ca-pub-6689247369064277
भारत के संविधान मे 1976 मे सेक्युलर शब्द जोड़ा गया था। संविधान निर्माता भीम राव अम्बेडकर ने जब संविधान का निर्माण किया था तब सेक्युलर शब्द को नही जोड़ा गया था क्योंकि भारतवासियों के लिए राम शब्द भारत की अस्मिता से जुड़ा हुआ था। राम शब्द तब से हिन्दू वैदिक धर्म मे तब भी था जब लोग आर्य हुआ करते थे तब दुनिया मे वैदिक धर्म के अलावा कोई धर्म था ही नही। अब भारत की जनता खुद ही फैसला कर ले वह राम शब्द से मोहब्बत रखती है या सेक्युलर नाम से।
राम शब्द की आस्था को खत्म करने की चाल कांग्रेस की सोची समझी चाल का हिस्सा रही। तर्क ये था कि लोकतांत्रिक देश मे जहां कानून धर्म से बड़ा है वहां पर राम की मर्यादा कानून से ऊपर नही हो सकती इसलिए किसी धर्म विशेष की ज्यादा महत्व देने के बजाय सेक्युलर शब्द का इस्तेमाल भारत के संविधान के लिए उत्तम है, इसका दूसरा पहलू इस्लाम को मानने वालों का झुकाव अपनी तरफ हो जायेगा। भले ही राजनीतिकारो ने धर्म सम्प्रदायों के बीच की खाई को चौड़ा ही किया ।
सेक्युलर शब्द का अर्थ धर्महीन होता है। क्या भारत को धर्महीन कहना उचित है वो भी संविधान की प्रस्तावना मे। भारत कभी भी धर्महीन, अधर्मी या धर्म से भिन्न नही रहा है।गंगा यमुना तरजीह भारत की पहचान रही है। जब संविधान निर्माताओं ने सेक्युलर शब्द संविधान मे जोड़ा ही नही था तो आज़ादी के 27 सालो बाद इसको जोड़ने की ज़रूरत ही क्या थी। क्या इस शब्द को संविधान से हटाने का समय नही आ गया है ? ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें