ca-pub-6689247369064277
एक बार विज्ञान की काफी जानकारी रखने वाले विद्वान पुरुष की ज्ञान के सन्दर्भ मे ज्ञान वार्ता कवीर साहीब के साथ हो गयी। विद्वान पुरुष ने गुरु तत्व पर प्रकास डालते हुए प्रश्न किया कि कहा जाता है कि गुरु के बिना ज्ञान सम्भव नही पर मुझे ऐसा नही लगता है। मुझे लगता है कि यदि आदमी के अंदर लगन हो और उसके दिमाग की याददास्त तेज हो तो वह बिन गुरु के भी अच्छी शिक्षा और ज्ञान प्राप्त कर सकता है। यदि आप मेरी बातों से सहमत हों तो मेरी इस जिज्ञासा का समाधान करें। मुझे लगता है कि गुरु का महत्व विद्यालय मे तो है पर जहां तक अध्यात्म की बात है , गुरु रखने की या गुरु को धारण करने की कोई आवश्यकता नही है। मे मानता हूँ कि अध्यात्म समझने के लिए गुरु की क्या आवश्यकता । इसलिए मैने किसी को न तो गुरु बनाया और न ही गुरु को माना है ।मुझे लगता है कि ये सब कोरी बकबास है ढकोसला है। गुरुवों के स्डयंत्रों के इतने बड़े बड़े खुलासे हो रहे हैं क्या करना गुरु करके ? परमात्मा का नाम ही तो लेना है हम खुद ले रहे हैं। पोथियां पढ़के गुरु जो जो बता रहे हैं, हम उनसे ज्यादा पढ़े लिखे हैं, हम खुद ही पढ़ रहे हैं और समझ भी रहे है । इसके लिए किसी एजेंट की क्या आवश्यकता है? कवीर ने उस विद्वान की सारी बातों को ध्यान से सूना और बोले कि ऐसा नहीँ है मित्र। अध्यात्म के क्षेत्र मे संसार सागर को पार करने के लिए गुरु की जरूरत पड़ेगी। सास्त्रों मे विदवान आचार्यों ने लिखा भी है कि गुरु बिन ज्ञान कहाँ से पाऊँ, । विद्वान पुरुष बोला जिन्होंने ये बात शास्त्रों मै लिखी हैं वो कितने पढ़े लिखे थे? हम उनकी बातें क्यों माने? । कवीर ने तर्क दिया कि मित्र वेदों मे भी तो लिखा है । इस पर विद्वान पुरुष बोले कि लोगों ने अपनी सुविधा के लिए लिख रखा है। कवीर साहिब बोले मित्र रामायण मे भी तो लिखा है कि बिना सतगुरु के संसार सागर से कोई पार नहीँ हो सकता। " बिन गुरु भवन जै तरहें न कोई, जो विरंचि शंकर सम होइ।" यानि बिना गुरु के इस संसार से कोई पार नहीँ हो सकता चाहे वह शंकर जी हों या उनके समान कोई और शक्तिशाली ही क्यों न हो। हे मित्र आप जानते ही होंगे कि ब्रह्मा जी ने अग्नि को,शंकर जी ने वृहस्पति को,राम जी ने वशिष्ठ को और कृष्ण जी ने दुर्वासा ऋषि को गुरु बनाना पड़ा ताकि आत्म ज्ञान पाकर भवसागर से पार हुआ जा सके जबकी वे तो स्वयं ही भगवान् थे, उनको गुरु करने की क्या आवश्कता थी। ये सुनकर विद्वान पुरुष ने जबाब दिया और बोले तुलसीदास जी कौन से कोलेज़ मे पढ़े थे ? वे अनपढ़ थे, हम तो पढ़े लिखे है ।कवीर ने कहा की हे मित्र आप गुरु तत्व को समझे नहीँ हैँ। गुरु का काम केवल इतना ही नहीँ होता कि वो पोथियों को पढ़कर हमको उसका अर्थ सूना दे, समझा दे ।गुरु का काम केवल इतना ही नहीँ होता कि वो हमको ध्यान लगाने की विधि समझा दे ।
कवीर बोले मैं आपको बताता हूँ कि गुरु का स्थान कैसे सबसे ऊपर है ? कृपा करके मेरी बात ध्यान से सुनें। गुरु कैसे मुक्त करेगा?
जैसे किशी दसबंद को खोलने के लिए उसकी गांठे खोलनी जरूरी होती है बगैर गांठें खोले दसबंद मुक्त नहीँ हो पायेगा क्योंकि वह धागे से बंधा है। गुरु कैसे मोक्ष देगा? गुरु आपके मन को आपके वस मे कर देगा क्योंकि आप शरीर नही आत्मा है। गुरु के पास एक अदभुद ताकत है। वह उस ताकत से आपके आत्मतत्व को चेतन करके प्रकाशित कर देना। कोई बाहरी प्रकाश इस आत्मा को चैतन्य नहीँ कर सकता है सूर्य का भी नहीं ।आत्मा के चैतन्य होने से आत्मा का मन के साथ संघर्ष सुरु हो जायेगा, इस कार्य को संपन्न करने के लिए गुरु आपको नाम दान प्रदान करेगा। नामदान पाने और जपने के बाद मनुष्य ऐसे होश मे आ जाता है जैसे बेहोशी टूटने के बाद होश मे आने पर आभास होता है कि वह अब तक कहाँ था? मन का सारा नशा ख़त्म हो जाता है। जिस प्रकार दही मे माखन पहले से मौज़ूद था उस पर मंथानी चलाकर माखन को केंद्रित कर दिया, मक्खन को दही से अलग् कर दिया । इसी प्रकार गुरु भी नामदान देकर आत्मा को केंद्रित कर देता है।
दूसरा काम गुरु जो करेगा वो है मनुष्य देह मै मौज़ूद मन और आत्मा ,गुरु इन दोनों को अलग अलग कर देगा। मन पहले जो भी चाह रहा था किये जा रहा था, यह बेलगाम था, यह राजा था पर अब मन की चल ही नही रही है क्योंकि अंदर मन और आत्मा का पूरा संघर्ष सुरू हो चूका है। आत्मा ईस्वर का अंश होने के कारण सर्वशक्तिमान है पर सर्वशक्तिमान से उत्पन्न मन भी कम शक्तिशाली नहीँ है परंतु मन शक्तिशाली होने के बावज़ूद आत्मा की शक्ति परमशक्ति से मुकाबला तो करता है पर अंत मै दब जाता है हार जाता है और फालतू हरकत नहीँ कर पाता है। गुरु आपको ऐसा ज्ञानी बना देगा जिसमें घमंड का नामो निशान न हो । ज्ञान का अर्थ है सार। सार और असार को जानना और आत्म तत्व को पहचानना। नामदान प्राप्त होने के बाद मनुष्य को सही और गलत का पूरा ज्ञान हो जाता है।जिस कारण न तो वो गलत काम कर पाता है और न ही सोचता है।वह गलत काम करने वालों ,बोलने वालों,सुनने वालों के साथ टिक ही नहीं सकता क्योंकि एक ताकत उसको इन कर्मों को करने से हमेशा रोकती रहती है।जिस प्रकार सांप को रस्सी जान लेने के बाद वह भय हो ही नहीँ सकता जैसा भय रस्सी को साँप समझनै पर हो जाता है। आपका मन जैसे ही कोई गलत काम करने की चेस्टा करेगा या उस तरफ बढेगा, आपको वह ताकत अपने आप रोक लेगी। यह विवेक गुरु प्रदान करेगा । मन ने हमें बुरी तरह बांध के रखा हुआ है। हम खुद मन के साथ संघर्ष नहीँ कर सकते ।यह काम गुरु बखूबी करेगा । इस प्रक्रिया को सतगुरु द्वारा बंधन छुड़ाना कहा गया। यह मन पहले बुरे काम करने को विवस कर रहा था। यह हमको गलत कामों को करने के प्रति प्रेरित और प्रोत्शाहित कर रहा था। यह हमसे जाने अनजाने पाप कर्म करा रहा था पर अब मन ऐसा नहीँ कर पा रहा है।अब आप मोक्ष की तरफ अग्रसर हो रहे हैं।
