1 अगस्त 2016

चोरी हो चुका है सूर्य सिद्धांत ग्रंथ,1500 साल पहले एक भारतीय ने खोजा मंगल पर पानी




यूएस का वैज्ञानिक संस्थान नासा और भारत का इसरो मंगल ग्रह के बारे में जिन तथ्यों पर रिसर्च कर रहे हैं, उनका उल्लेख तो 1500 साल पहले ही एक भारतीय वैज्ञानिक ने अपनी किताब में कर दिया था। ये खगोलविद् और कोई नहीं वराह मिहिर थे। उनकी इस रिसर्च से वैज्ञानिक अाज भी हैरान हैं।



                                  

वराह मिहिर का जन्म सन् 499 में उज्जैन जिले के कपिथा गांव में हुआ था। उनके पिता आदित्यदास सूर्य के उपासक थे। वराह मिहिर ने गणित एवं ज्योतिष में व्यापक शोध किया था।वराह मिहिर ज्योतिष के भी प्रख्यात विद्धान थे समय मापक घटयंत्र, इंद्रप्रस्थ में लौह स्तंभ और वेधशाला की स्थापना उन्होंने ही करवाई थी।  उनका पहला पूर्ण ग्रंथ सूर्य सिद्धांत था, जाे भारत की भूमि पर विदेशी आक्रमण के कारण और इसी योजना के तहत सनातन वैदिक धर्म के ग्रंथों को नालंदा विश्वविद्यालय मे नस्ट कर दिए जाने के कारण अब उपलब्ध नहीं है।




1515 साल पहले महान खगोलविद् वराह मिहिर ने सूर्य सिद्धांत नामक ग्रंथ की रचना की थी। इस ग्रन्थ में उन्होंने मंगल के अर्धव्यास का उल्लेख किया था जो भारत के मिशन मार्स और नासा की गणना से मिलती जुलती थी।
नासा ने रोवर सैटेलाइट से 2004 में मंगल के उत्तरी ध्रुव पर उपलब्ध पानी और ठोस रूप में मौजूद लोहे का पता लगाया था। पुराणों के आधार पर उस समय वराह मिहिर ने सूर्य सिद्धांत में मंगल पर पानी और लोहे की मौजूदगी का जिक्र किया था। आधुनिक मान्यताओं के अनुसार सौरमंडल के सभी ग्रहों की उत्पत्ति सूर्य से ही हुई है।वराहमिहिर ने लिखा था सभी ग्रहों की उत्पत्ति सूर्य से हुई है। मंगल सूर्य की संवर्धन किरण से जन्मा है।

बाद में अन्य विद्वानों ने सूर्य सिद्धांत को पुन: लिपिबद्ध कर इनकी रिसर्च को आगे बढ़ाया। इसका विश्व की सभी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।  नासा के मंगल अभियान के समय वराह मिहिर की गणनाओं का तुलनात्मक अध्ययन खगोलविद् रिटायर्ड आईपीएस अरुण उपाध्याय ने भी किया है। उन्होंने इस पर किताब भी लिखी है। अब वे भी भारत के मंगल अभियान के डाटा का तुलनात्मक अध्ययन कर रहे हैं।
                         

भारतीय खगोलविदों ने मंगल सहित अन्य सौरग्रहों का अध्ययन विस्तारपूर्वक वैज्ञानिक रूप से किया है। इसे सूर्य सिद्धांत, गरुण पुराण, श्रीमदभागवत पुराण, मत्स्य पुराण, अग्नि पुराण में पढ़ा जा सकता है। इसके अलावा वराह मिहिर, भास्कराचार्य तथा आर्यभट्ट की रचनाओं में भी इनका विस्तार से वर्णन है। उक्त सभी सिद्धांत 1500 से दो हजार साल पुराने हैं। भारतीय खगोलविदों की खगोलीय गणना की माप योजन में है, जो आधुनिक अंकगणित के हिसाब से 12.75 किमी के बराबर है।



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