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30 जून 2016

हथौड़े से तोड़ दिया गया दुनिया का सबसे ऊंचा सीसे से बना पुल


बड़ी बड़ी विशालकाय ढांचागत इंजीनियरिंग की दिशा मे चलते चीन  दुनिया में अलग ही पहचान बना रहा है। यहां अभी कुछ ही समय हुआ है, जब पहाड़ की दो चोटियों को ऐसे पुल से जोड़ा गया, जो पूरी तरह से कांच के बना था और पारदर्शी भी था । अभी कुछ दिन पहले इस पुल को तोड़ डाला गया और इसके लिए कोई भारी भरकम घन या अन्य औज़ार नही बल्कि  हथौड़े मंगाए गए थे ।और इससे भी मज़ेदार यह बात रही कि  टूटने के बाद भी यह पुल इतना मजबूत बना रहा कि इस पर लोग पैदल चल सकें।
ये पुल चीन के झैंगजिआजी स्थित तिएनमेंशन नेशनल फॉरेस्ट पार्क में है। जो 430 मीटर लंबा है। ये पुल दो पहाड़ियों को जोड़ता है, ताकि पर्यटक एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ पर जा सके। दोनों पहाड़ों तो जोड़ने वाला ये पुल बेहद रोमांचकारी है। ये पुल पूरी तरह से कांच का बना हुआ है , जिसमें आप खड़े खड़े बड़ी बड़ी गहरी और खतरनाक घाटियों को देख कर रोमांच का अनुभव कर सकते हैं। इस पुल पर चलने वाले व्यक्ति को लगेगा कि वो आसमान में चल रहा है। उसके पैरों के नीचे बेहद गहरी और डरावनी घाटी दिखती है। पर चीनी इंजीनियरों के ये पुल पिछले साल जुलाई में आम लोगों के लिए खोला था जो इस तरह का दुनिया का सबसे ऊंचा पुल है। इस पुल को बनाने में सीसों के 99 टुकड़े लगे हुए हैं, जो 3 मीटर लंबे और 4.5 चौड़े हैं। इस पुल के नीचे ही 300 मीटर गहरी घाटी है। जो पुल से बेहद डरावनी लगती है, इतनी डरावनी कि पुल पर खड़े व्यक्ति के रोंगटे खड़े हो जाएं।
बहरहाल, इस पुल को इसलिए तमाम लोगों की मौजूदगी में तोड़ा गया, ताकि इसकी मजबूत और सुरक्षात्मक ढांचे को परखा जा सके। इस पुल के अधिकारी चेन झिंडोंग ने बताया कि पुल के सीसे टूटने के बावजूद बिखरे नहीं और उसपर से लोग आराम से आ सकते हैं।
अधिकारी ने बताया कि कांचो को तोड़ने के लिए 5.5 किलो के हथौड़े का प्रयोग किया गया। पर ये दरकने के बाद भी नहीं टूटा। इसमें कांच की 3 परतें लगी हुई हैं, जो पहली परत टूटने के बाद भी किसी भी वजन को संभाल सकते हैं। तभी तो, टूटे पुल पर 2 टन वजनी वाहन गुजर गया और उसे कोई फर्क नहीं पड़ा।
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29 जून 2016

वैदिक धर्म की प्रमाणिकता !


 इस तथ्य  को  विश्व के सभी इतिहासकार , धार्मिक विद्वान् ,और वैज्ञानिक स्वीकार कर चुके हैं कि वैदिक धर्म सबसे  प्राचीन  धर्म है और सभी धर्मों का मूल आधार है।  वेदों  के  सिद्धांत  भी विज्ञानं  की कसौटी पर खरे पाए गए  हैं  क्योंकि ब्रह्मा जी ने चारों दिशाओं से सब्द सुने थे जिनको उन्होंने लिखा जो आगे चलकर वेदवाणी कहलाई ।इनके सिद्धांत  सार्वभौमिक  और  अटल हैं और एकेश्वरवाद (Monotheism )   पर आधारित  हैं।
लेकिन बड़े  दुःख  की बात है कि वेदों की वैदिक संस्कृति का अक्षरत्या पालन करने वाले सनातनी वैदिक  सिद्धांत एकोहम् बहुस्यामः को जानते हुए एक  ईश्वर  की जगह , भूत प्रेत समसान व्  कब्रों  तक  की पूजा  करते है मान्यता है कि ईस्वर सर्वत्र व्याप्त है परंतु  मुसलमान लोग केवल एक के अलावा अन्य देवी देवताओं को बुत परस्ती कहते है और ऐसा करने वाले  हिन्दुओं  को काफ़िर  कहते हैं .  एकेश्वरवाद  एक वैदिक  सिद्धांत  है , जो भारत से निकल  कर ईरान  से होते हुए  पुरे मध्य  एशिया  तक  फ़ैल  गया  था। जिसे  इस्लाम ने भी  स्वीकार  कर लिया। बाद में सिख  धर्म  ने भी  एकेश्वरवाद  की पुष्टि  कर दी  और कहा कि बगैर गुरु को धारण किये बगैर आप ईस्वर प्राप्ति आसानी से नही कर सकेंगे। इसलिए गुरु करना जरूरी है । ईस्वर प्राप्ति के मार्ग मे यदि  सतगुरु मिल जाये  तो  सोने मे सुहागा हो जाये।

प्रमाण  के  लिए उपनिषद् , कुरान  और श्रीगुरु  ग्रन्थ  साहब    के ऐसे  अंश  दिए  जा रहे हैं  ,जिनमे    कुछ  शब्दों  के अंतर  जरुर हैं  ,लेकिन  सबका आशय  और भाव  एक  ही है .
1-वैदिक धर्म 

“दिव्यो ह्य मूर्तः पूरुषः सबाह्यान्तारो ह्यजः ,
अप्रमाणो ह्यमनाः  शुभ्रो ह्यक्षरात परतः परः .
मुण्डकोपनिषद -मुण्डक 2 मन्त्र 2 
 अर्थ -”ईस्वर सर्वत्र व्याप्त है ,वह जन्म के विकार से रहित उसके न्   तो   प्राण  हैं ,न इन्द्रियां  है ,न मन है  और न ही वह स्त्री है और न पुरुष। वह इनके विना  ही सब कुछ  करने में समर्थ  हैं ।वह क्षर पुरुष तो है ही बल्कि वह अक्षर यानि अविनाशी पुरुष भी  हैं और जीवात्मा के रूप मे सर्वत्र व्याप्त है।
इसी  प्रकार एक और जगह कहा गया है ,
” न तस्य कश्चित् पतिरस्ति  लोके ,
न चेशिता नैव च  तस्य लिङ्गम ,
स कारणम करणाधिपाधिपो ,
न चास्य   कश्चित्जनिता न चाधिपः 
श्वेताश्वतर  उपनिषद -अध्याय 6  मन्त्र 9 

अर्थ -“सम्पूर्ण  लोक में उसका कोई स्वामी  नही है और न कोई उसपर शासन  करने वाला  है। वही कारण और सभी कारणों  का अधिपति  है। न  किसी ने उसे जन्म दिया है और न कोई उसका  पालक ही है ।
2-इस्लाम 

