12 मई 2016

अध्यात्म एक विज्ञान।

ऐसा लगभग सभी प्रचलित धर्म मानते हैं कि इसी मानव तन से मनुष्य सुभ कर्म करके स्वर्ग आदि लोकों  मे जाता है और इसी मानव तन से मनुष्य असुभ कर्म करके नर्ग  आदि लोकों मे जाता है ।इसी मानव तन से मनुष्य सन्यास आदि ग्रहण करके  ब्रह्म आदि लोकों मे जाता है और इसी मानव तन से ये जीव सतगुरु की भक्ति करके अमर लोक की प्राप्ति करता है। इसका मतलब है कि हर जगह पहुचने का माध्यम इस तन के अंदर है। इस तन को शास्त्रों मे दुर्लभ कहा गया है।देवता लोग भी इस मानव तन को पाने की चेस्टा करते हैं।इसका कुछ कारण है। यूँ तो दुनिया मे तमाम धर्म  प्रचलित है। धर्म आखिर क्या कहता है ?  धर्म जो भी कहता है वह परमात्मा से मिलने का सूत्र बताता है। धर्म ईस्वर मे लय होने की बात कहता है। यह मनुष्य इस मानव तन को प्राप्त करके  ईस्वर के पास कैसे जाना चाहता है ?  हम किन किन माध्यमों से, किन किन जरियों से और किन किन सूत्रों से परमात्मा की प्राप्ति करना चाहते है ?  मोक्ष और मुक्ति की प्राप्ति का अधिकारी केवल मनुष्य योनि ही है।शास्त्रों के अनुसार मानव के अतिरिक्त कोई भी मोक्ष प्राप्ति का प्रार्थी नही है। मनुष्य मोक्ष प्राप्ति के लिए आज क्या क्या उपक्रम कर रहा ह ? कोण कोण से सूत्र अपना रहा है ? हमको इस पर बारीकी से विचार करना होगा  ताकी वह उचित और अनुचित का विचार करके अपनी आत्मा का कल्याण कर सके और मुक्त हो सके। कभी कभी हम देखते है कि कुछ धर्मावलम्बी परधर्म की आलोचना करते है। हमको सभी धर्मों को ठीक से समझने की आवश्यकता है। जब हम सभी धर्मोँ को ठीक से समझेंगे तभी हम अपने विचारों के सही होने या न होने की बात की अन्य धर्मो से तुलनात्मक निर्णय कर सकेंगे।जब हमको उन विषयों का ज्ञान ही नही होगा तो हमको निर्णय लेने मे परेशानी आएगी। यूँ तो दुनिया मे नाना धर्म और मतमतान्तर हैं । देखते है कि धर्म परमात्मा प्राप्ति के क्या संसाधन और सूत्र बताते है। दुनिया मे पाँच प्रमुख धर्म प्रचलित हैं हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाइ और बौद्ध धर्म। हर धर्म के अपने धर्मशास्त्र हैं। ईसाइयो का बाइबिल, मुसलमानो का कुरान शरीफ, बौद्धों का अष्टाङ्ग योग और हिंदुओं के वेद, पुराण, गीता और रामायण।सिखों का गुरु ग्रन्थ शाहिब।कुछ न कुछ सभी धर्म कह रहे है। सभी धर्मों का रहन गहन, सोच व् क्रियाएँ, मान्यतायें और साधना पद्धति है।किसकी भक्ति कर रहे हैं ये भी है। ईसाई लोग कह रहे हैं कि मेरा आकाशीय पिता। मे उनका पुत्र हूँ।वो निराकार को मान रहे हैं।उनका साधन सूत्र विस्वास है।वो ईसा मसीह पर विस्वास करके कह रहे हैं कि पार हो जाओगे। उनका क्रिया तंत्र सुभकर्म है, किशी का बुरा न करो,किशी को सताओ नही,किशी को दुःख न दो,परमार्थ करो, उनके खानपान मे मासाहार प्रमुख है।प्रार्थना को महत्व देते हैं। सब इकट्ठे होकर प्रार्थना करते हैं।मुख्य धाम बैकुंठ है। वे मानते है कि स्वर्ग का राज उसी का है जो उदगार हृदय है, यानी मन, वचन और कर्म से किशी को भी दुःख देने से मना कर रहे हैं। दूसरा प्रमुख धर्म है इस्लाम। शास्त्र कुरान शरीफ है
 धर्म के अधिष्ठाता मोहम्मद हज़रत साहब है।मान्यता है कि कुरान शरीफ के अंदर जो भी शब्द है,वह हज़रत मुहम्मद साहब ने खुदा से सुने थे जब फरिस्ते उनकी आत्मा को सात आकाश पार खुदा मियां राजा के पास ले गए थे।वहां खुदा ने उनका हृदय साफ़ किया और ज्ञान बृधी की और वही ज्ञान वही आयतें कुरान शरीफ के अंदर हैं।उनकी मान्यता है कि कुरान शरीफ के अनुसार जीवन जियें तो आपका कल्याण होगा और खुदा के पास जाओगे। उनकी उपासना पद्धति नमाज़ है। परहेज़ वो इस बात का करते है कि केवल खुदा है और किशी को नही मानना है। जितनी भी बाहरी चीज़ें है वे बुतपरस्ती है। खुदा को न मानने वाला नास्तिक है, काफ़िर है। प्रार्थना दिन मे पांच बार नमाज़ अता करनी है।