तीसरा काम गुरु आपको सुरक्षित कर देता है। जिस मनुष्य को सतगुरु से नाम दान प्राप्त हो उसको भूत प्रेत,टोना टुटका,जंत्र मंत्र,जादू इत्यादि का कोई प्रभाव नही पड़ता ।क्योंकि इन सबका प्रभाव मन पर पड़ता है, बुद्धि मे पड़ता है, चित्त मे पड़ता है। यह सब मन की स्तिथियाँ है। इन इंद्रियों का समावेश होने के बाद भी आप इनके प्रभाव से मुक्त रहते है। आप एकाग्र हो जाते है। आप बाहरी ताकतों से सुरक्षित हो जाते हैं और आप पूरी तरह चैतन्य होकर पूरे होश मे आ जाते है। नामदान प्राप्त होने के बाद यदि आप अपने को पहली वाली स्तिथि से तौलेंगे तो आपको धरती आसमान का फर्क महसूश होगा। अब आप पहले जैसा कभी नहीं बनना चाहेंगे। इसलिए मित्र अब आप विचार करें कि अपने आप को बंधन मुक्त करने के लिए आपने क्या क्या और कितने प्रयास किये जो आप मैं इतना भारी परिवर्तन आ गया? ये काम पोथियां पढ़ के नहीं होगा ।ये काम तो सतगुरु ही करेगा आप स्वयं नहीं कर सकेंगे । मेरे मित्र शाहीब ने ऐसे ही नही कहा कि "कोटि नाम संसार में इनसे मुक्ति न होय, गुप्त नाम के भेद को जाने बिड़ला कोय।। यह नाम गुप्त है जो केवल सतगुरु ही देगा। नाम की महिमा बताते हुए कवीर ने कहा कि यह कोई साधारण नाम नही जो पुस्तकों मे मिल जायेगा। यह नाम ना तो लिखा जा सकता है न पढ़ा जा सकता है और न ही आपके अलावा किसी अन्य के द्वारा देखा जा सकता है। कलयुग के लिए भी कहा गया है कि कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर सब उतरो पारा।
एक बार विज्ञान की काफी जानकारी रखने वाले विद्वान पुरुष की ज्ञान के सन्दर्भ मे ज्ञान वार्ता कवीर साहीब के साथ हो गयी। विद्वान पुरुष ने गुरु तत्व पर प्रकास डालते हुए प्रश्न किया कि कहा जाता है कि गुरु के बिना ज्ञान सम्भव नही पर मुझे ऐसा नही लगता है। मुझे लगता है कि यदि आदमी के अंदर लगन हो और उसके दिमाग की याददास्त तेज हो तो वह बिन गुरु के भी अच्छी शिक्षा और ज्ञान प्राप्त कर सकता है। यदि आप मेरी बातों से सहमत हों तो मेरी इस जिज्ञासा का समाधान करें। मुझे लगता है कि गुरु का महत्व विद्यालय मे तो है पर जहां तक अध्यात्म की बात है , गुरु रखने की या गुरु को धारण करने की कोई आवश्यकता नही है। मे मानता हूँ कि अध्यात्म समझने के लिए गुरु की क्या आवश्यकता । इसलिए मैने किसी को न तो गुरु बनाया और न ही गुरु को माना है ।मुझे लगता है कि ये सब कोरी बकबास है ढकोसला है। गुरुवों के स्डयंत्रों के इतने बड़े बड़े खुलासे हो रहे हैं क्या करना गुरु करके ? परमात्मा का नाम ही तो लेना है हम खुद ले रहे हैं। पोथियां पढ़के गुरु जो जो बता रहे हैं, हम उनसे ज्यादा पढ़े लिखे हैं, हम खुद ही पढ़ रहे हैं और समझ भी रहे है । इसके लिए किसी एजेंट की क्या आवश्यकता है? कवीर ने उस विद्वान की सारी बातों को ध्यान से सूना और बोले कि ऐसा नहीँ है मित्र। अध्यात्म के क्षेत्र मे संसार सागर को पार करने के लिए गुरु की जरूरत पड़ेगी। सास्त्रों मे विदवान आचार्यों ने लिखा भी है कि गुरु बिन ज्ञान कहाँ से पाऊँ, । विद्वान पुरुष बोला जिन्होंने ये बात शास्त्रों मै लिखी हैं वो कितने पढ़े लिखे थे? हम उनकी बातें क्यों माने? । कवीर ने तर्क दिया कि मित्र वेदों मे भी तो लिखा है । इस पर विद्वान पुरुष बोले कि लोगों ने अपनी सुविधा के लिए लिख रखा है। कवीर साहिब बोले मित्र रामायण मे भी तो लिखा है कि बिना सतगुरु के संसार सागर से कोई पार नहीँ हो सकता। " बिन गुरु भवन जै तरहें न कोई, जो विरंचि शंकर सम होइ।" यानि बिना गुरु के इस संसार से कोई पार नहीँ हो सकता चाहे वह शंकर जी हों या उनके समान कोई और शक्तिशाली ही क्यों न हो। हे मित्र आप जानते ही होंगे कि ब्रह्मा जी ने अग्नि को,शंकर जी ने वृहस्पति को,राम जी ने वशिष्ठ को और कृष्ण जी ने दुर्वासा ऋषि को गुरु बनाना पड़ा ताकि आत्म ज्ञान पाकर भवसागर से पार हुआ जा सके जबकी वे तो स्वयं ही भगवान् थे, उनको गुरु करने की क्या आवश्कता थी। ये सुनकर विद्वान पुरुष ने जबाब दिया और बोले तुलसीदास जी कौन से कोलेज़ मे पढ़े थे ? वे अनपढ़ थे, हम तो पढ़े लिखे है ।कवीर ने कहा की हे मित्र आप गुरु तत्व को समझे नहीँ हैँ। गुरु का काम केवल इतना ही नहीँ होता कि वो पोथियों को पढ़कर हमको उसका अर्थ सूना दे, समझा दे ।गुरु का काम केवल इतना ही नहीँ होता कि वो हमको ध्यान लगाने की विधि समझा दे ।
कवीर बोले मैं आपको बताता हूँ कि गुरु का स्थान कैसे सबसे ऊपर है ? कृपा करके मेरी बात ध्यान से सुनें। गुरु कैसे मुक्त करेगा?
जैसे किशी दसबंद को खोलने के लिए उसकी गांठे खोलनी जरूरी होती है बगैर गांठें खोले दसबंद मुक्त नहीँ हो पायेगा क्योंकि वह धागे से बंधा है। गुरु कैसे मोक्ष देगा? गुरु आपके मन को आपके वस मे कर देगा क्योंकि आप शरीर नही आत्मा है। गुरु के पास एक अदभुद ताकत है। वह उस ताकत से आपके आत्मतत्व को चेतन करके प्रकाशित कर देना। कोई बाहरी प्रकाश इस आत्मा को चैतन्य नहीँ कर सकता है सूर्य का भी नहीं ।आत्मा के चैतन्य होने से आत्मा का मन के साथ संघर्ष सुरु हो जायेगा, इस कार्य को संपन्न करने के लिए गुरु आपको नाम दान प्रदान करेगा। नामदान पाने और जपने के बाद मनुष्य ऐसे होश मे आ जाता है जैसे बेहोशी टूटने के बाद होश मे आने पर आभास होता है कि वह अब तक कहाँ था? मन का सारा नशा ख़त्म हो जाता है। जिस प्रकार दही मे माखन पहले से मौज़ूद था उस पर मंथानी चलाकर माखन को केंद्रित कर दिया, मक्खन को दही से अलग् कर दिया । इसी प्रकार गुरु भी नामदान देकर आत्मा को केंद्रित कर देता है।
दूसरा काम गुरु जो करेगा वो है मनुष्य देह मै मौज़ूद मन और आत्मा ,गुरु इन दोनों को अलग अलग कर देगा। मन पहले जो भी चाह रहा था किये जा रहा था, यह बेलगाम था, यह राजा था पर अब मन की चल ही नही रही है क्योंकि अंदर मन और आत्मा का पूरा संघर्ष सुरू हो चूका है। आत्मा ईस्वर का अंश होने के कारण सर्वशक्तिमान है पर सर्वशक्तिमान से उत्पन्न मन भी कम शक्तिशाली नहीँ है परंतु मन शक्तिशाली होने के बावज़ूद आत्मा की शक्ति परमशक्ति से मुकाबला तो करता है पर अंत मै दब जाता है हार जाता है और फालतू हरकत नहीँ कर पाता है। गुरु आपको ऐसा ज्ञानी बना देगा जिसमें घमंड का नामो निशान न हो । ज्ञान का अर्थ है सार। सार और असार को जानना और आत्म तत्व को पहचानना। नामदान प्राप्त होने के बाद मनुष्य को सही और गलत का पूरा ज्ञान हो जाता है।