قُلْ هُوَ اللَّهُ أَحَدٌ ١ اللَّهُ الصَّمَدُ ٢ لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ ٣ وَلَمْ يَكُنْ لَهُ كُفُوًا أَحَدٌ ٤ “
سورة الإخلاص   -112:
“कुल हुवल्लाहू अहद .अल्लाहुससमद .लम यलिद  व् लम यूलद .व् लम यकुन कुफ़ुवन  अहद 
“सूरा  इखलास -112

अर्थ -कह दो कि अल्लाह एक है ,अल्लाह निराकार और सर्वाधार है ,उसकी कोई औलाद नहीं है और न वह किसी की औलाद है .और कोई ऐसा नहीं  जो उसके  बराबर हो ।यहां पर प्रतिस्पर्धा की भावना आ गयी, जो कि सुख, शांति और आनंद मे बाधक है।
3-सिख धर्म 

ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ਜਪੁ ॥ ਆਦਿ ਸਚੁ ਜੁਗਾਦਿ ਸਚੁ ॥ਹੈ ਭੀ ਸਚੁ ਨਾਨਕ ਹੋਸੀ ਭੀ ਸਚੁ ॥੧

 ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर प्रसादि ॥ जपु ॥ आदि सचु जुगादि सचु ॥ है भी सचु नानक होसी भी सचु ॥॥ १॥
श्रीगुरुग्रंथ  साहब – मूलमन्त्र 

अर्थ -इश्वर  है ,उसका  नाम ओंकार  और सत्य है .वह जगतका कर्ता  है, निर्भय है ।वर हर प्रकार के वैर से  रहित काल  से परे है ,वह अजन्मा और स्वयंभू है .गुरु  के प्रसाद  से उसी के नाम  का जाप करो ।वह ईश्वर  प्रारंभ  में भी सत्य  है और युगों  तक सत्य ही  रहेगा “
वेद  और  कुरान  के  उदाहरण  देने से  हमारा उदेश्य किशी एक धर्म  को वैध  सिद्ध  करना  नहीं है  और उसका महिमामंडन  करना भी  नहीं  है ।
 यह वैदिक  ज्ञान जो सबसे प्रारंभिक और पुरातन ज्ञान है,  भारत से ही अरब  और अन्य देशों मे गया  था । दूसरों का धन चुराने  वाले को धनवान  नहीं कहा जा सकता ।जहाँ तक  श्रीगुरु  ग्रन्थ साहब की बात  है ,तो उसमे ऐसी हजारों  बातें मौजूद है ,जो वेदों की  शिक्षा  से मेल खाती हैं ।
हमारा  वास्तविक उदेश्य तो   उन हिन्दुओं    को धर्म   के बारे में सही  बात बताना है ,जो पाखंड  को ही धर्म  समझ रहे हैं और धर्म  की जड़  काट  कर  पत्तों  की सिंचाई  कर रहे हैं .और  ईश्वर की उपासना  की जगह अनेकों देवी देवता , भुत प्रेत , पैगम्बर, पीर , क़ुतुब, औलिया  और कब्रों  पर भी सर  झुकाते  है , इनके लिए गीता  में कहा गया है ,
यजन्ते सात्त्विका देवान्यक्षरक्षांसि राजसाः।
प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये जयन्ते तामसा जनाः॥17/4
अर्थात  सात्विक  लोग तो सिर्फ ईश्वर की उपासना  करते हैं और राजसी लोग  यक्ष ,रक्ष ( semi gods )  की पूजा करते हैं , जो सिर्फ कल्पित व्यक्ति यानि अर्ध मानव  है और सबसे निकृष्ट  वह तामसी लोग हैं वह  भूत यानि  मुर्दों  की कब्रों ,इत्यादि की पूजा  करते  है और तंत्र मन्त्र टोना टुटका झड़ी को मानते है और उस पर विस्वास करते हैं।
यही नहीं अज्ञानी लोग मुसलमानों की नक़ल  करके  भूखे रहने  को ही तप समझते  है ।कोई भी धर्म ग्रन्थ हमको भूखा रहकर ईस्वर प्राप्ति को पाने की इज़ाज़त नही देता। यह तो मात्र मन का सुधीकरण और मन को विचलित होने से बचाने के लिए जप, तप और व्रत, रोजा इत्यादि का नियम बनाया गया है क्योंकि मन ही ईस्वर प्राप्ति मे सबसे बड़ा बाधक है।  अक्सर देखा गया है कि कुछ लोग  दिन भर तो भूखे रहते हैं और शाम  को चौगुना भोजन खा लेते है ।
अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जनाः।
दम्भाहङ्‍कारसंयुक्ताः कामरागबलान्विताः॥17/5

अर्थात  शास्त्र विरुद्ध  होने पर भी  किसी की देखादेखी  जो लोग घोर तप्  करते  हैं ,वह पाखंडी ,अहंकारी और दिखावे  की कामना  से करते हैं , यह तप नहीं  है .क्योंकि योग सूत्र  में कहा है ,”सुखे  दुखे  समौ भूत्वा  समत्वं  योग उच्यते “   यही  गीता   में कहा है
,
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ॥3/28

अर्थात  सुख और दुःख , हार  और जीत , लाभ और हानि  की परवाह  किये बिना  ही धर्म की रक्षा के  लिए हम युद्ध  करेंगे  तो हमें  कोई पाप  नहीं  लगेगा ।
यानी पाप  तो तब  लगेगा  जब  हम   मूक दर्शक  बने तमाशा  यानि देखते  रहेंगे या सोचते  रहेंगे कि यदि हम सत्य और धर्म का साथ देंगे तो हमें सम्प्रदायवादी   कहेंगे .
भर्तरि शतक  में एक श्लोक  है ,
“निन्दन्तु  नीति निपुणा , यदि  वा स्तुवन्ति , 
लक्ष्मी  समाविशतु   गच्छतु वा यथेष्टम 
अद्यैव  मरणमस्तु युगान्तरे   वा  
न्यायात पथः प्रविचलन्ति पदम् न  धीराः .
अर्थात – चाहे बातों  में निपुण  लोग हमारी निंदा करें  या हमारी तारीफ़ करें ,चाहे हमारे पास धन  का भंडार  हो जाये या हम  कंगाल  हो  जाएँ ,और चाहे हम आज  ही मर जाएँ , या युगों  तक जीवित रहें . लेकिन  सत्य के मार्ग  से कभी विचलित   नहीं  हो सकते .
और यदि मानते  हैं  कि  वैदिक धर्म  प्रमाणिक  है तो उसको बचाने , और धर्म के बहाने होने वाले  आतंक  का विरोध  करिए
हमें उपलब्ध सभी साधनों  का उपयोग  करके  देश द्रोहियों  और धर्म  के शत्रुओं  का मुकाबला करना होगा ।यही धर्म  है
 “विनाशाय च दुष्क्रताम “
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पाकिस्तान जंग के जरिये हिंदुस्तान से कश्मीर को फतह नही किया जा सकता। पूर्व विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार

                पाकिस्तान  भले ही कश्मीर को लेकर कितना भी राग अलाप ले, लेकिन एक सच्चाई ये है कि पाक खुद जानता है कि भारत और पाक के बीच जंंग हुई तो सबसे ज्यादा नुकसान उसका ही होगा. पाक की पूर्व विदेश मंत्री हिना रब्बानी का भी मानना ह कि Pakistan जंग के जरिए कभी भी कश्मीर को हासिल नहीं कर सकता. इस मामले पर सिर्फ बातचीत करके ही हल निकाला जा सकता है.
Pakistan के चैनल जिओ न्यूज को दिए इंटरव्यू में पाक की पूर्व विदेश हीना रब्बानी ने कहा कि मेरा मानना है कि जंग करके Pakistan कश्मीर को हासिल नहीं कर सकता है. और अगर इसके अलावा किसी दूसरे विकल्प को देखें. तो वो सिर्फ और सिर्फ बातचीत ही है. उन्होने कहा कि बातचीत के जरिए हम एक दूसरे में विश्वास की जान भर सकते हैं.
हीना रब्बानी ने दावा किया कि जब उनकी सरकार थी तो Pakistan की तरफ कुछ ढील दी गई थी. उन्होने कहा कि हमने वीजा नियमों में ढील दी थी. व्यापारिक संबंधों को मजबूत किया था. दोनों देशों के बीच रिश्तों को सुधारा था. लेकिन इस सरकार ने दोनों देशों के तनाव को कम करने की कोई कोशिश नहीं की. मुलाकाते जरूर हुई लेकिन असर कुछ नहीं दिखा.
साल 2011-2013 तक के बीच पाक की विदेश मंत्री रही हीना रब्बानी ने कहा कि कश्मीर मसले को लगातार बातचीत के जरिए ही सुलझाया जा सकता है. खार का मानना है कि दोनों तरफ से बातचीत के जरिए ही एक दिन ऐसा आएगा कि इस मामले का हल निकाल लिया जाएगा. भारत अमेरिका के संबंधों पर बोलते हुए हीना रब्बानी ने कहा कि अमेरीका भारत और चीन की आर्थिक शक्ति बढ़ने के कारण उनकी तरफ झुक रहा है. Pakistan को खुद से ये सवाल पूछना चाहिए.
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28 जून 2016

पाकिस्‍तान में प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले इस लेखक ने लिख दिया एेसा उपन्‍यास, दंग रह गई दुनिया..!



दो साल पहले ही उदास नस्लें की सिल्वर जुबली एडिशन सामने आई थी। यह नावेल  जितनी पाकिस्तान में मशहूर थी, उतनी ही हिन्दुस्तान में भी। “उदास नस्लें”  की 50 बरस का पाठक विस्तार पा लिया और इस दौरान हर पीढ़ी के पाठकों ने इसे सराहा। इससे यह बात एक बार फिर साबित हो गयी कि रचना में अगर जान हो तो बगैर किसी लाबी, प्रोपोगेंड़ा और मीडि़या की मदद के भी एक नॉवेल  अपने बलबूते पर ही लम्बे समय तक जिंदा रह सकती है।
                                   
चंद बरस पहले अब्दुल्ला हुसैन ने कराची लिटरेचर फेस्टीवल में “उदास नस्लें” के बारे में चर्चा करते हुए कहा था कि उन्होंने यह नॉवेल 1956 में उस वक्त लिखा था, जब वो एक निजी कंपनी में काम करते थे और उनकी डयूटी किसी वीराने इलाके में थी, तब उन्होनें अपनी उकताहट से तंग आकर एक कहानी लिखने के इरादे से कलम उठाई थी, लेकिन चंद पन्ने लिखने के बाद ही उनके जहन में अचानक “उदास नस्लें” की कहानी फ्लैश की सूरत में गुजरी और नॉवेल का पूरा सांचा दिमाग में आ गया। इस तरह से यह नॉवेल 1961 में पूरी हुई। जब उन्होनें यह लिखना शुरू किया था तो उनकी उम्र 25 साल की थी।
“उदास नस्लें” की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे आम पाठकों के साथ-साथ साहित्य के बड़े पारखियों से भी सराहना मिली। “उदास नस्लें” जब प्रकाशित हुई तो कृष्णचंद्र,आल अहमद सरवर और राजेन्द्र सिंह बेदी जैसे शख्सीयतों को भी इसने प्रभावित किया। कृष्णचंद्र ने तो अब्दुल्ला हुसैन को एक खत लिखा, जिसमें वे लिखते हैं ‘‘मोहतरम अब्दुल्ला हुसैन साहेब आप कौन है? क्या करते हैं? अदब का मसगला कब से इख्तियार किया? और किस तरह आप एक शोले की तरह भड़क उठे? अपना कुछ अता-पता तो बताइये। उदास नस्लें पढ़ रहा हूं, लेकिन उसे खत्म करने से पहले मुझे ये मालूम हो चुका है कि उर्दू अदब में एक आला जौहर दरियाफ्त हो चुका है।’’
इसी तरह से उर्दू के शीर्ष आलोचक शमसुर रहमान फारुकी ने एक बार कहा था कि “जिन साहित्यकारों को पढ़ कर वो रश्क करते थे, उनमें अब्दुल्ला हुसैन भी शामिल हैं।’’ पाकिस्तान के मशहूर शायर और नाटककार अमजद इस्लाम अमजद ने अब्दुल्ला हुसैन के योगदान पर कहा है कि ‘‘हमारे जैसे समाज में जहां पढ़ने वाले अपेक्षाकृत कम हैं और किताबें भी कम बिकती हैं, वहां 50 बरस तक लोगों के दिलों में जगह बनाना बहुत बड़ा कारनामा है और अब्दुल्ला हुसैन उन चंद लोगें में से एक हैं जिन्होनें ये कारनामा अंजाम दिया है।’’
“उदास नस्लें” जब प्रकाशित हुई तो इसकी भाषा विशेषकर इसमें मिलावट को लेकर सवाल उठाये गये और कहा गया कि इसमें पंजाबी शब्द ज्यादा हैं, उर्दू के आलोचक मुजफ्फर अली ने तो यहां तक कह दिया था कि “लेखक को नॉवेल लिखने से पहले उर्दू सीख लेनी चाहिए थी।”
दरअसल शुरू से ही उर्दू के साथ एक खास तरह की शुद्धतावादी रवैया हावी रहा है और इस बात पर खास ध्यान दिया जाता रहा है कि कहीं इसमें आंचलिक या देहातीपन की परछाई ना पड़ने पाये। जबकि उर्दू खुद ही ‘लश्करों की भाषा’ के तौर पर विकसित हुई है और कई भाषाओं से मिल कर बनी है। इस बारे में अब्दुल्ला हुसैन ने एक बार कहा था कि ‘‘मैंने जब नॉवेल लिखना शुरू किया था, तो मुझे बहुत अच्छी उर्दू नही आती थी, उल्टी सीधी जबान लिखी। मुझे भरोसा भी नही था कि इसे इतना पसंद किया जाएगा। मेरी खुशकिस्मती रही कि लोग पुराने जबान से जिसमें बड़ा लच्छेदार विवरण होता था तंग आये हुए थे इसीलिए उन्हें मेरी जुबान सुलभ महससू हुई और उन्होनें उसे सराहा”।
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27 जून 2016

भारतीय वायुसेना की पहली महिला फाइटर पायलट

मोहना, अवनी और भावना बनीं भारतीय वायुसेना की पहली महिला फाइटर पायलट, रचा इतिहास

आसमान हो या धरती महिलाएं हर जगह अपनी अलग पहचान बनने में सफल हो रही हैं. इस फेहरिस्त में एक नई मिसाल और शामिल हो गई है. आज सुबह महिला फाइटर पायलटों का पहला जत्था भारतीय वायुसेना में शामिल हो गया.
 हैदराबाद के हकीमपेट में स्थि‍त एयरफोर्स अकादमी में शनिवार सुबह पासिंग आउट परेड की शुरुआत हुई. रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर भी अकादमी पहुंचे. उन्होंने पासिंग आउट परेड का निरीक्षण किया. जिसके बाद देश के नभ को सुरक्षि‍त रखने का जिम्मा पहली बार तीन महिला पायलटों को सौंप दिया गया. उसके बाद हिन्दुस्तान की इन तीनों बेटियों ने आसमान में इतिहास रच दिया. बिहार के बेगूसराय की भावना कंठ, मध्यप्रदेश के रीवा की अवनी चतुर्वेदी और वडोदरा की मोहना सिंह पहली बार वायुसेना में बतौर फाइटर प्लेन पायलट कमीशन हो गई हैं. दिल्ली के एयरफोर्स स्कूल से अध्ययन करने वाली मोहना सिंह के पिता भी भारतीय वायुसेना में हैं. जबकि भावना ने एमएस कॉलेज बेंगलुरु से बीई इलेक्ट्र‍िकल और अवनी चतुर्वेदी ने राजस्थान के टॉक जिले में वनस्थली विद्यापीठ से कंप्यूटर साइंस की डिग्री हासिल की है.
ये तीन महिलाएं देश की पहली महिला फाइटर पायलट होगीं. पिछले साल अक्टूबर में सरकार ने महिलाओं को बतौर फाइटर पायलट वायुसेना में लेने की मंजूरी दी थी. 2400 किमी की रफ्तार से उड़ने वाले भारतीय वायुसेना की शान सुखोई को उड़ाने का मौका अभी तक देश के सबसे बेहतरीन पायलट्स को ही मिलता है. एयरफोर्स एकेडमी डुंडीगल में 120 कैडेट्स चुने गए थे. महिला कैटेड्स भी इन्हीं में शामिल थीं. एयर चीफ मार्शल अरूप राहा ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर तीनों को फाइटर पायलट की ट्रेनिंग का ऐलान किया गया था. अब इनकी एक साल की एडवांस ट्रेनिंग कर्नाटक के बीदर में होगी.अवनी चतुर्वेदी, भावना कंठ और मोहना सिंह ने मार्च में ही लड़ाकू विमान उड़ाने की योग्यता हासिल कर ली थी. इसके बाद उन्हें युद्धक विमान उड़ाने का गहन प्रशिक्षण दिया गया. यह पहला मौका होगा जब भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान की कॉकपिट में कोई महिला बैठेगी. वायुसेना में करीब 1500 महिलाएं हैं, जो अलग-अलग विभागों में काम कर रही हैं. 1991 से ही महिलाएं हेलीकॉप्टर और ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट उड़ा रही हैं, लेकिन फाइटर प्लेन से उन्हें दूर रखा जाता था 

सूत्रों के अनुसार, सशस्त्र बलों में महिलाएं बेहद कम हैं. भारतीय वायुसेना में करीब 1350 महिला अधिकारी हैं, जबकि थल सेना में 1300 और नौसेना में इनकी संख्या 450 है. गौरतलब है कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बजट सत्र की शुरुआत में संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित करते हुए कहा था कि भविष्य में सेना के सभी वर्गों के लड़ाकू दस्ते में महिलाओं को शामिल किया जाएगा..
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26 जून 2016

मुस्लिम शख्स की भगवान शिव के लिए अटूट आस्था ।


अल्लाह हू अकबर हो , प्रभू ईसू हो या  भगवान, इनके  नाम बसर्ते अलग है पर भाव तो एक ही हैं। ये तो हम इंसानों द्वारा बनाई गई दूरी है l केवल बात सिर्फ विशवास की है ।आप जिस पर विशवास करें जिसकी भक्ति करें, जिस पर आपकी आस्था हो , वो ही सच हैं  हिन्दू-मुस्लिम तो सिर्फ एक नाम है हम सब एक है और इस बात को आज एक मुस्लिम शख्स ने अपनी आस्था और भक्ति  से सच साबित कर ही दिया। एक मुस्लिम शख्स जिसकी अल्लाह के साथ- साथ भगवान शिव में भी उतनी ही आस्था है वह सच्चा भक्त नित्य मस्जिद के साथ-साथ मंदिर भी जाता है l खुद ही नहीं बल्कि वो अपने दोस्तों और परिजनों को भी मंदिर जाने के लिए कहता है और उसके प्रयासों  के चलते उसने भगवान शिव का मंदिर बना दिया l

अकबर खान उम्र 39 साल मुश्किलें आने पर न सिर्फ मस्जिद में इबादत करते हैं बल्कि भगवान शिव से प्रार्थना भी करते हैं। वह अपने दोस्तों के साथ मंदिर भी जाते थे, इसी श्रद्धा का नतीजा है कि उन्होंने भगवान शिव का मंदिर बनवाया है। उन्होंने 30 अप्रैल को भगवान शिव का मंदिर का लोकार्पण भी किया। इससे पहले अकबर खान ने टोंक में भगवान गणेश के लिए एक कलश यात्रा, यज्ञ और भजन संध्या का आयोजन किया है। खान को ठीक-ठीक याद नहीं है कि उन्होंने शिव की पूजा कबसे शुरू की। हमारे सहयोगी अखबार से बातचीत में उन्होंने बताया कि जब भी वह भावनात्मक या आर्थिक तौर पर संकट से गुजरते थे तो भगवान शिव को याद करते थे।

 अकबर सांप्रदायिक सद्भाव की जरूरत पर बल देते हुए कहते हैं कि अल्लाह कहो या राम, क्या फर्क पड़ता है। उसके बनवाए इस भगवान शिव का मंदिर का नाम ‘भूतेश्वर महादेव’ है और ओम विहार कॉलोनी में 100 स्क्वेयर मीटर में फैला हुआ है। मंदिर में न सिर्फ भगवान की बल्कि पूरे शिव परिवार की मूर्तियां हैं। उन्होंने कहा कि मैं भगवान शिव का शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने इस काम के लिए मुझे चुना। मैंने किसी से आर्थिक मदद लिए बिना यह भगवान शिव का मंदिर बनवाया है। ओम विहार कॉलोनी में कोई मंदिर नहीं था इसलिए मैंने इस जगह को चुना। मंदिर के लिए मैं दौसा के सिकंदरा से मूर्तियां लेकर आया। खान टोंक में एक स्कूल चलाते हैं। अब अगर ऐसी ही सोच हर व्यक्ति की हो जाएं तो ये आपसी रंजीसें कब की ख़त्म हो सकती है और नेता फिर से हमको बांटने मे नाकामयाब हो जायेगा  क्योंकी मज़हब नही सिखाता आपस मे बैर रखना, हिंदी हैं हम वतन हैं हिन्दुस्तान हमारा। 

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25 जून 2016

क्या ये तीसरे विश्व-युद्ध का आगाज़ है ?


तो क्या रूस  यूरोप पर कब्ज़ा करना चाहता है ? क्या रूस सिर्फ़ 36 घंटों में यूरोप के एक बड़े हिस्से पर कब्ज़ा कर लेगा ? आख़िर क्या चाहते हैं रूस के राष्ट्रपति ‘ब्लादीमीर पुतिन’ ? क्या ये तीसरे विश्व-युद्ध का आगाज़ है ? ज़रा सोचिए कि क्या वाकई  में कोई देश सिर्फ 36 घंटों में यूरोप के एक बड़े हिस्से पर कब्ज़ा कर सकता है ? क्या ये मुमकिन है ? ।


रूस सिर्फ़ 36 घंटों में यूरोप के एक बड़े हिस्से को कब्ज़े में कर सकता है lयह बात अमेरिका के एक फ़ौजी जनरल ने कही है l उनका कहना है कि अगर रूस के राष्ट्रपति पुतिन को गुस्सा आ जाए तो सिर्फ़ 36 घंटों के भीतर ही रूस यूरोप के बड़े हिस्से पर कब्ज़ा कर सकता है l इस बात से तो आप सभी वाकिफ़ होंगे कि शुरुआत से ही रूस और अमेरिका दुनिया की दो सुपर पावर्स रहीं हैं और हमेशा से ही दोनों देशो को एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ मची रहती है ताकि विश्व मे नंबर वन बने रहने पर दुसरे देशों को हथियारों की आपूर्ति बनी रहे और देश की मुद्रा मे बढ़ोतरी हो   l यही वजह है कि हमेशा से ही इन दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण स्थिति रहती है l दरअसल पुतिन के गुस्से की वजह है नाटो (NATO) जिसका मुखिया ‘अमेरिका’ है 


नाटो  ‘द नार्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गेनाइजेशन’ (The North Atlantic Treaty Organization) l यह एक फ़ौजी गठबंधन है जिसकी स्थापना 1949 में की गई थी l दुनिया के 28 देशों को नाटो की सदस्यता प्राप्त है l कहा जा रहा है कि नाटो की नींव तो कई साल पहले रखी गई थी मगर नाटो ने काम करना तो अभी कुछ साल पहले ही शुरू किया है l कई जानकारों का मानना है कि नाटो के जरिए अमेरिका रूस को दबाने की कोशिश कर रहा है क्योंकि अमेरिका नाटो का मुखिया है l कहा जाता है कि पुतिन को नाटो से सख्त नफ़रत है l उनका मानना है कि नाटो छल और कपट का दूसरा नाम है l पुतिन के अनुसार नाटो का काम सिर्फ रूस को भड़काना है, इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं l


 दरअसल पुतिन को अपने  की सरहद पर नाटो देशों की फ़ौज कतई बर्दाश्त नहीं है l पुतिन का गुस्सा

 इस हद तक बढ़ गया कि पुतिन ने आज ‘अल्टीमेटम’ दे दिया l पुतिन के अल्टीमेटम के बाद अमेरिका के

 एक फ़ौजी जनरल ने ये भविष्यवाणी कर दी कि सिर्फ़ 36 घंटों में रूस यूरोप के एक बड़े हिस्से पर 

कब्ज़ा कर लेगा l पुतिन के इस अल्टीमेटम का सीधा इशारा अमेरिका पर है l पुतिन का कहना है कि

 अगर रूस पर कोई हमला करने की कोशिश करेगा तो रूस उसका मुँह-तोड़ जवाब देगा l पूरी दुनिया

 इस बात से वाकिफ़ है कि रूस अत्याधुनिक मिसाइलों से सराबोर है l 

               


रूस ने SATAN-2 मिसाइल बना ली है l रूस की इस मिसाइल से अन्य देश थर-थर कांपते हैं l  ये 

मिसाइल 10 हजार किलोमीटर दूर तक मार सकती है l इस मिसाइल की खासियत है कि ये बेहद तेज

 गति से 7 किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से चलेगी l इस मिसाइल के आगे अमेरिका के ‘एंटी-मिसाइल

 सिस्टम’ भी फ़ैल हो जायेंगे l कहा जाता है कि रूस की ये मिसाइल फ्रांस जैसे देश को एक ही वार में 

तबाह कर सकती है l SATAN-2 अगर ब्रिटेन पर गिरेगी तो पूरा ब्रिटेन खत्म हो जाएगा यहाँ तक की

 नीदरलैंड, उत्तरी फ्रांस और बेल्जियम तक असर होगा। गौर करने वाली बात ये है कि रूस की इस मिसाइल

 को SATAN-2 नाम रूस ने नहीं बल्कि 28 देशों के जंगी गुट नाटो ने दिया है। 

                                  

पुतिन के अल्टीमेटम के बाद पूरी दुनिया में ख़लबली मच गई है l पुतिन ने इस तरह चेतावनी देकर ये

 साफ़ कर दिया है कि रूस नाटो के हमलावर रवइये को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेगा l पुतिन की इस चेतावनी

 के बाद अमेरिका के एक फ़ौजी जनरल ने कहा कि रूस 36 घन्टों के अंदर ही यूरोप के एक बड़े हिस्से पर

 कब्ज़ा कर सकता है l फुजि जनरल की इस भविष्यवाणी से सिर्फ़ अमेरिका ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया

 ही सन्न रह गई लेकिन अमेरिकी फ़ौज का जनरल हॉजेस  तो नाटो को सिर्फ़ सावधान कर रहा है।













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24 जून 2016

Horror Park, its hell not heaven.

