28 अगस्त 2016

आज का अफगानिस्तान पहले था सौ फीसदी सनातन।

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 आज अफगानिस्तान पूरी तरह से एक इस्लामी देश है। इसमें शक नही लेकिन सत्य है कि यह देश जितने समय से इस्लामी है,उससे कई गुना समय तक यह देश गैर इस्लामुक रहा है। इस्लाम तो अभी एक हज़ार साल पहले  ही अफगानिस्तान पहुँचा। उसके कई हज़ार साल पहले तक यह देश आर्यों, बोद्ध और हिंदुओं का देश रहा है। यह देश अखंड भारत का एक हिस्सा भर था।

 धृत राष्ट्र की पत्नी गंधारी, महान संस्कृत आचार्य पाड़िनी और गुरु गोरखनाथ जात से पठान थे।वेदों मे अफगान लड़कों के नाम कनिष्क और हुविष्क तथा लड़कियों के नाम वेदा और अवेस्ता दर्ज हैं। अफगानिस्तान के सबसे बड़े होटलों की श्रृंखला का नाम आर्यान था।इतना ही नही हवाई कंपनी भी आर्यान नाम से जानी जाती है। भारत के अनेक पंजाबियों,राजपूतों,और अग्रवालों के गोत्रनाम अब भी एक पठान क़बीलों मे ज्यों के त्यों मिल जाते हैं।मंगल,स्थानकजयी , कक्कर,सीकरी, सूरी, बहल,खटोरि आदि गोत्र पठानों के नाम के साथ जुड़े देखकर कोण चकित नही रह जाएगा।गजनी और गर्देज के बीच के गावों के हिन्दू बताते है कि उनके पूर्वज जब से अफगानिस्तान वजूद मे आया था, तब के थे। इन गावों के लोगों की बोली न हिन्दू थी, न फारसी और न पंजाबी। वहां बाहुली बोली जाती है जो अफगानिस्तान की सबसे प्राचीन भाषा है। यह भाषा वेदों की भाषा से बहुत मिलती जुलती भी है।

 फ्रांसीसी विद्वान सॉ मार्टिन के अनुसार अफगान शब्द संस्कृत के अश्वक या अशक शब्द से निकलता है। जिसका अर्थ है अश्वारोही या घुड़सवार। संस्कृत साहित्य मे अफगानिस्तान के लिए अश्वकायन यानी घुड़सवारों का मार्ग भी निकलता है। वैसे अफगानिस्तान नाम का विशेष प्रचलन अहमद साह दुर्रानी के शासन काल 1747 से 1773 के मध्य हुआ। इसके पूर्व अफगानिस्तान को आर्यान, आर्यानुम, वीजू, पख्तिया,खुरासान, पस्तीनख्वाः और रोह आदि नाभिं से पुकारा जाता था।प्रसिद्ध अफगान इतिहासकार मोहम्मद अली और प्रोफेसर पझवक का दावा है कि ऋग्वेद की रचना वर्तमान भारत की सीमाओं मे नही बल्कि आर्यों के आदि देश मे हुई जिसे आज सारी दुनिया अफगानिस्तान नाम से जानती है।

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