31 मई 2016

इस्लाम पर डॉ अम्बेडकर के विचार।

                                                                           
     
जब से धर्मों का धारण सुरु हुआ है ,हिन्दू मुस्लिमो का एक होना बड़ी टेड़ी खीर हो गया है क्योंकी दोनों धर्मो के आपसी विचार,खान पान, रहन सहन अधिकतर बातों पर एक दुसरे के विपरीत होते है। इस बात से आपस मे मिलजुलकर रहने की दिशा मे विकृति पैदा हो जाती है और खुसनुमा माहोल दूषित ही जाता है। कुछ देशों जैसे यूनान, तुर्की और बुल्गारिया ने साम्प्रदायिक समस्या को पटरी मे लाने के लिए अपने देस के लोगों को वापस बुलाकर इस्लाम को मानने वाले लोगों को उनके देश भेज भी दिया । डॉ अम्बेडकर ने भी संविधान लिखने से पहले इन सब बातों पर गोर किया था। जो उन्होंने अपनी किताब के खंड 151, आंबेडकर सम्पूर्ण वाग्यम मे इसको आकार दिया। हिन्दू मुस्लिम एकता एक असम्भव कार्य है। भारत से मुसलमानो को पाकिस्तान भेजना और हिंदुओं को वहां से बुलाना ही एक मात्र हल है।सांप्रदायिक शांति हेतु अदला बदली के इस महत्वपूर्ण कार्य को न अपनाना अत्यंत उपहास्यपद होगा। विभाजन के बाद भी भारत मे साम्प्रदायिकता बनी रहेगी।पाकिस्तान मे रुके हुए अल्पसंख्यक हिंदुओं की रक्षा कैसे होगी। मुसलमानो के लिए हिन्दू काफ़िर है और सम्मान के योग्य नही हैं।मुसलमानो की भात्र भावना केवल मुस्लिम के लिए है।कुरान गैर मुस्लिम को मित्र बनाने का विरोधी है इसलिए हिन्दू सिर्फ घृणा और शत्रुता के योग्य है।मुसलमानो की निष्ठा भी केवल मुस्लिम देशों के प्रति रहती है। सच्चे मुसलमानो को इस्लाम भारत देश को अपनी मातृभूमि और हिंदुओं को अपना निकट संबंधी मानने की आज्ञा नही देता।यही कारण था कि मौलाना मुहम्मद अली जैसे भारतीय मुस्लमान ने अपने शरीर को भारत के बजाय येरूसलम मे दफ़नाना अधिक पसंद किया। मुस्लिम कानूनों के मुताबिक़ भारत हिन्दू और मुसलमानो की समान मात्रभूमि नही हो सकती। 

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