                                         
                              बौद्ध धर्म को सभी धर्मों में सबसे शांतिप्रिय धर्म माना जाता है. हालांकि इस पर भी सभी के अलग-अलग मत हो सकते हैं. पर आज हम आपको जो दिखाने वाले हैं, उसे देखकर आप इस बात को कभी स्वीकार ही नहीं कर पायेंगे कि बौद्ध धर्म शांतिप्रिय और अहिंसा वाला धर्म है. ये मैं नहीं, बल्कि बौद्ध धर्म के खुद के डरावने-हॉरर निरुपणों से साबित होता है. अत्यंत डरावने, खूनों से लथपथ खूनी प्रतिमाएं, वेदनाओं की पराकाष्ठा, यातनाएं और अनंत और असीमित दर्द की दास्तां है ये थाईलैंड का पार्क. अगर आप नर्क की कल्पना कर सकते हैं, तो कीजिए. पता नहीं मैं जिस तरह के नर्क की बात करने वाला हूं, उस तरह की कल्पना भी कर रहें है या नहीं. लेकिन सच कहूं, तो मैं आपको ऐसे काल्पनिक नर्क का दर्शन करवाऊंगा कि उसे देखने मात्र से ही आपको नर्क की कल्पना से भी आपकी रूहें सिहर उठेंगी. 
थाइलैंड के इस पार्क का विज़ुअल निरूपण इतना भयंकर, डरावना, दुखदायी और यातनापूर्ण है कि आपको डर नहीं, बल्कि बहुत डर लगेगा. थाईलैंड में 'The Wang Saen Sek नर्क गार्डेन' या 'थाईलैंड नर्क हॉरर पार्क' के नाम से मशहूर है ये गार्डेन. इस गार्डेन का विज़ुअल ग्राफिक रिप्रजेंटेशन बौद्ध शास्त्र में वर्णित नर्क पर आधारित है. कहा जाता है कि इस पार्क में जिस तरह के दृश्य का निरुपण किया गया है, वह वैसा ही नर्क है, जिस तरह का वर्णन बौद्ध धर्म में किया गया है.
मैं जानता हूं, आप भी इंसान हैं. जब आप नर्क की कल्पना मात्र से ही इतने सहम जाते हैं, तो सोचिये अगर ठीक इस पार्क में नर्क का जैसा विज़ुअल चित्रण किया गया है, वैसी ही सज़ा आपको भी दी जाए तो?जैसा आपने और हमने बचपन में नर्क के बारे में सुना था सब कुछ आपको वैसा ही मिलेगा. यहां सबको उसके पाप के अनुसार सज़ा दी जा रही है. आप इन तस्वीरों में देख सकते हैं कि इंसानों को कुत्ते बेरहमी से काट-काट कर खा रहे हैं, मार रहे हैं. कुछ को खौलते हुए तेल की कढ़ाई में ज़िंदा डाला जा रहा है, कुछ को जानवरों के सरदारों को भक्षण के लिए दिया जा रहा है. चारों तरफ खून-खराबा. सच में काफी भयावह है यह नर्क.यह बौद्ध धर्म का नर्क सिर्फ़ नर्क में मिलने वाले दंड का ही प्रतिनिधित्व नहीं करता, बल्कि यह बुरे कर्म अथवा कुकर्म करने वाले इंसान को नर्क में मिलने वाली दर्दनाक सज़ा से अवगत कराता है. साथ ही इस गार्डेन में मौजूद सभी चित्रण का मुख्य उद्देश्य है कि आप जिस तरह के कर्म करेंगे, आपको उसी तरह की सज़ा मिलेगी.
खैर, ये पार्क बौद्ध धर्म से ताल्लुककात रखता हो या नहीं, पर इतना तो ज़रूर है कि यह पर्यटकों के लिए एक बेहतरीन स्थान है. साथ ही यह पर्यटकों के लिए सांस्कृतिक समृद्धि के खजाने को दिखाने का दावा भी करता है. अगर आप इस पार्क से कुछ सीखना चाहते हैं, तो अच्छे कर्म करना सीखिये, ताकि हकीक़त में भी आपको ऐसे नर्क का सामना ना करना पड़े.
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23 जून 2016

दुनिया की सबसे खतरनाक सड़क


रोमांचक सफर पर ड्राइविंग करना आखिर किसे पसंद नहीं होता, लेकिन आप को ड्राइविंग के लिए ऐसी जगह पर भेजा जाए जहां की सड़कों पर एक तरफ कूंआ तो दूसरी तरफ खाई जैसे हालात हों तो शायद आप नहीं जाना चाहेंगे।

दरअसल दुनिया में कुछ ऐसी सड़के हैं जहां ड्राइविंग करना कोई बच्चों का खेल नहीं है, क्योंकि इन रास्तों पर हर पल मौत के साथ खेलना पड़ता है। इसके बावजूद ऐसी सड़कों पर लोगों का आना-जाना बना रहता है।ऐसी ही एक सड़क बोलिविया के युंगास प्रांत में है, जिसे ‘द रोड ऑफ डेथ’ के नाम से जाना जाता है। इसे दुनिया की सबसे खतरनाक रोड का दर्जा मिला है। बोलिवियन एंडीज में स्थित इस सड़क की लंबाई 64 किलोमीटर है, जो लंबी, संकरी होने के साथ-साथ फिसलन से भरी है। इस कारण से ड्राइविंग के दौरान गाड़ियों के टायर नीचे खाई की ओर स्लिप करते हैं।साथ ही  इसकी ढलानें भी बहुत गहरी और खतरनाक हैं। कई जगह ऐसी स्थिति है जहां दो कारें अगल-बगल से क्रॉस  नहीं कर सकतीं। इस सड़क पर ड्राइविंग करने और इससे गुज़रने वाले लोगों की सांसें रास्ता पार होने तक हलक में अटकी रहती हैं।यहां गाड़ी को घुमाना बहुत ही मुश्किल है। सड़क के किनारे रेलिंग भी नहीं है। ऐसे में यहां पर ज़रा-सी चूक का मतलब है मौत।  बेहतर से बेहतर ड्राइवर भी अपने रिस्क पर ही इस रोड पर सफर करता है। हालांकि ये सड़क कितनी खतरनाक है इसे शब्दों और फोटो के ज़रिए भी बता पाना आसान नहीं है।



वैसे बता दें अभी तक दुनिया की सबसे खतरनाक रोड के रूप में बोलिविया की डेथ रोड को जाना जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। हाल ही में किए गए एक रिसर्च के आधार पर dangerousroads.org वेबसाइट ने तुर्की के बेबर्ट डी915 रोड को सबसे डेंजरस माना है।तुर्की की ये सड़क 106 किलोमीटर से ज्यादा लंबी है, जो 6 हज़ार फीट ऊंची सोगान्ली माउंटेन पर बनी है। इसे 1916 में रूसी सैनिकों द्वारा बनाया गया था। इसका उपयोग ज्यादातर आस-पास के इलाकों में रहने वाले लोग ही करते हैं। ठंड में बर्फ़बारी की वजह से इसे बंद कर दिया जाता है।

