति से शत्रुता करना ज्यादा खतरनाक है। वह उस समय वार कर सकता है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते।
9. किसी पदार्थ की सुगंध के प्रसार के लिए उसे हवा की जरूरत होती है लेकिन व्यक्ति का गुण या योग्यता किसी हवा के मोहताज नहीं होते। वे सभी दिशाओं में फैल जाते है ।


चाणक्य कहते हैं कि  इन बातों का ध्यान रखकर काम करेंगे तो असफलता मिलने की संभावनाएं काफी कम हो जाती हैं। 


1. आचार्य चाणक्य कहते हैं कि वही व्यक्ति समझदार और सफल है, जिसे इस प्रश्न का उत्तर हमेशा मालूम रहता है। समझदार व्यक्ति जानता है कि वर्तमान समय कैसा चल रहा है। अभी सुख के दिन हैं या दुख के। इसी के आधार पर वह कार्य करता हैं। यदि सुख के दिन हैं तो अच्छे कार्य करते रहना चाहिए और यदि दुख के दिन हैं तो अच्छे कामों के साथ धैर्य बनाए रखना चाहिए। दुख के दिनों में धैर्य खोने पर अनर्थ हो सकता है।

2. हमें यह मालूम होना चाहिए कि हमारे सच्चे मित्र कौन-कौन हैं और मित्रों के वेश में शत्रु कौन-कौन हैं। शत्रुओं को तो हम जानते हैं और उनसे बचते हुए ही कार्य करते हैं, लेकिन मित्रों के वेश में छिपे शत्रु का पहचाना बहुत जरूरी है। यदि मित्रों में छिपे शत्रु को नहीं पहचान पाएंगे तो कार्यों में असफलता ही मिलेगी। ऐसे लोगों से भी बचना चाहिए। साथ ही, इस बात का भी ध्यान रखें कि सच्चे मित्र कौन हैं, क्योंकि सच्चे मित्रों की मदद लेने पर ही सफलता मिल सकती है। यदि गलती से मित्र बने हुए शत्रु से मदद मांग ली तो पूरी मेहनत पर पानी फिर सकता है।

3. यह देश कैसा है यानी जहां हम काम करते हैं, वह स्थान, शहर और वहां के हालात कैसे हैं। कार्यस्थल पर काम करने वाले लोग कैसे हैं। इन बातों का ध्यान रखते हुए काम करेंगे तो असफल होने की संभावनाएं बहुत कम हो जाएंगी।
4. समझदार इंसान वही है तो अपनी आय और व्यय की सही जानकारी रखता है। व्यक्ति को अपनी आय देखकर ही व्यय करना चाहिए। जो लोग आय से अधिक खर्च करते हैं, वे परेशानियों में अवश्य फंसते हैं। अत: धन संबंधी सुख पाने के लिए कभी आय से अधिक व्यय नहीं करना चाहिए। आय से कम खर्च करेंगे तो थोड़ा-थोड़ा ही सही पर धन संचय हो सकता है।
5. हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारा प्रबंधक, कंपनी, संस्थान या बॉस हमसे क्या चाहता है। हम ठीक वैसे ही काम करें, जिससे संस्थान को लाभ मिलता है। यदि संस्थान को लाभ होगा तो कर्मचारी को भी लाभ मिलने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

29 अगस्त 2016

भारतीय कंपनियां जो दे रही हैं विदेशी कंपनियों को टक्कर ।

ca-pub-6689247369064277


कभी ईस्ट इंडिया कंपनी ने अंग्रेजों की गुलामी के समय भारत की अर्थव्यवस्था को बहुत नुक्सान पहुचाया था परंतु आज भी वह कंपनी नाम बदलकर भारत मे कारोबार कर रही है। परंतु आजाद भारत मे कई ऐसी भारतीय कम्पनियाँ हैं जिन्होंने विदेशी बाजार में धूम मचा रखी है। जब नाम ब्रांड्स की आती है तो भारतियों में एक आम धारणा है कि विदेशी होगा तो अच्छा होगा। पर हर बार ऐसा नहीं होता। कई बार ऐसा होता है कि ब्रांडिंग की बात आने पर कम्पनियां अपना पूरा ज़ोर लगा देती हैं और उनका विज्ञापन इतने बहतर ढंग से किया जाता है कि उपभोक्ताओं को ये समझ ही नहीं आता कि कोई कंपनी देशी है या विदेशी। आज कुछ भारतीय कंपनियो  मसलन टाटा, ऍम आर एफ,  एशियन पेंट,टेस्ला, इत्यादि विदेशी कंपनियों को कड़ी टक्कर दे रही हैं।हालांकि दुनिया की टॉप टेन कंपनियों मे 9 अमरीका की हैं।



कैफ़े कॉफ़ी डे कई कॉफ़ी ट्रेडिंग कंपनियों से मिलकर बनी एक कंपनी है। ये दक्षिण भारत के चिक्मंग्लोर में स्थापित की गई थी। ये पूरे एशिया की सबसे बड़ी कंपनी है। ये कंपनी अर्बिका बीन्स की पैदावार करते हैं। ये 12000 एकड़ में फैली हुई है और यहां से यूएसए, जापान और यूरोप में कॉफ़ी का निर्यात किया जाता है। स्टारबक्स, कोस्टा कॉफ़ी, टिया लीफ जैसे बड़े ब्रांड इसे अपनी जगह से हिला नहीं सके हैं। पूरे देश भर में इसके 1500 से ऊपर आउटलेट्स हैं। और पिछले कुछ समय में इसने दुसरे कई देशों में अपने नए आउटलेट्स खोले हैं।

1993 में कोका-कोला कंपनी ने इसे चौहान ब्रदर्स से खरीद लिया था। कोका-कोला इस कंपनी को ख़तम कर देना चाहता था पर ऐसा हुआ नहीं। लोग इसे आज भी बेहद पसंद करते हैं। आज भी यह कंपनी कोका-कोला में 16% शेयर रखती है और खूब बिकती है।

इसे 1954 में मोहन मिकिन्स लिमिटेड ने बनाना शुरू किया था। ये कंपनी गाज़ियाबाद में स्थित है। मोहन मिकिन्स नाम की डार्क रम अपने स्वाद की वजह से जानी जाती  है। अभी कुछ ही समय पहले तक ये पूरी दुनिया में बिकने वाली डार्क रम में सबसे पहले नंबर पर थी।

अमूल यानी कि आनंद मिल्क युनियन लिमिटेड. इसे Gujarat Co-operative Milk Marketing Federation Ltd. (GCMMF) द्वारा 1946 में शुरू किया गया था । करीब 3 करोड़ लोग इसको चलाते हैं, इसमें योगदान देते हैं। इस कंपनी को भारत में श्वेत क्रांति लाने का श्रेय जाता है। ये अभी तक विदेशी ब्रांडों को कड़ी टक्कर दे रही है।

MRF यानी मद्रास रबर फैक्ट्री,  इस कंपनी को महज़ 14000 रूपए के साथ 40 के दशक में शुरू किया गया था। ये आज दुनिया के लीडिंग ब्रांडों में से एक है। ये टायर, खिलौने, मोटरस्पोर्ट्स और क्रिकेट ट्रेनिंग के सामान बनाती है।



बुलेट के क्रेज़ के बारे में आप सबको पता होगा। ये दुनिया के लीडिंग ब्रांड में से एक है। ये कंपनी चेन्नई में स्थापित है। इसको यूएस और यूरोप में निर्यात किया जाता है। इसका करंट मार्किट रेट 250-800 cc है।
इस प्रकार देखा जाए तो भारतीय उद्योगपति पूरे विश्व मे अपनी गहरी छाप छोड़ रहे है और भारत का नाम विश्व मे फैला रहे है।

28 अगस्त 2016

आज का अफगानिस्तान पहले था सौ फीसदी सनातन।

ca-pub-6689247369064277


 आज अफगानिस्तान पूरी तरह से एक इस्लामी देश है। इसमें शक नही लेकिन सत्य है कि यह देश जितने समय से इस्लामी है,उससे कई गुना समय तक यह देश गैर इस्लामुक रहा है। इस्लाम तो अभी एक हज़ार साल पहले  ही अफगानिस्तान पहुँचा। उसके कई हज़ार साल पहले तक यह देश आर्यों, बोद्ध और हिंदुओं का देश रहा है। यह देश अखंड भारत का एक हिस्सा भर था।

 धृत राष्ट्र की पत्नी गंधारी, महान संस्कृत आचार्य पाड़िनी और गुरु गोरखनाथ जात से पठान थे।वेदों मे अफगान लड़कों के नाम कनिष्क और हुविष्क तथा लड़कियों के नाम वेदा और अवेस्ता दर्ज हैं। अफगानिस्तान के सबसे बड़े होटलों की श्रृंखला का नाम आर्यान था।इतना ही नही हवाई कंपनी भी आर्यान नाम से जानी जाती है। भारत के अनेक पंजाबियों,राजपूतों,और अग्रवालों के गोत्रनाम अब भी एक पठान क़बीलों मे ज्यों के त्यों मिल जाते हैं।मंगल,स्थानकजयी , कक्कर,सीकरी, सूरी, बहल,खटोरि आदि गोत्र पठानों के नाम के साथ जुड़े देखकर कोण चकित नही रह जाएगा।गजनी और गर्देज के बीच के गावों के हिन्दू बताते है कि उनके पूर्वज जब से अफगानिस्तान वजूद मे आया था, तब के थे। इन गावों के लोगों की बोली न हिन्दू थी, न फारसी और न पंजाबी। वहां बाहुली बोली जाती है जो अफगानिस्तान की सबसे प्राचीन भाषा है। यह भाषा वेदों की भाषा से बहुत मिलती जुलती भी है।

 फ्रांसीसी विद्वान सॉ मार्टिन के अनुसार अफगान शब्द संस्कृत के अश्वक या अशक शब्द से निकलता है। जिसका अर्थ है अश्वारोही या घुड़सवार। संस्कृत साहित्य मे अफगानिस्तान के लिए अश्वकायन यानी घुड़सवारों का मार्ग भी निकलता है। वैसे अफगानिस्तान नाम का विशेष प्रचलन अहमद साह दुर्रानी के शासन काल 1747 से 1773 के मध्य हुआ। इसके पूर्व अफगानिस्तान को आर्यान, आर्यानुम, वीजू, पख्तिया,खुरासान, पस्तीनख्वाः और रोह आदि नाभिं से पुकारा जाता था।प्रसिद्ध अफगान इतिहासकार मोहम्मद अली और प्रोफेसर पझवक का दावा है कि ऋग्वेद की रचना वर्तमान भारत की सीमाओं मे नही बल्कि आर्यों के आदि देश मे हुई जिसे आज सारी दुनिया अफगानिस्तान नाम से जानती है।

27 अगस्त 2016

आत्मा और मन।

ca-pub-6689247369064277


मनुष्य की समस्त क्रियाओं, आचारों का आरंभ मन से ही होता है। मन सतत तरह-तरह के संकल्प, विकल्प, कल्पनाएं करता रहता है।मन की जिस ओर भी रूचि होती है,उसका रुझान उसी ओर बढता चला जाता है, परिणाम स्वरूप मनुष्य की सारी गतिविधियां उसी दिशा में अग्रसर होती है। जैसी कल्पना हो उसी के अनुरूप संकल्प बनते है और सारे प्रयत्न-पुरुषार्थ उसी दिशा में सक्रिय हो जाते है। अन्ततः उसी के अनुरूप परिणाम सामने आने लगते हैं.। मन जिधर या जिस किसी में रस-रूचि लेने लगे, उसमें एकाग्रचित होकर श्रमशील हो जाता है। यहाँ तक कि उसे लौकिक लाभ या हानि का भी स्मरण नहीं रह जाता। प्रायः मनुष्य प्रिय लगने वाले विषय के लिए सब कुछ खो देने तो तत्पर हो जाता है। इतना ही नहीं अपने मनोवांछित फल को पाने के लिए बड़े से बड़े कष्ट सहने को भी  तैयार हो जाता है। जबकि आत्मा इन सबसे परे है।

यदि मन की सही अर्थों मे व्याख्या की जाए तो कहना गलत न होगा कि यह मन काल है। मन जीवन भर जीव को नचाये रखता है और बेहाल बना देता है। जीव जीवनपर्यंत परेसान ही रहता है। लेकिन  मन की चाल को समझ नही पाटा है। आत्मतत्व की और बढ़ने मे यदि मन की बाधा समझ मे आ गयी तो मोक्ष की मंज़िल मे पहुचना आसान हो जायेगा। 

अब मन की क्रियाओं पर प्रकाश डालते है जिसको अहंकार भी कहते है। यह जीव का सबसे नजदीकी शत्रु है। उदाहरण के लिए यदि मन ने कहा कि आम खाना है तो बुद्धि फैसला करती है कि आम का मौसम है कि नही ? । यह काम बहुत तेज़ी से होता है। दुनिया और इसके जीवों का संचालन करने वाले निरंजन यानी काल ब्रह्म , महाकाल ने इस काया और माया का सिस्टम बहुत तेज़ बनाया हुआ है। यह नेटवर्क इतना तेज़ और बारीक है कि जीव के समझ मे नही आ रहा है। मन की भाषा इतनी जबरदस्त है कि फौरन बुद्धि फैसला करके बोल देती है कि आम का सीजन नही है। बस  इस फैसले के आते ही मन चुप बैठ जाता है। यह सन्देश मुख के पास भी पहुँच गया कि अभी आम का सीजन नही है। यह मुख भी शांत हो गया। अगर बुद्धि ने फैसला किया कि आम का सीजन है तो बुद्धि फैसला करती है  कि क्या आम खरीदने के लिए पैसे हैं ? क्योंकि आम तो खरीदना है। बुद्धि फैसला कर लेती है कि हाँ पैसे हैं। आम खरीदेंगे आम खाएंगे। जीव की कुछ इच्छाओं की पूर्ति होती है और कुछ इच्छाओं की पूर्ती नही होती। इसी का नाम सुख और दुःख है। यह इसलिए होता है कि बुद्धि इसका विश्लेषण करती है। उदाहरणस्वरूप यदि हमारा मन क्रोधित है, तो सामने वाले पर खींच कर एक तमाचा लगा देता है। अब बुद्धि कहती है कि फलाने व्यक्ति के दोस्त  रिस्तेदार आकर हमला भी कर सकते हैं और यह पुलिस मे रिपोर्ट भी कर सकता है, तुम्हारा नुक्सान हो जायेगा, इसलिए तमाचा मत मारो। बस वहीँ मन डर जाता है दब जाता है। अगर बुद्धि ने कहा कि कूटो तो बस पीटना सुरु कर दिया। यह काम बड़ी बारीकी से हो रहा है। चलो बुद्धि ने फैसला कर भी लिया कि आम का सीजन भी है और पैसे भी हैं इसलिए आम खाएंगे। अब आगे क्या होता है ?  अब चित्त आता है। सब महकमे अलग अलग हैं। चित्त आकर बताता है कि आम कहाँ मिलेगा ?  चित्त को कैसे पता चला, क्योंकि इंद्रियाँ उसकी पूरक थीं। चित्त को याद था कि एक दिन जाते जाते आँखों ने देखा था, वहां पर फलों की दूकान है। इन आँखों से जो भी हम देखते हैं, नाक से जो भी सूंघते है, कानों से जो भी सुनते है, मुँह से जो भी बोलते है और त्वचा से जैसा भी स्पर्श मिले, इन सबके चित्र चित्त मे फीड हो जाते हैं। इस चित्त मे इतनी गड़नायें जमा हो सकती है जिसकी कोई मिसाल नही। सुपर कंप्यूटर भी इसकी मेमोरी संग्रह के आगे फेल है। इसको चित्रगुप्त भी कहा गया। ये पांचों ज्ञानेन्द्रियाँ  इस चित्त की पूरक हैं, इसकी सहयोगी हैं। चित्त ने कहा फलाने जगह आम है वहां से मिल जायेगा।अब अहंकार सामने आता है। अहंकार मतलब जो भी एक्टिविटी होगी। यह भी सभी इंद्रियों का पूरक है सहयोगी है। हाथ, पैर, मल स्थान, मूत्र स्थान और मुँह जो किसी चीज़ को खाने और बोलने मे सरीर की मदद करता है। अहंकार के सामने आते ही पैर चल देते है, मुह बोला आम चाहिए, हाथों ने पैसों का लेन देन किया, मुह ने आम खाया, पचने के बाद ठोस और अपविष्ट मल मूत्र की इंद्रियों ने बाहर किया। तो ये सब पूरा मन हुआ कि नही?  बड़े बड़े ज्ञानी पुरुष माथा पच्ची  करके इस बात को नही समझ पा रहे है। इसी तरह मनुष्य कार्य कर रहा है। क्योंकि ये पांचों ज्ञानेन्द्रियाँ( जिनसे किसी वस्तु का ज्ञान होता है )  क्रमशः आँख, नाख, कान, मुँह, त्वचा  और कर्मेन्द्रियाँ ( जिनके माध्यम से कार्य किया जाता है ) क्रमशः हाथ, पैर, मल द्वार, मूत्र द्वार, मुँह ( मुँह ज्ञानेंद्रि भी है और कर्मेंद्रि भी क्योंकि मुँह ज्ञानेंद्रि के रूप मे स्वाद का अनुभव और कर्मेंद्रि के रूप मे बोलने का कार्य करता है ) और चार अन्तःकरण की इंद्रियाँ क्रमशः मन, बुद्धि , चित्त, अहंकार ये सब मिलाकर चोदह इंद्रियाँ प्रत्येक जीव मे उपस्थित होती हैं।  सभी इंद्रियां एक दुसरे की पूरक हैं, सहयोगी हैं। आत्मा का इन सब इंद्रियों से लेना देना नही है क्योंकी आत्मा इंद्रियातीत है, इंद्रियों से परे है। उसमें इन चोदह इंद्रियों का समावेश नही है। जिसमे ये चोदह इंद्रियां और पांच तत्व ( पृथ्वी तत्व, जल तत्व, वायु तत्व, अग्नी तत्व और आकाश तत्व ) मौज़ूद है वह मन है। यह रहस्य है। जिस प्रकार स्त्री और पुरुष एक दुसरे के पूरक है इसी प्रकार ये इंद्रियां भी मन की पूरक हैं। जो पति पत्नी अच्छे जोड़े हैं वे एक दुसरे की इच्छा के खिलाफ नही चलते हैं। वे दोनों एक दुसरे की इच्छाओं का सम्मान करते हैं क्योंकी सादी के समय यही संकल्प लिया जाता है यह मन कैसा है? यह मन क्रूर है, बड़ा खराब है। हम सब किसी को भी अच्छा या बुरा गुणवत्ता के आधार पर कहते हैं। उदाहरण के लिए लोग कहते है फलाना आदमी गाय जैसा है। हम शेर को खतरनाक बोलते है, क्योंकि शेर का भरोसा नही किया जा सकता। एक तो वह मांसाहारी है दूसरा वह ताक़तवर है, बड़ा फुर्तीला है। इसी प्रकार मन स्वभाव से क्रूर है। आग जला देती है, पानी डूबा देता है क्योंकि यह इसका गुण है। वायू स्पन्दन करती है क्योंकि यह वायू का गुण है। इसी प्रकार मन के चार रूप है, चार वृत्तियाँ है, काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार। इसलिए मन को काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार कहा गया। यह मन है। यह विनास की तरफ ले जाता है। अब इनमे से किसको अच्छा कहोगे ? इन्हीं पाँचों के कारण इस दुनिया मे सब गड़बड़ है। क्योंकी यह सब मन से संचालित हो रहे हैं। काम उत्पन्न हुआ, कामातुर हो गया। विषय विकारों मे पड़ा, बलात्कार किया, परायी स्त्री का अपमान किया, किशी की लड़की को लेकर भाग गया। सवाल ये उठता है कि ये मन इतना ताक़तवर क्यों है?  इस मन ने इसने बड़े बड़े ऋषिओं को, बड़े बड़े तपस्वियों को पटकी मार दी। ऋषी परासर एक हज़ार साल तप करके लौटे, नाविक की बेटी मचोदर्री पर फ़िदा हो गए और कुकर्म करके अपना तप खो दिया। ये इतने बड़े ताकतवर शत्रु है कि हमारे काबू मे आने वाले हैं ही नही। ये अंदर के दुश्मन बड़े तगड़े हैं। 

मन को जानना बहुत जटिल है। यही बात वासुदेव कृष्ण ने अर्जुन से कही कि हे अर्जुन यदि तुम आत्मा का साक्षात्कार करना चाहते हो तो सबसे पहले अपने मन का निग्रह करो। इसके बिना आत्म साक्षात्कार सम्भव नही। आत्मसाक्षात्कार मे सबसे बड़ी बाधा कोई है तो वह तुम्हारा  मन है। अर्जुन बोले  हे वासुदेव,  हे जनार्दन ये मन परिवर्तनसील है। हवा की गाँठ बांध दूंगा हालांकि यह सम्भव नही लेकिन प्रयास करूंगा। आप कहें तो समुन्दर का मंथन करने का भी प्रयास करूँगा हालांकि यह भी बड़ा कठिन है, आकाश मे शून्य को ढूंढना बहुत जटिल है मगर आप कहें तो भी प्रयास करूँगा, पर मे मन को वस मे नहीँ कर पाउँगा। मैंने ध्यान को एकाग्रचित करने के  बहुत प्रयास किये मगर मे हार चुका हूँ, ये वस मे आता ही नही है। 


यह मन आत्मज्ञान मे और आत्मज्ञान के रास्ते पर जाने चलने  वाले के लिए सबसे बड़ी बाधा है। सवाल यह उठता है कि क्यों है ये बाधक?  अँधेरा हमारा बाधक है। हम अन्धकार मे वस्तु का बोध नही कर पाते। हमको डर लगता है। इसलिए मनुष्य अन्धकार को पसंद नही करता, वह केवल नींद के समय अन्धकार को पसंद करता है। क्योंकि नींद खुद भी अन्धकार है। नींद अज्ञान है। मनुष्य प्रकाश चाहता है। आपका पाला किसी मामूली चीज से नही पड़ा है। आत्मा को बांधकर रखने वाली चीज़ कोई मामूली चीज़ नही है कि दो कथा सुनते ही मसला हल हो जाएगा, दो डुबकियां लगाकर हम निर्मल हो जायेंगे। यह मसला ऐसे हल होने वाला नही है।

शास्त्रों मे उल्लेख मिलते है कि कामदेव ने सबसे बड़े योगी  शिवजी को मोहिनी रूप बनाकर मोहित कर लिया था। क्योंकि यह "काम" बहुत ताकतवर है। अगर आप काम से निपट लिए तो इसका एक और भाई बैठा हुआ है, इससे भी बड़ा वह है क्रोध।  ये जितने भी राक्षस जीव के मन मै रह रहे हैं, ये बडे विनाशक हैं। इनसे कभी कोई अच्छा काम नही हो सकता। साँप को यदि हम दूध पिलाएंगे तो वह दूध का विष बना देगा और काटना भी नही छोड़ेगा। इसलिए हमारे अंदर जो यह दुश्मन बैठे है, बहुत खूंखार हैं। यह हमारे दुश्मन इसलिए कहलाते है कि ये सारे विकार आत्मा को जगत की और घसीट कर ले जाते हैं। जगत के अंदर दो आकर्षित चीज़ हैं जिनके अंदर मनुष्य उलझता है। एक वासना और दूसरा दौलत।  अब यह देखते हैं कि यह विकार कार्य कैसे करते है?  

यदि हम गौर करें तो हमें पता चलता है कि ये "काम विकार" कैसे चलता है। परंतु इसको देखने के लिए दिव्य दृष्टि । हम सब जानते है कि मल मूत्र की इंद्रियां घृणित है। चाहे वह स्त्री की  हो या पुरुष की या किसी अन्य जीव की हौं, ये गंदी हैं। अगर यह सुंदर होती तो लोग इनको दिखाए दिखाए फिरते, जैसे लोग मसल्स दिखाते हैं। जिनकी जांगे मज़बूत होती है तो वह नेकर पहनकर अपनी जांगे दिखाता है। अगर यह मल मूत्र की इंद्रियां सुंदर होती तो लोग इनकी नुमाइस लगाने मे चूकते नही । इसलिए इनको ढके ढके घूमते हैं। जब सारे सरीर को नंगा करके दिखाया जा रहा है तो इनको भी दिखाया जा सकता था ? परंतु ये घृणित है, इसलिए इनको ढका जा रहा है। हम यह सब जानते भी हैं पर विचार नही करते। यह "काम" भी मन के अंदर रहता है। वही इसका ठिकाना है। जब काम की इंद्री प्रबल होती है तो उस समय बुद्धि मे एक ताक़त आती है, एक सम्मोहन आता है जो हमें उस और विवस करता है। काम वह अग्नि है जो बुद्धि, आत्मा, व शरीर को जलाकर जीवन को नरक बना देती है।

ऋषियों ने इसी वजह से तपस्या करी कि ज्ञान दृष्टि से हम इस सम्मोहन को तोडें , ताकि उन विषयों के लिए हमारा सम्मोहन न बने, उनका ध्यान न टूटे । लेकिन वे मन द्वारा उत्पन्न सम्मोहन को नही तोड़ पाये, नही रोक पाये।  यह मन सबको नचा देता है। जब देवताओं के राजा इंद्र कामातुर हुए तो शाश्त्रों के अनुसार वे गौतम ऋषी की स्त्री का सील भंग करने पहुँच गए। तो क्या ये मन की मार थीं कि नहीं? निश्चित रूप से यह मन की ही मार थी। जिस प्रकार अच्छा भोजन देखकर जीभ ललचाती है। सुंदर नारी देखने के बाद वासना कुत्ते की तरह ललचाती है। इसी प्रकार सुंदर स्त्री देखने के बाद आदमी के विकार फौरन जाग जाते हैं ताकी विषयों का आनंद प्राप्त हो जाए। विषयों  को बस आनंद चाहिये, चाहे वह उचित हो या अनुचित। लेकिन बुद्धि ने कहा ना भाई ना, पुलिश केस हो जायेगा, इसके दोस्त मारेंगे, इसका भाई मारेगा। तुरंत कामवासना वहीं पर ठंडा पड़ जाता है। इसका मतलब ये हुआ कि ये पूरा मामला अपने ही अंदर से निकल रहा है। 

रावण ने भी क्रोध किया जो विनास की तरफ गया ।जब देवराज़ इन्द्र कामातुर हुआ तो मन ने पटकी मारी। जब परासर ऋषी एक हज़ार साल की तपस्या के बाद जब वापस आश्रम लोट रहे थे तो नदी पार करते हुए नाविक की बेटी मचोदरी पर कामातुर हो गए। बाद मे अपने वादे के अनुसार उससे विवाह कर बैठे और हज़ार सालों के तप का परिणाम एक झटके मे  शून्य हो गया। तब भी मन ने ही पटकी मारी।


इसी प्रकार क्रोध वस ब्रह्मा ने अपने छ पुत्रों को भस्म कर दिया । यहाँ भी मन ने ही पटकी मारी। इसका मतलब हमारे पूर्वजों से प्रमाण मिल रहा है कि ये विकार काबू मे होने वाले नहीँ हैं। आदमी अपनी ताकत से अपने मन को वस मे नहीँ कर सकता। इसलिए मन को खतरनाक कहा गया। यह पूरी दुनिया मन माने कामों मे लगी हुई है। कुछ लोग तो यह भी कह रहे है कि जो मन कहे वो कर लो, मन को मत मारो। इस काया के अंदर अभी काम, क्रोध के अलावा और बड़े बड़े राक्षस जैसे लोभ, मोह और अहँकार भी बैठे हैं, जो इनसे भी ताक़तवर है।
  
लोभ तो बड़ा खतरनाक है। यह वह तृष्णा है जो सुख शांति व सब्र का नाश कर देती है। ये कोई बाहर से थोडी आया ? यह तो हमारे अंदर ही था। जैसे एक बढ़िया गाडी देखी, मन ने विचार किया कि मे भी गाडी लूँ। बस मन ने बेमानी, ठगी, चार सौ बीसी, किसी भी तरह करके गाडी लेनी है। यह मनुष्य को बुराइयों की तरफ धकेटला है। लोभ इन्सान में भय उत्पन्न करता है क्योंकि धन और आभूषनों की चोरी या जमीन जायदाद को किसी के द्वारा हडपने का भय सदा उसे सताता रहता है । बेईमानी से प्राप्त किए धन या जायदाद को कानून से छुपाना भी आवश्यक होता है इसलिए कानून व समाज का भय होना लोभी इन्सान की स्वभाविक प्रक्रिया है । 

मोह सभी ब्याधियों का मूल है मोह वह भंवर है जिसमे फंसकर जीवन दुखों से भर जाता है। हर एक शख्स इसकी चपेट मे है। यह सब पर अपना वर्चस्व बनाये हुए है। बड़े बड़े ऋषियो को पुत्र मोह हो गया।


अहंकार इससे भी बड़ा शत्रु है। अहंकार वह दलदल है जिसमे फंसकर मित्रों व शुभचिंतकों का साथ छूट जाता है। यह असाध्य शत्रु है। किसी तपस्या, किसी साधना, किसी योग से काबू मे आने वाला नहीं है। शिवजी से बड़ा कोई योगी नहीं हुआ। पर उनको भी काम ने घेर लिया। शिवजी को जब क्रोध आया तो वह तीन लोक का विनास करने को तयार हो गए। क्रोध ऐसा अजगर जो बुद्धि, व्यवहार, और आचरण को निगल जाता है। यह हम सब लोग शास्त्रो मे पढ़ रहे है। चार चार युगों का ध्यान करने वाले,हज़ार हज़ार साल घोर तप करने वाले, शरीर पर दीमक जम जाने तक ध्यान करने वाले भी इस मन को नहीँ जीत पाये तो क्या साधारण मनुष्य इनसे टक्कर ले पायेगा ? ।आजकल तो लोग पांच मिनट भी ध्यान मे नहीँ बैठ पाते है। सवाल यह है कि फिर पार कैसे हों? 

इससे बचने का केवल और केवल एक ही उपाय है। वो है सतगुरु ! हम अपनी आत्मा के कल्याण के लिए जो भी युक्तियाँ कर रहे हैं, क्या वो पर्याप्त हैं?  जिस प्रकार अन्धकार की निवर्ति का साधन केवल प्रकाश है । वो अलग बात है कि प्रकाश का सृजन हम कैसे करें। सूर्य के अलावा सबका प्रकाश कृतिम है। पर सूर्य का प्रकास भी इस आत्मा को रोशन नही कर सकता।इसी प्रकार तत्व ज्ञान के बिना आत्मा को मोक्ष नही मिल सकता। जिस शरीर को आत्मा ने धारण किया है, इसको तो मोक्ष कभी भी नही मिलता,इसको तो यहीं भस्म हो जाना है चाहे वह किसी भी जीव का क्यों न हो। मोक्ष की भागीदार केवल आत्मा है जो परमात्मा के अंस के रूप मे सभी जीवों मे समान रूप से मौज़ूद है। 


यही बात योगा वशिस्ठ रामायण मे भी आती है जब राम ने अपने गुरु वशिष्ठ जी से प्रश्न किया कि आत्साक्षात्कार कैसे ही सकता है ? तब गुरु वशिष्ठ ने कहा कि हे राम, आत्साक्षात्कार के बाद मनुष्य इस संसार सागर से पार हो जाता है। श्री राम ने कहा कि हे गुरुदेव इस आत्मा का ऐसा क्या ज्ञान है कि जिसे पाकर मनुष्य संसार सागर से पार हो जाता है ? इसका ऐसा क्या जलवा है? गुरु वशिष्ठ ने कहा कि हे राम जिस तरह भृमवस रस्सी मे सांप की कल्पना करके  मनुष्य भयभीत हो जाते है, आपको भय आ जाता है। पर अगले ही पल जब आपको जब ज्ञान होता है कि यह सांप नहीँ रस्सी है, आपका सारा भय समाप्त हो जाता है। फिर चाहकर भी आओ उस रस्सी को देखकर पहले जितने भयभीत नहीँ हो सकते, इसी प्रकार एक बार आत्मा का ज्ञान ही जाने पर आपको  मृत्यू भय समाप्त हो जाता है। तब इस जगत का अस्तित्व स्वतः ही समाप्त हो जाता है। और आत्मज्ञान पाकर पता चल जाता है कि मे शरीर नही एक अजर, अमर और अविनाशी आत्मा हूँ। मेरी कोई इंद्रियां भी नहीँ हैं और ना ही मे पञ्च भोतिक पदार्थों से बना हूँ।जिस प्रकार रस्सी का ज्ञान होने पर साँप का अस्तित्व समाप्त हो गया, हे राम इसी प्रकार आत्मज्ञान होने पर यदि मनुष्य इस जगत को सच माने तो वह नहीँ मान पायेगा।उसको इस ज्ञान का आभास होता रहेगा कि जगत मिथ्या है एक झूट है।क्योंकि यही सत्य है। इसी प्रकार तत्व ज्ञान को प्राप्त होने के बाद हे राम इस संसार का अस्तित्व रहता ही नहीँ। आत्मज्ञान से पूर्व मनुष्य मे भृम की अवस्था रहती है।और भृम वस यह संसार सच लगता है।वरना ये तो है ही नहीँ। यह संसार मन यानि ब्रह्म ही के द्वारा उत्पन्न है। इसका संचालक भी मन है ब्रह्म  है। हे राम आप जिस संसार को देख कर सच मान रहे हो, ये आपके चित्त की सुपर्णा है। यह कल्पना मात्र है। हे राम ये आत्मा ही ध्यान है, चेतना है, ईस्वर का अंश है और अजर, अमर, अविनासी है। एक समान रूप से जगत के सभी जीवों मे विद्यमान है।हे राम आप ध्यान पूर्वक मेरी बातों को सुन भी रहे है, समझ भी रहे है और मुझे देख भी रहे है। परंतु एक क्षण के लिए भी यदि आपका ध्यान मुझसे हट कर कहीं और चला जाये तो हे राम आपकी आँखें मेरी तरफ होते हुए भी आप न मुझे देख पाओगे, न सुन पाऐंगे और न ही समझ पाएंगे। आपकी आँखों मे देखने की शक्ति, कानो  के सुनने की शक्ति और मस्तिक्ष के समझने की शक्ति के पीछे ध्यान की ही शक्ति काम कर रही है। वाहन का संचालक भले ही वाहन का चालक हो, परंतु चालक भी बिना ईंधन के वाहन का संचालन नही कर सकता।इसी प्रकार इस संसार का संचालक भले ही ब्रह्म हो परंतु बिना पूर्णब्रह्म की शक्ति के बगैर संसार का संचालन नामुमकिन है। मन की समस्त क्रियाएँ ध्यान की शक्ति से ही संचालित है।अन्यथा मन शव समान है। इसलिए हे राम यदि आप आत्म साक्षात्कार करना चाहते हो तो मन को भली भांति सनझने और इस पर विजय पाने के अलावा अन्य कोई विकल्प नही। 

26 अगस्त 2016

भारतीय मुद्रा का विश्लेष्ण।

ca-pub-6689247369064277

भारतीय मुद्रा (रुपया ₹) से जुड़े 31 ग़ज़ब रोचक तथ्य
1. भारत में करंसी का इतिहास 2500 साल पुराना हैं। इसकी शुरूआत एक राजा द्वारा की गई थी।
2. अगर आपके पास आधे से ज्यादा (51 फीसदी) फटा हुआ नोट है तो भी आप बैंक में जाकर उसे बदल सकते हैं।
3. बात सन् 1917 की हैं, जब 1₹ रुपया 13$ डाॅलर के बराबर हुआ करता था। फिर 1947 में भारत आजाद हुआ, 1₹ = 1$ कर दिया गया. फिर धीरे-धीरे भारत पर कर्ज बढ़ने लगा तो इंदिरा गांधी ने कर्ज चुकाने के लिए रूपये की कीमत कम करने का फैसला लिया उसके बाद आज तक रूपये की कीमत घटती आ रही हैं।
4. अगर अंग्रेजों का बस चलता तो आज भारत की करंसी पाउंड होती. लेकिन रुपए की मजबूती के कारण ऐसा संभव नही हुआ।
5. इस समय भारत में 400 करोड़ रूपए के नकली नोट हैं।
6. सुरक्षा कारणों की वजह से आपको नोट के सीरियल नंबर में I, J, O, X, Y, Z अक्षर नही मिलेंगे।
7. हर भारतीय नोट पर किसी न किसी चीज की फोटो छपी होती हैं जैसे- 20 रुपए के नोट पर अंडमान आइलैंड की तस्वीर है। वहीं 10 रुपए के नोट पर हाथी, गैंडा और शेर छपा हुआ है, जबकि 100 रुपए के नोट पर पहाड़ और बादल की तस्वीर है। इसके अलावा 500 रुपए के नोट पर आजादी के आंदोलन से जुड़ी 11 मूर्ति की तस्वीर छपी हैं।
8. भारतीय नोट पर उसकी कीमत 15 भाषाओं में लिखी जाती हैं।
9. 1₹ में 100 पैसे होगे, ये बात सन् 1957 में लागू की गई थी। पहले इसे 16 आने में बाँटा जाता था।
10. RBI, ने जनवरी 1938 में पहली बार 5₹ की पेपर करंसी छापी थी जिस पर किंग जार्ज-6 का चित्र था। इसी साल 10,000₹ का नोट भी छापा गया था लेकिन 1978 में इसे पूरी तरह बंद कर दिया गया।
11. आजादी के बाद पाकिस्तान ने तब तक भारतीय मुद्रा का प्रयोग किया जब तक उन्होनें काम चलाने लायक नोट न छाप लिए।
12. भारतीय नोट किसी आम कागज के नही, बल्कि काॅटन के बने होते हैं। ये इतने मजबूत होते हैं कि आप नए नोट के दोनो सिरों को पकड़कर उसे फाड़ नही सकते।
13. एक समय ऐसा था, जब बांग्लादेश ब्लेड बनाने के लिए भारत से 5 रूपए के सिक्के मंगाया करता था। 5 रूपए के एक सिक्के से 6 ब्लेड बनते थे। 1 ब्लेड की कीमत 2 रूपए होती थी तो ब्लेड बनाने वाले को अच्छा फायदा होता था।  इसे देखते हुए भारत सरकार ने सिक्का बनाने वाला मेटल ही बदल दिया।
14. आजादी के बाद सिक्के तांबे के बनते थे। उसके बाद 1964 में एल्युमिनियम के और 1988 में स्टेनलेस स्टील के बनने शुरू हुए।
15. भारतीय नोट पर महात्मा गांधी की जो फोटो छपती हैं वह तब खीँची गई थी जब गांधीजी, तत्कालीन बर्मा और भारत में ब्रिटिश सेक्रेटरी के रूप में कार्यरत रहते हुए फ्रेडरिक पेथिक लॉरेंस के साथ कोलकाता स्थित वायसराय हाउस में मुलाकात करने गए थे। यह फोटो 1996 में नोटों पर छपनी शुरू हुई थी। इससे पहले महात्मा गांधी की जगह अशोक स्तंभ छापा जाता था।
16. भारत के 500 और 1,000 रूपये के नोट नेपाल में नही चलते।
17. 500₹ का पहला नोट 1987 में और 1,000₹ का पहला नोट सन् 2000 में बनाया गया था।
18. भारत में 75, 100 और 1,000₹ के भी सिक्के छप चुके हैं।
19. 1₹ का नोट भारत सरकार द्वारा और 2 से 1,000₹ तक के नोट RBI द्वारा जारी किये जाते हैं।
20. एक समय पर भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए 0₹ का नोट 5th पिलर नाम की गैर सरकारी संस्था द्वारा जारी किए गए थे।
21. 10₹ के सिक्के को बनाने में 6.10₹ की लागत आती हैं।
22. नोटो पर सीरियल नंबर इसलिए डाला जाता हैं ताकि आरबीआई (रिज़र्व बैंक ऑफ़ इण्डिया) को पता चलता रहे कि इस समय मार्केट में कितनी करंसी हैं।
23. रूपया भारत के अलावा इंडोनेशिया, मॉरीशस, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका की भी करंसी हैं।
24. आर बी आई के अनुसार भारत हर साल 2,000 करोड़ करंसी नोट छापता हैं।
25. कम्प्यूटर पर ₹ टाइप करने के लिए ‘Ctrl+Shift+$’ के बटन को एक साथ दबावें।
26. ₹ के इस चिन्ह को 2010 में उदय कुमार ने बनाया था। इसके लिए इनको 2.5 लाख रूपयें का इनाम भी मिला था।
27. ऐसा नही हैं कि RBI जितनी मर्जी चाहे उतनी कीमत के नोट छाप सकती हैं, बल्कि वह सिर्फ 10,000₹ तक के नोट छाप सकती हैं। अगर इससे ज्यादा कीमत के नोट छापने हैं तो उसको रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट, 1934 में बदलाव करना होगा।
28. हम कितने नोट छाप सकते हैं इसका निर्धारण मुद्रा स्फीति, जीडीपी ग्रोथ, बैंक नोट्स के रिप्लेसमेंट और रिजर्व बैंक के स्टॉक के आधार पर किया जाता है।
29. हर सिक्के पर सन् के नीचे एक खास निशान बना होता हैं आप उस निशान को देखकर पता लगा सकते हैं कि ये सिक्का कहाँ बना हैं। जैसे 
*.मुंबई – हीरा [◆]
*.नोएडा – डाॅट [.]
*.हैदराबाद – सितारा [★]
*.कोलकाता – कोई निशान नहीं.
30. जानिए, एक नोट कितने रूपयें में छपता हैं।
*.1₹ = 1.14₹
*.10₹ = 0.66₹
*.20₹ = 0.94₹
*.50₹ = 1.63₹
*.100₹ = 1.20₹
*.500₹ = 2.45₹
*.1,000₹ = 2.67₹
31. रूपया, डाॅलर के मुकाबले बेशक कमजोर हैं लेकिन फिर भी कुछ देश ऐसे हैं, जिनकी करंसी के आगे रूपया काफी बड़ा हैं आप कम पैसों में इन देशों में घूमने का लुत्फ उठा सकते हैं.
*.नेपाल (1₹ = 1.60 नेपाली रुपया)
*.आइसलैंड (1₹ = 1.94 क्रोन)
*.श्रीलंका (1₹ = 2.10 श्रीलंकाई रुपया)
*.हंगरी (1₹ = 4.27 फोरिंट)
*.कंबोडिया (1₹ = 62.34 रियाल)
*.पराग्वे (1₹ = 84.73 गुआरनी)
*.इंडोनेशिया (1₹ = 222.58 इंडोनेशियन रूपैया)
*.बेलारूस (1₹ = 267.97 बेलारूसी रुबल)
*.वियतनाम (1₹ = 340.39 वियतनामी डॉन्ग).
भारतीय मुद्रा प्रणाली का संशिप्त विवरण
OLD INDIAN CURRENCY SYSTEM..
Phootie Cowrie to Cowrie
Cowrie to Damri
Damri  to Dhela
Dhela  to Pie
Pie to  to Paisa
Paisa to Rupya
256 Damri = 192 Pie = 128 Dhela = 64 Paisa (old) = 16 Anna = 1 Rupya
Now u know how some of the indian sayings originated..
ek 'phooti cowrie' nahin doonga...
'dhele' ka kaam nahin karti hamari bahu...
chamdi jaye par 'damdi' na jaye...
'pie pie' ka hisaab rakhna...

कैसा लगा आपको ?

