13 मई 2016

सतगुरु का स्थान क्या ईस्वर से ऊँचा हो सकता है ?

सतगुरु की महिमा ~ एक बार एक बकरवाल जंगल मे बकरीया चरा रहा था तभी उसने जंगल के शेर के बच्चे को देखा ।वह उसको उठाकर घर ले आया और बकरियो के साथ पालने लगा।जंगल के शेर का बच्चा अब बडा भी हो गया और  वह बकरियो के साथ खेलने भी लगा। बकरवाल जैसे बकरियो को डंडा मारता था उसे भी मारता था ।एक दिन जंगल के शेर ने बकरवाल वाले शेर को बकरियो के साथ घूमते देखा तो उसको बडा आश्चर्य हुआ कि यह शेर  बकरियो के बीच क्या कर रहा है ? जंगल के शेर ने उसे अपने पास बुलाया और कहा कि तू अपनी  बिरादरी का होकर वहां बकरियो के बीच कया कर रहा है ? यहां आ और चल मेरे साथ , तो बकरवाल वाला शेर बोला नहीं मै शेर नहीं बकरी हूँ तू मुझे खा जायेगा।जंगल के शेर ने कहा भाई तू बकरी नहीं शेर है और तू बकरियो के साथ घास क्यों खा रहा है ? और ये बकरी की तरह  क्यों मिमिया रहा है? देख तेरे बाल भी मेरे जैसे है और नाखून भी , तू  बिलकुल मेरा जैसा ही है। बकरवाल वाले शेर ने अपने को देखा और सोचा ये सही कह रहा है। जंगल का शेर ने उसे पानी के पास ले गया और बोला अब देख अपने को, क्या तू मेरे जैसा नही है ? उसने सोचा हाँ मै तो सच मै शेर हूं। जंगल के शेर ने उसको दहाडना सिखाया और कहा अब जा और बकरवाल को जरा अपना जलवा तो दिखा ।बकरवाल वाला शेर गया और दहाडा और अपना रौद रुप दिखाया ,बकरिया
भी भग गयी और बकरवाल भी। कहने का आशय यह है कि यह परमातमा रूपी शेर का बच्चा यह आत्मा, मन रुपी बकरवाल के हाथ आ गयी है और इंद्रियाँ रूपी बकरियौ के साथ यह विषय रुपी घास खा रही है और संत रूपी शेर आकर उसे बताते है कि अरे तू क्या कर रहा है....

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