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22 जून 2016

विनाश के समय बुद्धिमानो की बुद्धि को जंग कैसे लग जाता हे ।



कांग्रेस ने खुद को भारत की सत्ता और सियासत का पर्याय बनाने में जितना वक्त लगाया है, विपक्ष के रूप में उसकी अधीरता और अनिश्चितता निराशाजनक है। कांग्रेस राष्ट्र निर्माण के यज्ञ में अपनी उपलब्धियों को बता सकती है, लेकिन यूपीए सरकार के एक दशक के दुर्घटनापूर्ण शासन उसकी उपलब्‍धियों को मटियामेट कर देता है।
दरअसल, सत्ता से बाहर होने के बाद अब कांग्रेस के सामने समस्या यह है कि वे मोदी सरकार को चाहे किसानों का संकट बताएं या बेरोजगारी की चुनौती गिनाएं, ऐसे मुद्दों पर उनकी अपनी विफलता और जिम्मेदारी के सवाल परिपक्व होते भारतीय लोकतंत्र की स्वाभाविक अपेक्षा और प्रतिक्रिया है। जाहिर है कांग्रेस विपक्ष में होकर भी सत्ता में रहेगी, और भाजपा का सत्ता में होकर भी कांग्रेस के प्रति विपक्षी रवैया बनाए रखना कांग्रेस की चिंता है।
कांग्रेस ने या यों कहें कि गांधी परिवार के नेतृत्व में कांग्रेस की सत्ता में वापसी साल 1980 में इंदिरा ने कराई थी, तब जनता सरकार का प्रयोग विफल हो गया था और कांग्रेस ही एकमात्र विकल्प थी। लेकिन मौजूदा दौर तीन कारणों से ऐतिहासिक है, पहला, केंद्र में सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ‘जनता पार्टी सरकार’ नहीं है, दूसरा कि, प्रधानमंत्री मोदी भले गुजरात से हों, लेकिन वे ‘मोरारजी देसाई’ नहीं हैं, तीसरी बात कि भाजपा में किसी ‘चौधरी चरण सिंह’ की संभावना नहीं है। यानी कांग्रेस के पास विकल्प यही है कि वह अपनी राजनीतिक जमीन को लगातार गंवाते जाने के क्रम को रोके और नेतृत्व अपनी भूमिका, योग्यता और क्षमता को साबित करें।
आसाम में हेमंत विश्‍वशर्मा से लेकर महाराष्ट्र के गुरूदास कामत के प्रकरण तक पार्टी नेतृत्व की उदासीनता और संवादहीनता की चर्चा सार्वजनिक हो चुकी है। क्या यह हास्यास्पद नहीं है कि पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए छत्तीसगढ़ के दिग्गज नेता अजीत जोगी को कांग्रेस की अनुशासन समिति ने लंबे समय से विचाराधीन प्रकरण पर निलंबन का फैसला तब सुनाया, जब उन्होंने कांग्रेस छोड़कर नई पार्टी बना ली। वामपंथी दलों के शासित राज्य त्रिपुरा में 6 कांग्रेस विधायकों का तृणमूल कांग्रेस में शामिल होना कांग्रेस-वामपंथ के बंगाल में महाजोत के असर की पहली रणनीतिक दुर्घटना है, केरल इसकी अगली कड़ी होगी।

दरअसल, कांग्रेस के दरकते  हालात कांग्रेस में गांधी-आलाकमान को ‘नेहरूवादी’ नहीं मानो ‘लोहियावादी’ साबित करते हैं। वह लोहिया जो पुराने पड़ चुकी व्यवस्था से उपजी संस्थागत बीमारियों से निजात पाने के लिए उसमें मामूली बदलाव और बाहरी रंगरोगन नहीं, बल्कि उन्हें पूरी तरह गिराकर नई जरूरत के अनुरूप नया निर्माण करने में विश्वास रखते थे। सवाल है कि कांग्रेस का नवनिर्माण क्या हो सकता है?
कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा कि कांग्रेस को ‘फ्रेश आइडिया’ और ‘जेनेरेशनल चेंज’ की जरूरत है, और राहुल में कांग्रेस पार्टी को सत्ता में वापस लाने की ‘क्षमता’ और ‘अनुभव’ दोनों है। तो सवाल है कि बीते 15 सालों से राहुल गांधी कैसी भूमिका में थे? क्या यह माना जाए कि सोनिया गांधी में ‘क्षमता’ और ‘अनुभव’ अब नहीं रहा? मेरा मानना है कि पार्टी प्रियंका गांधी के रूप में मौजूदा आखिरी विकल्प को आजमाने के लिए आगामी उत्तरप्रदेश चुनाव बनाम 2019 के लोकसभा चुनाव में से बेहतर संभावना और कमतर जोखिम का आकलन कर रही है।
वहीं कांग्रेसी राहुल की अध्यक्ष पद पर प्रोन्नति को बिहार में करारी चुनाव हार के बाद भी अमित शाह को दोबारा भाजपा अध्यक्ष चुने जाने के निर्णय जैसा आश्चर्यजनक बनाना चाहती है, जबकि हकीकत यह है कि कांग्रेस के संगठनात्मक बदलाव और नये नेतृत्व का निर्णय उनके अपने आत्मविश्वास पर नहीं, बल्कि गैर-भाजपावाद और उत्तरप्रदेश में भावी गठबंधन की संभावना पर अटक गई है। तो क्या राहुल, इंदिरा हैं?
आजादी के बाद कांग्रेस में विभाजन का दौर आने में लगभग 20 साल लगे। इंदिरा ने भी ‘इंदिरा कांग्रेस’ बनाई और 21वीं सदी आते-आते इंदिरा कांग्रेस दोबारा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नाम-रूप में आ गई। लेकिन बीते दो सालों में कांग्रेस अपनी वैचारिक जमीन, जनमत और चुनावी जमानत के साथ-साथ स्थानीय नेताओं को भी गंवाती जा रही है। लेकिन जरा इंदिरा के पार्टी अध्यक्ष बनने की घटना को समझें क्योंकि उस दौर में भी कांग्रेस हारने लगी थी, जिम्मेदारियों को न उठा पाने के अपने आकलन के आधार पर इंदिरा ने 1959 में नागपुर के कांग्रेस अधिवेशन से पहले पार्टी अध्यक्षा बनने से इंकार कर दिया था।
यही नहीं गृहमंत्री जीबी पंत और कांग्रेस अध्यक्ष यूएन ढेबर के दबाव में इंदिरा तैयार तो हो गर्इं, लेकिन उसी रात उन्होंने फिर से अपना मन बदल लिया। तब पंत ने उन्हें बताया कि सुबह के अखबारों में इंदिरा के अध्यक्ष बनाए जाने की खबर जा चुकी है। अगले दिन अखबारों में इंदिरा की अयोग्यता को लेकर टिप्पणियां और लेख छपे। ऐसी टिप्पणियों ने इंदिरा को न केवल खुद को साबित के लिए प्रेरित किया, बल्कि उन्हें एहसास था कि यदि वे अध्यक्ष नहीं बनतीं, तो उनका मजाक बनाया जा सकता था।
क्या राहुल गांधी प्रेरणारहित हैं और उनकी क्षमताओं को लेकर होने वाली चर्चाएं उन्हें प्रभावित नहीं करते? करते होंगे, लेकिन कांग्रेस आलाकमान स्तर से लगातार अदूरदर्शी फैसलों से संकेत मिलता है कि गांधी परिवार में नेतृत्व को लेकर भीतरी और भारी असमंजस है।
मधु लिमये ने एक जगह लिखा है कि, "महात्मा गांधी राष्ट्रीय आंदोलन के हित में दो बैलों, नेहरू और पटेल की जोड़ी को जोत चुके थे लेकिन लोहिया और जेपी को जनक्रांति की बैलगाड़ी में जोतने वाला कोई गांधी न था।" राहुल और प्रियंका के रूप में कांग्रेस के पास "उत्तराधिकारी गांधी" तो हैं, लेकिन आंदोलन और विजन की प्रेरणा देने वाला कोई नया 'महात्मा गांधी' नहीं है।
साल 1966, क्रिसमस के दिन इंदिरा ने प्रेस से बातचीत में अपने विरोधियों को लेकर कहा था कि, ‘अब सवाल यह है कि पार्टी किसे चाहती है और देश की जनता किसे चाहती है? देश की जनता के बीच मेरी लोकप्रियता और साख निर्विवादित है।’ क्या कांग्रेस प्रथम परिवार इंदिरा के इस जवाब को दुहराने का साहस रखते हैं? यही कांग्रेस की सीमा और समस्या है, तो क्या एक विकल्प यह हो सकता है कि कांग्रेस में मार्गदर्शक मंडल की संभावना पर विचार किया जाए? 