खुदा के पास जाने का सूत्र प्रार्थना है। इबादत की विधी नमाज़ है।उनका मानना है कि जो भी क़ुरान शरीफ मे लिखा है उसको नही मानोगे तो खुदा के कुफ़्र के पात्र बन जाओगे।समानता की बात कर रहे हैं। तीसरा प्रमुख धर्म है बौद्ध। बुद्धिष्ठ धर्म के अधिष्ठाता महात्मा गौतम बुद्ध हैं।वह लोग आत्मा को ही सर्वोपरि मानते हैं और कहते हैं कि हमारी आत्मा ही सब कुछ है, क्योकि भगवान, खुदा, गॉड को किशी ने देखा नही है ।इसलिए  बुद्ध धर्म के अष्टाङ्ग योग मे परमात्मा का कोई जिग्र्र नही है। बोध गया मे महात्मा बुद्ध ने आत्मा का साक्षात्कार किया था।उनकी उपासना पद्धति विचार और ज्ञान द्वारा इंद्रियों का निग्रह करके आत्मसुद्ध रूप को जानना है। बोद्ध धर्म के लोग महात्मा गौतम बुद्ध को अपना भगवान मानते हैं।वे सारूप्य मोक्ष की प्राप्ति को अपना उद्देश्य मानते हैं और कहते है कि इसको आत्मनिष्ठ होकर ही प्राप्त किया जा सकता है परंतु 14 इंद्रियों पर नियंत्रण करना होगा। चोथा प्रमुख धर्म है हिन्दू सनातन धर्म।सनातन धर्म के अनुसार श्रीमद् भगवत गीता कर्म योग की तरफ तो वहीं रामायण भक्ति योग की तरफ प्रेरित करता है।वेद जीवन की आचार संहिता का ज्ञान देते है। हिन्दू धर्म मे ईस्वर को पूजने के 2 सिद्धांत है पहला सगुण वाद और दूसरा निर्गुण वाद। वेदों के अनुसार ईस्वर को अनादि अनंत कहा गया है। चारों वेदों की मान्यतायें अलग है। वेदों की उत्पत्ति का आधार निराकार सत्ता है।जिस प्रकार ब्रह्मा ने जब वेद लिखे तो चारों दिशाओं से शब्द सुने थे। जिस प्रकार ब्रह्म और ब्रह्मा के बीच एक सूक्ष्म पर्दा था उसी प्रकार हज़रत मोहम्मद शाहिब और खुदा के बीच एक सूक्ष्म पर्दा था। इस प्रकार ब्रह्मा ने शून्य से शब्द सुने थे उसकी संख्या अस्सी हज़ार है ये सभी कर्म कांड से सम्बंधित है, और संसार मे हमको कैसे जीना है, जीवन शैली कैसी होनी चाहिए, कार्य कैसे करने हैं, मौसम क्या हैं,खेती बाड़ी कैसे करना है इत्यादि सब कुछ उसमे है। वेदों मे सब कुछ है और वेदों से बाहर कुछ भी नही है। हाँ वेदों के बाहर संतों ने भेद कहे हैं। चोथा प्रमुख धर्म है सिक्ख। गुरु को सर्वोच्च मानते है। वीरता कर्म है। प्रार्थना अरदास है। सिक्ख धर्म की मर्यादायें हिन्दू सनातन धर्म से जुडी हुई है। जहाँ तक सभी धर्मों की बात की जाये तो ईस्वर, खुदा, गॉड, गुरु और आत्मा तक पहुचने का वहां जाने का सूत्र क्या है यह प्रश्न पूछने पर खामोशी छा जाती है कि किस वेग से जायेंगे ?साधन क्या होगा ? । क्या हम केवल मान लें ?  क्या इसका कोई प्रमाण है ?  सभी धर्मों का जबाब मिलता है कि आप विशवास रखो। विश्वास तो प्रमुख है ही। आखिर हमारी आत्मा परमात्मा तक जाती कैसे है ? कोण आत्मा को परमात्मा तक ले जाता है ? क्या परमात्मा हम तक खुद आते हैं या हम परमात्मा तक खुद ही जाते हैं  या कोई ताकत हमको वहां पहुचाती है ? अगर हम मरने के बाद परमात्मा तक जाते है तो क्या हम जीवित अवस्था मे परमात्मा की प्राप्ति नही कर सकते ? मोहम्मद हज़रत शाहिब किस तरह सात आकाशों का सफर करके खुदा मियां राजा तक पहुचे थे ?  यहाँ उत्तर साफ़ साफ़ नही मिल रहा है। हर मनुष्य चाहता है कि भगवान के पास जाना है, ब्रह्म मे लींन होना है। माकूल जबाब न मिलने की वजह है। वर्तमान मे धर्म का सन्देश देने वाली कोण कोण सी टोलियां है कोण से व्यक्तित्व है?  यह एक धर्म की समस्या नही है।यह समस्या सभी धर्मों मे व्यापक समस्या है। आज धर्म क्षेत्र मे व्यवसाय आ गया है।जो उपदेशक हैं वो यथार्थ मे चैतन्य नही हैं। वे व्यवसायिकता के तौर पर  धर्म का कार्य कर रहे है क्योकि इस क्षेत्र मे बहुत धन है। इस कारण यहां पर मनुष्य भटक गया है। जितनी व्यवसायिकता आज समाज मे धर्मक्षेत्र मे आ चुकी है, जितना दूषित धर्म का वातावरण आज वर्तमान मे है इतना पहले कभी नही था।

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