यह बहस का विषय रहा है कि मुसलमानों के पूर्वज क्या वाकई हिन्दू ही थे | दुनिया भर के मुसलमान चाहे इस सत्य को माने या ना माने, उनके रहन सहन के तरीके, उनकी मक्का मदीना की पूजा पद्धति, उनके पवित्र चिन्ह आदि उन्हें अंत मे हिन्दू धर्म से जोड़ते हैं | हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार असुरों के गुरु तथा महर्षि भृगु व असुर-राज हिरण्यकश्यप की पुत्री दिव्या की संतान, शुक्राचार्य मुस्लिम संप्रदाय के वास्तविक जनक थे | शुक्राचार्य ने राक्षसों का वंश बचाने के लिए भगवान् शिव की आराधना की थी, जिससे प्रसन्न होकर शिव जी ने अपना स्वरुप शिवलिंग शुक्राचार्य को प्रदान कर वैष्णवों से दूर रखने को कहा, साथ ही शिव जी ने शुक्राचार्य को यह भी बताया कि जिस दिन कोई भी वैष्णव इस शिवलिंग पर गंगा जल चढ़ा देगा उस दिन राक्षस वंश का नाश हो जायेगा।
शुक्राचार्य ने महादेव द्वारा प्रदान किये शिवलिंग को भारतवर्ष के वैष्णव हिंदुओं से दूर अरब के रेगिस्तान में स्थापित किया जिसे आज मक्का मदीना के नाम से जाना जाता है । यहाँ तक कि “अरब” देश का नाम शुक्राचार्य के पौत्र “अर्व” के नाम पर ही पड़ा है ।शुक्राचार्य, मूल रूप से “काव्य ऋषि” थे जिस कारण उनके सम्मान में मक्का मदीना के शिवमंदिर को “काव्या” नाम दिया गया ,कालांतर में काव्या नाम विकृत होकर ‘काबा’ बन गया जिसे मुसलमानों का सबसे पवित्र स्थल माना जाता है । अरबी भाषा में ‘शुक्र’ का मतलब ‘महान’ माना जाता है और “शुक्रं” अर्थात शुक्रिया। इस शब्द का जन्म भी गुरु शुक्राचार्य के नाम पर ही हुआ है ।मुसलमानों का पवित्र ‘जुम्मा’, शुक्रवार को मानने कि वजह भी गुरु शुक्राचार्य ही हैं |
रामायण के अनुसार सूपर्णखा का वध नहीं हुआ था और वह गुरु शुक्राचार्य के आश्रम में ही रहने लगी थी रामायण के अनुसार भगवान श्री राम के आदेश पर लक्ष्मण ने सूपर्णखा के नाक-कान काट दिए थे और तभी से वह अपना चेहरा ढक कर रहती थी । सूपर्णखा के “चेहरा ढकने” की परंपरा को अरब देश की औरतें आज भी निभाती हैं ।अरब देशो के रेगिस्तान में तेज़ धूप होने की वजह से वहां के लोगों ने सिर ढकने के लिए टोपी पहनना शुरू कर दिया जो आगे चलकर उनकी पूजा पद्धति में शामिल हो गया । रेगिस्तान में उपजाऊ जमीन, अनाज आदि के अभाव में लोगों ने जानवरों को मारकर खाना शुरू किया और इस हत्या को “क़ुर्बानी” का नाम दिया गया । इंसानो के मरने के बाद उन्हें ज़मीन में दफ़न करने की परंपरा शुरू हुई जिसका मुख्य कारण रेगिस्तान में जलाने योग्य लकड़ी का ना होना था ।
काबा में ३६० मूर्तियां हैं जिनमे शनि और चन्द्रमा की मूर्तियां शामिल हैं । मुस्लिम इतिहासकारों के अनुसार इनमें से ही एक मूर्ति को अल्लाह का नाम दिया गया , शनि, चन्द्रमा के अलावा सूर्य और अन्य ग्रहों की मूर्तियां होना इस बात का प्रतीक है कि काबा में “नवग्रहों” की पूजा की जाती थी जैसा कि हिन्दू धर्म मे नवग्रहों की पूजा होती है और यह माना जा सकता मुसलमानों को “नवग्रह पूजा” सिखाना गुरु शुक्राचार्य का ही काम है ।अर्धचंद्र को हिन्दू धर्म में पवित्र माना जाता हैं क्योंकि यह भगवान् शिव के ललाट की शोभा बढ़ाता है ।अर्धचंद्र चिन्ह का काबा में महादेव के प्रतीक पर होना, इस चिन्ह को मुसलमानों में पवित्र बनाता है और इसे इस्लाम के झंडे पर स्थान दिया गया है ।
हिन्दू धर्म के पवित्र शब्द ओम के संस्कृत रूप “ॐ” को अगर शीशे में देखें तो यह अरबी भाषा में लिखे गए “अल्लाह” की तरह दिखाई देता है ।यहाँ तक कि मुसलमानों में पवित्र माना जाने वाला “७८६” अंक भी “ॐ” से ही बना है | ध्यान देने वाली बात ये है कि कोई भी मुसलमान इस बात को स्वीकार नहीं करता कि ७८६ अंक वास्तव में हिन्दुओं का वैदिक प्रतीक ॐ है | कोई भी मुस्लिम बुद्धिजीवी ये नहीं बता पाता कि अगर ७८६ अंक ॐ नहीं तो आखिर क्या है | मुसलमान मक्का जाकर काबा के शिवलिंग की सात बार परिक्रमा भी करते हैं जो बहुत पहले से चला आ रहा है । गुरु शुक्राचार्य ने यक़ीनन इस्लाम से पूर्व पैदा हुए अरब क्षेत्र के लोगों को हिन्दू पूजा पद्धति सिखाई होगी।
मक्का से कुछ ही दूरी पर एक बड़ा साईन बोर्ड लगा है जिसपर लिखा है कि इस क्षेत्र में गैर मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित है। यह साइन बोर्ड उस समय का प्रतीक माना जाता है जब इस्लाम की शुरूआत हुई थी तथा यह भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि शुक्रचार्य ने भगवान शिव की दी हुई चेतावनी पर अमल करते हुए इस मंदिर के क्षेत्र में हिंदुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया होगा। जहां भगवान शिव का मंदिर होता है वहां पवित्र नदी का पानी भी पाया जाता है। हिंदु मंदिरों की यह परंपरा भी काबा से जुड़ी हुई है और मंदिर के साथ ही पवित्र पानी का श्रोत भी स्थित है जिसे जम-जम पानी के नाम से जाना जाता है।
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