25 अगस्त 2016

करोड़पति कभी करता था वेटर की नौकरी

ca-pub-6689247369064277



ये  वह उन्नीस वर्षीय व्यक्ति है  जो वेटर के रूप मे  कभी चाय बेचा करता था। अपनी मेहनत और ईमानदारी के बल पर आज ये करोड़ों का मालिक बन चुका है। रोबर्ट अम्फुने 16 साल की उम्र से मैकडोनाल्ड में पार्ट टाइम नौकरी करते थे। इसी के साथ उन्होंने ट्रेडिंग के गुर सीखे और 17 साल की उम्र से अपना व्यापार करने लगे। 19 वर्षीय रोबर्ट अपनी मां को एक गाड़ी और एक घर भी खरीद कर दे चुके हैं। ये साउथ अम्पटन में अपने घर से ही ट्रेडिंग करते थे और बचे हुए समय में पढ़ाई के साथ पार्ट टाइम नौकरी करते थे। अपने कमाए हुए पैसों से ही उन्होंने एक चमचमाती बेंट कार खरीद ली, जिसकी कीमत लगभग 99 लाख रुपया है। आज इस मुकाम पर पहुंचने के बाद भी वो अपने कल को नहीं भूले हैं। उन्होंने वो यूनिफ़ॉर्म अपने घर में फ्रेम करवा कर रखी है, जिसे पहन कर वो वेटर का काम करते थे। अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए वो बताते हैं कि कॉलेज जाते हुए एक चाय वाले का काम करना उनके लिए आसान नहीं था।  उनका कहना है कुछ बड़ा करने के लिए कुछ दिन आपको बेशर्म संघर्ष करना ही पड़ता है। उनकी उम्र कम होने के कारण उन्हें अपनी मां के नाम से बैंक अकाउंट खोलना पड़ा था। आज उन्होंने कुछ रियल एस्टेट और प्रॉपर्टी में भी निवेश किया है।
गाड़ियों का शौक रखने वाले रोबर्ट के पास कई महंगी गाड़ियां है।  उन्होंने अपने बेंट को गोल्ड बॉडी से सजा लिया है।वे बताते हैं कि ऐसी गाड़ी पूरे देश में किसी के पास नहीं है। उनकी मां सुसान कहती हैं कि उन्हें अपने बेटे पर गर्व है। रोबर्ट बताते हैं कि जब वो स्कूल में थे, तो जो लोग उनसे सीधे मुंह बात भी नहीं करते थे, आज वो ही उनके दोस्त बनना चाहते हैं, पर कुछ लोग ऐसे भी थे, जो मुश्किल समय में उनके साथ थे, आज भी वो ही लोग उनके करीबियों में शामिल हैं। रोबर्ट ने गरीबी मे जीवन की सुरुवात की, अपनी कड़ी मेहनत और लग्न के बूते आज वो जिस मुकाम मे हैं, निश्चित ही युवाओं के प्रेरणाश्रोत है। 

24 अगस्त 2016

संविधान मे सेक्युलर शब्द क्यों।

ca-pub-6689247369064277



भारत के संविधान मे 1976 मे सेक्युलर शब्द जोड़ा गया था। संविधान निर्माता भीम राव अम्बेडकर ने जब संविधान का निर्माण किया था तब सेक्युलर शब्द को नही जोड़ा गया था क्योंकि भारतवासियों के लिए राम शब्द भारत की अस्मिता से जुड़ा हुआ था। राम शब्द तब से हिन्दू  वैदिक धर्म मे तब भी था जब लोग आर्य हुआ करते थे तब दुनिया मे वैदिक धर्म के अलावा कोई धर्म था ही नही। अब भारत की जनता खुद ही फैसला कर ले वह राम शब्द से मोहब्बत रखती है या सेक्युलर नाम से। 
राम शब्द की आस्था को खत्म करने की चाल कांग्रेस की सोची समझी चाल का हिस्सा रही। तर्क ये था कि लोकतांत्रिक देश मे जहां  कानून धर्म से बड़ा है वहां पर राम की मर्यादा कानून से ऊपर नही हो सकती इसलिए किसी धर्म विशेष की ज्यादा महत्व देने के बजाय सेक्युलर शब्द का इस्तेमाल भारत के संविधान के लिए उत्तम है, इसका दूसरा पहलू इस्लाम को मानने वालों का झुकाव अपनी तरफ हो जायेगा। भले ही राजनीतिकारो ने धर्म सम्प्रदायों के बीच की खाई को चौड़ा ही किया । 

सेक्युलर शब्द का अर्थ धर्महीन होता है। क्या भारत को धर्महीन कहना उचित है वो भी संविधान की प्रस्तावना मे। भारत कभी भी धर्महीन, अधर्मी या धर्म से भिन्न नही रहा है।गंगा यमुना तरजीह भारत की पहचान रही है। जब संविधान निर्माताओं ने सेक्युलर शब्द संविधान मे जोड़ा ही नही था तो आज़ादी के 27 सालो बाद इसको जोड़ने की ज़रूरत ही क्या थी। क्या इस शब्द को संविधान से हटाने का समय नही आ गया है ? ।

23 अगस्त 2016

4 साल की अनन्या या सुपरकंप्यूटर?

ca-pub-6689247369064277


अनन्या इतनी अलग और यूनीक कि उसके स्कूल के प्रस्ताव पर शिक्षा विभाग को प्रदेश सरकार से मंजूरी लेकर उसे 9वीं में दाखिला देने की इजाजत देने पर मजबूर होना पड़ा . इससे पहले अनन्या ने दाखिले के लिए होने वाली परीक्षा भी पास कर ली थी. अनन्या अब अपनी उम्र से काफी बड़े बच्चों के साथ कक्षा में जम गई है. लखनऊ के आलमबाग की अनन्या अगले दो साल में यूपी बोर्ड की परीक्षाएं देती हुई दिखाई पड़ेगी और अगर वह सफल रही तो अपनी बहन सुषमा वर्मा का रेकॉर्ड तोड़ देगी.
अनन्या  9वीं के लिए खुद को तैयार पा रही है . इतनी सी उम्र में वो अच्छी हिंदी बोल लेती है और कक्षा नौ की किताबें भी आसानी से पढ़ और समझ सकती है. अनन्या के घर और स्कूल वालों के मुताबिक उसमें कुछ नया सीखने और एक बार पढ़कर ही याद कर लेने का अनोखी क्षमता है. अनन्या ने जून में ऐडमिशन लिया था. अनन्या ने कहा कि सुषमा दीदी को कक्षा नौ में ऐडमिशन मिला था, लेकिन मुझे 10 में चाहिए. स्कूल में जब अनन्या को अखबार पढ़ने के लिए कहा गया तो वह बिल्कुल अच्छी तरह पढ़ने लगी. उसके पास ग्रहण करने की अद्भुत क्षमता है. वह कुछ भी एक बार पढ़ के याद कर लेती है. अनन्या के पिता लखनऊ के भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में असिस्टेंट सुपरवाइजर हैं जबकि अनन्या की मां छाया देवी को लिखना और पढ़ना बिल्कुल नहीं आता.

22 अगस्त 2016

अलगाववाद बनाम आतंकवाद।

ca-pub-6689247369064277



कश्मीर मे आतंकी बुरहान वानी के एन्कोउन्टर के बाद घाटी मे जबरदस्त तनाव देखने को मिल रहा है।साथ ही साथ वहां के लोगों का रवैया सेना के साथ हिंसात्मक होता जा रहा है। ऎसे मे केंद्र ने इससे निपटने के लिए बड़ा फैसला लिया है।आतंकी बुरहान बानी की मौत के बाद आज डेढ़ महीने से ज्यादा हो गए लेकिन हिंसा थमने का नाम नही ले रही है। अलगाववादी देश के सैनिको  पर पथराव कर रहे हैं।इसके जबाब मे सुरक्साबलों की गोली से 64 प्रदर्शनकारियों की मौत भी हो चुकी हैं। 
अब कश्मीर हिंसा पर केंद्र ने नया प्लान बना लिया है।आतंकी विरोधी कानून के तहत अलगाववादियों पर कार्यवाही करने के आदेश दे दिए गए है। सोशल मीडिया पर राष्ट्रिय सुरक्षा सलाहकार अजीत दोभल द्वारा निगाह रखनी सुरु कर दी गयी है। उम्मीद की जा रही है कि इससे अलगाववादियों पर लगाम लगाई जा सकती है। कश्मीर मे अलगाववाद का फायदा उठाकर पाक इसका फायदा उठाता रहा है। अलगाववादी सिर्फ भारत का ही विरोध नही करते बल्कि इनके रिश्ते खतरनाक आतंकवादियों से भी है।  इनको कश्मीर मे हिंसा भड़काने के लिए पैसा भी मिलता रहता है। पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया पर इस बात की मांग भी की जा रही है क़ि अलगाववादीओं को आतंकवादी घोसित कर दिया जाए। इस्लाम के नाम पर खून खराबा करने वाले आतंकवाद के खिलाफ केंद्र सरकार का यह एक सकारात्मक कदम है। 

21 अगस्त 2016

जापान मे सनातन धर्म की परछाई।

ca-pub-6689247369064277



भारत की ही तरह जापान मे भी हिन्दू देवी देवताओं को पूजा जाता है। इसके अलावा वहां पर कई वैदिक धर्म को स्थापित हुए हज़ारों मंदिर भी मौज़ूद हैं। पूजे जाने वाले 
देवताओं मे लक्षमी, गणेश,इंद्र, ब्रह्मा,गरुड़ के अलावा और भी कई देवी देवता हैं।साथ ही वहां कुछ ऎसे देवी देवताओं की प्रार्थना सभा होती है जिसको भारत ने भूला दिया है। शोधकर्ता बताते ही की जापान मे 6 वी सताब्दी मे सिद्धम् को उन्होंने आज तक सम्हाल के रखा हुआ है।जबकी यह भारत मे लुप्त हो चुकी विद्या है।इसी प्रकार वहां बीज अक्षरों को भी सम्हाल के रखा हुआ है। बीज अक्षर वह गीत या गान को कहते है जिशे गाकर भगवान को याद किया जाता है।
 वैदिक संस्कृति के अनुसार हर देवता का एक बीज अक्षर होता है जो कीलक होता है। उसका  लाभ एक  विशेष मन्त्र की सहायता से प्राप्त हो पाता है। जापान मे लगभग 5 हज़ार हिन्दू है जो वहां की आबादी के 1 प्रतिशत से भी कम हैं।जापान मे हिन्दू देवी देवताओं को अलग नाम से जाना जाता है। मसलन सरस्वती देवी को जो हिंदुओं मे ज्ञान की देवी कहलाती है उनको वंजाएटन नाम से जानते है।

20 अगस्त 2016

चमत्कारिक कल्पवृक्ष

ca-pub-6689247369064277


वृक्षों और जड़ी-बूटियों के जानकारों के मुताबिक यह एक बेहद मोटे तने वाला फलदायी वृक्ष है जिसकी टहनी लंबी होती है और पत्ते भी लंबे होते हैं। दरअसल, यह वृक्ष पीपल के वृक्ष की तरह फैलता है और इसके पत्ते कुछ-कुछ आम के पत्तों की तरह होते हैं। इसका फल नारियल की तरह होता है, जो वृक्ष की पतली टहनी के सहारे नीचे लटकता रहता है। इसका तना देखने में बरगद के वृक्ष जैसा दिखाई देता है। इसका फूल कमल के फूल में रखी किसी छोटी- सी गेंद में निकले असंख्य रुओं की तरह होता है।


पीपल की तरह ही कम पानी में यह वृक्ष फलता-फूलता हैं। सदाबहार रहने वाले इस कल्पवृक्ष की पत्तियां बिरले ही गिरती हैं, हालांकि इसे पतझड़ी वृक्ष भी कहा गया है। यह वृक्ष लगभग 70 फुट ऊंचा होता है और इसके तने का व्यास 35 फुट तक हो सकता है। 150 फुट तक इसके तने का घेरा नापा गया है। इस वृक्ष की औसत जीवन अवधि 2500-3000 साल है। कार्बन डेटिंग के जरिए सबसे पुराने फर्स्ट टाइमर की उम्र 6,000 साल आंकी गई है।


औषध गुणों के कारण कल्पवृक्ष की पूजा की जाती है। भारत में रांची, अल्मोड़ा, काशी, नर्मदा किनारे, कर्नाटक आदि कुछ महत्वपूर्ण स्थानों पर ही यह वृक्ष पाया जाता है। पद्मपुराण के अनुसार परिजात ही कल्पवृक्ष है। यह वृक्ष उत्तरप्रदेश के बाराबंकी के बोरोलिया में आज भी विद्यमान है। कार्बन डेटिंग से वैज्ञानिकों ने इसकी उम्र 5,000 वर्ष से भी अधिक की बताई है।


समाचारों के अनुसार ग्वालियर के पास कोलारस में भी एक कल्पवृक्ष है जिसकी आयु 2,000 वर्ष से अधिक की बताई जाती है। ऐसा ही एक वृक्ष राजस्थान में अजमेर के पास मांगलियावास में है और दूसरा पुट्टपर्थी के सत्य साईं बाबा के आश्रम में मौजूद है।


यह एक परोपकारी मेडिस्नल-प्लांट है अर्थात दवा देने वाला वृक्ष है। इसमें संतरे से 6 गुना ज्यादा विटामिन 'सी' होता है। गाय के दूध से दोगुना कैल्शियम होता है और इसके अलावा सभी तरह के विटामिन पाए जाते हैं।  इसकी पत्ती को धो-धाकर सूखी या पानी में उबालकर खाया जा सकता है। पेड़ की छाल, फल और फूल का उपयोग औषधि तैयार करने के लिए किया जाता है। 

इस वृक्ष की 3 से 5 पत्तियों का सेवन करने से हमारे दैनिक पोषण की जरूरत पूरी हो जाती है। शरीर को जितने भी तरह के सप्लीमेंट की जरूरत होती है इसकी 5 पत्तियों से उसकी पूर्ति हो जाती है। इसकी पत्तियां उम्र बढ़ाने में सहायक होती हैं, क्योंकि इसके पत्ते एंटी-ऑक्सीडेंट होते हैं। यह कब्ज और एसिडिटी में सबसे कारगर है। इसके पत्तों में एलर्जी, दमा, मलेरिया को समाप्त करने की शक्ति है। गुर्दे के रोगियों के लिए भी इसकी पत्तियों व फूलों का रस लाभदायक सिद्ध हुआ है।


इसके बीजों का तेल हृदय रोगियों के लिए लाभकारी होता है। इसके तेल में एचडीएल (हाईडेंसिटी कोलेस्ट्रॉल) होता है। इसके फलों में भरपूर रेशा (फाइबर) होता है। मानव जीवन के लिए जरूरी सभी पोषक तत्व इसमें मौजूद रहते हैं। पुष्टिकर तत्वों से भरपूर इसकी पत्तियों से शरबत बनाया जाता है और इसके फल से मिठाइयां भी बनाई जाती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार हमारे शरीर में आवश्यक 8 अमीनो एसिड में से 6 इस वृक्ष में पाए जाते हैं।

19 अगस्त 2016

बिन गुरु ज्ञान कहाँ से पाऊँ।

ca-pub-6689247369064277        
            एक बार विज्ञान की काफी जानकारी रखने वाले विद्वान पुरुष की ज्ञान के सन्दर्भ मे ज्ञान वार्ता कवीर साहीब के साथ हो गयी। विद्वान पुरुष ने गुरु तत्व पर प्रकास डालते हुए प्रश्न किया कि कहा जाता है कि गुरु के बिना ज्ञान सम्भव नही पर मुझे ऐसा नही लगता है। मुझे लगता है कि यदि आदमी के अंदर लगन हो और उसके दिमाग की याददास्त तेज हो तो वह बिन गुरु के भी अच्छी शिक्षा और ज्ञान प्राप्त कर सकता है। यदि आप मेरी बातों से सहमत हों तो मेरी इस जिज्ञासा का समाधान करें।  मुझे लगता है कि गुरु का महत्व विद्यालय मे तो  है पर जहां तक अध्यात्म की बात है , गुरु रखने की या गुरु को धारण करने  की कोई आवश्यकता नही है। मे मानता हूँ कि अध्यात्म समझने के लिए गुरु की क्या आवश्यकता । इसलिए मैने किसी को न तो गुरु बनाया और न ही गुरु को माना है ।मुझे लगता है कि ये सब कोरी बकबास है ढकोसला है। गुरुवों के स्डयंत्रों के इतने बड़े बड़े खुलासे हो रहे हैं क्या करना गुरु करके ?  परमात्मा का नाम ही तो लेना है हम खुद ले रहे हैं। पोथियां पढ़के गुरु जो जो बता रहे हैं, हम उनसे ज्यादा पढ़े लिखे हैं, हम खुद ही पढ़ रहे हैं और समझ भी रहे है । इसके लिए किसी एजेंट की क्या आवश्यकता है? कवीर ने उस विद्वान की सारी बातों को ध्यान से सूना और बोले कि ऐसा नहीँ है मित्र। अध्यात्म के क्षेत्र मे संसार सागर को पार करने के लिए गुरु की जरूरत पड़ेगी। सास्त्रों मे  विदवान आचार्यों ने लिखा भी है कि गुरु बिन ज्ञान कहाँ से पाऊँ, । विद्वान पुरुष बोला जिन्होंने ये बात शास्त्रों मै लिखी हैं वो कितने पढ़े लिखे थे?  हम उनकी बातें क्यों माने? । कवीर ने तर्क दिया कि मित्र वेदों मे भी तो लिखा है । इस पर विद्वान पुरुष बोले कि लोगों ने अपनी सुविधा के लिए लिख रखा है। कवीर साहिब बोले मित्र रामायण मे भी तो लिखा है कि बिना सतगुरु के संसार सागर से कोई पार नहीँ हो सकता। " बिन गुरु भवन जै तरहें न कोई, जो विरंचि शंकर सम होइ।" यानि बिना गुरु के इस संसार से कोई पार नहीँ हो सकता चाहे वह शंकर जी हों या उनके समान कोई और शक्तिशाली ही क्यों न हो। हे मित्र आप जानते ही होंगे कि  ब्रह्मा जी ने अग्नि को,शंकर जी ने वृहस्पति को,राम जी ने वशिष्ठ को और कृष्ण जी ने दुर्वासा ऋषि  को गुरु बनाना पड़ा ताकि आत्म ज्ञान पाकर भवसागर से पार हुआ जा सके जबकी वे तो स्वयं ही भगवान् थे, उनको गुरु करने की क्या आवश्कता थी।  ये सुनकर विद्वान पुरुष ने जबाब दिया और  बोले तुलसीदास  जी कौन से कोलेज़ मे पढ़े थे ? वे अनपढ़ थे, हम तो पढ़े लिखे है ।कवीर  ने कहा की हे मित्र आप गुरु तत्व को समझे नहीँ हैँ। गुरु का काम केवल इतना ही नहीँ होता कि वो पोथियों को  पढ़कर हमको उसका अर्थ सूना दे, समझा दे ।गुरु का काम केवल इतना ही नहीँ होता कि वो हमको ध्यान लगाने की विधि समझा दे ।

कवीर बोले मैं आपको बताता हूँ कि गुरु का स्थान कैसे सबसे ऊपर है ? कृपा करके मेरी बात ध्यान से सुनें।  गुरु कैसे मुक्त करेगा?
जैसे किशी दसबंद को खोलने के लिए उसकी गांठे खोलनी जरूरी होती है बगैर गांठें खोले दसबंद मुक्त नहीँ हो पायेगा क्योंकि वह धागे से बंधा है।  गुरु कैसे मोक्ष देगा?  गुरु आपके मन को आपके वस मे कर देगा क्योंकि  आप शरीर नही आत्मा है। गुरु के पास एक अदभुद ताकत है। वह उस ताकत से आपके आत्मतत्व को चेतन करके  प्रकाशित कर देना। कोई बाहरी प्रकाश इस आत्मा को चैतन्य नहीँ कर सकता है  सूर्य का भी नहीं ।आत्मा के चैतन्य होने से आत्मा का मन के साथ संघर्ष सुरु हो जायेगा, इस कार्य को संपन्न करने के  लिए गुरु आपको नाम दान प्रदान करेगा। नामदान पाने और जपने के बाद मनुष्य ऐसे होश मे आ जाता है जैसे बेहोशी टूटने के बाद होश मे आने पर आभास होता है कि वह अब तक कहाँ था?  मन का सारा नशा ख़त्म हो जाता है। जिस प्रकार दही मे माखन पहले से मौज़ूद था  उस पर मंथानी चलाकर माखन को केंद्रित कर दिया,  मक्खन को दही से अलग् कर दिया । इसी प्रकार गुरु भी नामदान देकर आत्मा को केंद्रित कर देता है।
 दूसरा काम गुरु जो करेगा वो है मनुष्य देह मै मौज़ूद मन और आत्मा ,गुरु इन दोनों को अलग अलग कर देगा। मन पहले जो भी चाह रहा था किये जा रहा था, यह बेलगाम था, यह  राजा था पर अब मन की चल ही नही रही है क्योंकि अंदर मन और आत्मा का पूरा संघर्ष सुरू हो चूका है। आत्मा ईस्वर का अंश होने के कारण सर्वशक्तिमान है  पर सर्वशक्तिमान से उत्पन्न  मन भी कम शक्तिशाली नहीँ है परंतु मन शक्तिशाली होने के बावज़ूद आत्मा की शक्ति परमशक्ति से मुकाबला तो करता है पर अंत मै दब जाता है हार जाता है और फालतू हरकत नहीँ कर पाता है। गुरु आपको ऐसा ज्ञानी बना देगा जिसमें घमंड का नामो निशान न हो । ज्ञान का अर्थ है सार।  सार और असार को जानना और आत्म तत्व को पहचानना। नामदान प्राप्त होने के बाद मनुष्य को सही और गलत का पूरा ज्ञान हो जाता है।जिस कारण न तो वो गलत काम कर पाता है और न ही सोचता है।वह गलत काम करने वालों ,बोलने वालों,सुनने वालों के साथ टिक ही नहीं सकता क्योंकि  एक ताकत उसको इन कर्मों को करने से हमेशा रोकती रहती  है।जिस प्रकार सांप को रस्सी जान लेने के बाद वह भय हो ही नहीँ सकता जैसा भय रस्सी को साँप समझनै पर हो जाता है। आपका मन जैसे ही कोई गलत काम करने की चेस्टा करेगा या उस तरफ बढेगा, आपको वह ताकत अपने आप रोक लेगी। यह विवेक गुरु प्रदान करेगा । मन ने हमें बुरी तरह बांध के रखा हुआ है। हम खुद  मन के साथ संघर्ष नहीँ कर सकते ।यह काम गुरु बखूबी करेगा । इस प्रक्रिया को सतगुरु द्वारा बंधन छुड़ाना कहा गया। यह मन पहले बुरे काम करने को विवस कर रहा था। यह हमको गलत कामों को करने के प्रति प्रेरित और प्रोत्शाहित कर रहा था। यह हमसे जाने अनजाने पाप कर्म करा रहा था पर अब मन ऐसा नहीँ कर पा रहा है।अब आप मोक्ष की तरफ अग्रसर हो रहे हैं।
तीसरा काम गुरु आपको सुरक्षित कर देता है। जिस मनुष्य को सतगुरु से नाम दान प्राप्त हो उसको भूत प्रेत,टोना टुटका,जंत्र मंत्र,जादू  इत्यादि का कोई प्रभाव नही पड़ता ।क्योंकि इन सबका प्रभाव मन पर पड़ता है, बुद्धि मे पड़ता है, चित्त मे पड़ता है। यह सब मन की स्तिथियाँ है। इन इंद्रियों का समावेश होने के बाद भी आप इनके प्रभाव से मुक्त रहते है। आप एकाग्र हो जाते है। आप बाहरी ताकतों से सुरक्षित हो जाते हैं और आप पूरी तरह चैतन्य होकर पूरे होश मे आ जाते है। नामदान प्राप्त होने के बाद यदि आप अपने को पहली वाली स्तिथि से तौलेंगे तो आपको धरती आसमान का फर्क महसूश होगा। अब आप पहले जैसा कभी नहीं बनना चाहेंगे। इसलिए मित्र अब आप विचार करें कि अपने आप को बंधन मुक्त करने के लिए आपने क्या क्या और कितने  प्रयास किये जो आप मैं  इतना भारी परिवर्तन  आ गया?  ये काम पोथियां पढ़ के नहीं होगा ।ये काम  तो सतगुरु ही करेगा आप स्वयं नहीं कर सकेंगे । मेरे मित्र शाहीब ने ऐसे ही नही कहा कि "कोटि नाम संसार में इनसे मुक्ति न होय, गुप्त नाम के भेद को जाने बिड़ला कोय।।  यह नाम गुप्त है जो केवल सतगुरु ही देगा। नाम की महिमा बताते हुए कवीर ने कहा कि यह कोई साधारण नाम नही जो पुस्तकों मे मिल जायेगा। यह नाम ना तो लिखा जा सकता है न पढ़ा जा सकता है और न ही आपके अलावा किसी अन्य के द्वारा देखा जा सकता है। कलयुग के लिए भी कहा गया है कि कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर सब उतरो पारा।

18 अगस्त 2016

भारत की पाक को चेतावनी, अब बात केवल पाक अधिकृत कश्मीर पर होगी।

ca-pub-6689247369064277                                                                
भारत ने पाकिस्तान से बातचीत के मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाते हुए पाकिस्तान को यह कहते हुऐ अपना रुख साफ कर दिया है कि भारत के विदेश सचिव इसी शर्त पर पाकिस्तान जाएंगे जब बातचीत सिर्फ सीमा पर आतंकवाद के मुद्दे पर होगी।
भारत ने ये बात तब कही है जब भारत ने बलूचिस्तान के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र मे जोर सोर से उठाने की बात कही कि पाकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर की तर्ज पर अलग प्रान्त बलूचिस्तान पर भी कब्जा कर रखा है। जब कि वह एक स्वतंत्र देश है और वहां क़ी जनता पाक के अत्याचारों से तंग आकर पाक अधिकृत कश्मीर की जनता की तरह पाकीस्तान के सासन से मुक्त होना चाहती है। इसी सन्दर्भ मे पाकिस्तान ने बातचीत के लिए भारतीय विदेश सचिव को पाकिस्तान आने का न्योता दिया है।
पाकिस्तान के इस न्योते पर भारत ने हामी भरते हुए कहा है कि भारतीय विदेश सचिव इस्लामाबाद जाने को तैयार हैं, लेकिन भारत के शर्तों के मुताबिक बातचीत का केंद्र सिर्फ सीमा पर आतंकवाद का मुद्दा और पाक अधिकृत कश्मीर होना चाहिए।
सूत्रों का कहना है कि भारत ने ये भी साफ किया है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और इस मसले से पाकिस्तान कोई दिलचस्पी ना दिखाऐ तो हीं बेहतर होगा।