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21 जून 2016

गमछा पहने मोहल्‍ला घूमने वाले मर्द



हिन्दुओं में घूंघट का महत्त्व समझाते हुए कहा कि मर्दों की गंदी और कामुक नज़र से बचने का स्त्रियों के पास यह आज़माया हुआ तरीक़ा है, इसीलिए हमारे धर्मगुरुओं ने जवानी की दहलीज़ पर कदम रखती औरतों के लिए परदे की तजबीज की है।
औरतों के परदे से बाहर आकर स्कर्ट, जींस और टॉप जैसे विदेशी परिधान अपनाने के बाद ही समाज में कामुकता, बेहयाई और बलात्कार बढ़े हैं। मैंने कहा कि अगर समस्या मर्दों से है, तो सदियों से इसकी सज़ा औरतों को क्यों दी जा रही है ? खुद अंडरवियर और गमछे पहनकर पूरा टोला-मोहल्ला घूमने वाले आप मर्द औरतों को शालीनता के साथ भी अपनी पसंद के कपड़े पहनने से रोकने वाले कौन होते हो?
औरतों को सामान की तरह सात पर्दों में लपेट कर रखने से बेहतर तो यह होता कि हमारे धर्मगुरु जवानी की दहलीज़ पर कदम रखते ही दुनिया के सभी मर्दों की आंखें फोड़ देने का फ़रमान ज़ारी कर देते। कम से कम दुनिया की आधी आबादी तो सुरक्षित हो जाती। न कहीं छेड़खानी होती, न बलात्कार, न अश्लील और ब्लू फ़िल्में बनती और देखी जातीं और न अय्याशों के आगे डांस बार या कैबरे में औरत को नंगी-अधनंगी होकर नाचने की ज़िल्लत उठानी पड़ती।
रही बात मर्दों के अंधे होने के बाद घर-परिवार, समाज, देश और दुनिया को चलाने की तो यह कोई मुश्क़िल बात नहीं। घर चलाने की ज़िम्मेदारी हम अंधे मर्दों पर। मर्द अगर घर में रहें तो दुनिया से अपराध भी ख़त्म हो जाएंगे, आतंकवाद भी और बेमतलब के युद्ध भी। घर के बाहर का ज़िम्मा स्त्रियों को। यक़ीन मानिए, वे समाज, देश और दुनिया को हम मर्दों से बहुत बेहतर चला लेंगी। 

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20 जून 2016

प्रसिद्द सेलिब्रटीज जिन्होंने हिन्दू धर्म अपना लिया


समूचे विश्व की  बड़ी बड़ी हस्तियाँ जिन्होंने जन्म तो किसी और धर्म और सम्प्रदाय में लिया किन्तु शांति को ढूंढते ढूंढते अंत मे  सनातन धर्म के  प्रभाव में आये और हिंदू धर्म अपना लिया l इस लिस्ट में बहुत ही बड़ी बड़ी हस्तियों के नाम शामिल है l आइये देखते है कौन कौन से नाम है जिन्होंने हिंदुत्व को अपना लिया l

जूलिया रोबर्ट्स

                                          

जूलिया रोबर्ट्स फिल्मो की दुनिया मे जाना पहचाना नाम है। जूलिया ईसाई धर्म से धर्म परिवर्तन करके हिन्दू बनी जब वो 2010 में ईट,प्रे और लव जैसी फिल्मे कर रही थी l

जॉन कोल्ट्रेन 


जॉन का जन्म एक ईसाई परिवार में हुआ। उन्होंने बहुत से धर्म अपनाये जैसे हिन्दूइज्म, बौद्ध और जैनिज्म शामिल है l जॉन से उनके लीवर कैंसर के लिए उनके अंतिम दिनों में किसी हिन्दू ध्यान आरोग्य के संपर्क में आने के लिए कहा गया था l जहां उन्होंने सनातन धर्म के ध्यान योग की शिक्षा ली और इसी को अपना लिया।


M.I.A.


श्रीलंका में रहते हुए M.I.A. ने  हिंदू एंड कैथोलिक कान्वेंट स्कूल में पढाई की l उनका कहना है कि  जो आनंद और भक्ति की उनको जरूरत थी वः उन्हें हिंदुत्व को धारण करके मिली।


जॉर्ज हैरिसन


जॉर्ज हैरिसन 1960 के मध्य में  ईसाई धर्म छोड़कर हिन्दू धर्म मे शामिल हो गए l जब 2001 में उनकी म्रत्यु हुई तो उनकी इच्छानुसार  उनकी अस्थियाँ भारत में गंगा और यमुना नदी में प्रवाहित की गयी l


रसेल ब्रैंड


रसेल ब्रैंड ने हिन्दू धर्म का बहुत अध्यन किया है और वो भावातीत ध्यान के मुखर समर्थक हैl उन्होंने जब 2010 में कैटी पैरी से शादी की तो ये शादी पूर्ण रूप से हिन्दू धर्म की मान्यताओ पर आधारित थी और इसका आयोजन भारत के राजस्थान  राज्य में हुआ था l

जेरी गार्सिया



जेरी ने अपनी युवावस्था से ही हिन्दू धर्म को जाना और समझा  और इसके सम्पर्क में रहे l जब 1995 में उनकी म्रत्यु हुई तो उनकी अस्थियाँ भारत की पवित्र नगरी ऋषिकेश के नदी गंगा में प्रवाहित की गयी l


KRS-ONE


KRS-one एक आध्यात्मिक व्यक्ति है जिन्होंने “The Gospel of Hip Hop” नामक पुस्तक लिखी है l इनका मानना है कि भगवान से गहरा रिश्ता रखने के लिए किसी भी प्रकार के संगठित धर्म की कोई आवश्यकता नही है लेकिन इनका खुद का नाम हिन्दू भगवान श्री कृष्ण के नाम पर है l


लुइस बैंक्स


लुइस बैंक्स भारत में एक हिन्दू घर में पैदा हुए थे l इन्हें भारतीय जैज के पितामह के रूप में जाना जाता है l


रवि कॉलट्रेन






 जॉन कॉलट्रेन  ने अपने पिता की इच्छा के अनुरूप हिन्दू धर्म अपना लिया था ताकि अपने पिता को सच्ची श्रृंद्धांजली अर्पित की जा सके । अपने पिता की तरह रवि भी एक हिन्दू ही है l


 काल पेन 


काल पेन का जन्म न्यूजर्सी में हुआ था और वो एक हिन्दू घर में पले बड़े l जिस कारण इन्होंने सारा जीवन हिन्दू मान्यताओं पर जिया। इनके दादा दादी ने महात्मा गाँधी के साथ भारत की स्वतंत्रता के लिए आन्दोलन भी किया था l
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