जिस कारण न तो वो गलत काम कर पाता है और न ही सोचता है।वह गलत काम करने वालों ,बोलने वालों,सुनने वालों के साथ टिक ही नहीं सकता क्योंकि एक ताकत उसको इन कर्मों को करने से हमेशा रोकती रहती है।जिस प्रकार सांप को रस्सी जान लेने के बाद वह भय हो ही नहीँ सकता जैसा भय रस्सी को साँप समझनै पर हो जाता है। आपका मन जैसे ही कोई गलत काम करने की चेस्टा करेगा या उस तरफ बढेगा, आपको वह ताकत अपने आप रोक लेगी। यह विवेक गुरु प्रदान करेगा । मन ने हमें बुरी तरह बांध के रखा हुआ है। हम खुद मन के साथ संघर्ष नहीँ कर सकते ।यह काम गुरु बखूबी करेगा । इस प्रक्रिया को सतगुरु द्वारा बंधन छुड़ाना कहा गया। यह मन पहले बुरे काम करने को विवस कर रहा था। यह हमको गलत कामों को करने के प्रति प्रेरित और प्रोत्शाहित कर रहा था। यह हमसे जाने अनजाने पाप कर्म करा रहा था पर अब मन ऐसा नहीँ कर पा रहा है।अब आप मोक्ष की तरफ अग्रसर हो रहे हैं।
तीसरा काम गुरु आपको सुरक्षित कर देता है। जिस मनुष्य को सतगुरु से नाम दान प्राप्त हो उसको भूत प्रेत,टोना टुटका,जंत्र मंत्र,जादू इत्यादि का कोई प्रभाव नही पड़ता ।क्योंकि इन सबका प्रभाव मन पर पड़ता है, बुद्धि मे पड़ता है, चित्त मे पड़ता है। यह सब मन की स्तिथियाँ है। इन इंद्रियों का समावेश होने के बाद भी आप इनके प्रभाव से मुक्त रहते है। आप एकाग्र हो जाते है। आप बाहरी ताकतों से सुरक्षित हो जाते हैं और आप पूरी तरह चैतन्य होकर पूरे होश मे आ जाते है। नामदान प्राप्त होने के बाद यदि आप अपने को पहली वाली स्तिथि से तौलेंगे तो आपको धरती आसमान का फर्क महसूश होगा। अब आप पहले जैसा कभी नहीं बनना चाहेंगे। इसलिए मित्र अब आप विचार करें कि अपने आप को बंधन मुक्त करने के लिए आपने क्या क्या और कितने प्रयास किये जो आप मैं इतना भारी परिवर्तन आ गया? ये काम पोथियां पढ़ के नहीं होगा ।ये काम तो सतगुरु ही करेगा आप स्वयं नहीं कर सकेंगे । मेरे मित्र शाहीब ने ऐसे ही नही कहा कि "कोटि नाम संसार में इनसे मुक्ति न होय, गुप्त नाम के भेद को जाने बिड़ला कोय।। यह नाम गुप्त है जो केवल सतगुरु ही देगा। नाम की महिमा बताते हुए कवीर ने कहा कि यह कोई साधारण नाम नही जो पुस्तकों मे मिल जायेगा। यह नाम ना तो लिखा जा सकता है न पढ़ा जा सकता है और न ही आपके अलावा किसी अन्य के द्वारा देखा जा सकता है। कलयुग के लिए भी कहा गया है कि कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर सब उतरो पारा।
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