14 जून 2016

नीम करौली बाबा – जीवन परिचय।

मानव सभ्यता के विकास से ही भारत संत,योगी, ऋषी-मुनियों और महापुरुषों  की तपस्थली रही है। पुरातन काल से  लेकर अभी तक भारत ने बहुत से महापुरुषों की लीलाओं को देखा है, महापुरुषों ने अपने श्रेष्ट कर्म कर समाज के सामने उच्च मूल्य स्थापित करके प्रेरणा दी है और साथ ही आध्यात्म जगत को स्थापित करने मे अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। संतो की पावन भूमि को हमेशा संतो  के अनुयायियों ने ही संभाला और सजोया है। उनका आचरण  और उन्हें प्राप्त दैवीय शक्तियां हमारे जीवन को प्रकाशवान करते हैं।उनका जीवन समाज के लिए प्रेरणादायक बन जाता है। एक ऐसे ही परम संत शिरोमणी नीम करौली बाबा जी भी रहे, जो श्री राम जी के परम भक्त तो थे ही बहुत से लोग तो उन्हें आज भी साक्षात हनुमान जी का रूप मानते हैं। उन्होनें बहुत लोगों की निराश जिंदगी मे अपनी कलाओं के माध्यम से प्रकाश भरा, उनको सकारात्मक जीवन मार्गदर्शन दिया और शक्तियां प्रदान की । आज भी उनके द्वारा स्थापित और उनके भक्तों के द्वारा स्थापित जहां जहां उनके मंदिर है उनके दरबार में भक्तों का तांता लगा ही रहता है। बाबा किसी भी भक्त में भेदभाव नहीं करते थे, चाहें वह भक्त धनवान हो या फिर नितांत निर्धन , लाचार और गरीब ही क्यों न हो । 

नीम करौली बाबा या नीब करौरी बाबा महाराज जी की गणना बीसवीं शताब्दी के सबसे महान संतों में होती है।नीम करौली बाबा जी का जन्म स्थान अत्तरप्रदेश के फ़िरोज़ाबाद जिले के अकबरपुर ग्राम मे हुआ था।

पहले की प्रथा के अनुसार जब कम उम्र मे ही नाबालिकों को शादी के बंधनो मे बांध दिया जाता था इसी प्रकार महज 11 वर्ष की उम्र में ही उनके घर वालों ने बाबा की शादी करा दी गई थी पर अध्यात्म और ईस्वर भक्ति की तरफ रुझान होने के कारण उन्होंने शादी बाद अपने घर को छोड़ दिया। एक दिन उनके पिताजी ने उन्हें नीम करौली नामक ग्राम के आसपास देख लिया था । यह नीम करौली ग्राम खिमसपुर , फर्रूखाबाद के पास ही स्थित है। बाबा को फिर आगे इसी नाम से जाना जाने लगा। माना जाता है कि लगभग 17 वर्ष की उम्र में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी। घर-त्यागने  के बाद बाबा उत्तर भारत के जंगलों मे विचरण करने लगे थे। इस समय के दौरान उन्हें लक्ष्मण दास, हांडी वाला बाबा , और तिकोनिया वाला बाबा सहित कई नामों से जाना जाता था। इसी प्रकार जब उन्होंने गुजरात के ववानिया मोरबी में तपस्या प्रारंभ की तब वहाँ उन्हें लोग तलईया बाबा के नाम से जानते थे
वृंदावन में स्थानीय निवासियों ने  बाबा को चम बाबा के नाम से  संबोधित किया। उनके जीवन काल में दो बड़े आश्रमों का निर्माण हुआ।पहला वृदांवन में और दूसरा कैंची में। बाबा गर्मियों के इन स्थानों मे आते थे । उनके समय में 100 से ज्यादा मंदिरों का निर्माण उनके नाम से हुआ था। नीम करौली बाबा हनुमानजी के बहुत बड़े भक्त थे। उन्हें अपने जीवन में लगभग 108 हनुमान मंदिर बनवाए थे। वर्तमान में उनके हिंदुस्तान समेत अमरीका के टैक्सास में भी मंदिर हैं।
कैंची आश्रम मे बाबा नीम करौली अपने जीवन के अंतिम दशक में रहे थे । इस धाम का  निर्माण 1964 में हुआ था। आश्रम मे हनुमान जी का भी मंदिर बनावाया गया था। बाबा को वर्ष 1960 के दशक में अन्तरराष्ट्रीय पहचान मिली। उस समय उनके एक अमरीकी भक्त बाबा राम दास ने एक किताब लिखी जिसमें उनके अध्यात्मक जीवन और शक्तियों का उल्लेख किया गया था। इसके बाद से पश्चिमी देशों से भारी तादात मे श्रद्धालु लोग उनके दर्शन तथा आर्शीवाद लेने के लिए आने लगे। बाबा ने अपने शरीर को 11 सिंतबर , 1973 को छोड़ दिया था। बाबा हम सभी के लिए प्रेरणा के स्रोत थे, मान्यता है कि हनुमान जी को अमरता का वरदान हासिल होने के कारण इस युग में हनुमान जी को नीम करौली बाबा के नाम से जाना जाता है।
कैंची आश्रम कुछ वर्षों मे ही अब हनुमान जी के श्रद्धालुओं का महत्वपूर्ण धाम बन गया है जो  नैनीताल – अल्मोड़ा सड़क पर नैनीताल से 17 किमी मे स्थित है । 15 जून को कैंची धाम मे मेला होता है तब मंदिर में लाखों श्रद्धालु आतें हैं और प्रसाद पातें हैं। फेसबुक तथा एप्पल के संस्थापकों मार्क जुकरबर्ग और स्टीव जॉब्स को राह दिखाने वाले नीम करौली बाबा पश्चिमी देशों में भारत की विरासत का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके आश्रम में जहां न केवल देशवासियों को बल्कि पूरी दुनिया से आने वाले श्रद्धालुओं को आत्मिक शांति मिलती है बल्कि सच्चे ह्रदय से माँगी मुह माँगी मुरादी भी पूरी होती है। वहीं दूसरी ओर भारत देश की प्राचीन सनातन धर्म की संस्कृति का भी प्रचार प्रसार होता है। हमेशा एक कम्बल ओढ़े रहने वाले बाबा के आर्शीवाद के लिए भारतीयों के साथ साथ बड़ी-बड़ी विदेशी हस्तियां भी उनके आश्रम पर आती हैं। 

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