विश्व मे हिंदुत्व का आकर्षण तेज़ी से बढ़ रहा है ।विभिन्न समुदायों और धर्मों के लोग अपना धर्म छोड़कर हिन्दू सनातन वैदिक धर्म की तरफ बढ़ रहे है।आंकडों के मुताबिक अभी तक केवल रुष की आबादी का 6 प्रतिशत से ज्यादा लोग हिन्दू धर्म अपना चुके हैं और ये आंकड़ा विश्व मे लगातार तेज़ी से बढ़ रहा है।कुछ देशों मे तो एक समय हिन्दू धर्म का नामो निसान मिट गया था।वहां के सभी मंदिरों को चर्च और मस्ज़िदों मे तब्दील कर दिया गया था परंतु भारतीय हिन्दुओं की विश्व मे अच्छी छवि होने के कारण खासतौर पर इस्लाम मे ज़िहादी तत्वों के ज़्यादा सक्रिय होने की वजह से अब लोग शांतिप्रिय धर्म की और झुकने लगे है और हिन्दू धर्म की और प्रेरित हो रहे है।कहा जाता है कि रूस ने 1000 वर्ष पहले वैदिक सनातन धर्म को छोड़कर ईसाई धर्म स्वीकार किया था। इसका मुख्य कारण धर्म मे व्यवसायिकता का होना था, वहां मनमानी पूजा और वेदों के अनुकूल प्रवचन न देने वाले धर्मचारियों के व्यक्तिगत धन लाभ के चलते वैदिक सनातन धर्म मे गिरावट का आना था।यही कारण रहा कि रूस मे दसवी सताब्दी के अंत तक कियेब रियासत के राजा ब्लादिमीर चाहते थे कि उनके देश के लोग देवी देवताओं को मानने के बजाय एक ही ईस्वर की पूजा करें। उनके सामने केवल दो ही धर्म थे इस्लाम और ईसाईयत।उन्होंने दोनों धर्मो की जानकारी इकट्ठा करनी सुरू करी और जाना कि इस्लाम मे एक ईस्वर की इबादत और बहत्तर हूरों के साथ मौजमस्ती की बातें तो सही है लेकिन स्त्रियों पर पावंदी, शराब की पावंदी और खतने की परम्परा की असमानता के कारण वे संतुस्ट नही हुए। इसलिए उन्होंने इस्लाम को अपनाना रद्द कर दिया और लंबे विचारविमर्श के बाद तय किया गया कि उनके देश के लोग ईसाई धर्म को अपनाएंगे क्योंकि ईसाइयत मे कोई ऐसी पावंदी नही। सबको स्वतंत्रता के साथ समानता के साथ जीने का अधिकार भी है और मांश ,मदिरा और स्त्रियों पर कोई पावंदी भी नही है। उन्होंने यूनानी वजेंटाइन चर्च से बातचीत की जो ईसाई धर्म से थोडा अलग है। जिस कारण उसे ऑर्थोडॉक्स ईसाई धर्म भी कहा जाता है। इस तरह रूस के बड़े भू भाग मे ऑर्थोडेक्स ईसाई धर्म की सुरुवाद हुई। प्राचीनकाल मे रूस के लोग प्रकृति देवी की पूजा करते थे। उनकी मान्यता थी कि पृथ्वी, जल, वायु,अग्नि और आकाश ये सब ईस्वर के अंश हैं उनके बनाये हुए देवता है और माँ प्रकृति देवी की संतानें है। वे इनकी पूजा किया करते थे , साथ ही यह भी मानते थे कोई एक ऐसा भी है जो इन सबको संचालित कर रहा है। इसके अलावा वहां आकासीय बिजली को पेरुंन देवता कहा जाता था और उनकी कसमें भी खाई जाती थीं। उनके दो और प्रमुख देवताओं के नाम स्वा रोग और रोग भी थे। सम्भवतया ये सूर्य से सम्बंधित रहे होंगे। इसके अलावा कुछ देवीयों के नाम भी प्रचलित थे जैसे बिरिग्न्या,लादा, जीवा, मरैना और मकोश। मरैना को जाड़ों व् मौत की देवी कहा जाता था।हो सकता है जीवा से हिंदी शब्द जीव और मरैना से मरने की उत्पत्ति हुई हो। जीवा को वहां जीवनी देवी के रूप मे पूजा जाता था। आज भी वहां खुदाई मे सनातन वैदिक धर्म के देवी देवताओं की मूर्तियां आसानी से मिल जाती है क्योंकि अतीत मे भारत देश के विस्तार मे रूस भी शामिल था। विद्वानों का मत है कि वहां का पुराना धर्म और हिन्दू धर्म एक जैसे थे।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें